मुझे अन्देशा था कि कोई न कोई कहेगा कि गंगा विषयक पोस्ट लिखना एकांगी हो गया है। मेरी पत्नीजी तो बहुत पहले कह चुकी थीं। पर कालान्तर में उन्हे शायद ठीक लगने लगा। अभी घोस्ट बस्टर जी ने कहा -
लेकिन थोड़े झिझकते हुए कहना चाहूंगा कि मामला थोड़ा प्रेडिक्टेबल होता जा रहा है. ब्लॉग पोस्ट्स में विविधता और सरप्राइज़ एलीमेंट की कुछ कमी महसूस कर रहा हूं।
एक तरह से सोचूं तो मुझे प्रसन्नता से उछल जाना चाहिये। घोस्ट बस्टर जी मुझसे वैविध्य और अन-प्रेडिक्टेबिलिटी की अपेक्षा करते हैं। पोस्ट दर पोस्ट सुन्दर और वाह वाह ब्राण्ड टिप्पणी टिपेरना नहीं चाहते! पर 28 BMI (बॉड़ी मास इण्डेक्स) की काया में सेनसेक्सात्मक उछाल आना बहुत कठिन है। शरीर में ट्विचिंग (नस फड़कन) हो कर ही रह जाती है! न लहर उठती है न कोई उछाल आता है। काम का बोझ, थकान और कुछ सार्थक न हासिल हो पाने की सोच – यह सब खदबदाने लगते हैं मन में।
स्टेलनेस मेरा ही यू.एस.पी. हो, ऐसा नहीं है। आप कई ब्लॉगों पर चक्कर मार आईये। बहुत जगह आपको स्टेलनेस (स्टेनलेस से कन्फ्यूज न करें) स्टील मिलेगा| लोग गिने चुने लेक्सिकॉन/चित्र/विचार को ठेल^ठेल (ठेल घात ठेल) कर आउटस्टेण्डिंग लिखे जा रहे हैं।
सरकारी डेमी ऑफीशियल लैटर लिखने की स्टाइल में ब्लॉग साहित्य सर्जन हो रहा है। कविता भी बहुत जगहों पर प्रोडक्शन की असेम्बली लाइन से निकलता फिनिश्ड प्रॉडक्ट है। जब आप पोस्ट ठेलोन्मुख होते हैं तो हर ड्राफ्ट बिना पालिश किये पोस्ट में तब्दील हो जाता है।
असल में हम लोग बहुत ऑब्जर्व नहीं कर रहे, बहुत पढ़ नहीं रहे। बहुत सृजन नहीं कर रहे। टिप्पणियों की वाहियात वाहावाहियत में गोते लगा रिफ्रेश भर हो रहे हैं!
गंगाजी, अपने किनारों में सिमटिये। सनिचरा, हीरालाल, अवधेश, निषादघाट, माल्या प्वॉइण्ट… बिलाओ सवेरे की धुन्ध में। इन सब पर पोस्ट बनाने में अच्छा लगता है, पर मानसिक हलचल में क्या यही भर होता है/होना चाहिये? नहीं। और घोस्ट बस्टर जी शायद वही इशारा कर रहे हैं।
भरतलाल, जरा गरदन पर फास्ट रिलीफ लगा मालिश करना। और अगर नीद आ जाये तो मैडम रीता पाण्डेय, नियंत्रण कक्ष से फोन आने पर मुझे जगाना मत – जब तक कि रेल यातायात का ट्रंक रूट अवरुद्ध न हो रहा हो किसी अन-यूजुअल से।
बहुत बैडली थकोहम् (बहुत जबरदस्त थका हूं मैं)! ब्लॉग पोस्ट की ऐसी तैसी!
बहुत विविधता पोस्ट में सत्य वचन है ज्ञान।
ReplyDeleteदिखा चित्र तो ये लगा सचमुच बहुत थकान।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
सर्वाइकल प्रोब्लम के लिए होमेओपैथी की शरण लें , बिलकुल ठीक हो जायेंगे ! शुभकामनायें !
ReplyDelete"...बहुत बैडली थकोहम् (बहुत जबरदस्त थका हूं मैं)! ब्लॉग पोस्ट की ऐसी तैसी! ..."
ReplyDeleteये तो वाकई, टोटली अनप्रेडिक्टेबल था!
वुई डोंट वांट दिस!!!
आपकी इस पोस्ट में “थकोहम् टीपियो नास्ति” [एकोऽहं द्वीतीयो नास्ति की तर्ज पर] की घण्ट ध्वनि सुन रहा हूँ।
ReplyDeleteआप थके तो हमारी पोस्ट पर टिप्पणियों का औसत पूरा का पूरा एक अंक नीचे आ जाएगा। बल्कि अधिकांश लोगों का यही हश्र होगा।
घोस्ट बस्टर, जी आपने ये क्या किया? इस ब्लॉग जगत की टिप्पणी-पिपासु जनता को दुखी करना क्या जरूरी था।
आप लिखते रहिए जी, हम इसमें पूरी विविधता पाते हैं। तभी तो बिना नागा आते हैं...!
थकान भी जरूरी है। आदमी थके नहीं तो लगातार चलते रहने से यात्रा का मजा ही नहीं रहेगा।
ReplyDeleteबधाई!
ReplyDeleteइस पोस्ट के साथ आप ने ब्लाग आलोचना में कदम रख दिया है। जिस की शिद्दत से जरूरत है।
थकोत्वम्, सोअहम्, ये रहा मलहम
ReplyDeleteपहले लगता था आप सामान्य 'मनई' नहीं हैं. लेकिन जब कभी आप में थकान, ऊब, और अस्वस्थता के 'लच्छन' देखता हूं तो आपके सामान्य होने का आभास होता है. लगता है इस समय आपको कोई 'ऊब' ज्यादा सता रही है, इस पट्टे से भी ज्यादा. कुछ दिन ब्लॉग से दूर रहें, इस बारे में सोचिए भी नहीं. ये फास्ट रिलीफ से ज्यादा कारगर है. ओझा का ये नुस्खा आजमाएं, फायदा ना हो तो पैसा वापस.
बीड़ी-सिगरेट,स्मैक,दारू,ब्लागिंग...सब व्यस्न हैं. अब हर रोज़ ब्लैक लेबल या ट्रिपल फाइव की तो उम्मीद नहीं की जा सकती न...सो, व्यस्नी जब जब यूं लिखेगा तो ठेलमठेल का मामला तो हो ही जाएगा.
ReplyDeleteऐसी बात नहीं है जी, जैसे कल नारियल साधना वाली पोस्ट चकाचक थी.
ReplyDeleteगंगा सीरीज जारी रखें जी, हाँ विविधता के लिए बीच-बीच में और चीजों पर भी लिखते रहें.
बाकी पोस्ट ठेलने वालों को पोस्ट ठेलने का बहाना चाहिए.
आपने थकने की बात की , मैं
ReplyDeleteइसे रसबदल समझूंगा क्योंकि
'मानसिक हलचल' में थकन की
गुंजाइश नहीं हो सकती |
थकान की बात के बावजूद
आपने ब्लॉग जगत पर एक सचेत
और प्रौढ़ राय दी , यह मेरी पूर्वोक्त
बात का प्रमाण है |
सुस्वास्थ्य की कामना के साथ ...
धन्यवाद् . . .
@ rajiv
ReplyDeleteये पैसे का खेल समझ में नहीं आया। जरा स्पष्ट करें।
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अस्वस्थ होना शारीरिक हलचल है, यह बताने के लिए कि मानसिक हलचल को कम करें :) मसखरी थी। लिखते रहिए। ये सब तो लगा ही रहता है। वैसे फोटो से वाकई कष्ट में लगते हैं। शीघ्र स्वस्थ होने के लिए शुभकामनाएँ।
स्टेलनेस स्टील - एक थकेले की नई खोज(?) यदि सचमुच है तो पेटेंट करा लें।
इससे रेलवे के कोच बनाने का विचार कैसा है?
ज़्ल्द स्वस्थ्य हों और सभी लाईनो का ट्रेफ़िक क्लियर रहे इसी आशा के साथ्।वैसे थकान होना अच्छा लक्षण है इससे रिकव्हरी के बाद स्पीड़ डबल हो जाती है।
ReplyDeleteमुझे लिखने को विषय नही समझ आता तब मैं लिखने की कोशिश नही करती ..हाँ गंगा तट का आख्यान मुझे भी बोर करने लगा था..पर मैं कह नही पाई.
ReplyDelete"जब आप पोस्ट ठेलोन्मुख होते हैं तो हर ड्राफ्ट बिना पालिश किये पोस्ट में तब्दील हो जाता है"... तो क्या अब पोस्ट में भी हियरआर्कि आएगी! पहले क्लर्क पोस्ट लिखेगा, अफ़सर संशोधन करेगा और अंत में ब्लागर अप्रूव करके पोस्ट करेगा:)
ReplyDeleteरही बात ‘ब्लाग की ऐसी की तैसी’ तो इस व्यसन से न आप बच सकते है और न ही आपके कमेंटेटर [इसे क्रिकेट की दृष्टि से न देखें] आपका पीछा छोडेंगे॥
....और हां, यदि होमियोपेथी में आस्था है तो ब्रैयोनिया २०० की पांच गोलिया रोज़ एक बार तीन दिन लीजिए। अंतर आप खुद महसूस करेंगे:)
ब्लॉग पोस्ट की ऐसी तैसी!
ReplyDeleteमनोहारी वाक्य था. मजा आया.
अगर आप गौर करें तो सबके जीवन में स्टेल नेस्ता आती ही है...वो ही सुबह उठाना /घूमना/ नाश्ता /आफिस/ घर/ टी.वी और नींद...दूसरे दिन फिर से वोही क्रम... रोचकता के क्षण कितने कम आते हैं...जब जीवन ही स्टेल हो गया है तो लेखन में ताजगी कैसे आएगी...हम अपने ही बनाये घेरे में हमेशा घूमते रहेंगे तो नए की आशा व्यर्थ है... आप चिंतित ना हों कमो बेश सबका जीवन ऐसा ही है और इसमें अचानक कोई परिवर्तन आ जायेगा इसकी उम्मीद भी नहीं है...इसलिए जो जैसा है चलने दीजिये और जो मन में आये लिखते रहिये...बिंदास...
ReplyDeleteनीरज
आप जल्दी स्वस्थ होंगे हमारी शुभ कामनाए आपके साथ है !!!
ReplyDeleteसुनो सब की करो मन की....
ReplyDeleteवैसे पहले अपनी सेहत का ध्यान रखे.....बाकी काम बाद में।
थकान स्वाभाविक है । शरीर और मन कुछ दिनों के अन्तराल में थकान को प्राप्त होता है । इस स्थिति में निर्णय न लें और कोई निष्कर्ष न निकालें । निष्कर्षों में अति सरलीकरण हो जाता है । विश्राम करें और ऊर्जान्वित हो साहित्य सजृन के लिये पुनः प्रस्तुत हों ।
ReplyDeleteblogging ke aage jahaan aur bhi hai ghalib, ki koi is marz ki dava to bata de :)
ReplyDeletePaka raha hu :)
अब मांग पर लिखने वालों में ज्ञान जी कैसे हो गए ? गंगा तो मोक्षदाता हैं -यह गंगा लहरी चलतीरहे -इसमें प्रत्येक दिन और दर्शन पर नया बोध हो रहा है ! बच्चे अभी चंचल हैं उनकी चंचलता का साजो सामान मैं सायास अपने ब्लॉग पर इसलिए ही तो परोसता रहता हूँ की ऋषि तुल्य साधना चलती रहे अविराम अविकल ...चलिए कल के गंगा दर्शन के नव बोध का इंतज़ार रहेगा ! घोस्ट बाबू ज़रा खुद और अपने अनुयायियों को उधर भी लाईये न -मेरे ब्लॉग पर -यहाँ खलल क्यों डाल रहे हैं ? कहीं ब्लागेंद्र की तरफ से सायास तो नहीं भेजे जा रहे इधर ?
ReplyDeletethakohm na ,aaramam aanandam
ReplyDeleteअहा... आपको भी थकान आती है गुरुदेव। ऐसी परिस्थितियों में चाय बहुत काम आती है। गीता में स्वयं योगेश्वर कृष्ण ने कहा है...त्वया चापि, मया चापि! अर्थात तुम भी चाय पियो, मैं भी।
ReplyDeleteमुझे तो आपकी हर पोस्ट में विवधता ही नजर आती है | आप तो वही लिखिए जो आपको भाता हो |
ReplyDeleteपान्डे जी.. ये राज़ मै समझ नही पाया हू कि हमे वो लिखना चाहिये जो हमे अच्छा लगता है, या वो लिखना चाहिये जिसपे टिप्प्णी ज्यादा मिले....
ReplyDeleteअनप्रेडिक्टेबल होना चाहिये लेकिन फिर सनीचरा,हीरालाल..... को सामने कौन लायेगा??? और वो भी सिर्फ़ इसलिये कि आप प्रेडिक्टेबल होते जा रहे है...
धर्म सन्कट है... गीता पढिये और हो सके तो हमे भी पढाइये..
हम्म... वैसे मुझे आपकी हर पोस्ट में कम से कम एक नयी सी बात मिलती है. वर्ना मैं बहुत कम चीजें इतने नियमित तरीके से फोल्लो कर पाता हूँ. ब्लॉग तो बहुत कम. अक्सर रीडर खोलकर कीबोर्ड पर 'जे' प्रेस कर के निकाल देता हूँ कई ब्लॉग तो. अपनी बात कर रहा हूँ, पता नहीं वो कुछ मायने भी रखती है या नहीं :) ये तस्वीर तो पुरानी है न?
ReplyDeleteअभी अगर आप थक जायेगे तो हमारा क्या होगा
ReplyDeleteऐसी पोस्ट ना लिख़े हम निराशा मिलती है
मै भी बहुत जबरदस्त थका हूं दो दिन मेहनत कर के, बस युही यहां से गुजरा तो देखा कीआप ने गला बांध रखा है, सो हाल पुछने आ गया मेरी शुभकानये, जल्दी से ठीक हो जाये
ReplyDeleteOne question keep roaming in my mind since ‘by mistake’ I enrolled in ‘Chitthajagat’, whom do people here write for, for themselves -what comes in their own mind or for what others like or want them to write ?
ReplyDeleteस्टेलनेस की बात नहीं है जी, लेकिन कभी-कभार फॉर ए चेन्ज भी तो होना चाहिए ना, ज़ाएका बदलने के लिए। अब जैसे रोज़ाना रोटी खाई जाती है, बदलाव के लिए कभी परांठा भी खा लिया जाता है, या फिर बाहर किसी रेस्तरां में डोसा वगैरह। इससे रोटी के प्रति जो उदासीनता उत्पन्न होने को होती है वह वहीं मर जाती है और पुनः स्टेपल डॉयट पर वापसी होती है। बस तो आप भी इस "विविध" होने के सुझाव को कुछ ऐसा ही लीजिए न।
ReplyDeleteगंगा माई किधर जा रही हैं, एक दिन उनकी जगह मोहल्ले और पड़ोस के मोहल्ले पर नज़र मार लीजिए और उसी पर ठेल दीजिए। पहले आप बीच-२ में आलू-टमाटर, मोहल्ले की चाय की दुकान, कुकुर आदि पर ठेल दिया करते थे तो स्वाद में बदलाव आ जाता था। :)
Gyaan datt ji
ReplyDeleteaapki tabiyat jaldi theek ho dua karti hun......
post mein bhinnta aur man ke vichaar ka aur bhi gahra sochna zaruri hai
zindgi mein sabhi ke tharaav aa hi jaata hai
halanki badlaav zaruri hai
थोड़ा आपकी पोस्ट ने हड़बड़ा दिया और बाकी इस पोस्ट पर कुछ टिप्पणियों ने.
ReplyDeleteआपके सबसे नियमित पाठकों में से हूं. मेरे विचार से पाठक को अपनी अपेक्षाएं जाहिर करने का अधिकार होना चाहिये, बशर्ते इसमें ईमानदारी बरती जाए, जिसकी आप मुझसे आशा कर सकते हैं.
आपको जितना पढ़ा है उसके आधार पर कहूं तो मैं समझता हूं आप पाठकों की रुचि का ध्यान अवश्य रखते हैं. मेरी रिक्वेस्ट को उसी के अनुसार लिया होगा. आपकी बाद की पोस्ट्स से भी यही अंदाजा होता है. टिप्पणियों में भी बदलाव आपने नोट किया होगा. नीलगाय वाली पोस्ट पर अच्छी बहस हुई.
औरों का नहीं पता पर मैं आपकों क्यों पढ़ता हूं? एक लम्बी पोस्ट लिख सकता हूं. गंगा तटीय पोस्ट्स का अपना सौंदर्य है (और बहुत है. कभी कभी तो पोस्ट इस हद तक छू जाती है कि इन्हें पढ़ना वहां आपके साथ तट पर टहलने का सा आभास देता है और काम की थकान को धीमे धीमे हरता सा लगता है) पर इसके बावजूद कहूंगा कि इतने समय तक आपको पढ़ते रहने के बाद अपेक्षाओं का स्तर बहुत ही ऊपर हो गया है. और इसमें दोष मेरा नहीं, आपके लेखन का ही है. आप लिखते ही ऐसा कमाल का हैं.
शॉर्ट में कहूं तो मेरी विनम्र चाहत है कि गंगा मैया निर्बाध बहती रहें लेकिन अन्य विषयों को ओवरशैडो ना करें.
इस बीच एक अन्य काम जो मैंने किया वो ये कि ३० नवम्बर को आपका सम्पूर्ण ब्लॉग डाउनलोड किया (टिप्पणियों समेत) ऑफ़लाइन पढ़ने के लिये. कुछ प्रारम्भिक पोस्ट पढ़ीं हैं. ये ब्लॉगिंग की पाठशाला के समान लग रहा है. एक अलग ही अनुभव से गुजर रहा हूं.
सादर