नव संवत्सर प्रारम्भ हो चुका है। नवरात्र-व्रत-पूजन चल रहा है। देवी उपासना दर्शन पूजा का समय है। ज्ञान भी तरह तरह के चिन्तन में लगे हैं – मूल तत्व, म्यूल तत्व जैसा कुछ अजीब चिन्तन। पारस पत्थर तलाश रहे हैं।
श्रीमती रीता पाण्डेय की पोस्ट। एक निम्न-मध्यवर्गीय यूपोरियन (उत्तरप्रदेशीय) माहौल में सरकारी नौकरी का महत्व, पुत्र रत्नों की आवश्यकता और दहेज के प्रति जो आसक्ति दीखती है - वह अनुभूत सत्य उन्होंने आज लिखा है।
मैं ही छुद्र प्राणी हूं। छोटी-छोटी पारिवारिक समस्याओं में उलझी हूं। कूलर का पंखा और घास के पैड बदलवाये हैं आज। भरतलाल की शादी होने जा रही है। उसकी पत्नी के लिये साड़ी कहां से खरीदवाऊं, अटैची कौन से रंग की हो। इन छोटे छोटे कामों में ही जीवन लगे जा रहा है। व्यर्थ हो रहा है जीवन। मुझे इससे ऊपर उठना ही होगा।
यह सोच जैसे ही मैने सिर ऊपर उठाया – एक महान महिला के दर्शन हुये। वे नवरात्र का नवदिन व्रत करती हैं। रोज गंगा स्नान करती हैं। पैदल जाती हैं। मुहल्ले की रात की शांति की परवाह न करते हुये रात्रि जागरण करवाती हैं। उनके ही अनुसार उन्हें धन का तनिक मोह नहीं है। जो कुछ धन था, उसका सदुपयोग कर घर का फर्श-दीवार संगमरमर से मिढ़वा दिया है। घर ताजमहल बन गया है। सब उनके पति की सरकारी नौकरी का महात्म्य है!
भगवान की कृपा से उनके अनेक हीरे हैं। प्रत्येक को तलाशते कई मोतियों के अभिभावक दहेज नामक मैल की थैलियां लिये घूम रहे हैं। उनकी समस्या है कि किस मोती और कितने मैल को स्वीकार करें। वे बात बात में एक दूसरी महिला को ज्ञान बांटती हैं – “अरे अब तुम्हारे पति की सरकारी नौकरी लग गयी है, अब एक बच्चे पर क्यों रुक रही हो। अब तो इत्मीनान से पैदा करो।”
इतने महत्वपूर्ण ज्ञान के प्रकाश से आलोकित कर दिया है मुझे कि इस ज्ञान को सर्वत्र फैलाने का मन हो रहा है। भारत के नव युवक-युवतियों उठो, सरकारी नौकरी पर कब्जा करो और हिन्दुस्तान की धरती को पुत्र रत्नों से भर दो। भविष्य तुम्हारा और तुम्हारे पुत्रों का है। उनके माध्यम से सब संपदा तुम्हारी होगी!
जय हिन्द! जय जय!
श्रीमती रीता पाण्डेय का उक्त धर्मनिष्ठ महिला के विषय में पोस्ट स्क्रिप्ट - पुछल्ला:
फलाने की अविवाहता बिटिया गंगा में डूब गयी थी। दुखद प्रसंग था। पर चर्चा चलने पर इन दिव्य महिला ने कवित्त बखाना:
बिन मारे दुसमन मरे, खड़ी ऊंख बिकाय।
बिन ब्याही कन्या मरे, यह खुशी कहां समाय॥
बहुत बढ़िया, सिर्फ यही कह सकते हैं जय हो!!
ReplyDeleteक्या कहें: जय हो!!
ReplyDeleteकैसे कैसे बस रहे इन्सान
कन्याओं का हो रहा दान
बेटे सबके बिकाऊ हो गये
फिर भी मेरा भारत महान!!
यही है निम्न-मध्यवर्गीय यूपोरियन सत्य ?
ReplyDeleteउत्तर प्रदेशीय के लिये ’यूपोरियन’ मैंने पहली बार पढ़ा । क्या इसका उपयोग पहले भी किसी पोस्ट में किया है !
हे भारत माता ! आप भी किसी की पुत्री हो...
ReplyDelete"धरत्री पुत्री तुम्हारी , हे अमित आलोक "
जन्मदा मेरी वही है, स्वर्ण गर्भा कोख "
( स्व. पँ. नरेन्द्र शर्मा की काव्य पँक्तियाँ )
कब गौरव प्राप्त करेगी यह कन्या सन्तान ?
- लावण्या
लेखिका ने नि:सन्देह एक अच्छा सन्देश देने का प्रयास किया है . किन्तु यहाँ वे अपना नेचुरल गेम खेलती हुई प्रतीत नहीं हुईं . ऐसा लगता है कि इस पोस्ट में किसी बेचैन व्यक्ति के विचारों की मिलावट हो गई है !
ReplyDeleteऊपर उठने का यह प्रयास विफ़ल रहा !
यूपोरियन एक नया शब्द जो हम लोगो को यू.पी वाले भैय्या की जगह लेगा . सरकारी नौकरी कहाँ तक सही है आर टी ओ मे ड्राईवर के लिए १० लाख की रिश्वत रेट था और लोग राजी थे .
ReplyDeleteसरकारी मतलब असरकारी। जय हो। बच्चे बिक गये बहू लाने के लिये।
ReplyDelete@हिमांशु
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उत्तर प्रदेशीय के लिये ’यूपोरियन’ मैंने पहली बार पढ़ा । क्या इसका उपयोग पहले भी किसी पोस्ट में किया है !
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ज्ञानजी की विशेषता है यह।
कहीं न कहीं से, नये शब्द coin करने में माहिर है.
अच्छा लगा यह शब्द।
पहले सोचा "European" लिखने में गलती हुई है।
फ़िर बात समझ में आई
इन देवी माता की ही जयजयकार हो रही है हर तरफ!
ReplyDeleteभारत के नव युवक-युवतियों उठो, सरकारी नौकरी पर कब्जा करो और हिन्दुस्तान की धरती हो पुत्र रत्नों से भर दो ... बढिया व्यंग्य है भारतीय मानसिकता पर।
ReplyDeleteइन छोटे छोटे कामों में ही जीवन की सार्थकता है ! रही बात उन यूपियरिनों की तो उन्ही की बदौलत ही तो यह सामाज रसातलोन्मुख है !
ReplyDeleteइस शानदार व्यंग्य के लिए रीता भाभी को बधाई!!
ReplyDeleteयह टंटा यूपोरियन नहीं अखिल भारतीय है। वहाँ भी जहाँ पुरुषों के स्थान पर स्त्रियों का मोल लगाया जाता है, पुरुष ही उन के मोल का हकदार है।
पहला तो ये कि "यूपोरियन" को गलती से "यूरोपियन" पढ गये और जोर का झटका धीरे से लगा लेकिन संभल गये, :-)
ReplyDelete"...भगवान की कृपा से उनके अनेक हीरे हैं। प्रत्येक को तलाशते कई मोतियों के अभिभावक दहेज नामक मैल की थैलियां लिये घूम रहे हैं।..."
हमारे पिताजी से कोई पूछ को देखे, बेचारे परेशान हैं कि एक ही है और वो भी कोयला, दहेज देकर भी काम बन जाये तो सस्ता समझो, :-) हम तो इसी डर से भारत आने का प्रोग्राम बनाते सहम रहे हैं। खैर जो ईश्वर की इच्छा।
भरतलालजी को हार्दिक बधाई। अच्छे से याद है वो ही साईकिल पर हमें खोजते चौराहे पर मिले थे और आपके घर के रास्ते के मार्गदर्शक बने थे।
यह वाकई सत्य है और ऐसे लोंगों का प्रतिशत ज्यादा है कि-भारत के नव युवक-युवतियों उठो, सरकारी नौकरी पर कब्जा करो और हिन्दुस्तान की धरती को पुत्र रत्नों से भर दो .महाकवि चच्चा की इन लाइनों को तो आपने सुना ही होगा जो की कमसे कम ८० साल पुरानी हैं ,लेकिन आज भी ताज़ी हैं कि 'देश बरे की बुताय पिया -हरषाय हिया तुम होहु दरोगा .
ReplyDeleteजय हो!!!
ReplyDeleteहमारे अंचल में एक कहावत कही जाती है - खेती में तरकारी और नौकरी में सरकारी :)
ReplyDeleteबहुत अच्छा संदेश
ReplyDelete"भारत के नव युवक-युवतियों उठो, सरकारी नौकरी पर कब्जा करो और हिन्दुस्तान की धरती को पुत्र रत्नों से भर दो। भविष्य तुम्हारा और तुम्हारे पुत्रों का है। उनके माध्यम से सब संपदा तुम्हारी होगी!"
जय हो !!!!!
काश हमारे विचार आपकी "महान महिला" के विचार जैसे जैसे ही होते तो आज परेशान नहीं रहते।
ReplyDeleteविडम्बना यह है कि इस यूपोरियन भद्रसमाज में यदि इस बुराई की चर्चा करिए तो ये लोग आपको ऐसे देखेंगे जैसे आप कितने बड़े मूर्ख हैं। दाँत निपोर कर अपनी उपलब्धि के नाम पर इन मोतियों को ही दिखाते रहेंगे भले ही वे मिट्टी के माधो हों।
ReplyDeleteऐसी धार्मिकता से बचाए भगवान.
ReplyDeleteएक ऐसे ही सज्जन से मैं मिल चुका हूँ। करीब १० साल पहले दिल्ली में। मर्चैंट नेवी में काम करते हैं वे। कहने को सरकारी नौकरी है, लेकिन उनके घर में कई दुकानें पहले से ही खुली हुयी थीं - किसी में खिलौने बिक रहे थे, किसी में दारू। और एक मंदिर भी था, जिसमें मूर्ति से बड़ा दानपात्र था। उनका घर किसी ताजमहल से कम नहीं। सारी दुनिया जब जून में लू से मरती है तब भी उनके घर के सभी ग्यारह कमरों में एसी की शीतल पवन बहती है।
ReplyDeleteअलबत्ता उनकी पत्नी बीमार थी, सो डागदर होने के नाते मैं वहाँ उन्हें देखने गया था। जाते-जाते उनकी पत्नीसाहिबा ने मेरे हाथ में अपना कार्ड थमाकर एक "फंक्शन" का न्यौता दे मारा था। मैं उस समय मात्र २० वर्ष का था, न्यौते को ठुकरा न पाया। "फंक्शन" में जाकर पता चला कि कुछ "MLM" का मामला है। और हमारे सज्जन साहब जब मंच पर चढ़े, तालियों के अंबार लग गये - वे उस संस्था के सबसे बड़े अधिकारी थे। उनकी पत्नीसाहिबा बाकी सब अनजान मर्दों के साथ ठहाके लगा-लगाकर हंस रहीं थीं। उन सभी ने भी वही कार्ड पाया जो मेरी हथेली में थमाया गया था।
बस यही कह सकता हूँ, "जय हो सरकारी नौकरी और उसका महातम्य!"
Among such, "Heere, Moti, Mail and sarkari naukari' its nice to being 'Shudra'. 'UPorian' is hilarious. You both are great craftpersons of lingo.
ReplyDeleteIn my side of North, Corporates have taken over sarkari naukri. The only reason, More of 'Mail'.
Nice Post as always on this blog.
क्या कहने क्या कहने।
ReplyDeleteउत्तर भारत में पुत्र मोह घणा ही ज्यादा है।
वैसे मंदी में सरकारी नौकरियों का महत्व इधर बढ़ गया है। ऐसी बालिकाएं जो सरकारी नौकरों को चिरकुट मानती थीं, अब कहने लगीं है कि पब्लिक सेक्टर एक्जीक्यूटिव प्रीफर्ड। मंदी ने सरकारी नौकरियों की महत्ता एक बार फिर स्थापित कर दी है।
भरतलालजी को बधाई दें विवाह की और सफल विवाह का गुरुमंत्र दें कि सफल विवाह की नींव मजबूत झूठों पर टिकी होती है।
जमाये रहिये।
यूरोपियन की तर्ज पर यूपोरियन शब्द अच्छा गढ़ा है.
ReplyDelete"भरतलाल की शादी होने जा रही है। उसकी पत्नी के लिये साड़ी ....."
ReplyDeleteये क्या भाभीजी, शादी के पहले ही पत्नी बना दिया, पहले दहेज जुटाइये, सात फेरे होने दीजिए...फिर दुल्हन से पत्नी बनेगी ना। वो क्या है कि अंग्रेज़ी में एक कहावत है- THERE ARE MANY A SLIP BETWEEN THE CUP AND THE LIP.
अच्छा हुआ हमने सरकारी नौकरी नहीं की... एक ही ज्यादा हो रहा है..
ReplyDeleteबिन ब्याही कन्या मरे, यह खुशी कहां समाय॥
ReplyDeleteइसके आगे कहने को कुछ बचता ही नही है.
रामराम.
निंदनीय! घोर निंदनीय
ReplyDeleteबहुत बढ़िया . बधाई.
ReplyDeleteरीताजी की यह पैनी पोस्ट पढने के बाद, सचमुच में 'बिना विचारे' मन में आया पहला विचार - आप कुछ दिन विश्राम कर लें और आपके ब्लाग को रीताजी के जिम्मे छोड दें। वैसे भी ग्रीष्मावकाश में रेल का ट्रेफिक बढ जाता है।
ReplyDeleteक्या खयाल है?
एक महान महिला के दर्शन हुये। अजी आप महान है, ऎसे ऎसे महान लोगो के दर्शन करती है.... चलिये जीवन तर जायेगा, हम ने तो मकान भी ऎसी जगह लिया जहा कोई आसपडोस भी नही, ओर बीबी सारा दिन घर के कामो मे मगन तो हम पेसा कमाने मै मगन, इस कारण दर्शन का समय ही नही मिलता, वेसे ऎसी महान आत्माये हर जगह मोजूद होती है... वेसे भी मुझे इन माताओ से ऎलर्जी है, देखते ही झिंके आनी शुरु हो जाती है...धन्यवाद, ग्याण जी को राम राम
ReplyDeleteयूपोरियन !
ReplyDeleteवाह !!
क्या खोज की है ।
भरतलाल को शादी की बधाई ।
निम्न-मध्यवर्गीय यूपोरियन (उत्तरप्रदेशीय) माहौल में सरकारी नौकरी का महत्व को आपने बिलकुल बेबाकी से प्रस्तुत किया है ....यही तस्वीर है और इससे भी भयानक ....
ReplyDeleteभारतीय स्त्री की विडम्बनाओं का यर्थाथ् लेखाजोखा।
ReplyDelete1000:957 this is the ration of men vs women in india,
ReplyDeleteamd still decreasing.
@भगवान की कृपा से उनके अनेक हीरे हैं। प्रत्येक को तलाशते कई मोतियों के अभिभावक दहेज नामक मैल की थैलियां लिये घूम रहे हैं। उनकी समस्या है कि किस मोती और कितने मैल को स्वीकार करें। वे बात बात में एक दूसरी महिला को ज्ञान बांटती हैं – “अरे अब तुम्हारे पति की सरकारी नौकरी लग गयी है, अब एक बच्चे पर क्यों रुक रही हो। अब तो इत्मीनान से पैदा करो।”
ReplyDeleteआपने समाजिक पहलु के उस हिस्से के दर्शन करवाऐ जो अमुमन पढी-लिखी भारतीय फैमेलियो मे छोटे शहरो के सरकारी मैह्कमो मे कार्यरत है। दुख तो ईस बात का है एक नारी ही दहेजनुमा दानव को अपनी गोद मे पाल रही है। यह कैसी विडम्बना है कि नारी चाहती है बेटा हो- नारी चाहती है मेरे बेटे का ससुराल से भरभुर दहेज आऐ। पुजा पाठ करने का यह मकसद है तो फिर यह स्थिति हमारी बेटियो को लिल लेगी।
ज्ञानजी!!!! आप ने भरतलाल कि शादी मे जो ख्याल अपने मस्तिषक से जेहन मे उतारे, एवम ऐसी सामाजिक परम्पराओ एवम विचारधाराओ वाले गरीब लोगो के चेहरे पर जोर से तमाचा है, इसकेलिऐ आपका आभार।
बिन मारे दुसमन मरे, खड़ी ऊंख बिकाय।
ReplyDeleteबिन ब्याही कन्या मरे, यह खुशी कहां समाय॥
यह हमारी धर्मनिष्टता का यथार्थ है. इसीलिए संसार में नास्तिकों की संख्या बड़ रही है और बढ़नी ही चाहिए.
अवश्य पढें और मीडिया का दूसरा पहलू भी देखें... http://vikshiptpathak.blogspot.com/
ReplyDeleteरीता जी प्रणाम,
ReplyDeleteदो दिन बाद आज आप के ब्लॉग ने मुझ पर दया की है..नहीं तो पेज पर यही आता था की server not found!
उन महान महिला के दर्शन हमें भी करा दिए..
धन्यवाद..
आप ने लिखा--
'भगवान की कृपा से उनके अनेक हीरे हैं। प्रत्येक को तलाशते कई मोतियों के अभिभावक दहेज नामक मैल की थैलियां लिये घूम रहे हैं। उनकी समस्या है कि किस मोती और कितने मैल को स्वीकार करें। 'और सरकारी नौकरी की महिमा गान भी सुनवाया..
****आप ने इतना महत्वपूर्ण ज्ञान फैलाया ..धन्यवाद..
बात में दम तो है..
सरकारी नौकरी वाले कैसे निफराम और निश्चिंत होते हैं..वह टी वी पर एक नाटक--'ऑफिस ऑफिस 'में [मुसद्दी लाल]खूब दिखाया जाता है.
[मैं ने सुना तो यह भी है..पैसा तो प्राइवेट में आज कल ज्यादा है -मगर आराम नहीं.]
अच्छी लेखनी....पड़कर बहुत खुशी हुई / हिन्दी मे टाइप करनेकेलिए आप कौनसी टूल यूज़ करते हे / रीसेंट्ली मे एक यूज़र फ्रेंड्ली इंडियन लॅंग्वेज टाइपिंग टूल केलिय सर्च कर रहा ता, तो मूज़े मिला " क्विलपॅड " / आप भी इसीका इस्तीमाल करते हे क्या ?
ReplyDeleteसुना हे की "क्विलपॅड ", गूगलेस भी अच्छी टाइपिंग टूल हे ? इसमे तो 9 इंडियन भाषा और रिच टेक्स्ट एडिटर भी हे / क्या मूज़े ये बताएँगे की इन दोनो मे कौनसी हे यूज़र फ्रेंड्ली....?
मे ये जान ना चाहता हू की
अब तो मैं सोच रहा हूँ की दरोगा ही बन जाऊं ! एक तो क्या करता हूँ किसी को समझ में नहीं आता है. स्विस बैंक सुन कर लोग ऐसे ही भड़कते हैं जैसे चोरी करने वाला आ गया हो. ऊपर से ये यूपोरियन लोग मुंह बना कर पूछ लेते हैं... 'है तो प्राइवेट ही ना?' अपने से ज्यादा भाव एक सरकारी चपरासी का हैं अपने गाँव में !
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