एक मित्र श्री सुभाष यादव जी ने प्रश्न किया है कि ट्रेन नियंत्रक एक स्थान से इतनी सारी रेलगाड़ियों का नियंत्रण कैसे कर लेता है। पिछली रेल जानकारी विषयक पोस्ट के बाद मैं पाता हूं कि कुछ सामान्य रेल विषयक प्रश्न ब्लॉग पर लिये जा सकते हैं।
ओके, उदाहरण के लिये मानें कि कानपुर से टूण्डला के मध्य रेल की दोहरी लाइन पर ट्रेन परिचालन की बात है। यह बहुत सघन यातायात का खण्ड है। इसमें लगभग १२० गाड़ियां नित्य आती और जाती हैं। कुल २४० ट्रेनों में आधी सवारी गाड़ियां होती हैं और शेष माल गाड़ियां। इस खण्ड के नियंत्रक के पास हर समय २०-२५ गाड़ियां नियंत्रण के लिये होती हैं। हर घण्टे वह आजू-बाजू के खण्डों से लगभग दस गाड़ियां लेता और उतनी ही देता है। इस खण्ड के पैंतीस चालीस स्टेशन मास्टर उसे फोन पर गाड़ियों के आवागमन की स्थिति बताते रहते हैं। उस व्यक्ति को ट्रैक/सिगनलिंग/ओवर हेड़ की बिजली आदि की मरम्मत को उद्धत कर्मियों को भी एकॉमोडेट करना होता है। [1]
ख्ण्ड का ट्रेन-नियंत्रक सभी स्टेशनों से ट्रेनों के आगमन/प्रस्थान और पासिंग (यदि गाड़ी वहां रुक नहीं रही) की जानकारी फोन पर प्राप्त करता है। यह फोन एक "ओमनी-बस" तंत्र होता है जिसपर नियंत्रक और सभी स्टेशन उपलब्ध होते हैं। स्टेशन-मास्टर अपने स्टेशन का नाम ले कर नियंत्रक का ध्यान आकर्षित कराते हैं और नियंत्रक के निर्देश पर बोलते हैं, निर्देश प्राप्त कर तदानुसार गाड़ियों को अपने स्टेशन पर लेते और चलाते हैं।
«« नियंत्रक एक चार्ट पर जिसमें x-एक्सिस पर समय और y-एक्सिस पर दूरी (अर्थात खण्ड पर उपस्थित स्टेशन) होते हैं, ट्रेनो का चलना प्लॉट करते जाते हैं। उन्हे पूरे खण्ड की जानकारी होती है। मसलन किस स्टेशन पर कितनी लूप लाइनें हैं जहां गाड़ियां रोक कर अन्य गाड़ी आगे निकाली जा सकती है, कहां चढ़ाई-उतराई है और किन दो स्टेशनों के बीच में कौन सी गाड़ी अनुमानत: कितना समय लेगी, कहां माल लदान होता है, कहां चालक के विश्राम की सुविधा है, किस स्टेशन पर किस प्रकार की सिगनलिंग व्यवस्था है, कहां मालगाड़ी के डिब्बों की शंण्टिंग की सुविधा है, आदि।
यह चार्ट नियंत्रक महोदय ड्राइंग बोर्ड पर कागज पेंसिल से बनते चलते हैं। आजकल यह कम्प्यूटराइज्ड होने लगा है। चार्ट में गाड़ियों की उस समय तक की रनिंग आगे गाड़ियों का नियंत्रण करने के निर्णय लेने के लिये महत्वपूर्ण औजार है। यह चार्ट के चित्र का अंश कम्प्यूटराइज्ड प्रणाली का है, जो मुझे ई-मेल से भेजा गया था।
अपने इस अनुभव, चार्टपर चलती गाड़ियों की स्थिति और चाल, स्टेशनों की सूचनाओं और अन्य प्राप्त निर्देशों के आधार पर खण्ड नियंत्रक गाड़ियों का नियंत्रण करते हैं। और यह आसान कार्य नहीं है। यह कार्य बहुत जिम्मेदारी का और सघन प्रकार का माना जाता है। ट्रेने सदैव चलती हैं और ट्रेन नियंत्रक ६/८ घण्टे की शिफ्ट में सतत कार्य करते हैं।
मैने अपनी रेल की जिन्दगी ट्रेन नियंत्रकों की संगत में काटी है। और मैं यह शपथ पर कह सकता हूं कि वे अत्यन्त दक्ष, कार्य को समर्पित और जितना पाते हैं उससे कई गुणा करने वाली प्रजाति के जीव हैं।
[1] इतने लोग ट्रेन नियंत्रक को नोचने को तत्पर होते हैं; तो सबसे सरल ब्लॉगजगतीय पहेली बनती है - उनके सिर पर कितने बाल हैं?! :-)
LinkWithin की तर्ज पर एक अन्य सज्जन ने सम्बन्धित पोस्ट दिखाने की विजेट बनाई है। इसके थम्बनेल छोटे और बेहतर हैं, पर लगाने की प्रक्रिया जटिल। आप खुराफाती जीव हों तो ट्राई कर लें। मैने तो कर लिया है और नीचे “कृपया इन पोस्टों को भी देखें:” वाली खिड़की में वही है। इस जुगाड़ में कितनी पोस्टें दिखानी हैं, वह भी आप तय कर सकते हैं! और यह लिंकविदिन वाले से ज्यादा जल्दी लोड होता है।
अपडेट - आलोचना इतना टॉक्सिक होती है - यह अहसास हुआ आज जानकर कि ब्लॉगवाणी ने शटर डाउन कर लिया। अत्यन्त दुखद। और हिन्दी ब्लॉगरी अभी इतनी पुष्ट नहीं है कि एक कुशल एग्रेगेटर के अभाव को झेल सके। मुझे आशा है कि ब्लॉगवाणी से जुड़े लोग पुनर्विचार करेंगे।
रेल परिचालन से संबंधित जानकारी बेहतर है । यह सहज उत्सुकता का प्रश्न था हम सबके लिये ।
ReplyDeleteरिलेटेड पोस्ट विजेट की जानकारी का भी आभार ।
अपने कार्य की मर्यादा को कायम रखते हुए रेल परिचालन की जानकारी देने का बहुत आभार ...थोडा मुश्किल काम है ना..ब्लॉग लिखने की अपेक्षा ..
ReplyDeleteदशहरे की बहुत शुभकामनायें ..!!
मैं जानता था की यह कितना मुश्किल है. मैंने अपने एक दोस्त को traffic apprentice का काम करते देखा है. यह दुनिया के सबसे मुश्किल कामों में से है. इस करनेवाले को ब्लॉगिंग करते देखना और अजीब लगता है.
ReplyDeleteबाकिया तो बेहतरीन रहा...बस ई नहीं न बूझा रहा है कि उनके सिर पर कितने बाल हैं?! :-)
ReplyDeleteअब आप तो आपन हैं और हौं भी विभाग के..आपे न मदद लरेंगे. :)
बहुत बढिया जानकारी मिली.
ReplyDeleteइष्ट मित्रो व कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.
नियंत्रण सदैव ही दुष्कर कार्य है। विशेष रूप से मनुष्यों के किसी संगठन का नियंत्रण। जहाँ हर कोई अपने तरीके से सोचता है। यह केवल रेल नियंत्रण का काम नहीं है। एक गाड़ी को संचालित करने के लिए उस पर एक ड्राइवर और एक गार्ड होता है। वे जीवित प्राणी हैं। एक सिस्टम का भाग होते हुए भी वे मनुष्य हैं और अपने तरीके से सोचते हैं। जितना आसान तरीके से आप ने इसे बता दिया है काम उस से बहुत अधिक जटिल है।
ReplyDeleteबेहद उपयोगी पोस्ट लिखी है, कृपया इस श्रंखला को जारी रखें , सुभाष यादव जी को आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए शुक्रिया !
ReplyDeleteमेरा गावं का घर बिलकुल स्टेशन के नज़दीक है पहले चलती ट्रेन को टोकन दिया जाता था जो एक बड़े से लोहे के छल्ले के तरह होता था लोग उसे चाभी कहते थे . बचपन में जब मैं वहां जाता था तो अपने हाथ से वह चाभी पकडाता था . बड़ा मज़ा आता था . छोटी लाइन थी और उस समय कोयले के इंजिन चलते थे .
ReplyDeleteहमने भी कंट्रोल रुम के कई बार चक्कर लगाये हैं और नासमझ होते हुए भी समझने का बहुत प्रयास किया पर आपने बहुत सरल भाषा में समझाया।
ReplyDeleteअब कुछ नादानों की नादानी का अंजाम पूरे हिन्दी ब्लॉग समाज को भुगतना होगा। अनुरोध है कि ब्लॉगवाणी वापिस शुरु हो।
यह प्रश्न तो मुझे भी कचोटता था। चलो आज उत्तर मिल गया!
ReplyDeleteजब किसी स्टेशन के आउटर पर ट्रेन कुछ देर तक खड़ी हो जाती है तो पब्लिक रेलवे को और हमारे जैसे कुछ तथाकथित प्रबुद्धजन कंट्रोलर को कोसने लगते हैं कि लीचड़ आदमी को बैठा दिया है. लेकिन अब पता चला कि यह काम कितना जटिल और जिम्मेदारी का है. वैसे मुझे लगता है कि ट्रेन परिचालन और अखबार निकालने में बहुत कुछ समानता है. ट्रेन के नियंत्रक को पता होता है कि कौन सी ट्रेन कब, कहां, किस स्पीड से आ रही है, मालगाड़ी है, सवारी गाड़ी है या वीआईपी गाड़ी है लेकिन अखबार में कुछ ही खबरों के बारे में पता होता है कि वो आ रही हैं. ज्यादातर खबरें तो बिना बताए सुनामी और भूचाल की तरह टूट पड़ती हैं. उन सब खबरों को भी उसी कुशलता से उतने ही समय में नियंत्रित करना होता है. ट्रेन लेट हो जाए तो चलता है लेकिन खबरें लेट हो जाएं तो ना जनता माफ करती है ना बॉस.
ReplyDeleteबहुत सुंदर बात कही आप ने, बहुत सी बातो का पता चला. धन्यवाद.
ReplyDeleteआप को ओर आप के परिवार को विजयादशमी की शुभकामनांए.
इस बात का मैं पूर्णतया अनुमोदन करता हूँ कि खण्ड नियन्त्रक जैसा कुशाग्र, जीवट, मेहनती, सदैव संघर्षरत और सबको साथ लेकर चलने वाला व्यक्तित्व रेलवे में ढूढ़ना दुष्कर है । यह इसलिये भी है कि समन्वय का कार्य सबसे कठिन और सबसे महत्वपूर्ण होता है । यदि आप शरीर का उदाहरण लें तो सारे अंगों का समन्वय ही शरीर को उसकी क्षमता प्रदान करता है । कम्प्यूटरीकरण से पेंसिल से लाइनें खींचने का कार्य कम होगा और नियन्त्रण की गुणवत्ता बढ़ेगी ।
ReplyDeleteट्रेन नियंत्रक और ब्लागनियंत्रक[ब्लागवाणी] एक ही तो काम करते हैं- ट्रेफ़िक की आवक-जावक सूचना! अब यदि को नियंत्रक के बाल ही नोचने बैठे तो भला नियंत्रक अलविदा नहीं कहेगा तो क्या गंजा हो जाएगा।
ReplyDeleteसभी ब्लागरों को यह आश्वासन देना चाहिए कि ब्लागवाणी के बाल नोचे नहीं जाएंगे और उन्हें पुनः ट्रेफ़िक का नियंत्रण संभाले रखना चाहिए:)
"मैने अपनी रेल की जिन्दगी ट्रेन नियंत्रकों की संगत में काटी है। और मैं यह शपथ पर कह सकता हूं कि वे अत्यन्त दक्ष, कार्य को समर्पित और जितना पाते हैं उससे कई गुणा करने वाली प्रजाति के जीव हैं। "
ReplyDeleteऐसी प्रजाति को नमन और ऐसे प्रजातियों पर प्रकाश डालने वाले "ज्ञान पुंज" का हार्दिक आभार.
इतने लोग ट्रेन नियंत्रक को नोचने को तत्पर होते हैं; तो सबसे सरल ब्लॉगजगतीय पहेली बनती है - उनके सिर पर कितने बाल हैं
अपने पी एम वोटिंग अडवाणी साहब भी कभी ट्रेन नियंत्रक रहे हैं क्याउनके सर पर भी कम बाल हैं. भाई जी आप से अनुरोध है की इन ट्रेन नियंत्रकों के लिए ममता दीदी से कह कर मुफ्त ठंडा-ठंडा कूल-कूल नवरत्न तेल की व्यवस्था करवा दीजिये......
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
परिचालन से संबंधित अच्छी जानकारी मिली है।
ReplyDeleteशशि थरूर से पूछना चाहता हूँ कि क्या अब भी वह यही कहेंगे कि मेरे पास बहुत काम है। फाईलों का अंबार है।
सोचता हूँ एक बार उन्हें आपके इस परिचालन कक्ष में भेज दूँ :)
कोसना सरल है. कोसा और हो गया. मगर 'कर दिखना' एक लम्बी प्रक्रिया है. भूल की कोई गुंजाइश नहीं. अतः काम करने वाले और कर दिखाने वाले तथा पूरा एक तंत्र खड़ा करने वाले बधाई के पात्र है.
ReplyDeleteरेल नियंत्रक व ATC का काम एक से ही लगते हैं जहां बहुत बवाल रहता है.
ReplyDelete1984 में उंचाहार में नियुक्त था. शनिवार को गांव से छूट कर हम लखनउ भागते थे. रविवार शाम वापसी में 'गंगा-गोमती' पकड़ते थे लेकिन रायबरेली उतर कर गार्ड को काफी पिला व अंग्रेजी बोल पटाते थे कि 'सर अगर आप इजाजत दें तो हम उंचाहार तक आपके साथ चल लें?' क्योंकि इस गाड़ी का तब उंचाहर में स्टाप नहीं था. यूं हम गार्ड के डिब्बे में सफ़र करते और वे एक चकरी सी घुमा कर गाड़ी धीमी कर हमें उंचाहर में उतार देते.
उन दिनों हमें पहली बार पता चला कि रेलों की एक अपनी ही अलग दुरूर दुनिया है...
अच्छी जानकारी -काश इसी तरह अनेक व्यवधानों के बाद भी ब्लागवाणी का भी परिचालन यथावत और अहर्निश हो जाता !
ReplyDeleteअपडेट विषयक:
ReplyDeleteब्लॉगवाणी का जाना बेहद दुखद एवं अफसोसजनक.
हिन्दी ब्लॉगजगत के लिए यह एक बहुत निराशाजनक दिन है.
संचालकों से पुनर्विचार की अपील!
इस पोस्ट से बहुत बढ़िया जानकारी प्राप्त हुई । आभार
ReplyDeleteaapki post ke badle aaj PS pe comment kar raha hoon...
ReplyDelete...blogvani band hone ka jo bhi karan aur vivad ho,
nuksaan hum tatahast logon ko hua hai...
रेलगाडी के नियंत्रण का काम तो बड़ा जिम्मेवारी और व्यस्त रहने वाला काम है, इसमें कोई शक नहीं. गाँव के स्टेशन पर स्टेशन मास्टर को हैंडल घुमाने वाला फ़ोन घुमा कर बात करते हुआ देखा है ! अब भी वो फोन इस्तेमाल हो रहे हैं क्या?
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी मिली। वैसे भी बिना पूछे रेलवे के विभिन्न आयामों से परिचित होने का मौका आपके धाम पर आकर होता रहता है।
ReplyDeleteरेल नियंत्रक व ATC का काम एक से ही लगते हैं जहां बहुत बवाल रहता है.
ReplyDelete1984 में उंचाहार में नियुक्त था. शनिवार को गांव से छूट कर हम लखनउ भागते थे. रविवार शाम वापसी में 'गंगा-गोमती' पकड़ते थे लेकिन रायबरेली उतर कर गार्ड को काफी पिला व अंग्रेजी बोल पटाते थे कि 'सर अगर आप इजाजत दें तो हम उंचाहार तक आपके साथ चल लें?' क्योंकि इस गाड़ी का तब उंचाहर में स्टाप नहीं था. यूं हम गार्ड के डिब्बे में सफ़र करते और वे एक चकरी सी घुमा कर गाड़ी धीमी कर हमें उंचाहर में उतार देते.
उन दिनों हमें पहली बार पता चला कि रेलों की एक अपनी ही अलग दुरूर दुनिया है...
बाकिया तो बेहतरीन रहा...बस ई नहीं न बूझा रहा है कि उनके सिर पर कितने बाल हैं?! :-)
ReplyDeleteअब आप तो आपन हैं और हौं भी विभाग के..आपे न मदद लरेंगे. :)