उसकी मंगेतर दसवीं में पढ़ती है। मंगेतर का स्कूल "कान्वेंट" स्कूल है। कान्वेंट माने थोड़ी ज्यादा फ़ीस और अंगरेजी मीडियम। इसाई मठ से कोई लेना देना नहीं है कान्वेंट का। स्कूल चलाते होंगे कोई पंडितजी या लालाजी। निम्न मध्यम वर्ग के बच्चों का स्कूल है। स्कूल में बच्चों और पेरेन्ट्स पर रोब तो पड़ना चाहिये। उसके लिए हर १५-२० दिन में एक नाटक होता है। कहा जाता है कि डिप्टी साहब दौरे पर आ रहे हैं। एक साहब दौरे पर आते हैं। मास्टरानियों और बच्चों से पूछते-पाछते हैं। पूरी नौटंकी होती है।
अब ये कौन इलाहबाद का शिक्षा विभाग का डिप्टी डायरेक्टर है जो हर महीने एक गली के प्राइवेट स्कूल में इंस्पेक्शन को पहुंच जाता है?
भारत लाल मंगेतर के साथ बाजार घूम रहा था की मंगेतर ने बताया की फलां सज्जन जो जा रहे हैं वो स्कूल में आते हैं। वो ही डिप्टी डायरेक्टर हैं। भारत लाल भी ठहरा एक नंबर का खुराफाती। वो फलां सज्जन की पूरी जासूसी कर आया। पता चला की वो सज्जन रेलवे में गार्ड हैं। रेलागाडी के ब्रेकवान में बैठ झन्डी दिखाते हैं। स्कूल में इंस्पेक्शन भी कर आते हैं डिप्टी डायरेक्टर बन कर।
यूपोरियन माहौल पूरा नटवरलाल का हैं। कौन कैसे रंग जमा जाएगा, कौन कैसे चूना लगा जाएगा, कौन कब जालसाजी कर जाएगा, कहा नहीं जा सकता। ये तो आप पर है की आप कितना जागरूक और सतर्क रहते हैं। कितना बच निकलते हैं इस तरह के गोरख धंधों से।
पर नटवरलाली इतनी ज्यादा है कि कभी ना कभी तो चूना लगना तय है।
ठगना और ठगाजना
दोनें ही आसुरिक वृत्तियाँ हैं
क्षणिक लाभ और तृष्णा से प्रेरित
कौन किसे ठगता है?
ठगने व ठगेजाने वाले
एक ही तो हैं
ठगना और ठगाजना
ReplyDeleteदोनें ही आसुरिक वृत्तियाँ हैं
क्षणिक लाभ और तृष्णा से प्रेरित
कौन किसे ठगता है?
ठगने व ठगेजाने वाले
एक ही तो हैं
--सही कह रहे हैं!!!
यह भी खूब रही। :)
ReplyDeleteज्ञानदत्त जी आपके ब्लॉग के साइडबार में "अटको मत चलते रहो" एनीमेशन बहुत पसंद आया।