|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
|| मेरी (ज्ञानदत्त पाण्डेय की) मानसिक हलचल ||
|| मन में बहुत कुछ चलता है ||
|| मन है तो मैं हूं ||
|| मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग ||
Monday, June 25, 2007
नाई की दुकान पर हिन्दी ब्लॉगर मीट
पिछले तीन हफ्ते से हेयर कटिंग पोस्टपोन हो रही थी. भरतलाल (मेरा भृत्य) तीन हफ्ते से गच्चा दे रहा था कि फलाने नाई से तय हो गया है - वह घर आ कर सिर की खेती छांट देगा. वह नाई जब रविवार की दोपहर तक नहीं आया तो बोरियत से बचने को मैने एक ताजा पुस्तक पकड़ी और जा पंहुचा नाई की दुकान पर. रविवार की दोपहर तक सभी केण्डीडेट जा चुके थे. नाई अकेला बैठा मुझ जैसे आलसी की प्रतीक्षा कर रहा था. मैंने सीधे लांचपैड (नाई की ऊंची वाली कुर्सी) पर कदम रखा.
उसके बाद रुटीन हिदायतें - बाल छोटे कर दो. इतने छोटे कि और छोटे करने पर वह छोटे करने की परिभाषा में न आ सकें. ये हिदायत मुझे हमेशा देनी होती है - जिससे अगले 2-3 महीने तक हेयर कटिंग की जहमत न उठानी पड़े.
जब केवल नाई के निर्देशानुसार सिर इधर-उधर घुमाने के अलावा कोई काम न बचा तो मैने उसकी दुकान में बज रहे रेडियो पर ध्यान देना प्रारम्भ किया. कोई उद्घघोषक बिनाका गीतमाला के अमीन सायानी जैसी आवाज में लोगों के पत्र बांच रहे थे. पत्र क्या थे - लोगों ने अटरम-सटरम जनरल नॉलेज की चीजें भेज रखी थीं. ... भारत और पाकिस्तान के बीच फलानी लाइन है; पाक-अफगानिस्तान के बीच ढिमाकी. एवरेस्ट पर ये है और सागर में वो ... एक सांस में श्रोताओं की भेजी ढ़ेरों जानकारियां उद्घघोषक महोदय दे रहे थे. मुझे सिर्फ यह याद है कि उनकी आवाज दमदार थी और कर्णप्रिय. एक बन्दे की चिठ्ठी उन्होने पढ़ी - "मैं एक गरीब श्रोता हूं. ईमेल नहीं कर सकता " (जैसे की सभी ईमेल करने वालों के पास धीरूभाई की वसीयत हो!). फिर उद्घोषक जी ने जोड़ा कि ईमेल क्या, इतने प्यार से लिखे पत्र को वे सीने से लगाते हैं ... इत्यादि.
उसके बाद माइक उषा उत्थप को. जिन्होने मेरे ब्लॉग की तरह हिन्दी में अंग्रेजी को और अंग्रेजी में हिन्दी को औंटाया. कुछ देर वह चला जो मेरी समझ में ज्यादा नहीं आया. बीच-बीच में गानों की कतरनें - जो जब समझ में आने लगें तब तक उषाजी कुछ और बोलने लगतीं.
खैर मेरी हेयर कटिंग हो चुकी थी. तबतक उद्घोषक महोदय ने भी कार्यक्रम - पिटारा समाप्त करने की घोषणा की. और कहा - आपको यूनुस खान का नमस्कार.
यूनुसखान अर्थात अपने ज्ञान बीड़ी वाले ब्लॉगर! जो मेरे ब्लॉग पर अपनी आवाज जैसी मीठी टिप्पणी करते हैं और जिनके ब्लॉग पर मैं फिल्मों के गीत पढ़ने जाता हूं. वहां गीत तो नही सुने पर अब वे अपनी आवाज में कुछ कहेंगे तो सुनूंगा. हां, अब लगता है कि वे अपने ब्लॉग पर अपने कार्यक्रमों के समय जरूर दें जिससे कि घर पर रेडियो पर सुना जा सके.
मैने नाई को हेयरकटिंग के दस रुपये दिये और लौटते हुये सोचा - दस रुपये में हेयर कटिंग भी हो गयी और ब्लॉगर मीट भी!
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चलिए, आपके बाल भी कट गए, और जेब में थोड़े स्नेह की कमाई भी हो गई..
ReplyDeleteअजदक उवाच> चलिए, आपके बाल भी कट गए, और जेब में थोड़े स्नेह की कमाई भी हो गई..
ReplyDeleteसाम्यवादी ठाकुर, परम्परा वादी ब्राह्मण से शुद्ध बनिया की भाषा में बोले तो दिल में जलन होती है :)
इसका मतलब युनुस भाई आपके शहर तक पहुंचते हैं..तब जरूर हम तक भी पहुंचते होंगे..चलिये ट्राई करते हैं.लेकिन आजकल आपको ये मीट बहुत भाने लगा है क्या कारण है?
ReplyDeleteBloggers Meet jhumari talaiya se chalkar 'kesh kartanalay' tak ja pahunchee hai....Ise kya kahenge?
ReplyDeleteचलो इस बहाने आप की मीटने की खवाहिश तो पुरी हुई,पर भाइ जी ऐसी क्या नाराजगी है ब्लोगर्स से कि आप या तो झुमरी तलैया या फ़िर नाई की दुकान मे ही मिलना पसंद करते हो,माना हम हाई सोसाईटी के सो काल्ड इंटेलेक्चुअल परसन्स नही है,फ़िर भी इतने भी बुरे नही हम लोग कभी मिल कर देखिये...?:) :) :) :)बुरा मत मानियेगा,ढेर सारी स्माईली भी लगाई है :)
ReplyDeleteकाकेश> ...लेकिन आजकल आपको ये मीट बहुत भाने लगा है क्या कारण है?
ReplyDeleteमैं स्पष्ट कर दूं कि मैं परिशुद्ध् शाकाहारी हूं. प्याज-लहसुन के विकार से भी परे. यह मीट शब्द ब्लॉगरी की दुनिया के लिये है, इसके अलावा और कहीं नहीं.
शिव > Bloggers Meet jhumari talaiya se chalkar 'kesh kartanalay' tak ja pahunchee hai....Ise kya kahenge?
इसे कहेंगे इंटरनेट की सर्वहारा वर्ग तक पैठ बनने की कोशिश. एक कार्पोरेट सेक्टर के पक्षधर द्वारा!
कृपया नाई वाले का पता बताय, क्योकि जहॉं मै बाल कटवाने जाता हूँ वो 15 रूपये मागने लगा है :)
ReplyDeleteअपनी दिलचस्पी ब्लागर्स मीट में नहिं,ब्लागर्स ईट में हैं, जब कोई करे बुला ले। अरे जिन्हे रोज ब्लाग पर झेल रहे हैं और जो हमें रोज झेल रहे है, उनसे सिर्फ मिलकर क्या करेंगे।
ReplyDeleteनो मीटिंग विदाउट ईटिंग।
आलोक पुराणिक
ठीक इहै हमरे साथ भी हुआ था, नाई की दुकान में बैठे बाल कटा रहे थे और रेडियो पर "मंथन" नामक कार्यक्रम चल रहा था, घर आकर फ़ौरन यूनूस भाई के चिट्ठे पर टिप्पणी मारी थी अपन ने फ़िर कि भैय्या आज आपका कार्यक्रम सुन ही लिया !
ReplyDeleteज्ञानदत्त जी
ReplyDeleteहमको तो यूनुस भाई का तरीका बहुत जम गया. अपनी अपनी सुनाओ और सामने वाला कुछ कही न पाये. यह होती है जबलपुर स्टाईल. वरना तो खिलाओ भी, पिलाओ भी, घुमाओ भी और फिर भी चिरोरी करो कि भईया, जरा हमें भी सुन ले. अब से हम भी आपसे रेडियो से ही मिलेंगे भले अपना रेडियो स्टेशन खोलना पड़ जाये, तब भी सस्ता ही पड़ेगा (long run में).
मजेदार रहा यह भी-एक अनोखी चिट्ठाकार मीट.
पाण्डेय जी ये बात क्या सही है ...."बाल छोटे कर दो. इतने छोटे कि और छोटे करने पर वह छोटे करने की परिभाषा में न आ सकें. ये हिदायत मुझे हमेशा देनी होती है - जिससे अगले 2-3 महीने तक हेयर कटिंग की जहमत न उठानी पड़े. " देश भर के नाइयों को इसका विरोध करना चाहिये ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
बासूती उवाच> ... पाण्डेय जी ये बात क्या सही है ....
ReplyDeleteजी हां. पर नाई उसपर अमल करने में बहुत आनाकानी करते हैं.
अपने आप की छवि के प्रति यह निर्ममता क्यों है - मैं स्वयम समझ नहीं पाया. शायद नाई की दुकान पर जाना पसन्द नहीं!
वाह! इसे कहते हैं एक पंथ तीन काज - बाल कटा लिए, यूनुस भाई से मीटिया लिए और साथ ही उनके कार्यक्रम की खिंचाई भी कर ली। :)
ReplyDeleteब्लॉगर मीट की बधाई ।अब जब मीट शुरू कर ही दिया है तो आगे भी जारी रखियेगा ।
ReplyDeleteअरे अरे ज्ञान जी, पता नहीं कैसे आपकी इस ज्ञान बिड़ी का सुट्टा मारना भूल ही गया था । इसमें तो वो धूम्रपान निषेध का प्रतिबंध भी नहीं है । मुझसे भूल हो गयी जो इस पोस्ट को नज़र अंदाज़ कर दिया । तो आखिरकार आपने नाई की दुकान पर हमसे मुलाक़ात कर ही ली । अकसर लोगों के साथ ऐसा हो जाता है सर । मेरे एक मित्र हैं भोपाल में, कहते हैं कि जब भी ‘हेयरकट’ कराने जाता हूं तो तुम्हारी और ममता की आवाज़ सुन लेता हूं ( ममता विविध भारती की उद्घोषिका और मेरी धर्मपत्नी हैं) गोया नाई की दुकान नहीं हुई कोई लिसनिंग ब्यूरो हो गया, कि वहां पहुंचो और सुन लो रेडियो, अमां आप भी एक छुटका रेडुआ खरीद ही डालो अब, यक़ीन मानिए विविध भारती सुनकर आपको अच्छा लगेगा । ब्लॉग पर ना सही वहां आपको बिना प्रयत्न अच्छे गीत सुनने को मिलेंगे और फिर ब्लॉगर-मीट भी हो जाया करेगी । वैसे असली मीटिंग भी दूर नहीं । लगता है आपसे मिलने हमें इलाहाबाद आना ही होगा । अभी फरवरी में ही तो आए थे । फिर आयेंगे । जरूर आयेंगे । हमारी पत्नी का शहर जो ठहरा । तब आपसे असली मीट होगी । पर आपका लिखा बहुत अच्छा लगा । इसी तरह हमें ज्ञान बिड़ी पिलाते रहिये । जबलपुरिया हैं ज्ञान बिड़ी पीने के पुरानी आदत है । ये वो लत है जो हमसे छूटती नहीं ।
ReplyDeleteअरे हां ये तो बता दें कि आप युवाओं का कार्यक्रम यूथ एक्सप्रेस सुन रहे थे, वो रविवार का दिन था शाम चार से पांच बजे की बात है । वो हमारी फिक्स ज्ञान बिड़ी है । दूसरी फिक्स ज्ञान बिड़ी है ‘मंथन’ जिसका जिक्र संजीत भाई ने किया है, ये कार्यक्रम मंगलवार को रात पौने आठ बजे और दोबारा बुधवार को सुबह सवा नौ बजे होता है । एकदम्मय फिक्स हय । बाक़ी की सूचना हमें ज़रूरी लगा तो देते रहेंगे ।
ज्ञानदत्त जी
ReplyDeleteहमको तो यूनुस भाई का तरीका बहुत जम गया. अपनी अपनी सुनाओ और सामने वाला कुछ कही न पाये. यह होती है जबलपुर स्टाईल. वरना तो खिलाओ भी, पिलाओ भी, घुमाओ भी और फिर भी चिरोरी करो कि भईया, जरा हमें भी सुन ले. अब से हम भी आपसे रेडियो से ही मिलेंगे भले अपना रेडियो स्टेशन खोलना पड़ जाये, तब भी सस्ता ही पड़ेगा (long run में).
मजेदार रहा यह भी-एक अनोखी चिट्ठाकार मीट.
अरे अरे ज्ञान जी, पता नहीं कैसे आपकी इस ज्ञान बिड़ी का सुट्टा मारना भूल ही गया था । इसमें तो वो धूम्रपान निषेध का प्रतिबंध भी नहीं है । मुझसे भूल हो गयी जो इस पोस्ट को नज़र अंदाज़ कर दिया । तो आखिरकार आपने नाई की दुकान पर हमसे मुलाक़ात कर ही ली । अकसर लोगों के साथ ऐसा हो जाता है सर । मेरे एक मित्र हैं भोपाल में, कहते हैं कि जब भी ‘हेयरकट’ कराने जाता हूं तो तुम्हारी और ममता की आवाज़ सुन लेता हूं ( ममता विविध भारती की उद्घोषिका और मेरी धर्मपत्नी हैं) गोया नाई की दुकान नहीं हुई कोई लिसनिंग ब्यूरो हो गया, कि वहां पहुंचो और सुन लो रेडियो, अमां आप भी एक छुटका रेडुआ खरीद ही डालो अब, यक़ीन मानिए विविध भारती सुनकर आपको अच्छा लगेगा । ब्लॉग पर ना सही वहां आपको बिना प्रयत्न अच्छे गीत सुनने को मिलेंगे और फिर ब्लॉगर-मीट भी हो जाया करेगी । वैसे असली मीटिंग भी दूर नहीं । लगता है आपसे मिलने हमें इलाहाबाद आना ही होगा । अभी फरवरी में ही तो आए थे । फिर आयेंगे । जरूर आयेंगे । हमारी पत्नी का शहर जो ठहरा । तब आपसे असली मीट होगी । पर आपका लिखा बहुत अच्छा लगा । इसी तरह हमें ज्ञान बिड़ी पिलाते रहिये । जबलपुरिया हैं ज्ञान बिड़ी पीने के पुरानी आदत है । ये वो लत है जो हमसे छूटती नहीं ।
ReplyDeleteअरे हां ये तो बता दें कि आप युवाओं का कार्यक्रम यूथ एक्सप्रेस सुन रहे थे, वो रविवार का दिन था शाम चार से पांच बजे की बात है । वो हमारी फिक्स ज्ञान बिड़ी है । दूसरी फिक्स ज्ञान बिड़ी है ‘मंथन’ जिसका जिक्र संजीत भाई ने किया है, ये कार्यक्रम मंगलवार को रात पौने आठ बजे और दोबारा बुधवार को सुबह सवा नौ बजे होता है । एकदम्मय फिक्स हय । बाक़ी की सूचना हमें ज़रूरी लगा तो देते रहेंगे ।
अजदक उवाच> चलिए, आपके बाल भी कट गए, और जेब में थोड़े स्नेह की कमाई भी हो गई..
ReplyDeleteसाम्यवादी ठाकुर, परम्परा वादी ब्राह्मण से शुद्ध बनिया की भाषा में बोले तो दिल में जलन होती है :)
काकेश> ...लेकिन आजकल आपको ये मीट बहुत भाने लगा है क्या कारण है?
ReplyDeleteमैं स्पष्ट कर दूं कि मैं परिशुद्ध् शाकाहारी हूं. प्याज-लहसुन के विकार से भी परे. यह मीट शब्द ब्लॉगरी की दुनिया के लिये है, इसके अलावा और कहीं नहीं.
शिव > Bloggers Meet jhumari talaiya se chalkar 'kesh kartanalay' tak ja pahunchee hai....Ise kya kahenge?
इसे कहेंगे इंटरनेट की सर्वहारा वर्ग तक पैठ बनने की कोशिश. एक कार्पोरेट सेक्टर के पक्षधर द्वारा!
चलो इस बहाने आप की मीटने की खवाहिश तो पुरी हुई,पर भाइ जी ऐसी क्या नाराजगी है ब्लोगर्स से कि आप या तो झुमरी तलैया या फ़िर नाई की दुकान मे ही मिलना पसंद करते हो,माना हम हाई सोसाईटी के सो काल्ड इंटेलेक्चुअल परसन्स नही है,फ़िर भी इतने भी बुरे नही हम लोग कभी मिल कर देखिये...?:) :) :) :)बुरा मत मानियेगा,ढेर सारी स्माईली भी लगाई है :)
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