पिछली बार की तरह इस रविवार को भी बीस-बाइस लोग जुटे शिवकुटी घाट के सफाई कार्यक्रम में। इस बार अधिक व्यवस्थित कार्यक्रम हुआ। एक गढ्ढे में प्लास्टिक और अन्य कचरा डाल कर रेत से ढंका गया – आग लगाने की जरूरत उचित नहीं समझी गई। मिट्टी की मूर्तियां और पॉलीथीन की पन्नियां पुन: श्रद्धालु लोग उतने ही जोश में घाट पर फैंक गये थे। वह सब बीना और ठिकाने लगाया गया।
घाट में वृद्धों को नहाने में कठिनाई होती है – चूंकि गंगाजी की धारा इसी घाट पर कटान कर रही है। घाट काफी ऊर्ध्व हो गया है। उसे सीढ़ियां बना कर सही शक्ल दी गयी। कुछ बोरियों की जरूरत है, जिनमें बालू भर कर किनारे जमा किया जाये – कटान रोकने को। वह शायद अगले सप्ताहांत में हो।
घाट आने के रास्ते में भी एक उतराई है। उसपर भी सीढ़ियों के रूप में मिट्टी काटी गयी। उस मिट्टी में बालू कम, कंकर – पत्थर ज्यादा थे। लिहाजा फावड़े से खोदने में बहुत मेहनत लगी। तीन नौजवान – पंकज सिंह, नरेन्द्र मिश्र और चन्द्रकान्त त्रिपाठी ने बहुत मेहनत की। एक और त्रिपाठी जी भी हैं – जिनका नाम मैं नहीं पूछ पाया। वे भी जोर शोर से लगे थे। आद्याप्रसाद पाण्डेय तो मुख्य संयोजक के रूप में थे ही!
इस बार बालकगण अधिक थे और अधिक उत्साही थे। घूम घूम कर पन्नियां और मूर्तियां बटोरने में बहुत काम किया। एक युधिष्ठिर का कुकुर भी बराबर साथ लगा रहा।
कुछ सज्जन यूंही आये गये जा रहे थे और सीढ़ियां बनाने में व्यर्थ व्यवधान बन रहे थे। उनको जब मैने कड़ी जबान से अलग रास्ते से आने जाने को कहा तो वे ऐसे देखने लगे कि मैं उनके मौलिक अधिकारों में अतिक्रमण कर रहा होऊं!
निश्चय ही बेहतर काम हुआ इस बार।
मुझे व्यक्तिगत रूप में प्रचारतन्त्र से मोह नहीं है। पर लगता है कि लोगों और बच्चों का जोश बनाये रखने को वह चाहिये जरूर और पर्याप्त मात्रा में भी। जन जन को जोड़ने और सामुहिक काम करानें में जो प्रतिभा की दरकार होती है, वह मुझमें ईश्वरप्रदत्त नहीं है, लिहाजा मैं सहायता की आशा ही कर सकता हूं। मैं राजीव और मीडिया से जुड़े लोगों का आवाहन अवश्य करता हूं कि इस को यथासम्भव प्रचार दें। ब्लॉगर्स भी यह बखूबी कर सकते हैं। इस काम के लिये इस पोस्ट की कोई भी तस्वीर आप मुक्त हस्त से प्रयोग करें!
अगले रविवार देखते हैं क्या और कितना काम होता है। गैंती, खुरपी और बोरियों की जरूरत तो महसूस की ही जा रही है। व्यक्ति भी और जुड़ेंगे या नहीं – कहा नहीं जा सकता। इस बार अपेक्षा थी कि कुछ स्त्रियां जुड़ेंगी, पर मेरी पत्नीजी के अलावा अन्य कोई नहीं आईं।
Pranam
ReplyDeleteits very-very nice work
www:taarkeshwargiri.blogspot.com
आप का यह अभियान सफल हो रहा जान कर खुशी हुई......आप सही कह रहे है ऐसी अच्छी बातों का प्रचार होना चाहिए ताकि दूसरो को प्रेरणा मिल सके........लेकिन इस काम में जितना मीडिया काम कर सकता है दूसरा नही कर सकता.......हमारे ब्लोग जगत मे भी बहुत से पत्रकार हैं ..अपने ब्लोग जगत में मदद कर के वे अपनी ब्लोग बिरादरी का मान बड़ा सकते हैं........देखते है वह अपना फर्ज निभाते हैं या नही...।
ReplyDeleteबढ़िया प्रयास है इसका प्रचार भी जरुरी है ताकि और भी स्थानीय लोग जुड़ सके व इसकी प्रेरणा ले अन्य जगहों पर भी एसा कार्य शुरू हो सके
ReplyDeleteआपको गंगा पुत्र यूं ही तो नहीं कहा था हमने ..अब तो देखते जाईये हस्तिनापुर कितना साफ़ और सुरक्षित होता जाता है ....एक मित्र हैं आपके पडोस में कहीं ..कहते हैं पत्रकार हूं ..उन्हें खबर कर दी है ..आपके ब्लोग का पता भी दे दिया है ..देखते हैं ..इसी बहाने उनकी भी परख हो लेगी ..।
ReplyDeleteथकोहम के बाद इतनी उर्जा और श्रम ..हलचल भी यूं तो नहीं हुआ करती ॥
You're the real ones doing justice to blogging. We're only "Just the कचरा ..... Pranaam Aap Ko.
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन काम कर रहे हैं आप। आपकी शुरुआत से तो राजेंद्र सिंह की कहानी याद आ गई। जब वे गांव वालों को भूजल की उपयोगिता बताने लगे और तालाब के गुणों के बारे में बताने लगे तो राजस्थान के एक गांव में मुखिया ने उन्हें कुदाल पकड़ा दी और कहा, चल बेटा अब तू ही तालाब खोद, बहुत ग्यान दे चुके। वे अकेले ही कुदाल से तालाब खोदते रहे, तीन दिन तक। बाद में गांव वालों से भी रहा न गया और सभी ने जुटकर ३ दिन में तालाब बना दिया। उसके बाद उस इलाके में तालाब बनाने की होड़ सी मच गई।
ReplyDeleteआपके अभियान से उम्मीद करते हैं कि कुछ ऐसा ही होगा और लोग इसे आंदोलन के रूप में स्वीकार करेंगे। वाराणसी में मैं रहा था, वहां पर एनजीओ से जुड़े लोग ऐसा करते थे, लेकिन लोगों का यह मानना था कि यह कमाई का धंधा है, नि स्वार्थ मामला नहीं है, इसके परिणाम से कोई साथ नहीं आता था।
खुशी की बात है कि मेरे एक सहकर्मी पर कानपुर में नदी तट की सफाई करने का भूत टाइप का सवार हो गया है. वे करीब पह शनिवार को (साप्ताहिक छुट्टी के दिन) दिल्ली से कानपुर के लिए निकल देते हैं। रविवार को फिर ड्यूटी बजाने आ जाते हैं। उनके अभियान की सफलता की भी कामना...
ज्ञानदत्त जी बहुत सुंदर लगी आप की बात, बस आप हिम्मत न हारे लोग खुद वा खुद आयेगे, बस एक लीडर चाहिये (नेता नही)ओर काश आप को देख कर भारत के हर शहर मै दो चार लोग ऎसे ही कमर कसे, फ़िर हमे भी सफ़ाई अच्छी लगने लगेगी, आप का दिल से धन्यवाद करता हुं, इस नेक काम के लिये
ReplyDeleteश्रमदान महादान !
ReplyDeleteलगे रहो
ReplyDelete।
जब सब कुछ हो विरुद्ध व्यर्थ
हो रहे हों अनर्थ।
अबूझ को सूझ
और देने को कुछ अर्थ।
लगे रहो।
गरजता घनघोर
समन्दर बेइमान
।
हों भले मन्द स्वर
या सजे गिलहरी का मौन
पुल निर्माण को
लगे रहो।
रेत में कदम
बहक चलें या सहम।
बने कैसे पत्थर लीक
तुम न पाए सीख।
धुल जाएँगे अक्षर
किंतु
अपने पढ़ान का
करते लिखान
लगे रहो।
शापित हैं हम।
क्या हुआ जो
जुड़े न लख कदम।
दो दो के गुणान को
पहाड़े की शान को
चढ़ते रहो
लगे रहो।
_________________
आप के इस पोस्ट का लिंक दे यह कविता अपने ब्लॉग http://kavita-vihangam.blogspot.com पर दे रहा हूँ।
मेहनताना के रूप में प्रयाग आने पर स्पेशल जलपान की दरकार रहेगी।
एक बात पूछना भूल गए।
ReplyDeleteकुकुर छोड़ गए
युधिष्ठिर जी कहाँ गए?
@ गिरिजेश - कुकुर है छद्म वेश में धर्मराज। युधिष्ठिर इण्टर्नलाइज हो गये हैं व्यक्ति में। उन्हें ढूंढ़ना कठिन है।
ReplyDeleteसभी, पाण्डव-कौरव-कृष्ण, व्यक्ति में इण्टर्नलाइज हो गये हैं। महाभारत व्यक्ति के अन्दर हो रहा है! :)
बहुत ही सुन्दर कार्य हो रहा है । गंगा बह रही है और अपने भाग्य के लिये समय को धन्यवाद दे रही है ।
ReplyDeleteगिरिजेश जी की कविता से प्रेरित (नकल मारकर की गयी) आशु कविता आपके लिए:
ReplyDelete‘थकोहम’ को भूलकर
टांग दिया सूल पर
माँ गंगा की जै जै
धत् तू तू मै मै
करते साकार समय निज का
धर्म ध्वजा धारे हो द्विज का
लगे रहो
लोगो की जागरुकता के लिये प्रचारतन्त्र का होना आवश्यक है।
ReplyDeleteआपके विचारो से सहमत इस हेतु जनजागरण अभियान चलाया जाए ... यह सब प्रचार से ही संभव है . आभार
ReplyDeletelage rahiye koshishe hamesha kaamyaab hi hoti hae
ReplyDeleteइन स्वयंसेवकों को प्रणाम । यदि यह संदेश ग्राम-ग्राम गया तो निश्चय ही रहने का ठिकाना स्वर्ग बन जाय़।
ReplyDeleteउस कुकर को भी प्रणाम जो बडी तन्मयता से सुपरवाईज़ कर रहा था:)
काफ़ी अच्छा काम कर रहे है आप लोग बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteआपका प्रयास प्रेरणाप्रद है |
ReplyDeleteइसका प्रचार होना ही चाहिए |
आप पञ्च-तत्व में से एक की हिफाजत
में लगे हैं ,यह बड़ा काम है |
एक सफल, सार्थक उर प्रेरणास्पद प्रयास....साधुवाद, प्रभु!!
ReplyDeleteआपसे सहमत हूँ प्रचार स्वयंसेवकों का उत्साह बढ़ाएगा।
ReplyDeleteमेरे विचार से आप इस अभियान एवं अपने दल को एक उपयुक्त नाम दें। सेवा के वक्त कार्यस्थल पर दल एवं अभियान के नाम का झंडा लगाएँ।
सही प्रचार होगा तो और लोग भी जुड़ने के लिए प्रेरित होंगे तथा अन्य लोग भी अपने क्षेत्रों में अभियान चलाने के लिए प्रेरित होंगे।
मेरे लिए आपके चिट्ठे से ज्यादा प्रिय आपका सफाई काम हो गया है. बधाई व शुभकामनाएं.
ReplyDeleteअखबार इस तरह के सफाई या अन्य अभियानों के बारे में छापते तो हैं. आप सम्पादक के नाम पत्र भी लिख सकते है, जिसमें बालकों द्वारा किये जा रहे सहयोग के लिए प्रसंशा लिख सकते है.
आप जैसे लोगों से प्रेरणा लेनी चाहिए विभिन्न समस्याओं से जूझते उन समूहों को जो सिर्फ ज़बानी पीड़ा व्यक्त करते हैं, यह भूलते हुए कि दो हाथ, दो पैर और दिमाग़ उनके पास भी है। रही साधनों की बात तो वह तो जुटाया जा सकता है।
ReplyDeleteइलाहाबाद में वक्त नहीं था। इच्छा थी कि वह स्थान देखूं जहां से आपको ब्लागिंग का रॉ मटिरियल मिलता है।
मैं तो अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर लोग आते गए कारवां बनता गया ...शुभ हो ...!!
ReplyDeleteप्रचारतंत्र तो स्वतः शामिल हो जाएगा. जब युद्धिष्ठिर के कुकुर तक आ गए तो फिर सब होता जाएगा !
ReplyDeleteज्ञानदत्त जी, सिर्फ सफाई से कुछ नहीं होने वाला। जब तक गंगा को गंदा करने वाली मानसिकता और परम्पराएं नहीं बदली जातीं, वह इसी तरह गंदी होती रहेगी।
ReplyDelete------------------
और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।
बहुत खुशी की बात है कि कार्यक्रम नियमित होता दीख रहा है. अगर श्रद्धालुओं द्वारा अपना भक्ति-कार्यक्रम करने के बाद पालीथीन फेंकने के लिए कुछेक ड्रम आदि की व्यवस्था हो जाए तो हर हफ्ते पालीथीन बीनने का काम थोडा आसान हो जाएगा.
ReplyDeleteधन्यवाद!
इस सार्थक प्रयास के लिए साधुवाद और शुभकामनाएं.
ReplyDeleteवाह ज्ञान दत्त जी. आपने काम दूसरे हफ्ते भी जारी रखा, इसके लिए बधाई. आशा है इससे लोगों के मन में गंगा सफाई के लिए थोडी जागृति आये.
ReplyDeletebahut hi achchha prayas
ReplyDeleteमाननीय ज्ञानदत्त जी,
ReplyDeleteआपका यह कार्य निश्चय ही अनुकर्णीय है ! समाज की जागरूकता इस और बढ़ाने के लिए सामाजिक चेतना से जुड़े विचार और कार्यक्रमों की आवश्यकता है.
जैसा कि आपके लेख से विदित हुआ कि प्लास्टिक को एक गड्डे में डाला गया है एवं उस पर रेत दल दी गयी है , यह पूर्ण समाधान नही है !
प्लास्टिक भविष्य के लिए हानिकारक साबित हो सकता है. उम्मीद करता हूँ आपने प्लास्टिक और अन्य हानिकारक पदार्थो का, उचित विचार के साथ पूर्ण समाधान किया है! आप जैसे नैतिक और स्वछ विचारो के गुरुओ का समाज में अभाव है!
-
आपका अपना ,
सत्येन्द्र ठाकुर
"V" Company- भारत का भविष्य
इस बार अपेक्षा थी कि कुछ स्त्रियां जुड़ेंगी, पर मेरी पत्नीजी के अलावा अन्य कोई नहीं आईं।
ReplyDeleteपर और लोग तो आए, मामला पहले रविवार को ही न दम तोड़ गया, यह एक उपलब्धि है। और लोग भी आगे जुड़ते जाएँगे, स्त्रियाँ भी आ जाएँगी। :)
अगर आप इस काम के लिये किसी कॉलेज कि राष्ट्रिय सेवा योजना की इकाई को जोड़ दे तो कार्य मे गति आयेगी और निरंतरता बनी रहेगी..
ReplyDeleteआप ने जो पौधा लगाया वह फल फूल रहा है। बस खाद पानी समय से देते रहेंगे तो एक देसी एनजीओ बन लेगा जो आगे चल कर समाज में भी सार्थक हस्तक्षेप कर सकता है।
ReplyDeletebahut hi achchha prayas
ReplyDeleteमाननीय ज्ञानदत्त जी,
ReplyDeleteआपका यह कार्य निश्चय ही अनुकर्णीय है ! समाज की जागरूकता इस और बढ़ाने के लिए सामाजिक चेतना से जुड़े विचार और कार्यक्रमों की आवश्यकता है.
जैसा कि आपके लेख से विदित हुआ कि प्लास्टिक को एक गड्डे में डाला गया है एवं उस पर रेत दल दी गयी है , यह पूर्ण समाधान नही है !
प्लास्टिक भविष्य के लिए हानिकारक साबित हो सकता है. उम्मीद करता हूँ आपने प्लास्टिक और अन्य हानिकारक पदार्थो का, उचित विचार के साथ पूर्ण समाधान किया है! आप जैसे नैतिक और स्वछ विचारो के गुरुओ का समाज में अभाव है!
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आपका अपना ,
सत्येन्द्र ठाकुर
"V" Company- भारत का भविष्य
ज्ञानदत्त जी, सिर्फ सफाई से कुछ नहीं होने वाला। जब तक गंगा को गंदा करने वाली मानसिकता और परम्पराएं नहीं बदली जातीं, वह इसी तरह गंदी होती रहेगी।
ReplyDelete------------------
और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।
आप जैसे लोगों से प्रेरणा लेनी चाहिए विभिन्न समस्याओं से जूझते उन समूहों को जो सिर्फ ज़बानी पीड़ा व्यक्त करते हैं, यह भूलते हुए कि दो हाथ, दो पैर और दिमाग़ उनके पास भी है। रही साधनों की बात तो वह तो जुटाया जा सकता है।
ReplyDeleteइलाहाबाद में वक्त नहीं था। इच्छा थी कि वह स्थान देखूं जहां से आपको ब्लागिंग का रॉ मटिरियल मिलता है।
@ गिरिजेश - कुकुर है छद्म वेश में धर्मराज। युधिष्ठिर इण्टर्नलाइज हो गये हैं व्यक्ति में। उन्हें ढूंढ़ना कठिन है।
ReplyDeleteसभी, पाण्डव-कौरव-कृष्ण, व्यक्ति में इण्टर्नलाइज हो गये हैं। महाभारत व्यक्ति के अन्दर हो रहा है! :)
लगे रहो
ReplyDelete।
जब सब कुछ हो विरुद्ध व्यर्थ
हो रहे हों अनर्थ।
अबूझ को सूझ
और देने को कुछ अर्थ।
लगे रहो।
गरजता घनघोर
समन्दर बेइमान
।
हों भले मन्द स्वर
या सजे गिलहरी का मौन
पुल निर्माण को
लगे रहो।
रेत में कदम
बहक चलें या सहम।
बने कैसे पत्थर लीक
तुम न पाए सीख।
धुल जाएँगे अक्षर
किंतु
अपने पढ़ान का
करते लिखान
लगे रहो।
शापित हैं हम।
क्या हुआ जो
जुड़े न लख कदम।
दो दो के गुणान को
पहाड़े की शान को
चढ़ते रहो
लगे रहो।
_________________
आप के इस पोस्ट का लिंक दे यह कविता अपने ब्लॉग http://kavita-vihangam.blogspot.com पर दे रहा हूँ।
मेहनताना के रूप में प्रयाग आने पर स्पेशल जलपान की दरकार रहेगी।