घर में बिस्तर पर लेटे लेटे नियमित अन्तराल पर शिव कुटी के मेले के इनपुट मिल रहे है। दूर से शोर भी आ रहा है माइक पर चीखते गानों और बीच में कर्कश आवाज में हो रही उद्घोषणाओं का।
कोटेश्वर महादेव पर यह शहरी-कम-गंवई मेला वार्षिक फीचर है। पिछले दशकों में जमीन का अतिक्रमण करने के कारण मेला क्षेत्र की जमीन उत्तरोत्तर सिकुड़ती गयी है। उसी अनुपात में अव्यवस्था बढ़ती गयी है। इस साल एक दूसरी पार्टी के सत्तासीन होने से कुछ अतिक्रमण पर बुलडोजर चले जरूर। पर उससे मलबा बिखरा - मेला की जमीन नहीं निकली। मैं बिस्तर पर आंख मूंदे पड़ा हूं, पर खबर जरूर मिल रही है। फलाने का मकान बुलडोजर ने गिरा जरूर दिया है पर वे फिर भी पिछले सालों की तरह इस साल भी बाजा-पिपिहरी-झूला-चाट-खिलौने वालों से रंगदारी जरूर वसूल रहे हैं। रंगदारी है ५० से ७५ रुपये तक प्रति दुकानदार। ऐसी रंगदारी और भी लोग वसूल रहे हैं।
चाट की दुकान पर मिल रही है - आलू की टिक्की, गोलगप्पा, नानखटाई, सोनपापड़ी और अनारसा। इसके अलावा आइसक्रीम और मलाईबरफ की दुकाने है। झूले पड़े हैं। सस्ते प्लास्टिक के खिलौने, गुब्बारे, पिपिहरी और हल्की लकड़ी के चकला-बेलन मिल रहे हैं। कुछ फुटपाथिया दुकानें बेलपत्र-माला-फूल की भी हैं। बहुत चहरक-महरक है। यह सब बिस्तर पर लेटा-लेटा मैं सुनता हूं।
गंगाजी की ढ़ंगिलान (ढ़लान) पर एक पांच साल की लड़की रपट कर गंगा में डूबने लगी थी। उसे एक भीमकाय व्यक्ति ने बचाया। बेहोश लड़की को तुरत अस्पताल पर ले गये।
शाम होने पर जोगनथवा ब्राण्ड लड़कियों को धक्का देने का पुनीत कर्म प्रारम्भ हुआ या नहीं? यह मैं बिस्तर पर लेटे लेटे सवाल करता हूं। जरूर हुआ। औरतें गंगा किनारे दीप दान कर रही थीं उसमें सहयोगार्थ जवान जोगनाथ छाप लोग पंहुच गये। वहां बिजली का इन्तजाम अच्छा नहीं था। पुलीस ने पंहुच कर शोहदों को हटाया और बिजली का इन्तजाम किया।
गली में बतियाते लोग और पिपिहरी बजाते बच्चे मेला से लौट रहे हैं। इन सब को मेलहरू कहा जाता है। कल भी मेला चलेगा और मेलहरू आयेंगे। मैं घर में रह कर बार बार यह सोचूंगा कि तीन साल से छूटा इनहेलर अगर पास होता तो सांस की तकलीफ कम होती! इस साल की उमस और अनप्रीसीडेण्टेट बारिश ने मेरी वाइब्रेंसी कम कर दी है। इस पोस्ट पर कमेण्ट मॉडरेशन का रुटीन पूरा करना भी भारी लगेगा।
मेले से दूर रह रहा हूं, पर मेला मुझे छोड़ नहीं रहा है।
श्री सुनील माथुर ने मुझे बताया कि उनके श्वसुर श्रीयुत श्रीलाल शुक्ल जो ऑस्टियोपोरेसिस के चलते बिस्तर पर थे; अब पिछले कुछ दिनों से कुछ-कुछ समय के लिये व्हील चेयर पर बैठ ले रहे हैं। बैठने की प्रक्रिया से उनके आउटलुक में बहुत सकारात्मक अन्तर लग रहा है। मानसिक रूप से पहले भी (लेटे होने पर भी) वे पूर्णत उर्वर थे। अब तो उन्हे काफी अच्छा लग रहा है। आशा की जाये कि शुक्ल जी का लेखन निकट भविष्य में सामने आयेगा? |
मज़ा आ गया. पिट्सबर्ग में बैठे-बैठे शिवकुटी के ठेठ देसी मेले का भ्रमण हो गया. आपकी कृपा से मेलहरू बच्चों के आनंद को यहाँ से महसूस कर पा रहा हूँ. यह जोगनथवा क्या है (कौन हैं)? आपकी तबियत के लिए शुभ कामनाएं!
ReplyDeleteमेले का अच्छा चित्रण किया है....मेलहरू , अनारसा, पिपिहरी शब्द देखकर काफी अच्छा लगा। आपके विवरण से तो हम मुंम्बई मे बैठे-बैठे ही मेला घूम आए। जल्दी स्वस्थ होने की कामना के साथ आशा करता हूं ईसी तरह की रोचक विवरणों से भरी पोस्ट देखने मिलेगी।
ReplyDelete@ स्मार्ट इण्डियन - जोगनाथ श्रीलाल शुक्ल जी के "रागदरबारी" का एक पात्र है। विशुद्ध लफण्टर। उसी का नाम लेने पर मुझे श्रीयुत शुक्ल जी की याद आई।
ReplyDeleteआप श्रीलाल शुक्ल जी के विषय में पहले की पोस्ट देखें।
सबेरे-सबेरे श्रीलाल शुक्ल जी को याद कराने का शुक्रिया। मेला ठेला देखते रहें तबियत सुधार की शुभकामनायें। डा.अमर की सलाह है कि ज्ञानजी को परेशान न किया जाये इसलिये कोई मौज नहीं ले रहा -समझ लीजिये। :)
ReplyDeleteआलेख पढ़ कर यहाँ कोटा जंक्शन का तीज मेला, क्षारबाग में तालाब किनारे तेजाजी मेला,बाराँ में डोल मेला और फिर कोटा का दशहरा सब याद आ गए।
ReplyDeleteआप शीघ्र स्वास्थ्य लाभ करें।
मुझे ऐसा लग रहा है कि शिवकुटी के मेले पर आप पहले भी लिख चुके हैं -मेरी भी कुछ मधुर स्मृतिया इस मेले से जुडी हुयी हैं -मैंने अपने दाहिने हाथ पर पत्नी का नाम और ॐ यहीं गुदवाया था जब १९८३ में विश्वविद्यालय को अलविदा कहा था .
ReplyDeleteआप नें मधुर स्मृतियाँ कुरेदी -शुक्रिया .
आप शीघ्रातिशीघ्र पूरी तरह स्वस्थ हों -यही कामना !
deshi mele ka deshi warnan padhkar shudh desi mazaa aa gaya,aur han bhule bisre anaarse ka swaad bhi taaza ho gaya.sunder.aap jald swastha ho bholenath se yehi prarthna hai
ReplyDeleteप्यारी पोस्ट!
ReplyDeleteस्वास्थ का ख़याल रहे - जब तक मेला है मौज में रहें - सादर [ आपको लिखते जोगनथवा याद आया - मुझे पढ़ते वो गाना .. "तेरा मेला पीछे छूटा राही ..... ]
ReplyDeleteपाण्डेय जी,
ReplyDeleteसवाल पर ध्यान और जोगनथवा, राग दरबारी व शुक्ल जी पर जानकारी देने के लिए धन्यवाद! मैंने अब आपकी पिछली पोस्ट पढ़ ली है. बाकी कमेन्ट पढ़कर और लोगों के इस मेले से जुडाव के बारे में पता लगा, अच्छा लगा. तबियत का ध्यान रखिये,
अनुराग.
जमाये रहियेजी।
ReplyDeleteआपके और श्रीलालजी के स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाएं।
शिवकुटी जैसे मेले लगातार कम होते जा रहे हैं। अभी कलकत्ता से खबर आयी है कि वहां एक चर्चित दुर्गापूजा को अमेरिकन कंपनी के हवाले कर दिया गया है। शिवकुट मेले का प्रोफाइल ढंग का बने, तो यहां भी स्पांसर आयेगे।
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ReplyDeleteसादर सुप्रभात एवं सुस्वागतम,
यह तो विश्वास था कि आप लिखने से बाज नहीं आयेंगे, किंतु मैं ' बीमारी से मेरा संघर्ष ' जैसी
उद्धरणों से लदी फँदी किसी पोस्ट की अपेक्षा कर रहा था । आपने निराश कर दिया, गुरुवर !
क्योंकि आपके रीचार्ज होने का संकेत देती एक स्वस्थ पोस्ट पढ़ने को मिल रही है, धन्यवाद !
गुरुदेव, आपने अपने कानों के सहारे ही शिवकुटी मेले की सैर करके हम सभी को लाभान्वित भी करा दिया। वाह। ...आप शीघ्र स्वस्थ हो जाय यही कामना है।
ReplyDeleteहल्की फ़ुल्की सुंदर पोस्ट :) शीघ्र स्वस्थ हो आप । सदा के लिये इनहेलर छूट जाये इसके लिये अनुलोम विलोम करिये-मुझे बहुत लाभ हुआ है॥
ReplyDeleteअजी आप ने तो हमे भी मेले का मजा घर बेठे ही दिला दिया, धन्यवाद, ओर जल्द ठीक हो जाये, शुभकामंनये
ReplyDeleteachchi post hai...get well soon :)
ReplyDeleteभइया आपकी तबियत जल्द से जल्द पूरी तरह ठीक हो यही शुभ कामनाएं है मेरी.
ReplyDeleteमेला घूम कर आनंद आ गया.
भइया
ReplyDeleteना केवल मेले की जानकारी बल्कि कई नए शब्द भी सीखने को मिले आप की पोस्ट में. आप को कहा है स्वास्थ्य-लाभ के लिए यहाँ चले आयीये लेकिन आप हैं की टस से मस नहीं हो रहे...देखिये खोपोली कैसा हुआ पड़ा है आज कल .
नीरज
शीघ्र स्वास्थ्य लाभ करें सर जी. इस तकलीफ से सदा के लिए निजात मिले .... यही कामना है.
ReplyDeleteमेला ठेला तो हर साल लगता रहेगा, फिर कभी जान लेंगे आंखों देखा-अपनी तबीयत जल्दी दुरुस्त करें जी. चिन्ता लगी है. शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteमेले की सबको सैर करवाने के लिए धन्यवाद। शीघ्र स्वस्थ हों।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
sochaa thaa aaj ravivaar hai so kampyootar se door rahoongaa. aur vaise bhi ravivaar ko aap kuch post naheen karte.
ReplyDeleteshaam ko thodee der ke liye avakaash milaa, bor ho rahaa thaa, to sochaa chalo gyaanje ke yahaan jaakar jara jhaank kar dekhte hain kaunsee nayee tippaniyaan chapee hain purane poston par.
lekin dekh rahaa hoon ke aswasth hote hue bhee aap blogging se baaj naheen aaenge.
angrezee men ise kahate hain "inveterate blogging".
is bimaaree kaa koi ilaaj naheen.
mujhe lagataa hai ki aapke haath pair baandhkar aapko kisee kamre me bandh karna hoga aapko blogging se rokne ke liye.
mele ke baare me jaankaari ke liye dhanyavaad.
sheeghr swasth ho jaaiye.
भगवान से प्रार्थना है आप जल्दी स्वस्थ हों फ़ोटोस अच्छे हैं
ReplyDeleteमेला नहीं छोड़ रहा
ReplyDeleteया झमेला झुला रहा है
झूलने में आनंद जो आ रहा है
झूलता ही जा रहा है
झूलता ही आ रहा है
वर्तमान में जो आनंद है
वो अन्य और कहां
शुभ वर्तमान।
मेले का वर्णन पढना अच्छा लगा... आपकी सेहत जल्दी ठीक हो...यही कामना कर रहे हैं.
ReplyDeleteबढ़िया जी,.. यूही मेलो में घुमाते रहिए..
ReplyDeleteहमारे आसपास का मेला (माहौल) ठीक कंबल की तरह ही होता है न, हम उसे छोड़ दें या दूर रहे पर वह हमे नही छोड़ने वाला।
ReplyDeleteवैसे शब्दचित्र बढ़िया खींचने लगे हो आप। बढ़िया वर्णन!
अब तबियत की बात पे अगर मुन्ना भाई स्टाईल में कहूं तो सुनिए-
"गेट वेल सून मामू ;) "
स्वस्थ रहें श्रीलाल जी और आप भी।
शुभकामनाएं।
शुक्र है, आप केवल तन से बीमार हैं, मन से नहीं । बिस्तर में पडे-पडे आप मेला हो आए । याने आप मेले में नहीं, मेला आपमें है ।
ReplyDeleteआप जल्दी स्वस्थ हो जाएं । तबीयत खराब आपकी है और कष्ट सारे जमाने को ण्झेलना पड रहा है ।
अपने लिए नहीं, हम सबके लिए आप ठीक हो जाइए ा
श्री लाल शुक्ल जी का राग दरबारी में favorite उपन्यासों में से एक है .....अभी कही पढ़ा की हिन्दी के प्रसिद साहित्यकार ओर लेखक अमरकांत जी आर्थिक परेशानियों सेजूझ रहे है...जान कर दुःख हुआ था ......आपने मेला घुमा दिया इसका शुक्रिया.....अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखिये ...
ReplyDeleteआप अस्वस्थ हैँ :-( !!
ReplyDeleteजल्द स्वस्थ होँ यही दुआ है -
मेला जैसा आपने बयान किया वैसा तो कभी देखा ही नहीँ -
श्रीलाल जी को मेरा प्रणाम भिजवाइयेगा -
ईश्वर उन्हेँ , स्वास्थ्यलाभ करवायेँ -
- लावण्या
My niece went to the Shivakuti Mela. She was pretty excited. I lived in Govindpur for 9 years, never went to any of these melas. Still when I read about them, my heart goes back to those days.
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteआपने बचपन की याद दिला दी, जब हम भी मेले गाँव के मेले जाया करत थे।
ज्ञान दत्त जी,
ReplyDeleteआपने शिवकुटी मेले का जो सजीव चित्रण किया है, मुझे इलाहाबाद वासी होने के नाते विशेष पसंद आया.
शानदार एवं सजीव चित्रण के लिए आपको बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
आप शीघ्र ही ठीक हो,ईश्वर से यही कामना है.शिवकुटी के मेले में घूमते घूमते कोटा के तीज मेले,दशहरा मेला और बडे बाग के पास लगने वाला तेजाजी का मेला भी घूम आयी.यादों का खूब मेला लगा दिया आपने.चलते चलते स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामना भी स्वीकार करें.
ReplyDeleteआप स्वस्थ हों और चिट्ठों के संसार में हर रोज हर इलाके में न मौजूद हों, ऐसा कभी महसूस नहीं किया।
ReplyDeleteआशा करता हूं स्वास्थ्य बेहतर हो रहा होगा। आपके शीघ्र पूरी तरह स्वस्थ होने की शुभकामनाएं।
आपको स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं!
ReplyDeleteवँदे मातरम!
शीघ्र स्वस्थ्य लाभ हो!
rochak laga. mela dekhe arsa ho gaya. mele ka ahsas ho gaya. aap swastha ho javen yahi kamana hai.
ReplyDeleteस्वस्थ तो अब तक आप हो ही गए होंगे ऐसी आशा है, पर इतने दिनों में भी रीडर में कुछ पोस्ट ही जमा न हुए आपके... बस तीन ही दिख रहे हैं. मेला घूम कर अच्छा लगा, मुझे भी एक पिपिहरी बजाने का मन कर गया :-)
ReplyDeleteaapke shabdon ke sang ham poora mela ghoom aaye.bahut sundar sajeev chitran .aabhaar
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