छ सौ रुपल्ली में साल भर लड़ने वाला भर्ती कर रखा है मैने। कम्प्यूटर खुलता है और यह चालू कर देता है युद्ध। इसके पॉप अप मैसेजेज देख लगता है पूरी दुनियां जान की दुश्मन है मेरे कम्प्यूटर की। हर पांच सात मिनट में एक सन्देश दायें-नीचे कोने में प्लुक्क से उभरता है:
गांधीवादी एक साइट देख रहा हूं, और यह मैसेज उभरता है। मैं हतप्रभ रह जाता हूं – गांधीवादी साइट भी हिंसक होती है? अटैक करती है! एक निहायत पॉपुलर ब्लॉगर (नहीं, नहीं, समीर लाल की बात नहीं कर रहा) का ब्लॉग देखते हुये यह मैसेज आता है। मैं अगेन हतप्रभ रह जाता हूं – बताओ, कितनी बड़ी बड़ी बातें बूंकते हैं ये सज्जन, पर मेरे कम्प्यूटर पर हमला करते, वह भी छिप कर, शर्म नहीं आती! अरे, हमला करना ही है तो बाकायदे लिंक दे कर पोस्ट लिख कर देखें, तब हम बतायेंगे कि कौन योद्धा है और कौन कायर! यह बगल में छुरी; माने बैक स्टैबिंग; हाईली अन-एथिकल है भाई साहब!
कई बार घबरा कर ऐसे मैसेज आने पर मैं View Details का लिंक खोलता हूं। वहां नॉर्टन एण्टीवाइरस वाला जो प्रपंच लिखता है, वह अपने पल्ले नहीं पड़ता। मैं चाहता हूं कि यह अटैक को ऐसे ही रिपल्स करता रहे पर पॉप अप मैसेज दे कर डराये मत। पर शायद छ सौ रुप्पल्ली में योद्धा नौकरी पर रखा है, उसके मुंह बन्द रखने के पैसे नहीं दिये। कुछ देर वह मुंह बन्द रख सकता है; हमेशा के लिये नहीं!
आप जानते हैं इस योद्धा और इसकी जमात को? वैसे इस सतत युद्ध की दशा में कुछ ब्राह्मणवादी लोग यदाकदा री-फॉर्मेट यज्ञ करा कर अपने कुछ महत्वपूर्ण डाटा की बलि देते हैं। पर यज्ञ की ऋग्वैदिक संस्कृति क्या एनवायरमेण्टानुकूल है?
कल मेरे वाहन का ठेकेदार आया कि इस महीने उसका पेमेण्ट नहीं हो रहा है। अकाउण्ट्स का कहना है कि कैश की समस्या के कारण सभी टाले जाने वाले बिलों का भुगतान मार्च के बाद होगा। यह अकाउण्टिंग की सामान्य प्रेक्टिस है। कर्मचारियों को वेतन तो मिल जाता है – पर भत्ते (जैसे यात्रा भत्ता) आदि अगले फिनांशियल सत्र के लिये टाल दिये जाते हैं।
कैश क्रंच? पता नहीं, यह तो मुझे अकाउण्टिंग बाजीगरी लगती है।
मैं एक दूसरी समस्या की बात करूं। कई कम्पनियां, जब मन्दी के दौर में थीं, और उनका मुनाफा घट गया था तो खर्च कम करने के उद्देश्य से कर्मचारियों की छंटनी कर रही थीं। उनमें से बहुत सी ऐसी भी रही होंगी जिनके पास वेतन देने के लिये पर्याप्त रोकड़ा रहा होगा। ऐसी कम्पनियां मेरे विचार से छंटनी कर सही काम नहीं कर रही थीं। अपने कर्मचारियों का पोषण उतना ही जरूरी कर्तव्य है, जितना मुनाफा कमाना। हां, आपके पास पैसा ही नहीं है तो छंटनी के अलावा चारा नहीं!
कम्पनियां जो अपने कर्मचारियों, ठेकेदारों और अपनी एंसिलरी इकाइयों का ध्यान मात्र मुनाफे के चक्कर में दर किनार करती हैं, न अच्छी कम्पनियां हैं और न ही मन्दी से निपटने को सक्षम।
एक और बात गेर दूं। अपने टाइम मैनेजमेण्ट पर पर्याप्त गोबर लीप दिया है मैने। कल ६८८ बिन पढ़ी पोस्टें फीडरीडर से खंगाली। पर देखता हूं – पीडी, प्राइमरी का मास्टर और अभिषेक ओझा दर्जनों पोस्टो के रिकमेण्डेशन पटक लेते हैं, ट्विटर और गूगल बज़ पर। कौन सी चक्की का खाते हैं ये!
खैर अपना टाइम मैनेजमेण्ट शायद एक आध हफ्ते में सुधरे। शायद न भी सुधरे।
सज्जन लोग कहीं लिंक नहीं देते। न उधर न इधर! लिंक देने से ब्लॉग का विकास जो ठहर जायेगा!
ReplyDeleteये जाने कैसा हमला है लेकिन जानकर आश्चर्य हुआ कि आप ६०० रुपये का सिपाही रखें है जबकि यही कार्य मुफ्त में AVG Antivirus बड़ी मुस्तैदी से करता है. Norton की भूल भी उसे पकड़ते देखा है.
ReplyDeleteखैर, लिंक देकर तो पाकिस्तान के सिवाय कौन हमला करने की बेवकूफी करेगा और वो भी भारत पर करने के सिवाय जो पलट कर कुछ करने वाला नहीं.
ऐसी कम्पनियां मेरे विचार से छंटनी कर सही काम नहीं कर रही थीं-कम्पनियों का कोई सोशल दायित्व कब रहा है सिवाय मुनाफे के..कोई सरकारी उपक्रम थोड़ी न है जी.
@ उड़न तश्तरी - ऐसी कम्पनियां मेरे विचार से छंटनी कर सही काम नहीं कर रही थीं-कम्पनियों का कोई सोशल दायित्व कब रहा है सिवाय मुनाफे के..कोई सरकारी उपक्रम थोड़ी न है जी.
ReplyDelete---------
नहीं, मैं सोशल दायित्व की बात नहीं कर रहा। मैं प्योर बिजनेस स्ट्रेटेजी की बात कर रहा हूं!
ये नोर्टन योद्धा कुछ ज्यादा ही उछल कूद मचाता है हमने तो विंडो एक्सपी में केस्परस्काई योद्धा तैनात कर रखा जो चुपचाप अपना कार्य करता रहता है साल भर से कोई दिक्कत नहीं आई और है भी सस्ता ५०० रुपये में तीन कंप्यूटर की सुरक्षा का जिम्मा लेता है | हालाँकि मैं तो एक्सपी की जगह लिनक्स का इस्तेमाल करता हूँ जिसकी खुद की किले बंदी इतनी मजबूत है कि ये वायरस नामक आतंकवादी उसमे घुस ही नहीं सकते बेचारे लिनक्स के परकोटे से अपना सिर टकरा कर घायलहो खुद ही भाग खड़े होते है |
ReplyDeleteअपना टाइम मैनेजमेण्ट तो अब कई दिन नही सुधरेगा। 10-15 दिन किसी ब्लाग पर नही आ पाऊँगी। शुभकामनायें
ReplyDeleteलेख बहस की मांग करता है।
ReplyDeleteमैंने तो मकाफ़ी की ऐसी ही बद्तमीज़ियों की चलते एकबारगी अनइन्सटाल करके ही पीछा छुड़ाया था... ऐसा चौकीदार भी किस काम का जो "जागते रहो, जागते रहो" चिल्लाकर पूरी रात सोने ही न दे.
ReplyDeleteजो महत्वपूर्ण है उसके साथ ही ऐसा होता है नहीं तो किसको कौन पूछता है। बाकि आप के टाईममैनेजमैन्ट की उलझन आज कल दिख रही है, जिस चक्की का आटा खाते थे उस चक्की को मत छोड़िए..
ReplyDeleteGyan ji,
ReplyDeleteThere is a solution for each and every problem. Why don't you creat something like ,"Anti-Norton"
We all will be benefited.
Divya
गांधीवादी साइट भी हिंसक होती है? अटैक करती है!
ReplyDeleteआज कल का नया फलसफा यही है ऐसी ही साइट हिंसक हो रही हैं........
प्राइमरी का मास्टर यह इसलिए आजकल कर पा रहा है सर क्योंकि
ReplyDelete१- दो महीने से ब्लॉग्गिंग बंद
२- ६ महीने से लगभग टिपण्णी करना बंद
३- गूगल रीडर पर ही सबको निपटाता हूँ
४-और रीडर पर शेयर का एक बटन दबाया ....तो वह सीधे बज्बजाने लगता है !
चाहे तो हमारे भी ऊपर आजमाए टोटके आप आजमा के देख सकते हैं
... और हाँ आटा तो हम अपनी फतेहपुरिया चक्की का ही खाते हैं ....कहें तो आपकी माल-गाडी में भिजवा दें ?
:)
पता नहीं पिल्सबरी किस चक्की में आटा पिसते हैं.. हम तो उसी का आटा खाते हैं.. :)
ReplyDeleteवैसे अभी भी मेरे रीडर में लगभग ५५० बिना पढ़े हुए पोस्ट रखे हुए हैं.. पता नहीं वे कब खतम होंगे.. टाइम मैनेजमेंट के मारे हुए हम भी हैं.. :(
सब से ज्यादा आपके योद्धा का प्ल्लुक से उभरना जमा।हमारा भी योद्धा प्ल्लुक ही करता है।क्या सभी योद्धा प्ल्लुक ही करते हैं?इस प्ल्लुक-प्ल्लुक को नेशनल अलार्मिंग सिस्टम मे कन्वर्टियाने का दिल कर रहा है।
ReplyDeleteआप उक्त ब्लॉगर को मेल कर आगाह करें कि उसके ब्लॉग से कोई स्क्रीप्ट जुड़ी हुई है. उसे ठीक कर ले. बहुत बार ऐसा जानबुझ नहीं किया जाता.
ReplyDeleteशेष छह सौ में खरीदा है तो चिल्ला चिल्ला कर बताएगा ही कि वह काम कर रहा है. :)
gyan ji bharat men to recession ka sirf jhootha rona roya gaya. mandi ke bahane jahan chantani hui unka munafa thoda kam hua ghata kisi ko nahin hua lekin sarkari riyayat aur chantani se unka munafa zarror bacha rah gaya. and this pure business strategy.
ReplyDeleteमनुष्य को बुरे वक्त में सही निर्णय लेना ही उनकी अन्दर की कार्य क्षमता,कुशलता को दर्शाता है | जो लोग ऐसे वक्त में अपने ही लोगों की छंटनी कर देता ,उनके योग्यता पर प्रशनचिंह जरूर माना जाएगा | चुकी यह तो एक मात्र अंतिम विकल्प हो सकता है |
ReplyDeleteये 600 रुपैये के हवालदार हमारी चमचागिरी करता है ,इसीलिए वो सिर्फ अपनी मौजूदगी दिखाता रहता है | अगर वो कुछ भी ना दर्शाय तो आप ही कहेंगे ,भाई ये तो सो रहे है शायद किसी काम के नहीं है|
उतम लेख है आपकी |
धन्यबाद |
केस्परस्काई ज्यादा बेहतर है और सस्ता भी.. हमने वही डाल रखा है.. फ्री वालो के चक्कर में मत पढियेगा.. यदि देता इम्पोर्टेन्ट हो..
ReplyDeleteलगे हाथ पोपुलर ब्लोगर का नाम भी बता देते तो..
और हाँ पी डी रिकमेन्डेशन वाकई कमाल होते है..
ReplyDeleteअजी नींबू ओर मिर्ची धागे मै पिरो कर रख दो सामने ओर जब तक पीसी चालू ना हो जाये तब तक " जल तु जलाल तु..... वाला मत्र पढते रहे, बाकी हनुमान जी खुद ही देख लेगे आप की भगति मै शक्ति होनी चाहिये ओर ६०० रुप्पली भी बचा ले
ReplyDeleteमुझे लगता है कि बाजार में कम्प्यूटर वायरस का जिस स्तर पर हौआ खड़ा किया गया है वास्तव में आम उपयोगकर्ता को खतरा उतना बड़ा है नहीं. सौ प्रतिशत पायरेटेड सॉफ़्टवेयर पर चलने वाले भारतीयों में भी एन्टीवायरस बनाने वाली कम्पनियां अपना उत्पाद बेचने के लिये इस प्रकार का हायतौबा सीन क्रियेट किये हुए हैं. हार्डवेयर वेन्डर्स तक अपनी दुकानों में थोक के भाव एन्टी-वायरस के डब्बों को सजाए बैठे हैं. उनका अपना प्रोफ़िट जुड़ा है इससे.
ReplyDeleteपिछले दस से ज्यादा वर्षों से मैं मुफ़्त में उपलब्ध अवास्ट, एवीजी और अब अवीरा का उपयोग करता आ रहा हूं. आज तक कोई परेशानी नहीं हुई.
पैसा लेकर भाग दौड तो कर रहा है यह नारटन . और अपने सरकारी लोग पूरे पैसे लेकर और तो और महंगाई भत्ता भी लेकर निठ्ल्ले से रहते है
ReplyDeleteहमने भी डर के मारे एक योद्धा खरीदा है नेट-प्रोटेक्टर (स्वदेशी है) और सस्ता भी, चिल्लाता भी नहीं और मकान के अन्दर-बाहर ज्यादा जगह भी नहीं माँगता… :)
ReplyDelete- आप कौन सा ऑपरेटिंग सिस्टम इस्तेमाल करते हैं उस पर भी निर्भर करता है. हमारे तो विंडोज ७ में माइक्रोसोफ्ट ही संभाल लेता है और कभी वार्निंग भी नहीं आती.
ReplyDelete- फॉर्मेट करने पर डाटा बच तो जाएगा अगर अलग पार्टीशन बना कर रखा जाय.
- हम निहायती पोपुलर तो नहीं लेकिन अगर हमारे ब्लॉग से थ्रेट आया हो तो बता दीजिये, वैसे मैंने इसीलिए विजेट्स नहीं लगा रखे कोई भरोसा नहीं कब कौन थ्रेट दे दे.
बाकी टाइम मैनेजमेंट पर तो मैं आपका नाम लिखने वाला था अपनी रीसेंट वाली पोस्ट पर ठीक वैसे ही जैसे आपने लिखा है :) टाइम मैनेजमेंट आपसे सीखा जाय कि कैसे आप रोज एक पोस्ट देते हैं.
फिलहाल मैं अपना राज बताता हूँ... दरअसल मैं रीडर में जो शेयर करता हूँ वो अक्सर कुछ दोस्तों द्वारा शेयर किये गए पोस्ट ही होते हैं. बाकी या तो एक साथ 'मार्क एज रीड' कर दिए जाते हैं या अपठित पड़े रहते हैं. इस तरह से दिन में कुल २०-२५ पोस्ट देखनी होती है जो 'जे' बटन प्रेस करके धकाधक निपटा दी जाती हैं. अब अक्सर इनमें से ५ से १० पोस्ट अच्छी निकल जाती हैं जो शेयर कर देता हूँ. इसके अलावा लंच के टाइम पर कुछ कलिग इन पोस्ट्स के बारे में डिस्कस भी करते हैं... तो सब संगती का असर है. जो रीडर पर शेयर किया वो ओटोमेटीकलि बज़ और ट्विट्टर पर भी पोस्ट हो जाते हैं :) रीडर ही अकेली ऐसी साईट है जो ऑफिस में खुल पाती है.
और ऑफिस में जब अपने सिमुलेशन रन होते हैं, जो कम से कम ३० मिनट ले ही लेते हैं उस दौरान ये पोस्ट निपटा और शेयर कर दिए जाते हैं. बाकी ट्विट्टर और फेसबुक रात को सोने के पहले आईपॉड से देखे जाते हैं, इसी तरह कुछ न्यूज़ की वेबसाइट भी आईपॉड से ही देखता हूँ जिसमें आप्शन होता है 'शेयर ओं ट्विट्टर'. बाकी तो थोडा बहुत अपने रीसेंट पोस्ट के पहले पैराग्राफ में लिखा ही है मैंने... कैसी दिनचर्या है अपनी.
यहाँ तो सरकारी खरीदा था, दो बार दगा दे गया । शायद DGS&D से खरीदा हो । जब कम्प्यूटर को पुराने समय पर सेट किया तब ठीक हुआ ।
ReplyDeleteसबसे पहले कुश को थैक्स बोलता हूँ..
ReplyDeleteअब जबकि अभिषेक अपने रीडर को पढ़ने का तरीका बता ही गए हैं तो हमारा भी फर्ज बनता है कि एकाध अदा अपनी अदा भी बताते जाएँ.. :)
हम किसी भी पोस्ट को एक सरसरी निगाह मारते हैं, और पढ़ने लायक लगने पर ही उसे पढते हैं.. ब्लॉग के नाम या ब्लॉग के लेखक या शीर्षक पर नहीं जाते हैं.. किसी गंभीर विषय पर लिखा लेख होने पर और समय ना होने पर उसे आगे के लिए छोड़ देते हैं.. कुछ अभिषेक के द्वारा भी अच्छे पोस्ट पर पहुँचते हैं, और उसे अपने दोस्तों से बांटने के लिए शेयर कर देते हैं.. और अंत में रीड ऑल का ओप्शन तो है ही.. :)
विस्टा, सेवेन का विन्डोज़ डिफ़ेन्डर ओन रखिये और ऎवीजी यूज करिये.. बाकी ये सब योद्धा भी धोखेबाज है.. जब तक ये दिखायेगे नही तब तक हम डरेगे कैसे.. वायरल मार्केटिन्ग है ये...
ReplyDeleteएक नुस्खा हम भी देन्गे.. क्रोम मे ’इनकागनिटो विन्डो’ आप्शन का प्रयोग करे और हमेशा इन्टरनेट की बुरी साईटो से बचे..
हमे भी कितना पढना रहता है अब तो दिन ४८ घन्टो का हो तब ही बात बने..या तो ये ब्लागर लोग थोडा आहिस्ता आहिस्ता पोस्ट किया करे...
एट लीस्ट दो पोस्ट्स के बीच सांस तो लिया करे और ये रीडर और बज़ पर ठेलने वालो के भी लागू होना चाहिये... :)
बहुत दिनो बाद आज कमेंट मार रहा हून गोमती के किनारे से.
ReplyDeleteआप तो महाराज कम्प्यूटर के वाइरस से ही परेशान है. ज़ैसे कम्प्यूटर मे पाप अप फुस्स से निकलकर डंक मारता है वैसे ही जीवन मे तरह तरह के वाइरस फुदक फुदक कर मुह उठाते रह्ते है. शांत सी स्क्रीन पर बवाल एकदम् उठ जाता है. गैस का सिलेंडर खतम होने से लेकर इंजिन फेल होने तक कुछ भी. कभी टीवी खराब तो कभी बीवी. कभी बास नाखुश तो कभी पड़ोसी. कभी मायावती की रैली रास्ता बन्द कर देती है तो कभी पड़ोसी के घर सीबीआइ छापा मार कर हीन भावना दे जाती है. कभी गमे इश्क तो कभी गमे रोजगार. कभी दाल महंगी तो कभी मुरगा. इतने सारे वाइरस उप्लब्ध हैन तंग करने के लिये. छ सौ रुपल्ली मे वाइरस मारकर आप नाहक खुश हो रहे हैन मान्यवर. कोइ एंटी वाइरस ऐसा बताइये जो जिन्दगी के इन वाइरसो पर भारी पडे. संजय कुमार्
@ Sanjay Kumar - वाह! जय हो! ऐसे ही नित्य टिपेरते रहें। वाइरस फाइरस क्या करेगा जब आपकी टिप्पणी चमचमायेगी! एक आध पोस्ट वोस्ट भी ठेलें इधर उधर!
ReplyDeleteI wish i can send few more such viruses to Sanjay. He will end up saying..."kabhi khud pe, kabhi haalaat pe rona aaya "
ReplyDeleteअरे ना बबुल दिखा ना बांस यहां तो अभी तक सतत युद्धक (Continuous Fighter) चल रहा है जी, मिलते है बरेक के बाद
ReplyDeleteहमारे पीसी में तो पता नहीं कितने वाइरस घुसे हैं और उसके जरिये कैमेरा में भी घुस गए।
ReplyDeleteअब इन हमलों का क्या किया जाय---कितना भी पुख्ता इन्तजाम कर लिया जाय ----कहीं न कहीं से ये कम्प्यूटर में अपनी पैठ बना ही लेते हैं।
ReplyDelete६०० रुपल्ली में रखा है तो वफादारी से नौकरी बजा रहा है. हम तो फ्री वाला रखते हैं सो बेचारा सिर्फ virus ही पटकता रहता है.
ReplyDeleteसंजय(बेंगाणी) भाई की टिप्पणी से सहमति है, उक्त ब्लॉगर को एक बार बतला दें कि यह दिक्कत आती है उनके ब्लॉग पर पधारने से, हो सकता है उनको भान ही न हो इस समस्या का।
ReplyDeleteऔर ६०० का खरीदे हैं तो उसका बताना फर्ज़ बनता है वर्ना लोग टेन्शनियाएँगे कि ६०० भी खर्च दिए और पता भी नहीं कि काम कर रहा है कि नहीं! ;)
वैसे इस विषय पर कुछ समय पहले मैंने लिखा था - "फोकट के एन्टीवॉयरस सॉफ़्टवेयर और उनका दमखम....." - यदि नहीं देखे थे तो एक बार नज़र अवश्य मार लें, कदाचित् अगली बार ६०० न खर्चने पड़ें। :)
मैंने तो किसी को कोई भुगतान नहीं किया है फिर भी ऐसे एक-दो युध्दक प्रकट होते ही रहते हैं। अच्छा लगा यह जानकर कि आप जैसे धुरन्धर भी इनसे परेशान हैं।
ReplyDeleteबहुत दिनो बाद आज कमेंट मार रहा हून गोमती के किनारे से.
ReplyDeleteआप तो महाराज कम्प्यूटर के वाइरस से ही परेशान है. ज़ैसे कम्प्यूटर मे पाप अप फुस्स से निकलकर डंक मारता है वैसे ही जीवन मे तरह तरह के वाइरस फुदक फुदक कर मुह उठाते रह्ते है. शांत सी स्क्रीन पर बवाल एकदम् उठ जाता है. गैस का सिलेंडर खतम होने से लेकर इंजिन फेल होने तक कुछ भी. कभी टीवी खराब तो कभी बीवी. कभी बास नाखुश तो कभी पड़ोसी. कभी मायावती की रैली रास्ता बन्द कर देती है तो कभी पड़ोसी के घर सीबीआइ छापा मार कर हीन भावना दे जाती है. कभी गमे इश्क तो कभी गमे रोजगार. कभी दाल महंगी तो कभी मुरगा. इतने सारे वाइरस उप्लब्ध हैन तंग करने के लिये. छ सौ रुपल्ली मे वाइरस मारकर आप नाहक खुश हो रहे हैन मान्यवर. कोइ एंटी वाइरस ऐसा बताइये जो जिन्दगी के इन वाइरसो पर भारी पडे. संजय कुमार्
सबसे पहले कुश को थैक्स बोलता हूँ..
ReplyDeleteअब जबकि अभिषेक अपने रीडर को पढ़ने का तरीका बता ही गए हैं तो हमारा भी फर्ज बनता है कि एकाध अदा अपनी अदा भी बताते जाएँ.. :)
हम किसी भी पोस्ट को एक सरसरी निगाह मारते हैं, और पढ़ने लायक लगने पर ही उसे पढते हैं.. ब्लॉग के नाम या ब्लॉग के लेखक या शीर्षक पर नहीं जाते हैं.. किसी गंभीर विषय पर लिखा लेख होने पर और समय ना होने पर उसे आगे के लिए छोड़ देते हैं.. कुछ अभिषेक के द्वारा भी अच्छे पोस्ट पर पहुँचते हैं, और उसे अपने दोस्तों से बांटने के लिए शेयर कर देते हैं.. और अंत में रीड ऑल का ओप्शन तो है ही.. :)
- आप कौन सा ऑपरेटिंग सिस्टम इस्तेमाल करते हैं उस पर भी निर्भर करता है. हमारे तो विंडोज ७ में माइक्रोसोफ्ट ही संभाल लेता है और कभी वार्निंग भी नहीं आती.
ReplyDelete- फॉर्मेट करने पर डाटा बच तो जाएगा अगर अलग पार्टीशन बना कर रखा जाय.
- हम निहायती पोपुलर तो नहीं लेकिन अगर हमारे ब्लॉग से थ्रेट आया हो तो बता दीजिये, वैसे मैंने इसीलिए विजेट्स नहीं लगा रखे कोई भरोसा नहीं कब कौन थ्रेट दे दे.
बाकी टाइम मैनेजमेंट पर तो मैं आपका नाम लिखने वाला था अपनी रीसेंट वाली पोस्ट पर ठीक वैसे ही जैसे आपने लिखा है :) टाइम मैनेजमेंट आपसे सीखा जाय कि कैसे आप रोज एक पोस्ट देते हैं.
फिलहाल मैं अपना राज बताता हूँ... दरअसल मैं रीडर में जो शेयर करता हूँ वो अक्सर कुछ दोस्तों द्वारा शेयर किये गए पोस्ट ही होते हैं. बाकी या तो एक साथ 'मार्क एज रीड' कर दिए जाते हैं या अपठित पड़े रहते हैं. इस तरह से दिन में कुल २०-२५ पोस्ट देखनी होती है जो 'जे' बटन प्रेस करके धकाधक निपटा दी जाती हैं. अब अक्सर इनमें से ५ से १० पोस्ट अच्छी निकल जाती हैं जो शेयर कर देता हूँ. इसके अलावा लंच के टाइम पर कुछ कलिग इन पोस्ट्स के बारे में डिस्कस भी करते हैं... तो सब संगती का असर है. जो रीडर पर शेयर किया वो ओटोमेटीकलि बज़ और ट्विट्टर पर भी पोस्ट हो जाते हैं :) रीडर ही अकेली ऐसी साईट है जो ऑफिस में खुल पाती है.
और ऑफिस में जब अपने सिमुलेशन रन होते हैं, जो कम से कम ३० मिनट ले ही लेते हैं उस दौरान ये पोस्ट निपटा और शेयर कर दिए जाते हैं. बाकी ट्विट्टर और फेसबुक रात को सोने के पहले आईपॉड से देखे जाते हैं, इसी तरह कुछ न्यूज़ की वेबसाइट भी आईपॉड से ही देखता हूँ जिसमें आप्शन होता है 'शेयर ओं ट्विट्टर'. बाकी तो थोडा बहुत अपने रीसेंट पोस्ट के पहले पैराग्राफ में लिखा ही है मैंने... कैसी दिनचर्या है अपनी.