यह जो हो रहा है, केवल मीडिया के दबाव से संभव हुआ है। और बहुत कम अवसर हैं जिनमें मीडिया का प्रशस्ति गायन का मन होता है।
यह उन्ही विरल अवसरों में से एक है। मीडिया का दबाव न होता तो राठौड़ जी आज प्रसन्नवदन होते। शायद अन्तत वे बरी हो जायें – और शायद यह भी हो कि वे वस्तुत: बेदाग हों। पर जो सन्देश जा रहा है कि लड़कियों/नारियों का यौन-उत्पीड़न स्वीकार्य नहीं होगा, वह शुभ है।
अपने आस पास इस तरह के कई मामले दबी जुबान में सुनने में आते हैं। वह सब कम हो – यही आशा बनती है।
फुट नोट: मैं यह लिख इस लिये रहा हूं कि कोई शक्तिशाली असुर किसी निर्बल का उत्पीड़न कर उसे आत्महत्या पर विवश कर दे - यह मुझे बहुत जघन्य लगता है। समूह या समाज भी कभी ऐसा करता है। कई समूह नारी को या अन्य धर्मावलम्बियों/विचारधारा वालों को दबाने और उन्हे जबरी मनमाना कराने की कोशिश करते हैं। वह सब आसुरिक वृत्ति है।
मीडिया का यह रूप बोरवेल में गिरे प्रिंस की जान बचाने के लिये भी याद किया जायगा। यदि मीडिया उस वक्त सक्रिय न होता तो प्रिंस की जान बचनी मुश्किल थी। रूचिका केस भी मीडिया के कारण ही सामने आ पा रहा है और ऐसे घृणित इंसान को उजागर कर रहा है जो कि अपने स्वार्थ के लिये एक परिवार को तबाह तक करने से बाज नहीं आया।
ReplyDeleteआज यदि रूचिका के पिता को किसी ने सबसे बडा संबल प्रदान किया है तो वह मीडिया ही है। ऐसे में मीडिया को जरूर बधाई देना चाहूँगा। लेकिन इस तरह की सकारात्मक भूमिका मीडिया कम ही निभाता है।
चलो मीडिया ने सालों बाद फ़िर कुछ अच्छा काम किया है।
ReplyDeleteयह मीडिया का अच्छा वाला रूप है। मीडिया के काम का एक हजारवाँ अंश भी नहीं। सोचिए मीडिया वास्तव में अपने काम की दिशा मोड़ ले तो क्या हो?
ReplyDeleteमीडिया को साधूवाद.
ReplyDeleteमिडिया के दबाब से सुखद खबर आई.
ReplyDeleteसालों को सालों पुराने पाप की सज़ा तो मिले :)
ReplyDeleteसही कह रहे हैं.
ReplyDeleteगुड वर्क
ReplyDeleteअपने परिवार को दी जा रही मानसिक प्रतारणा को न सह पाने के कारण, एक बच्ची को आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा , अगर यह सच है तो ऐसे व्यक्ति को अधिकतम सजा मिलनी चाहिए ! मीडिया बधाई की पात्र है जो सर्वजन समाज का ध्यान आकर्षित करने में सफल रही !
ReplyDeleteबात तो एक दम ठीक है ....लेकिन कुछ सवाल फिर भी मीडिया पर खड़े किये जा सकते हैं.
ReplyDeleteमीडिया डेड-दो महीने पहले ही तो प्रकट नहीं हुआ........मीडिया १९ साल पहले भी तो था !!
सहमत हूँ ..
ReplyDeleteअप्रत्याशित तो है पर बढियां ..
क्या अच्छा होता जब इसी समय ऐसा दबाव
'अरुषि' वाले काण्ड पर भी कार्यरत होता !
@ उड़न तश्तरी - टिप्पणी में हिन्दी-संस्थागत कटपेस्टिया प्रचार न ठेलने के लिये धन्यवाद। :)
ReplyDeleteमीडिया को कभी कभी अच्छे काम भी करने चाहिये ना,
ReplyDeleteहम अगोर रहे हैं कि कब 'नई दिल्ली नार्यारि' गिरफ्तार होंगे !
ReplyDeleteई मीडिया बहुत सेलेक्टिव है। बहुत ही रिफाइंड टेस्ट है इसका !
मीडिया का काम भी सभवतः यही है.
ReplyDeleteमीडिया को सही काम के लिए साधूवाद
ReplyDeleteअंग्रेजी में कहवत है..."To err is Human" इस बार उसको बदल देते हैं..."To err is Media"
ReplyDeleteकाश मिडिया ऐसी गलतियाँ हमेशा करता रहे.
नीरज
मिडिया के दबाब का दुष्परिणाम का नज़ारा भी लिजिये निठारी कांड में पंधेर को उस मुक्कदमे मे फ़ांसी हुई जिसमे वह शामिल नही था . और विदेश मे था . बाद मे वह बरी हो गया और इस चक्कर में असली अपराधी उसके नौकर की फ़ांसी सुप्रीम कोर्ट मे लटक गयी
ReplyDeleteमीडिया ने अपना काम किया और कोर्ट ने अपना पर ये पुलीस अपना काम क्यूं नही कर रही ?
ReplyDeleteमीडिया की शक्ति अपार है। किन्तु साथ में दायित्व भी। जब भी अपार शक्ति होती है तो उसका दुरुपयोग न हो इसका ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है। मीडिया को केवल विषय को सामने लाना चाहिए। किसी को अपराधी घोषित नहीं करना चाहिए। यह काम न्यायालय का ही है और रहेगा। उसे केवल लोगों को सजग बनाना चाहिए और किसी बड़े अपराध को ठंडे बस्ते में डालने से रोकना चाहिए। यदि हमारा मीडिया सजग हो जाएगा तो शायद देर सबेर नागरिक भी जाग ही जाएँ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
मिडिया को इस एक कार्य के लिए अच्छा मान सकते है ,और अगर न्यायलय भी शीघ्र निर्णय देते है तो मिडिया कि जिम्मेवारी और बढ़ जाती है वो जनता का विश्वास फिर से जीते |
ReplyDeleteमीडिया का यह रूप निस्सन्देह प्रशंसनीय है किन्तु है आपवादिक ही। फिर भी खुश होने के लिए तो पर्याप्त से अधिक ही है।
ReplyDeleteमीडिया के इस नये अवतार की जितनी भी तारीफ़ हो कम है, किंतु सोचता हूँ कि इस अवतार की पहुंच इतनी कम क्यों है कि ये सीमित होकर रह गया है महज मेट्रो तक...छोटे शहरों की रुचिकाओं और आरुषियों का क्या?
ReplyDeletewell done --- Rathore is a blight on humanity
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