Monday, February 25, 2008

कोलम्बस और कृष्ण


इन्द्रजी ने अपने ब्लॉग इन्द्राज दृष्टिकोण पर एक बहुत रोचक आख्यान कोलम्बस के सम्बन्ध में बताया है। सन १५०४ में चन्द्र ग्रहण ने कोलम्बस और उसके नाविकों की प्राण रक्षा की थी। वे जमैका के तट पर अटके थे। स्थानीय लोग बहुत विरोध कर रहे थे उनका। खाने की रसद समाप्त हो रही थी। और स्थानीय लोगों ने भोजन सामग्री देने से मना कर दिया था। कोलम्बस ने जर्मन गणितज्ञ द्वारा बनाया पंचांग देखा। उसने पाया कि २९ फरवरी १५०४ को पूर्ण चन्द्र ग्रहण लगेगा। फिर उसने स्थानीय लोगों के नेता को बुलाया और कहा कि वे भोजन सामग्री दे दें, अन्यथा वह उन्हें चन्द्रमा से वंचित कर देगा। वैसा ही हुआ। चंद्रग्रहण लगा। स्थानीय लोगों ने डर कर भोजन सामग्री देना मान लिया और बदले में कोलम्बस ने चन्द्रमा रिस्टोर कर दिया। वह वैसे भी रिस्टोर होना था!

इस रोचक घटना को पढ़ कर जब मैने अपनी पत्नी जी को सुनाया तो उन्होने पत्नी जी ने मुझे महाभारत और जयद्रथ वध प्रसंग की याद दिलाई। जयद्रथ ने शिवजी के दिये वरदान का दुरुपयोग शेष चार पाण्डवों को एक दिन तक युद्ध में रोकने के लिये किया था।1 उसका प्रयोग कर अभिमन्यु का वध चक्रव्युह से कर दिया गया – अनीति का सहारा ले कर। इस कारण अर्जुन का प्रण था कि वह सूर्यास्त के पहले जयद्रथ का वध कर देगा अन्यथा अपने प्राण तज देगा। युद्ध के १४हवें दिन प्रचण्ड शौर्य से अर्जुन ने आठ अक्षौहिणी कौरव सेना का संहार कर दिया, पर जयद्रथ छिप गया। सूर्यास्त का समय समीप था। कौरव सेना में आठ अक्षौहिणी संहार के बावजूद भी हर्ष था कि अब तो अर्जुन प्राण त्याग देगा।

ऐसे मौके पर कृष्ण चमत्कार करते हैं। सूर्यास्त के पहले वे सूर्य अस्त कर देते हैं। सिन्धुराज जयद्रथ बाहर आता है और कृष्ण के कहने पर (सूर्यास्त जानकर भी) अर्जुन एक तेज वाण से जयद्रथ का सिर काट डालता है। कटा सिर जाकर गिरता है उसके ध्यानमग्न पिता वृद्धक्षत्र की गोद में - चुपचाप।

पिता सांध्य पूजा कर उठता है और सिर जमीन पर गिर जाता है। पिता ने श्राप दिया है कि जयद्रथ का सिर जो भी जमीन पर गिरायेगा, उसके सिर के टुकड़े हो जायेंगे। … एक ही वाण से जयद्रथ और उसके पिता वृद्धक्षत्र का रामनाम सत्त!
(‍^^^ ऊपर बायें सचित्र महाभरत, गीता प्रेस में जयद्रथ और वृद्धक्षत्र का वध के चित्र)

इस घटना की दो वैज्ञानिक व्याख्यायें हैं:
  1. तेरहवें दिन अर्जुन के प्रण कर लेने के बाद वह तो निश्चिन्त हो कर सोया।2 उसने तो अपना जीवन कृष्ण के हवाले कर रखा था। आगे तो झेलना कृष्ण को था। वे कैसे अर्जुन की प्रतिज्ञा सच करायें! कृष्ण खगोलवेत्ताओं को रात में बुला कर सूर्य की चाल के बारे में पता करते हैं कि अगले दिन पूर्ण सूर्यग्रहण शाम को होने जा रहा है। इस आधार पर वे अपनी स्ट्रेटेजी बनाते हैं। कौरव अपनी स्ट्रेटेजी अथाह सेना आगे झोंक कर जयद्रथ को बचाने की बनाते हैं। - और कृष्ण की स्ट्रेटेजी कौन बीट कर सकता है?!
  2. दूसरी व्याख्या डा. पी. वी. वर्तक ने यहां की है। यह निम्न है –
    On the 14th day of the Mahabharat War, i.e., on 30th October a similar phenomenon took place. Due to the October heat enhanced with the heat of the fire-weapons liberally used in the War, the ground became so hot that the layers of air near it were rarefied while the layers at the top were denser. Therefore the sun above the horizon was reflected producing its image beneath. The Sun's disc which was flattened into an ellipse by a general refraction was also joined to the brilliant streak of reflected image. The last tip of the Sun disappeared not below the true horizon, but some distance above it at the false horizon. Looking at it, Jayadratha came out and was killed. By that time, the Sun appeared on the true horizon. Naturally there was no refraction because the light rays came parallel to the ground. This re visualized the Sun at the true horizon. Then the sun actually set, but the refraction projected the image above the horizon. The sun was thus visible for a short time which then set again.
मैं इस व्याख्या का हिन्दी अनुवाद कर सकता था, पर वह मुझे वैज्ञानिक शब्दों के सही अनुवाद करने की जहमत के चलते कठिन लगा। फण्डा पृथ्वी के पास अक्तूबर महीने की उष्ण-विरल और वातावरण में कुछ ऊपर सघन हवा से सूर्य की किरणों का आवर्तन का है। सूर्य जब कुछ ऊपर होते हैं तो टेढ़ी होती किरणों के कारण उनका आभासी बिम्ब क्षितिज के नीचे बनता है। जब सूर्य और नीचे आते हैं तो किरणें केवल विरल हवा से गुजर कर आती हैं और सूर्य सामने दिखाई देते हैं। महाभारत के १४हवें दिन अर्थात ३० अक्तूबर को वही हुआ। कृष्ण जी ने उसका लाभ उठाया। आप कृपया अंग्रेजी से ही काम चला लें। धन्यवाद।
1. शिवजी से जयद्रथ ने सभी पाण्डवों को हराने का वर मांगा था। शिवजी ने कहा कि यह तो नहीं हो सकता। वे अर्जुन के अलावा शेष पाण्डवों को एक दिन तक युद्ध में रोक पाने का वरदान दे सकते हैं। वही जयद्रथ को मिला। और उसी वरदान के मिस-यूज ने अन्तत: जयद्रथ का सिर कलम कराया!

2. बाई द वे, निश्चिन्त हो कर सोने का यही सर्वोत्तम तरीका है। जो हम नहीं जानते! स्वप्न में ही कृष्ण ने अर्जुन को शिवजी के पास भेज कर पशुपत-अस्त्र का कैप्स्यूल रिफ्रेशर कोर्स करा दिया। उसी से अगले दिन जयद्रथ मारा गया।
'सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकम् शरणम् व्रज:!’ यह बहुत पढ़ते हैं पर आत्मसात नहीं कर पाते। हममें और अर्जुन में यही अन्तर है। वह सब कृष्ण पर छोड़ कर टेन्शन लेस (tension less) है। हमें नींद की गोली लेनी होती है। हम टेन्शन से लैस हैं!

20 comments:

  1. बहुत ज्ञानवर्धक। चिन्तन-मनन के लायक ।
    भाभीश्री से ऐसी ज्ञानवर्धक बूटी पाते हैं तो फिर क्यों विवाद पैदा होते हैं ? चोखेरबाली में लिखिये न कुछ !

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  2. बेहतरीन शिक्षा प्रद कहानी के माध्‍यम से आपने सहख प्रेषित की बधाई।

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  3. चतुर, ज्ञानी और कर्मठ ऐसे ही ज्ञान का उपयोग कर इतिहास रचते हैं।

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  4. दोनों वैज्ञानिक विवेचनाएँ सही हो सकती हैं .बहुत सम्भव है वह खग्रास ग्रहण रहा हो जिससे जयद्रथ सहित सारी कौरव सेना कृष्ण की रणनीति के झांसे मे आ गयी .किसी काबिल ज्योतिषी ने कृष्ण को खग्रास सूर्यग्रहण की पूर्व सूचना दी होगी और अर्जुन की प्रण -प्रतिज्ञा का वही आधार बन गया हो .
    आज भी जहाँ विरल कृष्ण अर्जुन संयोग है विजय निश्चित है -
    यत्र योगेश्वरह कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः
    तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्ममः
    सच है सूचना -जानकारी ही शक्ति है कृष्ण ने भी ज्ञान विज्ञान का सहारा लिया और जयद्रथ को उसके अनीति कर्म की सजा दिलाई .

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  5. हम्म....कहाँ से प्रारम्भ करें !!!

    १) जयद्रथ वाली कहानी तो पता थी लेकिन वृद्धक्षत्र वाली कहानी नहीं सुनी थी । इसको बताने के लिये धन्यवाद ।

    २) वर्तक वाली व्याख्या भौतिकी के हिसाब से असम्भव है । चलिये इसको दूसरे सिरे से समझाते हैं । अक्टूबर की गर्मी + अस्त्रों की गर्मी ~ मई/जून की गर्मी, क्या आपने गर्म से गर्म दिन पर ऐसा देखा है कि आपको सूर्य सूर्यास्त से पहले सूर्य अस्त होता और फ़िर उदय होता दिखायी दे ? ऐसा असम्भव है । वर्तक और पी. एन. ओक (उनकी आत्मा को शान्ति मिले) के साथ ये ही समस्या है । इतिहास, पौराणिक कथाओं के साथ विज्ञान को इतनी कुशलता से मिलाते हैं कि एक पल को आप उस पर विश्वास कर लें लेकिन अगर गहराई से खोजबीन करें तो पोल खुल जाती है ।

    वर्तक रेगिस्तान के मिराज से अपने को कन्फ़्य़ूज कर रहे हैं जहाँ Refraction के कारण जमीन पर पानी होने का आभास होता है । लेकिन सूर्य के साथ इसका उल्टा होता है । सूर्यास्त के समय असल में सूर्य Horizon से नीचे होता है और Refraction के कारण अस्त होने के बाद भी देर तक दिखायी देता है ।

    ३) hindunet.org aur hindujagruti.org प्रकार की वेबसाईटों से उद्धरण देते समय थोडा सतर्क रहें । अधिकतर (>९० %) समय वहाँ पर इतिहास से सम्बन्धित लेख भटकाने वाले होते हैं ।

    ४) अपनी जानकारी के लिये वर्तक पर थोडा गूगलिया कर देखें बडी दिलचस्प जानकारियाँ मिलेंगी :-)

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  6. १०० कौरवों की एकमात्र बहन दुशल्ला का पति था जयद्रथ !
    जिसने द्रौपदी को वन में अकेली पाकर , सताया था जिस से अर्जुन उस के प्रति नाराज था और अभिमन्यु के कौरव पक्ष द्वारा निर्मम हत्या के समय भी यही जयद्रथ उस वीर बालक का हत्यारा था औरश्री कृष्ण "लीला पुरुषोत्तम " यूँ ही नही कहे गए .
    ;-)

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  7. कमाल जानकारी है।

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  8. भई कोलंबस विकट चालू थे।
    धांसू कहानी सुनायी जी।
    चंद्रमा पर अपना इंटरप्रिटेशन यूं है कि
    रात भर इधर से उधर चंदा फोकट में नहीं करता है,जरुर यह चांद से चेहरे वाली निविया क्रीम की माडलिंग करता है।

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  9. मसाला मिक्स चटपटी ज्ञानवर्धक पोस्ट.

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  10. आज तो बहुत ही ज्ञानवर्धक बात आपने, नहीं भाभी जी ने बताई।
    कुछ बातें हम अपने जीवन की भाग दौड़ भरी जिंदगी मे भूलने लगते है।

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  11. अच्छी शिक्षाप्रद कथाएँ है.
    बाकी तो जैसा रोहिल्ला जी ने लिखा ही है बहुत कुछ तकनीक-वक्निक का मामला है. सो अपने हाथ तो ऊँचे.
    लेकिन अजित जी की बात पर जरा गौर किया जाय.

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  12. ऐसी व्याख्या के प्रयास नयी पीढी को भी करने चाहिये।

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  13. क्या कहें भैय्या न तो महाभारत की कहानियो की कोई विशेष जानकारी है और ना ही भौतिक विज्ञान में पंडिताई की है फ़िर भी आप की पोस्ट ज्ञानवर्धक लगी. आप की आखरी बात सबसे बढ़िया लगी..सब कुछ उस पर छोड़ दो और मजे से नींद लो. वो जो करेगा सही ही करेगा...वो याने वोही...अपना इश्वर. उसे चाहे जो नाम दें.
    नीरज

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  14. महाभारत युद्ध के समय निसंदेह सूर्य ग्रहण हुआ होगा, मगर दोनो पक्ष के विद्वान लोग इससे अनजान रहे होंगे मानने में आता.

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  15. थका हारा आ रहा हूं, साईड से ही कल्टी हो रहा हूं ;)

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  16. good post, especially my situation is like neeraj gosavami ji

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  17. good post, especially my situation is like neeraj gosavami ji

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  18. क्या कहें भैय्या न तो महाभारत की कहानियो की कोई विशेष जानकारी है और ना ही भौतिक विज्ञान में पंडिताई की है फ़िर भी आप की पोस्ट ज्ञानवर्धक लगी. आप की आखरी बात सबसे बढ़िया लगी..सब कुछ उस पर छोड़ दो और मजे से नींद लो. वो जो करेगा सही ही करेगा...वो याने वोही...अपना इश्वर. उसे चाहे जो नाम दें.
    नीरज

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  19. १०० कौरवों की एकमात्र बहन दुशल्ला का पति था जयद्रथ !
    जिसने द्रौपदी को वन में अकेली पाकर , सताया था जिस से अर्जुन उस के प्रति नाराज था और अभिमन्यु के कौरव पक्ष द्वारा निर्मम हत्या के समय भी यही जयद्रथ उस वीर बालक का हत्यारा था औरश्री कृष्ण "लीला पुरुषोत्तम " यूँ ही नही कहे गए .
    ;-)

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  20. दोनों वैज्ञानिक विवेचनाएँ सही हो सकती हैं .बहुत सम्भव है वह खग्रास ग्रहण रहा हो जिससे जयद्रथ सहित सारी कौरव सेना कृष्ण की रणनीति के झांसे मे आ गयी .किसी काबिल ज्योतिषी ने कृष्ण को खग्रास सूर्यग्रहण की पूर्व सूचना दी होगी और अर्जुन की प्रण -प्रतिज्ञा का वही आधार बन गया हो .
    आज भी जहाँ विरल कृष्ण अर्जुन संयोग है विजय निश्चित है -
    यत्र योगेश्वरह कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः
    तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्ममः
    सच है सूचना -जानकारी ही शक्ति है कृष्ण ने भी ज्ञान विज्ञान का सहारा लिया और जयद्रथ को उसके अनीति कर्म की सजा दिलाई .

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय