मेरे तीन ऑब्जर्वेशन हैं -
- देश में अमन चैन है – कमोबेश. तो चिठ्ठों में यह अराजकता और जूतमपैजार क्यों है? हर आदमी चौधरी (जीतेन्द्र से माफी!) क्यों बन रहा है? असगर वजाहत की कथा – टीज़ करने को त्रिशूल का प्रतीक – क्यों फंसाया जा रहा है बीच में? असगर जी शरीफ और नॉन-कंट्रोवर्शियल इंसान होंगे; पर उनकी कहानी का (कुटिलता से) दुरुपयोग क्यों हो रहा है? भाईचारे का भी वृहत साहित्य है – उसकी ज्ञान गंगा क्यों नहीं बहाई जा सकती? इतिहास देखें तो कौन सा धर्म है जिसमें किसी न किसी मोड़ पर बर्बरता न हो. फिर हिन्दू और मुस्लिम बर्बरता को अलग-अलग खेमों में अलग-अलग तराजुओं मे डण्डी मार कर क्यों तोला जा रहा है? कोई आदमी केवल ब्लॉग पढ़े तो लगेगा कि देश इस समय घोर साम्प्रदायिक हिंसा से ग्रस्त है. और उसमें भी गुजरात तो भस्म-प्राय है. है इसका उलट – देश मजे में है. रिकार्ड तोड़ जीडीपी ग्रोथ हो रही है और गुजरात उसमें अग्रणी है!
- समाज में आवाजें कैसे उठती हैं; उनका मेरा यह 3-4 महीने का अनुभव है. कोई अच्छा अनुभव नहीं है. आपस में नोक-झोंक चलती है. कभी-कभार पारा बढ़ सकता है. उसके अलावा अगर कोई ज्यादा ही छिटकता है तो उसपर या तो राजदण्ड या विद्वत-मत या फिर आत्मानुशासन काम करना चाहिये. पर इतने सारे लोग एक साथ अगर कुकरहाव करने लगें तो उसे एनार्की ही कहा जायेगा. हिन्दी ब्लॉगरी में वही दिख रहा है. अचानक चिठ्ठों का प्रॉलीफरेशन और नयी-नयी बोलने की स्वछन्दता लोगों के सिर चढ़ गयी है. उतरने में समय लगेगा.
- सेकुलरहे पता नहीं किस स्ट्रेटेजी से काम करते हैं मोदी को गरियाने में? असल में पूरे देश में अगर राम-राज्य होता तो मोदीजी को परेशानी हो सकती थी. पर अन्य प्रांतों की बजाय गुजरात बेहतर है. ऐसे में मोदी को गरियाना वैसा ही है जैसे लोग अमेरिका/रिलायंस/टाटा/वाल-मार्ट/इन्द्रा नूई को गरियायें. समर्थ को ही गरियाया जाता है. पर उससे मोदी को कोई फरक नहीं पड़ता; उल्टे मोदी को लाइमलाइट मिलती है. वे जितना मोदी बैशिंग करते हैं; मोदी के चांसेज उतने ब्राइट होते जाते हैं!
बात तो सीधी सी है, चिट्टों की ज़रुरत है नारद, नारद इतना बडा हो गया है उसे चिट्ठों की लालसा नहीं है।
ReplyDeleteवो थानेदारी कर सकते हैं, ऐसा करो, ऐसा लिखो, सहरानिये है, मेरा सम्मान है, आपने आम अदमी के लिये लिखा, जैसी टिप्पढियाँ यह जताती हैं की अपने को बाकी सब से ६ फुट उपर समझते है। विपुल जैन
बहुत सही कहा है आपने
ReplyDeleteआप आदमी, चाहे वो हिन्दु हो या मुसलमान इस तरह की उठापटक से कुछ लेना देना नही होता है. ये तो राजनीतिक हथकंडे अपनाने वालो का काम है जो रंग में भंग डालते हैं...
चिट्ठाकारों को इन सब से बचना चाहिये... लिखने के लिये और बहुत से विषय हैं
भई हमने तो हर सम्भव प्रयास किया कि चुप रहे, कुछ ना बोले, इस उठापटक मे। लेकिन जब ये बयानबाजी तू तड़ाक तक पहुँची तो हमने समझाया। लेकिन थोड़े दिनो मे फिर वही, अब गाली गलौच पर उतार आए लोग, तो अनुशासनात्मक कार्यवाही करनी ही पड़ी। यदि लोग अपने पर कन्ट्रोल नही रख सकते, तो सामूहिक/सामुदायिक मंचो पर मत चढे, बस यही कहना है।
ReplyDeleteअगर ये लोग कहते है कि यह स्वतन्त्रता का हनन है, तो ये इनकी समझ का फेर है।
आपकी एक एक पंक्ति मेरे विचारों की अभिव्यक्ति है.
ReplyDeleteसाधूवाद, मेरे पास शब्द नहीं थे, आपने दे दिये. अब मुझे कुछ नहीं कहना.
हमारा ध्येय हिन्दी को अन्तरजाल में लाना होना चाहिये। ठीक कहा इस तरह की बहस से बचना चाहिये
ReplyDeleteतो आप भी नहा लिये बहती गंगा में :-) ..अच्छा नहाये हैं जी ... हम तो इस बारे में अब तक ना कोई टिप्पणी किये हैं ना करेंगे .. बिना कुछ किये धरे ही जब हमारी भाषा को "बदतमीज" और विचारों को "हिन्दू हितैषी" कह दिया जाता है...तो फिर कुछ करने की जरूरत भी क्या है.
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने।
ReplyDeleteजो गलती करता है उसे सजा मिलनी ही चाहिये।
देश में अमन चैन कहां है ? सर जी ब्लॉग जगत में वही तो दिखेगा न जो देश समाज में घट रहा होगा .
ReplyDeleteसही मौका,भाइ काकेश अब कुछ दिन तो इसी पर आलेख आने है,पढिये और भुल जाईये,सुखी रहेगे,
ReplyDeleteज्यादा मूड करे एक मस्त काव काव कीजीये हम इंतजार मे है
"जिस दिन गूगल ने हिंदी मे ब्लोगिन्ग की शुरुआत की उस दिन मैं बहुत खुश हुआ।"
ReplyDelete"भाईचारे का भी वृहत साहित्य है – उसकी ज्ञान गंगा क्यों नहीं बहाई जा सकती?"
बहुत सही कहा, लेकिन जब कुछ लोगों का मकसद ही ट्रॉलिंग करना है तो वे भला ये सब क्यों समझने लगे।
भुस का पुतला - बाबा नागार्जुन की कविता
ReplyDeleteफैलाकर टांग
उठाकर बाहें
अकड़कर खड़ा हुआ
भुस भरा पुतला
कर रहा है निगरानी
ककड़ी तरबूज की
खीरा खरबूज की
सो रहा होगा अपाहिज मालिक घर में निश्चिंत हो
खेत के नगीच
कोई मत आना
हाथ मत लगाना
प्रान जो प्रिय है तो
भुस का पुतला, खांस रहा खो खो खो
अहल भोर
गया था डोल - डाल
खेत की हिफाजत का देखा जब ये हाल
हंस पड़ा भभाकर में
यह भागी लोमड़ी,
वह भागी लोमड़ी,
सर, सर सर सर,
खर, खर, खर, खर.
दूर का फासला,
चट कर गई पार कर
अकेले हंसा में ठहाका मार कर
मेरे कहकहे पर हो गया नाराज
फटे पुराने कुर्ते से ढका
भुस का पुतला
दप दप उजला
सरग था
ऊपरनीचे था पाताल
अपच के मारे बुरा था हाल
दिल दिमाग भुस का
"It is the intelligence that brings order not discipline."
ReplyDelete- J. Krishnamurty.
आपसे पूर्णतः सहमत हूँ. इस आंच से दूर दूर चलना मेरी आदत भी है और आपने मुझे संबल दिया है, बहुत साधुवाद.
ReplyDeleteयानि हमने उस उग्र उऊतम पैजरियत का जमाना देखा ही नहीं...!
ReplyDeleteअर्थात् अब स्थिति बेहतर है।