ज हां मैं रहता हूं , वह निम्न मध्यमवर्गीय मुहल्ला है। सम्बन्ध , सम्बन्धों का दिखावा , पैसा , पैसे की चाह , आदर्श , चिर्कुटई , पतन और अधपतन की जबरदस्त राग दरबारी है। कुछ दिनों से एक परिवार की आंतरिक कलह के प्रत्यक्षदर्शी हो रहे हैं हम। बात लाग - डांट से बढ़ कर सम्प्रेषण अवरोध के रास्ते होती हुई अंतत लाठी से सिर फोड़ने और अवसाद - उत्तेजना में पूर्णत अतार्किक कदमों पर चलने तक आ गयी है। अब यह तो नहीं होगा कि संस्मरणात्मक विवरण दे कर किसी घर की बात ( भले ही छद्म नाम से ) नेट पर लायें । पर बहुत समय इस सोच पर लगाया है कि यह सब से कैसे बचा जाये। उसे आपके साथ शेयर कर रहा हूं।
- अपनी कम , मध्यम और लम्बे समय की पैसे की जरूरतों का यथार्थपरक आकलन हमें कर लेना चाहिये।इस आकलन को समय समय पर पुनरावलोकन से अपडेट करते रहना चाहिये। इस आकलन के आधार पर पैसे की जरूरत और उसकी उपलब्धता का कैश फ्लो स्पष्ट समझ लेना चाहिये। अगर उपलब्धता में कमी नजर आये तो आय के साधन बढ़ाने तथा आवश्यकतायें कम करने की पुख्ता योजना बनानी और लागू करनी चाहिये। जीवन में सबसे अधिक तनाव पैसे के कुप्रबन्धन से उपजते हैं।
- मितव्ययिता (फ्रूगेलिटी - frugality) न केवल बात करने के लिये अच्छा कॉंसेप्ट है वरन उसका पालन थ्रू एण्ड थ्रू होना चाहिये। हमारी आवश्यकतायें जितनी कम होंगी , हमारे तनाव और हमारे खर्च उतने ही कम होंगे। इस विषय पर तो सतत लिखा जा सकता है। फ्रूगेलिटी का अर्थ चिर्कुटई नहीं है। किसी भी प्रकार का निरर्थक खर्च उसकी परिधि में आता है।
- अपने बुजुर्गों का पूरा आदर - सम्मान करें। उनको , अगर आपको बड़े त्याग भी करने पड़ें , तो भी , समायोजित (accommodate) करने का यत्न करें। आपके त्याग में आपको जो कष्ट होगा , भगवान आपको अपनी अनुकम्पा से उसकी पूरी या कहीं अधिक भरपायी करेंगे।
- किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहें। पारिवारिक जीवन में बहुत से क्लेश किसी न किसी सदस्य की नशाखोरी की आदत से उपजते हैं। यह नशाखोरी विवेक का नाश करती है। आपकी सही निर्णय लेने की क्षमता समाप्त करती है। आपको पतन के गर्त में उतारती चली जाती है और आपको आभास भी नहीं होता।
- तनाव और क्रोध दूर करने के लिये द्वन्द्व के मैनेजमेण्ट (conflict management) पर ध्यान दें। इस विषय पर मैने स्वामी बुधानन्द के लेखों से एक पावर प्वॉइण्ट शो बनाया था - क्रोध और द्वन्द्व पर विजय । आप उसे हाइपर लिंक पर या दाईं ओर के पहले स्लाइड के चित्र पर क्लिक कर डाउनलोड कर सकते हैं। यह आपको सोचने की खुराक प्रदान करेगा। इसमें स्वामी बुधानंद ने विभिन्न धर्मों की सोच का प्रयोग किया है अपने समाधान में। बाकी तो आपके अपने यत्नों पर निर्भर करता है।
बस। आज यही कहना था।
अनूप शुक्ल अभी अभी एक गम्भीर आरोप लगा कर गये हैं पिछली पोस्ट पर टिप्पणी में - "... आलोक पुराणिक हमारा कमेण्ट चुरा कर हमसे पहले चेंप देते हैं। इसकी शिकायत कहां करें?"
यह आलोक-अनूप का झगड़ा सीरियस (! :-)) लगता है। और उसके लिये अखाड़ा इस ब्लॉग को बना रहे हैं दोनो। ये ठीक बात नहीं है! :-)
पांडेय जी, आप की पोस्ट पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ....मेरा यह विश्वास और भी दृढ़ हुया कि सब कुछ चिकित्सकों के ही बस की बात नहीं है....there are so many social, cultural angles to a problem....जो कुछ भी आपने लिखा है ,अगर लोग ज़िंदगी में उतार लें तो जीवन का नक्शा ही बदल जाये।
ReplyDeleteये बड़ी अच्छी बाते हैं। पालन किया जाये। :)
ReplyDelete" ओम , सर्वत्र गहन शांति व्याप्त हो. सभी विघ्न-बाधाओं से मुक्त हों. सभी अच्छाई को प्राप्त करें. सभी सद्विचारों से प्रेरित हों. सभी हर स्थान पर प्रफुल्लित रहें. सभी प्रसन्न हों. सभी निरोग हों. किसी को कोई दुख न हो. कुटिल व्यक्ति सदाचारी बनें. सदाचारी परमानन्द प्राप्त करें. परमानन्द उन्हें सभी बन्धनों से मुक्त कर दे. सभी मुक्त व्यक्ति दूसरों को मुक्त करें."
ReplyDeleteक्या इसके लिए कोई संस्कृत श्लोक होगा ?
&
" अपने उच्च और दोष रहित जीवन को दूसरों के साथ जीने से"
यह वाक्य मुझे मेरे पापा जी का स्मरण करा गया
धन्यवाद -- बहुत अच्छी बातें बतलाने के लिए
@ लावण्याजी - ...क्या इसके लिए कोई संस्कृत श्लोक होगा ?
ReplyDeleteमैं कह नहीं सकता। मैने तो स्वामी जी के लेख का अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद किया है। लेख में श्लोक नहीं था। यह भी सम्भव हो कि मेरा अनुवाद बहुत सटीक न हो।
इसे ही तो कहते हैं
ReplyDeleteघर घर की कहानी
हर दर की कहानी
जिसमें है परेशानी
ढूंढ़ते सब आसानी
सब कुछ है बेमानी
मिलती है नादानी
सभी प्रसन्न हों. सभी निरोग हों.
ReplyDeleteसर्वे भवन्तु सुखं: सर्वे सन्तु निरामया
सर्वे भद्रानी पश्यन्तु ...
इसी की स्मृति हो आयी इसी की स्मृति हो आयी इसलिए पूछा रही हूँ -
आपका अनुवाद, आलेख सटीक है
ये तो एक तरह से पारिवारिक कलह से बचने का संविधान बन गया है । चलिए इसे गली मुहल्लों में लागू कर दिया जाए । ओम शांति शांति शांति
ReplyDeleteबहुत अच्छे सूत्र दिये स्वामी ज्ञानानन्द जी चौथे वाले को छोड़कर. :) आभार...काश, आस्था चैनल इसके कहीं आसपास भी होता तो देखना नहीं छोड़ना पड़ता.
ReplyDeleteअच्छे और जरूरी सूत्र हैं। परिवार में संवाद बना रहे और विवाद सिर-फुटव्वल तक न पहुंच जाए, इसके लिए सबसे पहली शर्त है पति और पत्नी का एक दूसरे के प्रति सम्मान और समर्पण का भाव। बाकी तो दोनों ही सक्षम होते हैं कि आपसी मतभेदों को सुलझाने की सूरत निकाल लें।
ReplyDeleteपाण्डेय जी. मैं आप की तकरीबन हर पोस्ट पढता हूँ हालांकि आज तक कभी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. संभवतः आप की बातें मैं सिर्फ़ कुछ समझने-सीखने के लिए पढता हूँ.... आज पहली बार कुछ लिख रहा हूँ. ख़ुद को उपयुक्त ढंग से व्यक्त करने की कला से मैं बहुत हद तक वंचित रहा हूँ, लेकिन आज आप की बातें पढ़ कर मुझे ये दो बातें याद आ गयीं जो मेरे पिताजी मुझ से कहा करते थे :
ReplyDelete"सर्वशास्त्रपुरानेणेशु व्यासस्य वचनं ध्रुवम
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्"
लेकिन फिर वे स्वयं ये भी कहते थे :
"यथा खरश्चंदनभारवाही भारस्य वेत्ता न तु चंदनस्य"
आप शायद समझ रहे हैं मैं क्या कह रहा हूँ. मैं आज तक नहीं समझ पाया ..... कभी कभी लगता है समझने की कोशिश करना भी व्यर्थ है. लेकिन आप की पोस्ट पढ़ कर फिर सोच रहा हूँ. सादर.
पैसा कलह की अधिकांश वजहों में खास है, दूसरा है ईगो।
ReplyDeleteपैसा नहीं, दरअसल पैसे का प्रबंधन समस्या है।
लोग खर्च प्लान करते हैं, इनकम प्लान नहीं करते।
लोग यह भी मानकर चलते हैं कि जो जीवन आज है, वैसा ही हमेशा चलेगा। जितनी कमाई आज है, उतनी ही पचास साल बाद होगी या इससे ज्यादा होगी।
वित्तीय निरक्षरता इस समस्या की खास वजह है।
मेरा तो मन करता है, सब छोड़ छाड़कर हिंदी बेल्ट में सिर्फ वित्तीय साक्षरता का अभियान चलाया जाये। ताकि मध्यवर्गीय जीवन के कुछ कष्ट कम हो जायें। हर महीने थोड़ा सा सही निवेश भी कितना आगे ले जा सकता है, यह बात छोटी सी है, पर बड़े बड़ों को समझ में नहीं आती।
इस संविधान में रिच डैली, पुअर डैडी को जोड़ दीजिये। इससे बेहतर क्लासिक फाइनेंशियल किताब कोई नहीं है, फिलहाल।
इगो का मसला टेढा है।
इसके झगड़े आसानी से नहीं निपटते।
तेरी कमीज मेरी कमीज से सफेद कैसे।
इसका सोल्यूशन आसान नहीं है।इसके लिए बहुत शुरु से चरित्र का निर्माण चाहिए।
चरित्र को ओवरनाइट या ओवर इयर भी डेवलप नही किया जा सकता है
स्किल्स तो एक रात में भी सिखायी जा सकती हैं।
अभी घपला ये हो लिया है कि सारी एजुकेशन स्किल डेवलपमेंट में इत्ती बिजी हो गयी है, कि चरित्र विकास की ऐसी तैसी हो ली है।
यह सिर्फ घर में ही हो सकता है।ऐसी और स्लाइडों की जरुरत है।
@ मीत जी - निश्चय ही; मीत जी।
ReplyDeleteपर उपदेश कुशल बहुतेरे। गधा चन्दन वहन कर चन्दनमय नहीं हो जाता। अब देखिये न; स्वामी बुधानन्द जी के अक्रोध-मैनेजमेण्ट से मुझे भी बहुत सीखना है।
गधे और हममें बस अन्तर यही है कि हम अपनी पावर ऑफ जजमेण्ट का सतत प्रयोग कर अपनी खुद की तर्क के आधार पर स्वीकार की बात को वास्तविक आधार पर जीवन में ला सकते हैं।
बेहतर व्यवहार जप की तरह है - जितना मनन करेंगे, उतना आत्मसात करेंगे।
आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।
" कुछ लोगों को यह लिखना प्रवचनात्मक आस्था चैनल लग सकता है। पर क्या किया जाये। ऐसी सोच में आस्था चैनल ही निकलेगा।"
ReplyDeleteदूसरी ओर बिना आस्था के मानव जीवन शून्य है !!
आलोकजी की बात से सहमत हूं.
ReplyDeleteकमाल की बात है कि अभी-अभी छत पर गया तो पड़ौस के परिवार में यही कार्यक्रम चल रहा था अंदर आया तो आपकी पोस्ट खोली सबसे पहले.
लगता है जी हर मर्ज की एक दवा यदि कोई होती है तो वो यही(आपका चिट्ठा) है।
आपकी और अनिल जी की बातों से पूरी सहमति। अंतत: तो ये सब कुछ मानवीय गुण ही हैं, जो जीवन को ठीक-ठीक जीने लायक बनाते हैं। इनके बगैर घर और बाहर, कहीं भी सुख नहीं होगा।
ReplyDeleteकाहे इता लंबा सोच डाला जी अब हमे देखिये,हमने सीधा सा फ़ार्मूला अपनाया है..हम घर मे पंगा नही लेते,और बाहर के पंगे घर मे शेयर नही करते यानी ,आप समझ गये ना ,तो अब पंगे होने का सवाल ही नही जी ..:)
ReplyDeleteआपके पहले दो सूत्र तो धन से सबंधित हैं । ईगो को भी कवर कर लिया । लेकिन ज़र ज़मीन ज़ोरू की तिकड़ी में कहीं कुछ मिस तो नहीं हो रहा है
ReplyDeleteयहाँ ? पारिवारिक कलह का सूत्रपात बहुधा ही
अंतःपुर के गलियारों से होता है । फिर यहाँ से
उपजे असंतोष में हवन सामग्री की आपूर्ति कहाँ
से होती है क्या बताने की ज़रूरत है ? बड़े बड़ों
का विवेक घास चरने चला जाता है ऎसे परिवारों
में । पैसा यदि बहुत है तो कलह, नहीं है तो कलह ! और .. कुछ लोग कलही ज़ीन्स के साथ ही पैदा होते हैं, इनका निदान ?
जहाँ सुमति तहाँ संपत्ति नाना ।
ऎसी सुमति संस्कार में घोलने के लिये कितने तापमान पर कौन से तत्व उपयोग में लाये जायें ।
यह कोई टिप्पणी नहीं बल्कि इस मूढमति की
सहज़ जिज्ञासा है !
सत्य वचन भैय्या...हम अपनी ग़ज़लों में भी यही कहते हैं...लेकिन लोग पढ़ते कहाँ हैं? मानने की बात दूर रही.
ReplyDeleteनीरज
जीवन के हर क्षेत्र में अच्छा प्रबन्ध हो , ऐसा तभी सम्भव है जब ऐसे आस्था भरे वचन सुनने पढ़ने को मिले.
ReplyDeleteवाह! क्या गजब के सूत्र दिये है आपने.
ReplyDeleteबहुत ही सही और काबिले तारीफ़. लेकिन दिक्कत ये है की इतनी बातें लोग-बाग़ जानते हुए भी मानते नहीं है.
इसलिए ही तो सब झमेला भाई साहब.
इन सब के पीछे खाली दिमाग की भी अहम भूमिका है। उसे काम रुपी चारा लगातार मिलना चाहिये नही तो वह खुरापात मे लग जाता है।
ReplyDeleteकमेंट की कहानी
ReplyDelete'झकाझक' लिख रहे
तुकबंदी की जुबानी
ऐसी लगे है जैसे
डाल दिया 'झकाझक'
शुद्ध दूध में पानी
इनकी कमेंट हमने
कल भी देखी थी
यहाँ से गुजरते हुए
निगाह भर फेंकी थी
सबेरे-सबेरे आता है
झकाझक टाइम्स
चार लाइन की तुकबंदी
समझते हैं लिख रहे
बढ़िया सी राईम्स
ऐसी बढ़िया पोस्ट पर
औकात दिखा दी
चार लाइन की तुकबंदी
ऐसे ही टिका दी
बाकी तो क्या कहने. बहुत ही बढ़िया पोस्ट है. सूत्र अच्छे हैं. जीवन में इनका ध्यान रखा जाय तो समस्या ही कहाँ है.
पढ़ा, अब यह देखना है कि कितना आत्मसात कर पाते हैं।
ReplyDeleteपूर्णतः सहमत !
ReplyDeleteबडी गहरी बात बता गये आप तो- काश अमल कर पायें।
ReplyDeleteअब आप की बातों से तो असहमति का कोई प्रश्न ही नहीं है। वैसे भी मुझे शेष बचे सिर के केश, नही नहीं बाल प्यारे हैं। पुराणिक जी वित्तीय साक्षरता के लिए कोचिंग कब शुरु कर रहे हैं मेरा और शोभा का प्रवेश फार्म अभी से भरवा दें। एक भी साक्षर होता तो काम चला लेते।
ReplyDeleteकलह से बचना कौन नही चाहता, किंतु पद,पैसा , प्रशंसा , प्रसिद्धि और प्रशंसा के मद में व्यक्ति अपना विवेक खो बैठता है और चादर से बाहर फैलाकर अपने को वितीय मकड़ जालों में उलझा लेता है! आपने सही कहा है कि खोखले आदर्शों में उलझ कर व्यक्ति वह सब करता है जो नही करना चाहिय , आपकी ये पंक्तियाँ बहुत ही सुंदर और प्रासंगिक है कि " बात लाग - डांट से बढ़ कर सम्प्रेषण अवरोध के रास्ते होती हुई अंतत लाठी से सिर फोड़ने और अवसाद - उत्तेजना में पूर्णत अतार्किक कदमों पर चलने तक आ गयी है। "आपके सूत्र आत्मसात कराने योग्य है , आभार !
ReplyDeleteहम तो यही कहेंगे की आपका ये आस्था चैनल चलता रहे।
ReplyDeleteबहुत उम्दा विचार है। बस लोग इनका ध्यान रक्खे तो कहीं झगडा ही नही होगा।
कलह से बचना कौन नही चाहता, किंतु पद,पैसा , प्रशंसा , प्रसिद्धि और प्रशंसा के मद में व्यक्ति अपना विवेक खो बैठता है और चादर से बाहर फैलाकर अपने को वितीय मकड़ जालों में उलझा लेता है! आपने सही कहा है कि खोखले आदर्शों में उलझ कर व्यक्ति वह सब करता है जो नही करना चाहिय , आपकी ये पंक्तियाँ बहुत ही सुंदर और प्रासंगिक है कि " बात लाग - डांट से बढ़ कर सम्प्रेषण अवरोध के रास्ते होती हुई अंतत लाठी से सिर फोड़ने और अवसाद - उत्तेजना में पूर्णत अतार्किक कदमों पर चलने तक आ गयी है। "आपके सूत्र आत्मसात कराने योग्य है , आभार !
ReplyDeleteअब आप की बातों से तो असहमति का कोई प्रश्न ही नहीं है। वैसे भी मुझे शेष बचे सिर के केश, नही नहीं बाल प्यारे हैं। पुराणिक जी वित्तीय साक्षरता के लिए कोचिंग कब शुरु कर रहे हैं मेरा और शोभा का प्रवेश फार्म अभी से भरवा दें। एक भी साक्षर होता तो काम चला लेते।
ReplyDeleteकमेंट की कहानी
ReplyDelete'झकाझक' लिख रहे
तुकबंदी की जुबानी
ऐसी लगे है जैसे
डाल दिया 'झकाझक'
शुद्ध दूध में पानी
इनकी कमेंट हमने
कल भी देखी थी
यहाँ से गुजरते हुए
निगाह भर फेंकी थी
सबेरे-सबेरे आता है
झकाझक टाइम्स
चार लाइन की तुकबंदी
समझते हैं लिख रहे
बढ़िया सी राईम्स
ऐसी बढ़िया पोस्ट पर
औकात दिखा दी
चार लाइन की तुकबंदी
ऐसे ही टिका दी
बाकी तो क्या कहने. बहुत ही बढ़िया पोस्ट है. सूत्र अच्छे हैं. जीवन में इनका ध्यान रखा जाय तो समस्या ही कहाँ है.
आपके पहले दो सूत्र तो धन से सबंधित हैं । ईगो को भी कवर कर लिया । लेकिन ज़र ज़मीन ज़ोरू की तिकड़ी में कहीं कुछ मिस तो नहीं हो रहा है
ReplyDeleteयहाँ ? पारिवारिक कलह का सूत्रपात बहुधा ही
अंतःपुर के गलियारों से होता है । फिर यहाँ से
उपजे असंतोष में हवन सामग्री की आपूर्ति कहाँ
से होती है क्या बताने की ज़रूरत है ? बड़े बड़ों
का विवेक घास चरने चला जाता है ऎसे परिवारों
में । पैसा यदि बहुत है तो कलह, नहीं है तो कलह ! और .. कुछ लोग कलही ज़ीन्स के साथ ही पैदा होते हैं, इनका निदान ?
जहाँ सुमति तहाँ संपत्ति नाना ।
ऎसी सुमति संस्कार में घोलने के लिये कितने तापमान पर कौन से तत्व उपयोग में लाये जायें ।
यह कोई टिप्पणी नहीं बल्कि इस मूढमति की
सहज़ जिज्ञासा है !
@ मीत जी - निश्चय ही; मीत जी।
ReplyDeleteपर उपदेश कुशल बहुतेरे। गधा चन्दन वहन कर चन्दनमय नहीं हो जाता। अब देखिये न; स्वामी बुधानन्द जी के अक्रोध-मैनेजमेण्ट से मुझे भी बहुत सीखना है।
गधे और हममें बस अन्तर यही है कि हम अपनी पावर ऑफ जजमेण्ट का सतत प्रयोग कर अपनी खुद की तर्क के आधार पर स्वीकार की बात को वास्तविक आधार पर जीवन में ला सकते हैं।
बेहतर व्यवहार जप की तरह है - जितना मनन करेंगे, उतना आत्मसात करेंगे।
आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।
पैसा कलह की अधिकांश वजहों में खास है, दूसरा है ईगो।
ReplyDeleteपैसा नहीं, दरअसल पैसे का प्रबंधन समस्या है।
लोग खर्च प्लान करते हैं, इनकम प्लान नहीं करते।
लोग यह भी मानकर चलते हैं कि जो जीवन आज है, वैसा ही हमेशा चलेगा। जितनी कमाई आज है, उतनी ही पचास साल बाद होगी या इससे ज्यादा होगी।
वित्तीय निरक्षरता इस समस्या की खास वजह है।
मेरा तो मन करता है, सब छोड़ छाड़कर हिंदी बेल्ट में सिर्फ वित्तीय साक्षरता का अभियान चलाया जाये। ताकि मध्यवर्गीय जीवन के कुछ कष्ट कम हो जायें। हर महीने थोड़ा सा सही निवेश भी कितना आगे ले जा सकता है, यह बात छोटी सी है, पर बड़े बड़ों को समझ में नहीं आती।
इस संविधान में रिच डैली, पुअर डैडी को जोड़ दीजिये। इससे बेहतर क्लासिक फाइनेंशियल किताब कोई नहीं है, फिलहाल।
इगो का मसला टेढा है।
इसके झगड़े आसानी से नहीं निपटते।
तेरी कमीज मेरी कमीज से सफेद कैसे।
इसका सोल्यूशन आसान नहीं है।इसके लिए बहुत शुरु से चरित्र का निर्माण चाहिए।
चरित्र को ओवरनाइट या ओवर इयर भी डेवलप नही किया जा सकता है
स्किल्स तो एक रात में भी सिखायी जा सकती हैं।
अभी घपला ये हो लिया है कि सारी एजुकेशन स्किल डेवलपमेंट में इत्ती बिजी हो गयी है, कि चरित्र विकास की ऐसी तैसी हो ली है।
यह सिर्फ घर में ही हो सकता है।ऐसी और स्लाइडों की जरुरत है।
अच्छे और जरूरी सूत्र हैं। परिवार में संवाद बना रहे और विवाद सिर-फुटव्वल तक न पहुंच जाए, इसके लिए सबसे पहली शर्त है पति और पत्नी का एक दूसरे के प्रति सम्मान और समर्पण का भाव। बाकी तो दोनों ही सक्षम होते हैं कि आपसी मतभेदों को सुलझाने की सूरत निकाल लें।
ReplyDelete" ओम , सर्वत्र गहन शांति व्याप्त हो. सभी विघ्न-बाधाओं से मुक्त हों. सभी अच्छाई को प्राप्त करें. सभी सद्विचारों से प्रेरित हों. सभी हर स्थान पर प्रफुल्लित रहें. सभी प्रसन्न हों. सभी निरोग हों. किसी को कोई दुख न हो. कुटिल व्यक्ति सदाचारी बनें. सदाचारी परमानन्द प्राप्त करें. परमानन्द उन्हें सभी बन्धनों से मुक्त कर दे. सभी मुक्त व्यक्ति दूसरों को मुक्त करें."
ReplyDeleteक्या इसके लिए कोई संस्कृत श्लोक होगा ?
&
" अपने उच्च और दोष रहित जीवन को दूसरों के साथ जीने से"
यह वाक्य मुझे मेरे पापा जी का स्मरण करा गया
धन्यवाद -- बहुत अच्छी बातें बतलाने के लिए
पांडेय जी, आप की पोस्ट पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ....मेरा यह विश्वास और भी दृढ़ हुया कि सब कुछ चिकित्सकों के ही बस की बात नहीं है....there are so many social, cultural angles to a problem....जो कुछ भी आपने लिखा है ,अगर लोग ज़िंदगी में उतार लें तो जीवन का नक्शा ही बदल जाये।
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