बहुत दिनों के बाद कल सवेरे वह चाय की दुकान पर चाय छानने का इन्तजार करते दिख गया। मैं सोचता था कि वह शिव कुटी से फेड आउट हो चुका है। पर अपने को गलत पा कर मुझे प्रसन्नता हुयी। वह मैले कुचैले कपड़े पहने था। पैण्ट और कमीज। ऊपर से आधा स्वेटर। सर्दी निश्चय ही आधे स्वेटर से ज्यादा की थी। पर वह चाय वाले की भट्टी के पास था और कंपकंपाता प्रतीत नहीं हो रहा था। दांत उसके वैसे ही थे - बत्तीसी नहीं, फुटकर और विभिन्न दिशाओं में प्वाइण्ट करते हुये। उसी के कारण हम उसे दन्तनिपोर कहते हैं। असली नाम तो मालुम नहीं। उसके सिर में जितने भी बाल थे - वे अर्से से बिना नहाये लटों में परिवर्तित हो गये थे। दाढ़ी चार-पांच दिन की शेव की हुई लग रही थी। उसका लम्बोतरा मुंह पिचक कर और भी लम्बा नजर आ रहा था। मेरी पत्नी ने उसका फोटो नहीं लेने दिया। वे चाय की दुकान पर खड़े हो कर दन्तनिपोर से संवाद के कतई पक्ष में नहीं थीं।
दंतनिपोर का फोटो तो मेरी पत्नी ने लेने नहीं दिया! लिहाजा यही फोटो देखें! असली दंतनिपोर के चश्मा नहीं है और सिर पर बाल कम और लट पड़े हैं। |
दन्तनिपोर इलेक्ट्रीशियन है। मेरे घर में कुछ बिजली का फुटकर काम और मरम्मत कर रखी है। उसके काम में सुगढ़ता नहीं है और न ही उसके जीवन में है। दारू का नियमित व्यसनी है। अधेड़ है। पर शादी नहीं हुई है। शादी को बहुत बेताब है। उसी के चक्कर में बनारस भी गया था।
वह यहां शिवकुटी में अपने भाई के साझे में रहता था। सवा बिस्से की जमीन में उसके पास पक्का कमरा-सेट था और उसी में भाई के पास एक झोंपड़ी थी। भाई ने उसका राशन कार्ड बनवाने के बहाने एक कागज पर उसके अंगूठे का निशान ले लिया था। इधर दन्तनिपोर बनारस गया और उधर भाई ने जमीन और मकान ६ लाख में (भरतलाल के अनुमान अनुसार यह कीमत मिली होगी) बेंच दिया। तीन-चार महीने बाद वह वापस आया - बिना शादी के - तो यहां उसने पाया कि उसका मकान है ही नहीं। कई दिन बदहवास घूमता रहा। एक दिन भरतलाल ने देखा तो खाने को कुछ पैसे दिये। उसके बाद फिर गायब हो गया।
भरतलाल बताता था कि दन्तनिपोर बहुत हताश था। लोगों ने उसे सलाह दी कि वह भाई के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला कोर्ट में ले जाये, पर उसने मना कर दिया - "भाई भी तो गरीब है। उसकी दो लड़कियां भी हैं।" मुझे लगता है कि यह दया-दर्शन उसने अपनी अकर्मण्यता और अनिश्चय को तर्कसंगत जामा पहनाने को गढ़ा होगा।
खैर, यह स्पष्ट हो गया कल कि दन्तनिपोर मरा नहीं, जिन्दा है। उसने मेरी पत्नी को नमस्कार भी किया - यानी वह मानसिक रूप से बैलेन्स्ड भी है। चाय की दूकान पर था - तो पैसे भी होंगे कुछ उसके पास। आगे का हाल तो अब भरतलाल के माध्यम से पता किया जायेगा। अभी तो यही दिलासा है कि दन्तनिपोर जिन्दा है और चल फिर रहा है।
भगवान निर्बल और निरीह को भी जिन्दा रखते हैं। क्यों करते हैं ऐसा भगवान?
भरतलाल के दंतनिपोर पर फर्दर इनपुट: दन्तनिपोर का नाम राजन है। जब वह पहले भरतलाल से मिला था तो बता रहा था कि सीएमपी डिग्री कॉलेज में उसे गेटमैनी का काम मिल जायेगा। शायद वही काम कर रहा हो। नहीं तो फुटकर इलेक्ट्रीशियन का काम ही कर रहा होगा। यही काम वह जानता है। यहां शिवकुटी में रहने को किसी ने उसे बिना किराये के पनाह दे दी है।
कितनी विडंबना है। यही राजन/दंतनिपोर अगर यूरोप के किसी विकसित देश में होता तो इलेक्ट्रीशियन होने के नाते लाखों कमा रहा होता। वहां तो ऐसे हुनरमंद शारीरिक काम के बहुत ज्यादा पैसे मिलते हैं। और, अपने यहां राजन को चौकीदारी के भी लाले पड़े हैं।
ReplyDeleteआज अभी तक अखबारवाला भी गायब है। आप की पोस्ट ने भी बहुत इन्तजार करवाया। राजन जैसी त्रासदियों की कमी नहीं है। वह जानता है कि न्याय प्रणाली उस जैसों के लिए नहीं है। वह अदालत चला भी जाए तो भी निर्णय होने के पहले ही भाई सब कुछ ठिकाने लगा चुका होगा। उसे वहां से कुछ नहीं मिलने का। राजन ने वास्तव में अपनी अकर्मण्यता और अनिश्चय को नहीं, न्याय प्रणाली की निस्सहायता को ढक दिया है। उस का चित्र नहीं दे कर ठीक ही किया। भाभी जी को इस के लिए साधुवाद। उन की सामाजिक सोच ने कहीं तो आप के छवि संकलक पर रोक लगा ही दी।
ReplyDeleteशिवकुटी में " शिव -गण " से राजन भाई से मिल लिए आज ...
ReplyDeleteIt is endearing to know how sensitive Bhabhi ji is !
I wish, Rajan bhai gets a break
in his life - ( as they say here in Us of A. )
दंत निपोरजी माडलिंग के काम आ सकते हैं। कोक च पेप्सी वाले ये इश्तिहार बना सकते हैं-
ReplyDeleteपेप्सी पीने वाले हर हाल में खुश
दंतनिपोरजी को पेप्सी के साथ हंसते हुए दिखाया जाये।
हैप्पीनेस के लिए नहीं चाहिए कुछ होर
सिर्फ पेप्सी, प्लीज मीट दंत निपोर।
कोलगेट वाले भी हाथ आजमा सकते है,
उदास चेहरे पर देखें धांसू शाइन का जोर
कर्टसी कोलगेट प्लीज मीट दंतनिपोर
कोलगेट उदासी में भी चमक
और ज्यादा आइडिये पैसे लेकर बताऊंगा.।
'यहां शिवकुटी में रहने को किसी ने उसे बिना किराये के पनाह दे दी है।'
ReplyDeleteयह बडी ही रोचक बात है। बस ऐसे ही मददगार मिल जाये तो देश के असंख्य दंतनिपोरो को आगे बढने का हौसला मिले। बताये कि ब्लागर जगत दंतनिपोर के लिये क्या कर सकता है उसके जीवन मे झाँकने के अलावा।
अब भाग्यवादी इस बात पे कह सकते हैं कि बेचारे की किस्मत कैसी जो भाई ने ही धोखा दे दिया!!
ReplyDeleteसमाजशास्त्री विचार सकते हैं कि सामाजिक मूल्यों या रिश्तों में ऐसी गिरावट कैसी कि भाई ने भाई को धोखा दे दिया!
यथार्थवादी कह सकते हैं कि उसे हकीकत से मुंह नही मोड़ना चाहिए!
आशावादी कह सकते हैं कि उसे कानून की शरण में ज़रुर जाना चाहिए क्या पता उसका हक़ वापस मिल जाए!
और सबसे बढ़कर हमारा मीडिया इस मामले पे दो घंटे का लाईव फ़ुटेज़ दिखा सकता है कि दंतनिपोर कैसे अपने दिन गुजार रहा है अब। साथ ही विशेषज्ञों को बुलवाकर दर्शकों से सीधे फोन पर राय ले सकते हैं।
तो आपने देखा कि भगवान निर्बल और निरीह को भी क्यों जिन्दा रखते हैं।
भरतलाल खबरी जिन्दाबाद ;)
भैय्या
ReplyDeleteकैसे आप अपनी लेखनी के सक्षम मध्यम से हाशिये पे बैठे अनजान लोगों को शीर्ष स्थान दे देते ये देखने लायक होता है. सीधे साधे शब्दों में गहरी बात करना कोई आप से सीखे. वाह...वाह...हम आप की पोस्ट पढ़ के दांत निपोर रहे हैं....
नीरज
पक्की सहानुभूति है दन्तनिपोर जी के साथ। आपको फिर से मिलें तो हमारी और से भी कुशल-क्षेम पूछ लीजियेगा।
ReplyDeleteलगभग आठ-नौ वर्ष पहले जब मैं वाराणसी में पोस्टेड था , ऐसा ही एक दंत निपोर इलेक्त्रीसियन मेरे घर आया-जाया करता था , वह भी कुछ इसी से मिलता -जुलता किरदार था ! अच्छा लगा आपका विश्लेषण ,उसके प्रति आपकी भावनाएं नि:संदेह प्रशंसनीय है , आपको साधुवाद !
ReplyDeleteयदि दन्तनिपोर जैसे लोग समाज में न हों तो मेरे एवं आप जैसे कंप्यूटरखोर क्या करते? वास्तव में ये अनजान लोग हैं जो हमारी जिंदगी की बहुत बडी जरूरतों को पूरी करते हैं.
ReplyDeleteइस तरह के एक व्यक्ति को जाल पर लाने के लिये आपका अभार.
अब हस्तफैलाऊ, शब्द-बिखेरू, परोपकारीमल, पानीमिलाऊ, आदि के बारें में भी कुछ हो जाये !