सर एडमण्ड हिलेरी के देहावसान पर जब समाचारपत्रों में लेख पढ़े तो पता चला कि उन्होने एवरेस्ट विजय पर अपने साथी जॉर्ज लोवे से यह कहा था - "वी हैव नॉक्ड द बास्टर्ड ऑफ!"
यह भाषा कुछ लोगों को अटपटी लग सकती है हिन्दी में। पर जब मैने यह पढ़ी तो सर हिलेरी के प्रति आदर और जगा। यह विश्व के शिखर पर चढ़ने वाला व्यक्ति बहुत सरल तरीके से कह रहा था अपने पैशन (passion) के बारे में। ऐसे समय में लोग बहुत औपचारिक हो जाते हैं। अपने शब्दों को चुन कर प्रस्तुत करते हैं। यह भी सोचते हैं कि वे जो कह रहे हैं; भविष्य में लम्बे समय तक कोट किया जाता रहेगा।
पर सर हिलेरी की प्रतिक्रिया "जैसी महसूस की; वैसी कही" वाली है। इतना शानदार उपलब्धि करने वाला जब सरलता से स्वयम को व्यक्त करता है तो मुझे उसमें नैसर्गिक महानता नजर आती है।
हम पर्वत शिखरों को नहीं, अपने आपको जीतते हैं। (It is not the mountains we conquer, but ourselves.)- एडमण्ड हिलेरी
उनके और तेनसिंग नोरगे के प्रति मेरे मन में बहुत आदर भाव है। तेनसिंग तो सन 1986 में दिवंगत हो गये थे। अब सर हिलेरी भी नहीं रहे। पर जब भी कुछ बड़ा काम करना होगा तो वे याद आते रहेंगे।
कल से विण्डोज लाइवराइटर के माध्यम से पोस्ट ब्लॉगस्पॉट पर नहीं जा रही। बार बार यत्न के बावजूद। यह एरर बता रहा है - The remote server returned an error: (500) Internal Server Error. क्या बाकी मित्र गण भी यह पा रहे हैं?
अब गूगल मेल और ब्लॉगस्पॉट दान की बछिया हैं। उसके कितने दांत गिनें?
सर हिलेरी और उन के साथी तेनजिंग को जब पहली बार जाना, शायद छह बरस की उम्र में, तब से वे मेरे आदर्श रहे। उन्हों ने अपने लिए सदैव उच्चतम लक्ष्यों को चुना और फतह किया। वे सदैव ही कोंपलों के लिए आदर्श बने रहेंगे। उन की स्मृति को प्रणाम।
ReplyDeleteआप सही कह रहे हैं जब भी कोई बड़ा काम करना होगा तो सर हिलेरी (मैडम हिलेरी क्लिंटन नही बल्कि एडमंड) जरूर याद आयेंगे।
ReplyDeleteछोटी पर बढिया पोस्ट.
ReplyDeleteपर कुछ भी कहिए ऐसी दान की बछिया कहीं और नहीं मिली आज तक.
सर एडमण्ड हिलेरी ने अपने जीवन में जितनी लगनता और साहस से अपने सभी अभियानों को पूरा किया उसको पढकर ही रोंगटे खडे हो जाते हैं ।
ReplyDeleteआपने सच कहा सर हिलेरी ने जिस अनौपचारिक भाषा का प्रयोग किया उसका प्रयोग काफ़ी स्पोर्स्ट्स में होता है (टेनिस को छोडकर) । यहाँ मित्रों में अगर किसी की हल्की सी चुटकी लेनी हो तो "यू बास्टर्ड" कहने पर मित्र बुरा नहीं मानते ।
हिलेरी जैसे जज्बे वाले ही जीते और जीतते हैं। बाकी लोग तो बस जिदगी खेते है, बिना पतवार की नांव की तरह।
ReplyDeleteबिलकुल ठीक कहा आपने।हिलेरी प्रतीक हैं, उस अदम्य जिजीविषा के, जो इंसानी ताकत का सबसे बड़ा सबूत है। बहुत छोटा था, तब इंगलिश के सर बताया करते थे। हिलेरी जब पहली बार एवरेस्ट को फतह नहीं कर पाये, तो उन्होने एवरेस्ट से कहा-आई विल कम अगेन एंड क्लाइंब यू। बिकाज एज ए मैन आई हैव ए यूनिक एबिलीटी, विच यू डोन्ट हैव। एंड दिस इज, आई कैन ग्रो, बट यू कांट।
ReplyDeleteएकैदम सही बात है।
हम अगर चाहें, तो रोज ग्रो कर सकते हैं।
एवरेस्ट कित्ता हू एवरेस्ट हो, रोज तो क्या सालों में भी ग्रो नहीं कर सकता है।
मैने स्कूल मे पढा था फिर जब गर्मियो मे दार्जीलिंग गया और सब कुछ देखा पर्वतारोहण संस्थान मे तो जोश से सराबोर हो गया। आज वही जोश एक बार फिर महसूस हो रहा है आपको पढने के बाद।
ReplyDeleteजे दोनो बात सई कही आपने!!
ReplyDeleteएक तो बड़ा काम करने पर उनकी याद आने की और दान की बछिया वाली!!
मेरे विचार में जीवन कर्म में लगा हर व्यक्ति हर दिन आने वाली चुनौतियों का सामना करता हुआ मुश्किलों के शिखर पार करता आगे बढ़ता रहता है.
ReplyDeleteहम पहाड़ों को नहीं अपने आपको जीतते हैं । अदभुत है भई । हमें तो ऐसे ही जीवट लोगों से ऊर्जा मिलती है । मेरा मानना है कि ऐसी हस्तियां चले भली जाएं पर इनके कारनामों की कथाएं पढ़ भर लेने से ही आप चार्ज अप हो जाते हैं । डिस्कवरी पर एवरेस्ट मिशन के अनगिनत कार्यक्रम देखे हैं हमने और अंदाजा है कि एवरेस्ट पर चढ़ना आज भी कितना मुष्किल काम है । फिर हिलेरी के लिए कितना कठिन रहा होगा । इस रविवार को विविध भारती के एक कार्यक्रम में हम हिलेरी को सादर नमन कर रहे हैं । वो भी अपने ही तरीके से
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