इलाहाबाद से चलते समय मेरी पत्नीजी ने हिदायत दी थी कि प्रियंकर जी, बालकिशन और शिवकुमार मिश्र से अवश्य मिल कर आना। ऑफकोर्स, सौ रुपये की बोतल का पानी न पीना। लिहाजा, शिवकुमार मिश्र के दफ्तर में हम सभी मिल पाये। शिव मेरे विभागीय सम्मेलन कक्ष से मुझे अपने दफ्तर ले गये। वहां बालकिशन आये और उसके पीछे प्रियंकर जी। बालकिशन और प्रियंकर जी से पहली बार फेस टु फेस मिला। हम लोगों ने परस्पर एक दूसरे की सज्जनता पर ठेलने की कोशिश की जरूर पर कमजोर सी कोशिश। असल में एक दूसरे से हम पहले ही इतना प्रभावित इण्टरेक्शन कर चुके थे, कि परस्पर प्रशंसा ज्यादा री-इट्रेट करने की आवश्यकता नहीं थी। वैसे भी हमें कोई भद्रत्व की सनद एक दूसरे को बांटनी न थी। वर्चुअल जगत की पहचान को आमने सामने सीमेण्ट करना था। वह सब बहुत आसान था। कोई मत भेद नहीं, कोई फांस नहीं, कोई द्वेष नही। मिलते समय बीअर-हग (भालू का आलिंगन) था। कुछ क्षणों के लिये हमने गाल से गाल सटा कर एक दूसरे को महसूस किया। बैठे, एक कप चाय (और शिव के दफ्तर की चाय की क्वालिटी का जवाब नहीं!) पी। दिनकर और भवानी प्रसाद मिश्र को; केवल उनके समझ में सरलता से आने के कारण; उन्हे कमतर आंकने वालों की अक्ल के असामयिक निधन पर; हम कुछ देर रुदाली बने। प्रियंकर जी "चौपट स्वामी" वाले ब्लॉग पर नियमित लिखें - यह हम सब का आग्रह था। शिव के सटायर लेखन का अपना क्लास होने और बालकिशन के ब्लॉग पर आने वाली भद्र समाज की चुटकी लेती पोस्ट बहुत प्रशंसित माने गये। मजे की बात है कि यह निष्कर्षात्मक बातेंहममें से एक के विषय में कोई एक कह रहा था और शेष दोनों उसका पूर्ण समर्थन कर रहे थे। लगभग ४५ मिनट हम लोग साथ रहे। हमने कोई बहुत बढ़े सिद्धान्त ठेले-फैंके या प्रतिपादित नहीं किये। पर सारी बातचीत का निचोड़ निकाला जाय तो यह होगा कि ये चार ब्लॉगर एक दूसरे पर जुनूनी हद तक फिदा हैं। लिहाजा इनकी परस्पर प्रशंसा को पिंच ऑफ साल्ट के साथ लिया जाये! छोटी सी मुलाकात बीतने में समय न लगा। प्रियंकर जी ने हमें समकालीन सृजन के अंक दिये, जिसे हमने बड़े प्रेम से गतियाया। छोटी मुलाकात सम्पन्न होने पर असीम प्रसन्नता का अनुभव हो रहा था कि हम मिले। पर गहन विषाद भी था, कि मीटिंग बहुत छोटी थी। वहां से लौटते हुये मेरे मन में यह भाव इतना गहन था कि मैने तीनों को इस आशय का एस एम एस किया - मानो प्रत्यक्ष मिलने की घटना को एस एम एस के माध्यम से जारी रखना चाहता होऊं! मीटिंग के अनुभव वे तीनों भी बतायेंगे - पोस्ट या टिप्पणियों में। मैं केवल फोटो देता हूं अपने मोबाइल के कैमरे से -
यह मैं अभी कलकत्ता से लौटने के पहले ही पोस्ट करने का प्रयास कर रहा हूं - हावड़ा स्टेशन के यात्री निवास से।
कोलकाता क्या गए, लाल रंग में रंग गए!! *पहली फोटो देखें :)
ReplyDeleteबाकी मुलाकाते यो सदा याद रहने वाली होती है. बालकिशनजी को भी बुलाना भूले नहीं यह अच्छा हुआ. :)
मतलब आप कलकत्ता मे थे और यहा अनूप जी अफ़वाह फ़ैला रहे है कि भाभीजी ने आपकी ब्लोगिंग बैन करदी है , सही है कहने वाले के अनुसार क्या सही है , सही सही बताये ? :)
ReplyDeleteअच्छा हुआ जो आपने बाल किशन जी को बुला लिया.. वरना हमको एक और पोस्ट झेलनी पड़ती छोटे से ब्लॉगर की.. इंतेज़ार में हू की इस बार मिश्रा जी को किस उपाधि से नवाज़ा गया होगा..
ReplyDeleteaisa humesha hote rehna chahiye,mujhe to aisa lag raha hai jaise main bhi wahan moujud tha.
ReplyDeleteये मुलाकात को
ReplyDeleteहम सभी के सँग बाँटने के लिये शुक्रिया -
- लावण्या
...ये चार ब्लॉगर एक दूसरे पर जुनूनी हद तक फिदा है।
ReplyDelete...शिव के दफ्तर की चाय की क्वालिटी का जवाब नहीं!
...कुछ क्षणों के लिये हमने गाल से गाल सटा कर एक दूसरे को महसूस किया।
गुरुदेव, ये लाइनें पढ़कर हम यहाँ घर बैठे भावुक हुए जा रहे हैं, तो वहाँ क्या हाल रहा होगा यह सहज अनुमान हो जाता है।
इस “महान ब्लॉगर मिलन” पर उम्मीद है कि अनेक रोचक पोस्टें अभी आने वाली हैं। हम तो बेकरार हुए जा रहे हैं...
संजय बेंगाणी जी ने विचारणीय बात कही है :) वैसे ये लाल रंग है, या भगवा, या दोनों का मिक्स तो नहीं :) हम्म्म्म .. लेकिन कलकत्ते की बात है तो लाल ही होगा :) ... खैर छोडि़ये .. आप लोगों की मजेदार मुलाकत का कुछ मजा हम तक भी पहुंच ही रहा है :)
ReplyDeleteआपकी यात्रा मंगलमय हो...
ReplyDeleteपड़कर आच्छा लगा.
ReplyDeletepadhkar saaf lag raha hai ki aap logon ne kafi enjoy kiya hai. apko blog ki duniya ka dhanyawad karna chahiye ki apni ruchi ke mitr mile. ye dosti sahity ki dunya ko khilati rahe.
ReplyDeleteइसे ब्लोगर मीत कहना उचित नहीं होगा, कहाँ लगता है की दो ब्लोगर मिल रहे हैं... पहले से ही इतना कुछ जानते हैं की मिलना बस एक औपचारिकता ही लगता है... इधर कुछ हिन्दी ब्लोगरों से फोन पर बात हुई... लगा ही नहीं की किसी से पहली बार बात हो रही है ! कमाल की वर्चुआलीटी है ये भी.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपकी कलकत्ता यात्रा के दौरान हुई इस ब्लॉगर मीट का विवरण पढ़कर. खुशी हुई जानकर कि बालकिशन सिर्फ १५ किलो भारी ब्लॉगर हैं याने जीत का सेहरा अभी भी हमारे ही सर. :)
ReplyDeleteअन्य लोगों से विवरण सुनने का इन्तजार करते हैं.
बहुत बढिया रहा..
ReplyDeleteवैसे लाल रंग से मैं भी इत्त्फाक रखता हूं.. :)
वाह जे हुई न बात। शिव जी से तो खैर आपका मिलना होता ही रहता होगा पर प्रियंकर जी और बालकिशन जी से आपकी मुलाकात हुई यह बड़ी अच्छी बात है।
ReplyDeleteप्रियंकर जी द्वारा चौपट स्वामी पर पुन: सक्रिय होने की बात का मैं भी समर्थन करता हूं क्योंकि उनका लिखा गद्य मुझे बहुत पसंद है।
तस्वीरें अच्छी आई पर पहली तस्वीर में लाल रंग में कैसे रंगा गए?
शाम को पोस्ट आई है। समझ गए कि अब नियमित हो ही लेंगे वापस। वैसे भी तीन ब्लागरों से प्रत्यक्ष हो कर ऊर्जा स्तर तो बढ़ा ही होगा। मुलाकातें हमेशा ऊर्जा का स्रोत होती हैं।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा,आपकी यात्रा मंगलमय हो, ओर सब से बडे(सब से भारी) बलागर को दिखाने के लिये धन्यवाद
ReplyDeleteवर्चुअल जगत की पहचान को आमने सामने सीमेण्ट करना था। सीमेंटिंग के बाद कुछ दिन तराई-वराई करनी पड़ती है वर्ना सीमेंट चटक जाती है। पहली तराई आप कर चुके , अब बाकी की दूसरे लोग करें।
ReplyDeleteयह वृत्तांत हमसे शेयर करने के लिए शुक्रिया !
ReplyDelete@ सन्जीत > तस्वीरें अच्छी आई पर पहली तस्वीर में लाल रंग में कैसे रंगा गए?
ReplyDeleteलाल रंग में दीक्षा शिव ने दी है। फोटो उन्होंने खींची। धुलाई में बहुत यत्न किया पर लाल रंग छूटा ही नहीं।
फिक्र न करें, मन अभी भी उजला है!
जमाये रहियेजी
ReplyDelete.
ReplyDeleteचलो जी .. हलचल वापस आती दिक्खै...
बिषाद भी भया होगा.. विछोह के साथ विषाद
का तो साड़ी - पेटीकोट का रिश्ता है, सो तो ठीक..
बीच में यह ससुरा गहन कौन टपक पड़ा, यही समझने के लिये टिपिया रहे हैं !
टिप्पणी का ज़वाब पोस्ट से देना, जी ! हमको भी कुछ गहन गहन सा हो रहा है ।
सिद्दार्थ जी बात ......".ये चार ब्लॉगर एक दूसरे पर जुनूनी हद तक फिदा है'
ReplyDeleteबस ओर कुछ नही कहेगे ...लाल सलाम
ज्ञानजी,
ReplyDeleteअजीब इत्तिफ़ाक़ है।
आज मेरी भी मुलाक़ात हिन्दी जालजगत के एक और मित्र से हुई।
ब्लॉग्गर तो नहीं हैं लेकिन एक हिन्दी चर्चा समूह के सदस्य हैं और तकनीकी हिन्दी, संस्कृत और linguistics में बहुत रुचि रखते हैं।
उन्हें पहले कभी देखा नहीं था.
केवल फ़ोन पर एक बर बात हुई थी और ई मेल का आदान प्रदान हुआ था।
पुणे से बेंगळूरु किसी सर्कारी काम से आए थे और मुझसे मिलने की इच्छा जाहिर की।
खुशी से उनसे मिलने चला गया और तीन चार घंटे उनके साथ बिताये।
अपनी रेवा कार में करीब दस बीस किलोमीटर सैर भी करवाया और उनके साथ किसी खास किताबों की दूकान ढूँढने निकले जहाँ दुरलभ किताबों का संग्रह पाया जाता है। दोपहर का भोजन भी साथ किया।
नाम था उनका श्री नारायण प्रसाद और हमारे जैसे एक सिविल इंजिनीयर हैं और पुणे के पास खडकवासला में किसी सरकारी संस्थान में सर्विस करते हैं।
सोचा आप सब को इस सुखद अनुभव के बारे में बताऊँ।
आशा है के भविष्य में और भी मित्रों से भेंट होगी।
कभी कभी मन करता है कि इलाहाबाद चला आऊं आप से मिलने के लिए। क्या आपने कभी बेंगळूरु आने के बारे में सोचा है?
सारे के सारे धांसू और लिक्खाड ब्लागरों को मिलना और बदले में एक छोटी सी पोस्ट । नहीं जी नहीं । हंगामा बरपा होना चाहिए था । उम्मीद करें कि यह हंगामा शेष तीन ब्लागों पर जल्दी ही मिलेगा ।
ReplyDeleteऐसी ब्लागर मीट होती रहे ा
पाण्डेय जी,
ReplyDelete"ह्त्या की राजनीति" पर टिप्पणी के लिए धन्यवाद. आपकी सलाह मुझे अच्छी लगी और उस पर कुछ काम चल भी रहा है. सृजनगाथा पर मेरे दो लेख हैं शायद आपको पसंद आयें. कृपया एक नज़र मारें:
http://www.srijangatha.com/2008-09/august/pitsvarg%20se.htm
आपके कमेन्ट बहुत मूल्यवान हैं. संपर्क बनाए रखें.
पढ़ कर अच्छा लगा, शिव जी और दूसरों की पोस्टों का भी इंतजार
ReplyDeleteमिलना मिलाना
ReplyDeleteमिल के आना
अच्छा लगता है।
इस बात को
बताना सुनाना
सुन के फिर सुनाना
अच्छा लगता है।
अच्छा लगा आपकी मुलाकात का किस्सा !
ReplyDeleterespected panday ji pailagi mai dhirendra singh ak chhota sa patrakar hoo-apke anubhav padkar vakai maja bhi aaya aur bhuat kuchh sikhene ko mila-aasha hai aap ke aise prerak lekh aur anubhv milte rahege jo hum jaiso ka margdarshen aur utsahbardhen karte rahege- thanku
ReplyDeleterespected panday ji pailagi mai dhirendra singh ak chhota sa patrakar hoo-apke anubhav padkar vakai maja bhi aaya aur bhuat kuchh sikhene ko mila-aasha hai aap ke aise prerak lekh aur anubhv milte rahege jo hum jaiso ka margdarshen aur utsahbardhen karte rahege- thanku
ReplyDeleteज्ञानजी,
ReplyDeleteअजीब इत्तिफ़ाक़ है।
आज मेरी भी मुलाक़ात हिन्दी जालजगत के एक और मित्र से हुई।
ब्लॉग्गर तो नहीं हैं लेकिन एक हिन्दी चर्चा समूह के सदस्य हैं और तकनीकी हिन्दी, संस्कृत और linguistics में बहुत रुचि रखते हैं।
उन्हें पहले कभी देखा नहीं था.
केवल फ़ोन पर एक बर बात हुई थी और ई मेल का आदान प्रदान हुआ था।
पुणे से बेंगळूरु किसी सर्कारी काम से आए थे और मुझसे मिलने की इच्छा जाहिर की।
खुशी से उनसे मिलने चला गया और तीन चार घंटे उनके साथ बिताये।
अपनी रेवा कार में करीब दस बीस किलोमीटर सैर भी करवाया और उनके साथ किसी खास किताबों की दूकान ढूँढने निकले जहाँ दुरलभ किताबों का संग्रह पाया जाता है। दोपहर का भोजन भी साथ किया।
नाम था उनका श्री नारायण प्रसाद और हमारे जैसे एक सिविल इंजिनीयर हैं और पुणे के पास खडकवासला में किसी सरकारी संस्थान में सर्विस करते हैं।
सोचा आप सब को इस सुखद अनुभव के बारे में बताऊँ।
आशा है के भविष्य में और भी मित्रों से भेंट होगी।
कभी कभी मन करता है कि इलाहाबाद चला आऊं आप से मिलने के लिए। क्या आपने कभी बेंगळूरु आने के बारे में सोचा है?
.
ReplyDeleteचलो जी .. हलचल वापस आती दिक्खै...
बिषाद भी भया होगा.. विछोह के साथ विषाद
का तो साड़ी - पेटीकोट का रिश्ता है, सो तो ठीक..
बीच में यह ससुरा गहन कौन टपक पड़ा, यही समझने के लिये टिपिया रहे हैं !
टिप्पणी का ज़वाब पोस्ट से देना, जी ! हमको भी कुछ गहन गहन सा हो रहा है ।
वाह जे हुई न बात। शिव जी से तो खैर आपका मिलना होता ही रहता होगा पर प्रियंकर जी और बालकिशन जी से आपकी मुलाकात हुई यह बड़ी अच्छी बात है।
ReplyDeleteप्रियंकर जी द्वारा चौपट स्वामी पर पुन: सक्रिय होने की बात का मैं भी समर्थन करता हूं क्योंकि उनका लिखा गद्य मुझे बहुत पसंद है।
तस्वीरें अच्छी आई पर पहली तस्वीर में लाल रंग में कैसे रंगा गए?