Sunday, April 15, 2007

क्या चुनाव आयोग नव शृजन कर रहा है?

उत्तर प्रदेश में पहले दो चरणों में वोट प्रतिशत गिरा है. यह माना जा रहा है कि यह जनता की उदासीनता के कारण नहीं, बूथ कैप्चरिंग फैक्टर डिस्काउंट करने के कारण है. अगर यह स्वयम-तथ्य (Axiom) सही मान लिया जाये तो जो प्रमेय सिद्ध होता है वह है कि नव शृजन हो रहा है. बिहार में यह होते देखा गया है. वहां का सत्ता पलट जन भावनाओं की अभिव्यक्ति थी जो चुनाव के कमोबेश भय मुक्त आयोजन से सम्भव हो पाई. सामंतवादी, जातिवादी और अपराधी समीकरण वहां मुह की खा गये थे. कुछ लोग कह सकते हैं कि वहां अब भी अराजकता है. पर शृजन की प्रक्रिया मां काली के पदाघात सी नहीं होती. वह क्रांति नहीं, कली की तरह खिलती है. उत्तर प्रदेश भी उसी राह पर चल चुका है. एक हाथी नीला था; वह अचानक गणेश बन गया है. सामाजिक मंथन जैसा कुछ है यह. मंथन से कितना नवनीत निकलेगा यह देखना बाकी है.

यह भी एक स्वयम-तथ्य (Axiom) माना जा सकता है कि अधिकांश नेता चाहे वे जिस भी दल के हों धूर्त होते हैं. चुनाव के बाद वे कैसी पलटी मारेंगे; कहा नहीं जा सकता. इसमें भी सच्चाई है. घूम फिर कर वही लोग हैं पहले इस दल से थे, अब उस दल से हैं. उनमें व्यक्तिगत (और दलों में भी) क्या पक रहा है समय ही बतायेगा. पर इतना जरूर है; अगर लठैतों की वोट डालने में भूमिका कम हो गयी तो उनकी राजनीति में भी भूमिका कम होती जायेगी. उनकी भय की राजनीति से लड़ना कठिन है. यह कठिन काम चुनाव प्रक्रिया कुछ सीमा तक पूरा कर रही है. सामान्य नेताओं के शकुनि वाले खेल को तो सम्भाला जा सकता है. उसके लिये भारतीय प्रजातंत्र काफी हद तक सक्षम है।

इसके अलावा थोक वोट बैंक की राजनीति भी अपनी सीमायें जान रही है. पिछले चुनावों में थोक वोट बैंक से पार्टियों को सीटें तो मिली थीं जनता तो बन्धुआ रही, पर चुन कर आने वाले विधायक बन्धुआ नहीं रहे। वे अपने हित के आधार पर पल्टी मारते गये। थोक वोट बैंक का तिलस्म आगे आने वाले समय में और भी टूटेगा.

माफिया का राज वैसे भी कम होना तय है. देश अगर 7-10 प्र.श. की रफ्तार से तरक्की करेगा तो वह मार्केट की ताकत के बल पर करेगा. उसके लिये जरूरी है कि हत्या-अपहरण-बल प्रयोग आदि का युग समाप्त हो. जब लोगों को पता चल जायेगा कि जीविका के साधन हैं (अर्थात सब कुछ अँधेरा नहीं है); तो यह भी स्पष्ट होगा की वे आतंक की उपेक्षा कर ही मिल सकते हैं, तब आतंक से लड़ने की ताकत भी आ जायेगी लोगों में. बम्बई में यह देखा जा चुका है कि बड़े से बड़े आतंकी हमले के बाद भी शहर के सामान्य होने में ज्यादा वक्त नहीं लगता. देर-सबेर वह बिहार-उत्तर प्रदेश में भी होगा.

मैं यह ग्लास आधा भरा देखने के भाव के वशीभूत लिखा रह हूँ। जरुरत नहीं वह पूर्ण सत्य हो। पर मुझे अभी तो उत्तर प्रदेश का चुनाव आयोजन एक मौन क्रांति का हिस्सा प्रतीत होते हैं।

2 comments:

  1. Chunaav aayog ka kaam nishpaksh chunaav karaana hai.Aayog to bus itna sa kaam kar de...

    Rahi baat nav shrijan karne ki..To abhi to chunaav poore honge..Uske baad swayamvar sajega..rajnaitik dal ek doosre ka chunaav karenge..Swayamvar ke baad rajyapaal 'picture' mein aayenge..

    Neela haathi tabhi tak Ganesh rahega jab tak satta paane ki sambhaavna rahegi..Kuchh log ye soch rahe hain ki Uttar Pradesh mein samaajik kranti aa gai hai...Chaar brahman netaaon ke Mayawati ki party mein jaakar MLA banane se aisi kranti aa jaati to Congress ye kaam aaj se 35 saal pahle Jag Jeevan Ram ko Uma Shankar Dikshit ke saath dinner khila ke kar chuki hoti....

    Waise hamaara pradesh (ya phir Desh) naaron se chalta hai...Araajakta ki samasya ko naara dekar khatam kiya ja sakta hai...Naara kuchh aisa rahega ki "Araajakta ka ye sandesh, Nahin sahega ye pardesh"....Itihaas gawaah hai...Gareebi ki samasya ko "Gareebi hataao" naara dekar hal kar diya gaya....Communalism ki samasya ko "Hindu-muslim bhai bhai" jaisa naara dekar solve kar diya gaya....

    Waise ek baat hai.'Netaaon' ne jo naare diye woh kabhi kaam nahin aaye..Haan 'Public' ke diye huye naare aksar falit ho jaate hain...
    "......tum aage badho, hum tumhaare saath hain"...is tarah ka naara hum kitne saalon se sunte aaye hain...Aur dekhiye, ye naara falit ho gaya...Netaji sahi mein aage barh gaye, aur janta peechhe rah gai.

    Nav srijan to aam logon ko hi karna padega...Samasya kewal itni si hai ki chunaawon ke is mausam mein aam insaan khojna bada mushkil hai...Voters bhi chunaav ke mausam mein aam nahin rahte... Chunaav ke baad jab tak khaas hone ka bukhaar utarega, tab tak der ho chuki rahegi...

    Kranti maun rahe to achchha hai.

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  2. शायद हम लगातार, चाहे धीरे, विकास की आशा कर सकते हैं । जब यह हो जाएगा तो बंटवारे, वोट बेंक की राजनीति बंद हो जाएगी ।
    घुघूती बासूती

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय