पर अज़दक, जो छल्लेदारतम भाषा में लिखते हैं; इस प्रकार की च्वाइस नहीं देते. उन्होने पता नही कैसा ठाकुर-बच्चे-पंडित वाला हैडिंग दिया कि आभास ही न हो पाया कि ये वही खटराग है. उनकी पोस्ट भी केनोपनिषद की तरह सम्भल-सम्भल कर पढ़नी पड़ती है – जाने किस शब्द/वाक्य में क्या मीनिंग हो. मैं जब तीन चौथाई पोस्ट पढ़ गया तब स्पष्ट हुआ कि पोस्ट के ठाकुर नारद वाले माफ़िया लोग हैं. पण्डित उनकी हां में हां मिलाने वाले भांड़. चड्डी वाले मोगली क्या हैं – यह आइडेण्टीफाई करने का पेशेंस नहीं था. मैने बाकी पोस्ट स्किप कर दन्न से दिल जलाऊ टिप्पणी लिखी और सटक लिया.
आज के 250 शब्दों में यह चर्चा छेड़ने के क्या निहितार्थ है? मैं टू-द-प्वॉइण्ट बताता हूं :
- अज़दक का लेखन, छल्लेदारतम होने के बावजूद पसन्द है.
- पर यह सख्त नापसन्द है कि वे छल्लेदार टाइटल दे कर घिसे टॉपिक को ताजा माल बता कटिया फंसायें. तीन चौथाई पोस्ट में भूमिका बांधें और फिर बतायें कि वे भी क्रांतिकारी है तथा अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में है. एक फ़ीड एग्रीगेटर को इतना भाव देना या उसे फ़साड बना खुद इतना भाव लेना अभिव्यक्ति की आजादी को दुअन्नी का रेट लगाने जैसा होगा.
- ये सारा हिन्दी चिठ्ठा संसार – जो पाण्डवों के पांच गांव की प्रस्तावित रियासत से बड़ा नही है, सड़ रहा है नारद-फारद/बैन-सैन/अभिव्यक्ति पर सेंसर/हमें निकालो/माड्डाला/होहोहोहो छाप पोस्टों से. बहुत हो गया. की-बोर्ड किसी और काम लाओ. आलोक पुराणिक छाप कुछ मस्त-मस्त लिखो. ज्यादा इण्टेलेक्चुअल (सॉरी पुराणिकजी, इसका मतलब यह नहीं कि आप इण्टेलेक्चुअल छाप नही लिखते) लिखने का मन है तो भी विषयों की क्या कमी है? एक ढ़ेला उठाओ हजार टॉपिक दबे पड़े हैं.
- और चड्डी वाले या बिना चड्डी वाले इतने भी बकलोल नहीं है. जब अज़दक जैसे ठाकुर (नाम में सिंह लगा रखा है जी) की पोस्ट झेलते हैं, तो इतना ग्रे मैटर रखते ही हैं कि इंटेलेक्चुअल छाप समझ पायें. कोई ब्लॉगरी मे आया है तो "चमेली तुझे गंगा की कसम" (सॉरी, मुझे करेण्ट फ़िल्मों के नाम नहीं मालूम) जैसी फ़िल्म के डॉयलॉग से बेहतर समझ वाला होगा!
- हिन्दी वालों को फेंट कर लस्सी बनाना नहीं आता. वे फेंटते चले जाते हैं – जब तक मक्खन नहीं निकल आता. फिर वे मक्खन फैंक कर लस्सी के नाम पर छाछ परोस देते हैं.
बस; 250 हो गये. वर्ना दिल इतना जला है कि आज सुकुलजी को बीट करने का मन था पोस्ट की लम्बाई में!
_________________
Incidentally, this is my 100th Post published on this Blog. Not a bad performance, but not very spectacular too. I could have done better, had I not had the prejudices which I started with. One was that, that Hindi Bloggery is to narrow and too compartmentalized. It is divided in to Ghettos, no doubt. But to make a space for yourself was not as difficult as I thought initially. Contrary to the common perception, I am liking the present tussle between Right and the Left/Muslims/Secular/Pseudo-secular.
अरे, मर गये..टाईटल मे लिखे तो हम भी वो ही हैं मगर मसला वो नहीं है भाई..माफ करना मित्र..:)
ReplyDeletehttp://udantashtari.blogspot.com/2007/06/blog-post_19.html
देख लो और खराब लगे तो क्षमा कर देना!! :) अब क्या करें पोस्ट तो कर ही दी है.
ब्लॉग-लेख का शतक ठोंकने पर बधाई. लेकिन प्लीज़ आगे से 250 शब्दों वाले दो पोस्टों को एक गिना जाए.
ReplyDeleteज्ञानदत्तजी,
ReplyDeleteशानदार शतकीय पारी के लिये बधाईयाँ ।
आपकी इस पोस्ट ने सार्थक लेखन के लिये मन में एक कसक पैदा की है, किस हद तक क्सक लिखवाने में सफ़ल होती है वक्त ही बतायेगा ।
फ़िलहाल तो ऐं वें ही लिखा है, ताजा माल पोस्ट किया है, कुण्डी खटखाईयेगा ।
साभार,
नीरज
धांसू शतक मारा है ज्ञानदत्त जी, बधाई! काश कभी हमें भी आपके जैसे लेखकीय तेवर नसीब हों।
ReplyDeleteरविरतलामी जी ने अपनी एक पोस्ट में लिखा था कि भाषाई ब्लॉगों का एक फायदा है कि यदि आप अच्छा लिखते हैं पहचान बनाना काफी आसान है।
बहुत सही मुद्दे को सामने लाये हैं। हिन्दी ब्लागिंग जीवंत बना रहे इसके लिये इसमें गति दिखनी जरूरी है। एक ही तुच्छ चीज पर हल्ला करते रहने से यह गति बाधित होती है।
ReplyDeleteपांडेजी शतक के लिए बधाई।
ReplyDeleteइस बात के लिए धन्यवाद कि आपको अपना लिखा मस्त लगता है। वरना मस्ती बची कहां है ससुरी इसे मारधाड़ में।
और जी फुरसत पायें तो देखें www.smartnivesh.com को
अभी बहूत बेसिक टाइप काम है। बहूत काम होना बाकी है, भाषा पर, प्रस्तुति पर। धीमे-धीमे चल रहा है। पर चल रहा है।
आलोक पुराणिक
एक शानदार सैचुरी के लिये बधाई स्वीकार करें....आप सारी बैन-सैन वाली पोस्ट पढ़ लीजिये ..हमारी टिप्पणी कहीं नहीं पायेंगे.. और ठाकुर साहब को नियमित ही पढ़ते हैं पर वहां भी कोई टिप्पणी नहीं की ..
ReplyDeleteबधाई हो दद्दा!!
ReplyDeleteयह पोस्ट तो आपने एकदमै सत्य ही लिखा है!
आशा है कि इसी तरह हम आपको 1000वीं पोस्ट की भी बधाई देंगे!
आपने शतक ठोका इस लिए तालि बजा रहे है, बाकि टिप्पणी करना छोड़ दिया.
ReplyDeleteपुनश्च-
ReplyDeleteSMARTNIVESH.COM के लिए एसएमएस हौसलाअफजाई के लिए धन्यवाद। मैंने प्रति-एसएमएस भेजने की कोशिश की। बहूत देर से पेंडिंग पड़ा है। जल्दी ही SMARTNIVESH.COM भी गति पकड़ेगा, आपकी शताब्दी की माफिक, अभी आगरा-मथुरा पैसेंजर है।
आलोक पुराणिक
एक तालि हमारी ओर से भी! खुब लीखा!
ReplyDeleteशतक की बधाईयाँ।
ReplyDeleteहोना तो वही चाहिए जो आपने लिखा है।
बधाई
ReplyDeleteआपने हिन्दी में हिन्दी वालों के लिए खूब लिखा और जब गुस्सा गए (आप ही ने पहले बताया था कि जब आप गुस्से में होते हैं तो अंग्रेजी में चालू हो जाते हैं - और, इंटरनेट कभी नहीं भूलता!)तो अंग्रेजी में चालू हो गए.
ReplyDeleteप्रभासाक्षी के लिए मैंने बालेंदु जी से पूछा था कि वे अपने समाचार और आलेखों के लिए टिप्पणियों (मेरे कुछ आलेख वहाँ आते रहे हैं) की सुविधा क्यों नहीं देते हैं.
उनका जवाब था - आपके ब्लॉग पाठक तो बुद्धिजीवी किस्म के लोग हैं. प्रभासाक्षी के हिन्दी वाले तो बहुत ही घटिया किस्म के टिप्पणियाँ देते हैं और बहुत ही निम्न स्तरीय भाषा इस्तेमाल करते हैं. यह सुविधा देकर देख लिया है, और अब इसीलिए बन्द कर दिया है.
और, यकीन मानिए - उस तरह के हिन्दी वाले जब आएंगे तो हिन्दी की और वाट लगेगी. अभी तो शुरूआत हुई है!
बहरहाल, 100 वीं पोस्ट के लिए बधाई. इस साल के अंत तक इसे 1000 तक ले जाएँ :) बिना 250 शब्दों की सीमा के:)
ज्ञान जी.. the common perception is your own making.. even in the present post..
ReplyDeleteप्रमोद जी.. अपनी हिन्दी सँभालिये..
सिर्फ ५ महीनों में एक शानदार सैंकडे के लिये बधाई...
ReplyDeleteझकाश लिखा है । शतक के लिए बधाई। मैंने भी एक पोस्ट इसी निहितार्थ दे मारा । http://merasapna.wordpress.com/2007/06/19/narad-vivad-google-isthifa/
ReplyDeleteपाण्डेय जी शुभकामनाये 100 वी पोस्ट के लिये आपने सिद्ध कर दिया कि आपकी मानसिक हलचल कितनी तेज है । हमें आपके शव्दों का आर्शिवाद ऐसे ही प्राप्त होता रहे । प्रणाम ।
ReplyDeleteसंजय बैगानी की http://tarakash.com/joglikhi/?p=208 लिखने के बाद तालियां बजाना खुब सिख गये हैं
ReplyDeleteआपको 100वी पोस्ट मुबारिक
शतक के लिये बधाई
ReplyDeleteबस; 250 हो गये. वर्ना दिल इतना जला है कि आज सुकुलजी को बीट करने का मन था पोस्ट की लम्बाई में!
ReplyDeleteअरे लिख डालते, काहे बीच में ही कंपीटीसन छोड़ दिए! :)
पुनश्च-एक शानदार सैचुरी के लिये बधाई स्वीकार करें....
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई! आपका सैकड़ा मुबारक। माउस हिलाते हुये फोटो आती तो और समा बनता!आज ही एक ब्लागर से मुलाकात हुयी। छूटते ही बोला ज्ञानजी बहुत अच्छा लिखते हैं। अब बताइये मिलने हम गये और वो तारीफ़ आपकी हो कितना जलन होगी। :) बधाई। हमारी जलन बरकरार रखिये। :)लिखते रहिये। ऐसे कई सैकड़े बनेंगे।
ReplyDeleteधाँसू है, शतक मुबारक।
ReplyDeleteअरे काहे नहीँ पूरी तरह भड़ास निकाली, हम भी तो यही कह रहे हैँ।
ReplyDeleteहिन्दी इन्टरनेट
एक बार अवश्य जांचें |