सिंगूर और नन्दीग्राम, दिल्ली के पास के स्पेशल इकनॉमिक जोन, सरदार सरोवर ... और भी कितने ऐसे प्रॉजेक्ट है जिनमें स्थानीय ग्रामीण/आदिवासी जनता का टकराव परिवर्तन की ताकतों से हो रहा है. अंतत: क्या होगा? देश अगर तरक्की करेगा तो व्यापक पैमाने पर औद्योगीकरण होगा ही. कृषि का मोड-ऑफ प्रोडक्शन ऐसा नहीं है जो विकास की गति को पर्याप्त ईन्धन प्रदान कर सके. अत: जिस प्रकर से सम्पत्ति सामान्यत: उस ओर जाती है जहां उसमें अधिकतम वृद्धि होती है, उसी प्रकार जमीन भी सामान्यत: उस ओर जायेगी, जिस ओर अधिकतम उत्पादन होगा. मैं जानता हूं कि मेरे उक्त पैराग्राफ से बहुत से किसान/आदिवासी के पक्षधर अपना फन उठाने लगे होंगे. अत: मै स्वयम न लिख कर स्टीफन कोवी की कालजयी पुस्तक
“The 8th Habit” के दूसरे अध्याय का सम्पादित अनुवाद प्रस्तुत करता हूं. इससे वर्तमान दशा की समझ में बड़ी अच्छी इनसाइट मिलेगी:
"जब इंफ्रास्ट्रक्चर का रूप बदलता है, सब कुछ धसकने लगता है.” – स्टान डेविस.
हम विश्व इतिहास के एक बहुत महत्वपूर्ण संक्रमण के गवाह बन रहे हैं. इसपर पीटर ड्रकर ने कहा है: “….इतिहास में पहली बार बहुत से (और तेजी से बढ़ती संख्या में) लोगों के पास विविध विकल्प (च्वाइस) आते जा रहे हैं, और लोगों को आगे स्वयम अपना प्रबन्धन करना होगा. ... लोग/समाज इसके लिये तनिक भी तैयार नहीं है.”
हम उक्त कथन का महत्व समझने को सभ्यता के विकास की 5 अवस्थायें देखें :
- शिकारी/घुमंतू मानव
- कृषि पर निर्भर जीवन
- औद्योगिक समाज
- सूचना/नॉलेज वर्कर का युग
- बौद्धिक युग (भविष्य की अवस्था)
शिकारी से कृषि युग में मानव के परिवर्तन को लें. शिकारी मानव को अपार कष्ट हुआ होगा कृषक बनने में. उसने धरती खोद कर बीज डाले होंगे और कुछ नहीं हुआ होगा. वह दूसरे सफल कृषक को देख कर विलाप कर रहा होगा – न मेरे पास औजार हैं, न दक्षता! धीरे धीरे उसने सीखा होगा. उसके बाद उसकी उत्पादकता 50 गुणा बढ़ गयी होगी. फिर कृषि पर निर्भरता ने 90% शिकारी मानवों की छुट्टी कर दी होगी.
ऐसा ही कृषि और औद्योगिक युग में ट्रांजीशन में हुआ. धीरे धीरे लोगों ने औद्योगिक युग की तकनीक - विशेषज्ञ होना, काम का बंटवारा, कच्चेमाल की प्रॉसेसिंग और असेम्बली लाइन के तरीके सीखने प्रारम्भ किये. इससे उत्पादकता कृषि उत्पादकता से 50 गुणा बढ़ जाती है. एक किसान क्या कहेगा? वह शायद असुरक्षा और ईर्ष्या से भर जाये. पर अंतत: वह नयी मनस्थिति और नये औजारों का प्रयोग सीखता है/सीखेगा. इस प्रक्रिया में 90% कृषक समाप्त हो जायेंगे. आज अमेरिका में केवल 3% लोग पूरे देश ही नहीं, दुनियां के बाकी हिस्सों के लिये भी अन्न का उत्पादन कर रहे हैं. कृषि में भी औद्योगिक युग की तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं वे.
उसी तरह सूचना/नॉलेज वर्कर औद्योगिक युग से 50 गुणा अधिक उत्पादन करेंगे. सूचना/नॉलेज वर्कर का यह हाल है कि नाथन माईहर्वोल्ड, माइक्रोसॉफ्ट के भूतपूर्व मुख्य तकनीकी अधिकारी कहते हैं – एक दक्ष सॉफ्टवेयर डेवलपर औसत सॉफ्टवेयर डेवलपर से 10 नहीं, 100 नहीं, 1000 नहीं, 10,000 गुणा अधिक उत्पादक है!
आप अन्दाज लगा सकते हैं - सूचना/नॉलेज वर्कर औद्योगिक समाज के 90% कर्मियों की छुट्टी कर देंगे.
कितनी प्रचण्ड छटनी होगी कर्मियों की. अंतत: समाज को नया माइण्ड सेट, नया स्किल सेट, नया टूल सेट अपनाना ही होगा.
अर्नाल्ड टोयनबी इसे बड़े सटीक तरीके से बताते हैं – “अभूतपूर्व असफलता के बीज सफलता में निहित हैं.” अगर आपके पास चुनौती है और आपका रिस्पांस उसके बराबर है तो आप सफल होते हैं. पर उसके बाद अगर नयी चुनौती आ जाये और आपका रिस्पांस पहले जैसा है तो आपकी असफलता लाजमी है.
समस्या यही है. हम तेजी से औद्योगिक और सूचना/नॉलेज वर्कर के युग में कदम रख रहे हैं पर हमारी मानसिकता कृषि युग की है. इस मानसिकता से पार पाना ही होगा.
(स्टीफन कोवी यह जिस अध्याय में लिखते है उसका शीर्षक है – प्रॉबलम – समस्या. अगला अध्याय सॉल्यूशन - समाधान का है. वह पढ़ने के लिये आप पुस्तक पर जायें. आपका पढ़ना व्यर्थ नही जायेगा.)