Friday, January 8, 2010

साहस की ब्लॉगिंग

बेनामी ब्रैगिंग (bragging - डींग मारना) करते हैं। छद्म नामधारी बूंकते हैं विद्वता। कोई ऑब्स्क्योर व्यक्ति रविरतलामी को कहते हैं मरियल सा आदमी। साहस ही साहस पटा पड़ा है हिन्दी ब्लॉग जगत में। यह सियारों और कायरों की जमीन नहीं है। (हम जैसे जो हैं; वे) बेहतर है कि वे छोड़ जायें, बन्द कर लें दुकान।

the_brave_suffer_little_the_coward_muchसुबुक सुबुक वादी ब्लॉगिंग होती है एक छोर पर और स्पैक्ट्रम के दूसरे छोर पर है साहसवादी ब्लॉगिंग। दो छोर और जो बीच में रहे सो कायर!

साहसी लोगों के झुण्ड के झुण्ड हैं। कौन कहता है कि सिंहों के  लेंहड़े नही होते। यहां आओ और देखो। ढेला उठाओ और दो शेर निकलेंगे उसके नीचे – कम से कम। साहस के लिये चरित्र फरित्र नहीं चाहिये। की-बोर्ड की ताकत चाहिये। टाइगर कागज से बनते हैं। सिंह की-बोर्ड से बनते हैं। 

मैं सोचता था कि ब्लॉगिंग अपने में सतत सुधार का प्रतिबिंब है। जब आप अपने आप को दर्शाते हैं तो सतत अपना पर्सोना भी सुधारते हैं। यह – आप जो भी हैं – आपको बेहतर बनाती है। यह आपको बेहतर समय प्रबन्धन सिखाती है। यह आपको बेहतर संप्रेषण सिखाती है। यह आपका अपना कण्टेण्ट बेहतर बनाती है; संकुचित से उदार बनाती है। अन्यथा कितना साहस ठेलेंगे आप?

साहस के लिये चरित्र फरित्र नहीं चाहिये। की-बोर्ड की ताकत चाहिये। टाइगर कागज से बनते हैं। सिंह की-बोर्ड से बनते हैं।


पर मैं कितना गलत सोचता था। कितनी व्यर्थ की सोच है मेरी। 

और मैं सोचता था कि मेरे कर्मचारी जब मुझसे नेतृत्व की अपेक्षा करते हैं, जब वे मेरे निर्णयों में अपनी और संस्थान की बेहतरी देखते हैं तो मुझमें नेतृत्व और निर्णय लेने के साहस की भी कुछ मात्रा देखते होंगे। पर ब्लॉगजगत की मानें तो उनका साबका एक कवर तलाशते फटीचर कायर से है। लगता है कि कितना अच्छा है कि मेरे सहकर्मी मेरा ब्लॉग नहीं पढ़ते। अन्यथा वे मेरे बारेमें पूअर इमेज बनाते या फिर हिन्दी ब्लॉगजगत के बारे में। :-)

सैड! यहां साहस की पाठशाला नहीं है। मैं साहस कहां से सीखूं डियर? कौन हैं करेज फेक्ल्टी के डीन? मुझे नहीं मालुम था कि ब्लॉग वीर लोग मुझे आइना दिखा मेरी कायरता मुझे दिखायेंगे। लेकिन क्या खूब दिखाया जी!

हर कायर (?!) अपने को टिप्पणी बन्द कर कवर करता है। या फिर एक टिप्पणी नीति से कवर करता है। मैने बहुत पहले से कर रखा है। अब तक उस नीति के आधार पर कोई टिप्पणी मुझे हटानी नहीं पड़ी (डा. अमर कुमार इसे पढ़ें - और मैने उनकी एक भी टिप्पणी नहीं हटाई है!)। पर क्या पता कोई मौका आ ही जाये। :-)   

Bullshit असल में यह और इस तरह की पोस्टें इण्टेलेक्चुअल बुलशिटिंग है। इन सब को पुष्ट करने वाले तत्व टिप्पणियों में है। टिल्ल से मुद्दे पर चाय के प्याले में उबाल लाना और उनपर टिप्पणियों का पुराने गोबर की तरह फूलना बुलशिटिंग है। आजकल यह ज्यादा ही होने लगा है। कब यह खत्म होगा और कब लोग संयत पोस्टें रचने लगेंगे?

यह कहना कि अंग्रेजी में भी ऐसा जम के हुआ है, आपको कोई तमगा नहीं प्रस्तावित करता। कायरता और साहस वर्तमान स्तर की हिन्दी ब्लॉग बहस से कहीं ज्यादा गम्भीर मुद्दे हैं। वे महानता, नेतृत्व और व्यक्तित्व निखार के मुद्दे हैं। वे यहां तय नहीं हो सकते। इन सब से बेहतर तो निशान्त मिश्र लिख रहे हैं हिन्दी जेन ब्लॉग में; जिसमें वास्तव में कायरता उन्मूलन और साहस जगाने वाली बातें होती हैं।

अन्यथा आप लिखते/ठेलते रहें, लोग जैकारा-थुक्कारा लगाते रहेंगे। आप ज्यादा ढीठ रहे तो बने भी रहेंगे ब्लॉगरी में, शायद सरगना के रूप में भी! पर आपके ब्लॉग की कीमत वही होगी - बुलशिट! । 
मैने पाया है कि मेरा ब्लॉग इण्टरनेट एक्प्लोरर में कायर हो जा रहा था। खुलता नहीं था। मैने इसे साहसिक बनाने के लिये टेम्प्लेट डी-नोवो बनाने का अ-कायर कार्य किया। पता नहीं, अब चलता है या नहीं इण्टरनेट एक्प्लोरर में। क्या आप बतायेंगे? मेरे कम्प्यूटर्स पर तो चल रहा है।

54 comments:

  1. अ-कायर का अर्थ कहीं आप साहसी से तो कन्फ्यूज नहीं हो रहे हैं न?? जस्ट चैक करना चाहता था और कोई खास बात नहीं. :)

    बाकी बाद में आकर टिपियाता हूँ.

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  2. Namaste --

    Some recent trends in HINDI Blogging
    has given me ot of sadness :-(

    &
    other, broader Q.s still trouble me
    the kind I've posted on my Blog today
    ( please do take a look Gyan bhai sahab & comment )

    Rest,
    this world will go on.......
    no matter what we say or think

    Keep Faith & stay steadfast in your views .

    Peace !
    - Lavanya
    p.s.
    Happy 2010 for you , Family & Friends from a Cold Cincinnati

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  3. क्याSSSS पाण्डेय जी? यह पोस्ट तो कहीं से भी आपकी नहीं लगती. इतना निराश मत करिए हमें. ब्लॉग-बहादुरी की ऐसी की तैसी. सच तो यह है कि तटस्थ रहकर ही गंगा साफ़ करने वाले ही साहसी नायक हैं न कि "Ganges sounds like a disease" के विरोध में आगज़नी करने वाले. सच यह है कि हम भारतीयों को गुस्सा बहुत आता है. इतनी तुनक-मिजाजी और लोगों में कम दिखती है. दो बातें:
    १. बेनाम होने में क्या बुराई है? बुराई होगी तो टिप्पणी में होगी. इसके उलट बेनाम टिप्पणी अच्छी भी हो सकती है. चोर छिपकर आते हैं मगर संत निकलस क्लाज़ भी छिपकर ही आते थे - इसलिए पहचान छिपाना अपने आप में बुरा नहीं है.
    २. संत कबीर की बात याद है न - मैं बूढा आपुन डरा, रहा किनारे बैठ.
    ३. अगर दुनिया के हर देश-काल के नायक-नायिकाओं में एक सार्वभौमिक गुण ढूंढना हो तो वह साहस ही है.
    ४. आप तो ज्योतिषियों के भी सरताज निकले, पहले से हिन्दी-ब्लोगिंग का भविष्य पता था इसलिए टिप्पणी-डिस्क्लेमर लिख रखा था.
    [कई (संस्कृति-रक्षक) ब्लोगर तो तब स्कूल में थे शायद]

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  4. कमाल है, साहस, कायरता और अ-कायरता सब मौजूद हैं पर दु:साहस को नहीं बुलाया ?

    यह तो भेदभाव हो रहा है ।

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  5. ब्लॉगजगत चारित्रिक खूबियों और कमजोरियों का दर्पण है ....
    अपनी अपनी सोच ...अपना अपना कायदा ...!!

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  6. अन्यथा आप लिखते/ठेलते रहें, लोग जैकारा-थुक्कारा लगाते रहेंगे। आप ज्यादा ढीठ रहे तो बने भी रहेंगे ब्लॉगरी में, शायद सरगना के रूप में भी! पर आपके ब्लॉग की कीमत वही होगी - बुलशिट! । ...........
    .................आज तो फिर आपकी लेखनी क्रांतिकारी मुद्रा में हैं .

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  7. आप की ब्लागीरी कम साहसी नहीं है।

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  8. जो मानव स्‍वभाव है और सारी दुनिया में चलता है .. वही बात हर जगत में चलती रहेगी जहां हमलोग रहेंगे .. उससे जीतकर निकलना ही पडता है लोगों को .. इसमें परेशानी कैसी ??

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  9. आप तो दुखी हो गये ,अब छोडिये भी ,ब्लाग जगत तो अपनें हिसाब से ही चलेगा .
    बेहतरीन पोस्ट.

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  10. नगाड़ों की आवाज में कहीं कोई शहनाई फिर्फिरायी है क्या ?

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  11. कई बार हमारा भी मन डगमगा चुका है.. कई बार सोच चुके हैं कि इतने दिनों तक अंग्रेजी में लिखते होते तो साल के पांच हजार ही सही, मगर कुछ तो कमाई होती रहती.. देखिए कब तक साहस दिखा कर उन साहसियों का मुकाबला करते रहते हैं..

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  12. आप ज्यादा ढीठ रहे तो बने भी रहेंगे ब्लॉगरी में, शायद सरगना के रूप में भी! पर आपके ब्लॉग की कीमत वही होगी - बुलशिट! ।

    I agree with u word by word.

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  13. पिछली पोस्ट से लगा बल्कि पहले भी लगा कि आप हिंदी ब्लोगिंग कि कुल माहौल से बहुत क्षुब्ध हैं.ये स्थिति दुखद है पर बेलगाम मंचों का ऐसा ही कुछ अहवाल रहता है.
    मैं शायद दुबारा आऊं प्रतिक्रिया के लिए.इस छोटी सी पोस्ट में बहुत बड़े और साफ़ अंदाज़ हैं.

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  14. पर, साहस की ये तो शुरूआत मात्र है. आगे खालिस एडवेंचरिज़्म भी दिखेगा, फैंटासी भी दिखेगी और दुःसाहस भी :(,

    पर, क्या ऐसे-ऐसों को नोटिस लिया भी जाना चाहिए?

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  15. शायद इसी अवस्था को देखकर कहा गया होगा
    "भौंके हजार हाथी चले बाजार"

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  16. हिंदी ब्लागिंग ने साहस के मायने बदल दिए हैं. यहाँ साहसी वही कहलायेगा जो किसी को गाली देकर निकल लेगा, वह भी जो अपनी तथाकथित कविता से किसी समुदाय विशेष को गाली देगा और वह भी जो उस कविता को कालजयी कविता बताएगा. यह सब करने के बाद शाम को चैट पर शेखी बघारेगा. यह कहते हुए कि; " देखा किस तरह से ऐसी-तैसी कर दी फलाने की."

    लेकिन मुझे तो एक ही बात पता है जो मैं डॉक्टर मैती के हवाले से जानत हूँ. लात चलाओगे तो लात चलाऊंगा..गाली दोगे तो गाली दूंगा...कोर्ट में तुम एक मुकदमा दायर करोगे तो मैं तीन कर दूंगा...सब कुछ करूंगा लेकिन तुमसे दर के यहाँ से नहीं जाऊंगा.

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  17. आप जैसा साहसी व्यक्ति एक अज्ञात टिप्पणीकार से डर गया? विश्वास नहीं होता...

    शुक्लजी को लम्बे दाँत वाला हसोड़.

    रतलामीजी मरीयल से व्यक्ति

    बेंगाणी कौआ, हत्यारा, नैपकिन

    चिपलूनकर साम्प्रयादिक और न जाने क्या क्या


    कह कर किसी ने क्या उखाड़ लिया इनका? कहने वाले आज पता नहीं कहाँ खो गए.

    जब तर्क खत्म होते है, अपशब्द शुरू होते है. अतः यह सब पराजय की निशानियाँ है.

    गीता की सुनें, बाकी सब बकवास करते है.

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  18. शिवकुमार मिश्र जी की टिप्पणी को मेरा भी मत समझा जाये (डरते-डरते) :)

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  19. 1. कारज धीरे होतु है, काहे होत अधीर।
    समय पाए तरुवर फलै, केतक सींचौ नीर।।
    **
    2. रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
    पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
    **
    2. जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
    चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।
    **
    3. कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन।
    जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन।।
    **
    4. सबै सहायक सबल कै, कोउ न निबल सहाय।
    पवन जगावत आग को, दीपहिं देत बुझाय।।
    **
    5. कही रहीम संपति सगें, बनत बहुत बहु रीत।
    बिपति-कसौटी जे कसै, सोही सांचे मीत।।
    **
    6. सर आपका यह आलेख पढ़ मन व्यथित हो दया। जब मेरा मन व्यथित होता है तो नीति के दोहों से कुध आत्म बल संयित करता हूं। अभी तो इतने ही मिले हैं। और मिलेंगे तो फिर आऊंगा।

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  20. और हां सोजय जी की इन बातों को मेरा णत है कि
    जब तर्क खत्म होते है, अपशब्द शुरू होते है. अतः यह सब पराजय की निशानियाँ है.

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  21. बहुत खरी बात लिखी है। मैं पूरी तरह सहमत होते हुए यह जोड़ना चाहूँगा कि कोई भी भी स्पेस खाली नहीं रह सकता। यह प्रकृति का नियम है कि गरम हवा यदि ऊपर ऊठती है तो आसपास की ठण्डी हवा उसका स्थान ले लेती है। इसी प्रकार ब्लॉगजगत में यदि अच्छे लोग नहीं आएंगे, अच्छॆ विचारों का प्रसार नहीं होगा तो बरे लोग यहाँ कब्जा जमाएंगे ही और गन्दे विचारों का बोलबाला होगा ही। बिल्कुल राजनीति की तरह इस दुनिया में भी यदि शरीफ़ लोग केवल किनारे खड़ा रहकर कोसना जारी रखेंगे तो माफ़ोया टाइप लोगों का कब्जा यहाँ भी होना तय है।

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  22. आजकल आप भी आठ दस पोस्टो के बाद एक इमोशनल पोस्ट डाल ही देते है .....खैर ...अब साहस की परिभाषाये बदल गयी है ..लोगो ने अपनी अपनी परिभाषाये वक़्त के मुताबिक खूंटी पर टांग ली है ..हम व्यक्ति विरोधी ज्यादा हो गए है .विचार विरोधी नहीं......पाखी में कही साहित्य के सन्दर्भ में आया था पर वो यहाँ भी सच है "कोई भी स्वंयसंभू बम आपसे लिपट जायेगा ओर फट जायेगा" ..पर ऐसे साहसी से ज्यादा दिक्कत नहीं है दिक्कत उन समझदारी भरी चुप्पियों से है जो न्यूट्रल का बोर्ड हाथ में लिए घूमती है ....यानी असाहसिक लोगो के निष्क्रिय होने से है .... शिव कुमार मिश्रा जब शब्दों की हिंसा के खिलाफ एक सार्व जनिक मंच का इस्तेमाल करते है ..वही साहस है ....... .

    हमें इस मुगालते में कतई नहीं रहना चाहिए के ब्लोगिंग समाज सुधार देगी या हिंदी की सेवा कर देगी .......इससे सिर्फ आप अपने को उलीच सकते है ओर अपनी वेवलेंथ का संवाद शुरू कर सकते है ...यूँ भी रिमोट की तरह इसका बटन भी आपके हाथ में है...जो अच्छा लगे पढ़िए ....
    ओर आखिर में बकोल संजय बेगानी ..."जब तर्क खत्म होते है, अपशब्द शुरू होते है.".... सौ बातो की एक बात

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  23. पहली जनवरी से हिन्दी ब्लाग जगत में लौटने की तैयारी थी| पिछले कुछ महीनो में सैकड़ो अंगरेजी लेख लिखे पर लगता था कि हिन्दी में ही सुकून मिलेगा मन को पर यहां का माहौल देखा तो उलटे पैर लौटना ही उचित समझा|

    बेनामी का आप्शन ब्लाग में रखने वाले यानी ब्लाग का कांसेप्ट लाने वाले काफी हद तक इसके लिए जिम्मेदार है| कल्पना करिए कि ये आप्शन होता ही नहीं शुरुआत से तो इतना कचरा नहीं फैलता| इसी तरह एग्रीगेटर सारे झगड़ो की जड़ बने हुए है| ये यदि नहीं होते तो इन झगड़ो को मंच नहीं मिलता और विघ्न संतोषियो को प्रश्रय नहीं मिलता|

    साल भर बाद फिर इस ओर आने की कोशिश करूंगा| हां, इस बीच आपको पढ़ना जारी रहेगा|

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  24. मुझे नहीं पता है की किसकी टिप्पणी से दुखी होकर आपने ये पोस्ट लिखी है लेकिन मैं इतना जानती हूँ की आप कोई भी काम सार्वजनिक तौर पर करते हैं तो चाहे अपने आप को पूरा भी झोंक दें उस काम में...आपको प्रशंसा के साथ निंदा करने वालों की भी कमी नहीं रहेगी! जो लोग खुद ऊपर नहीं उठ पाते वे दूसरों को नीचा दिखाकर ऊपर होने का सुख महसूस करते हैं!हमारे सिस्टम में जो ईमानदार हैं...वे लोग बेईमानों को एक आँख नहीं भाते! ऐसे लोग दूसरों को कभी खुलेआम कभी बेनामी तरीके से नीचा दिखाना चाहते हैं....लेकिन इसमें इतना उत्तेजित होने की क्या बात है? सूअर के सामने पकवान भी रखो तो वो गंदगी ही खाता है क्योंकि उसकी पसंद पकवान नहीं है! लोगों की बातों पर ध्यान न देकर अपने रास्ते पर बढ़ते रहना ही सबसे बड़ा साहस है...वरना आप लोगों को उनके इरादों में स्वयं ही सफल बना रहे हैं!

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  25. देव !
    आज आपका यह लेख ढाढस बंधा रहा है ..
    इस आशावाद के साथ कुछ रच-सा गया है ,अवधी में, कि
    हासिया केंद्र तो बनेगा ही ---
    '' तिल्मिलैहैं सब अउर यक पोस्ट मा गारी सुनैहैं..
    बनिके अगुवा साहसी(?) भगुवन से वै ताना देवैहैं..
    वहि समय कायर सरिस(?) कुछ हासिया पै चला जैहैं ..
    फिर से घूमे चक्र भैया ! हासिया पै सबै आइहैं ..
    हासिया जब केंद्र ह्वै जाये तो वै अगुवा लजैहैं ..
    ठोकिहैं खोपड़ी मगर फिर चैन यई कतहूँ न पैहैं .. ''
    ............ आभार ,,,

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  26. @संजय बेंगाणी जी की बात से सहमत। ऐसे लोगों की ओर ध्यान ही ना दे...

    गंगा सफाई अभियान जिस तरह चल रहा है उसी की तरह एक दिन यह गंदगी भी साफ हो जाएगी।

    सिद्धु की तर्ज पर एक बात’))
    गुरू.....
    कुत्ता कभी भौंकना नही छोड़ सकता
    लोमड़ी कभी चालाकी नही छोड सकती
    शेतान अपनी शेतानीयां नही छोड़ सकता
    लेकिन हम तो इंसान है....
    फिर हम अपनी इन्सानियत क्यो छोड़े...;))

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  27. हिंदी ब्लॉगर कायर हैं और कायर ही रहेगा क्युकी वो एक कायर समाज कि देन हैं जहां सच को झुठलाया जाता हैं , तर्क को कुतर्क कहा जाता हैं जहां बलात्कार को हास्य समझा जाता हैं और टिपानी आलेख पर नहीं व्यक्ति पर होती हैं । सच कहूँ कि अगर आप डरे ना तो आप बहुत एन्जॉय कर सकते हैं । निर्लिप्त हो कर देखिये लोग बिना मुलम्मे के कितने "सुंदर / विभत्स्य " लगते हैं । निर्लिप्त हो कर जो लिखता और टीपता हैं वो दूसरो केअपने ऊपर चीखने और चिल्लाने पर मुस्कुरा सकता हैं । हां ये सब व्यक्तिगत आक्षेप कुछ दिन के हैं । ख़ास कर महिला पर क्युकी जल्दी ही संसद मे बिल पेश हो रहा हैं जहां सेक्सुअल हरासमेंट मानसिक भी मन जायेगा , उसदिन सब हिसाब मै जरुर पूरे करुगी क्युकी डरती नहीं हूँ ना । हर वो पोस्ट जो किसी भी नारी को मानसिक रूप से यंत्रणा देगी वो यौन शोषण मै ही आयेगी , दावा हैं मेरा उस दिन जरुर मान हानि का दावा करने वाले और जेंडर बायस ना जानने वाले भी जान जायेगे ये क्या होता हैं

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  28. " बलात्कार को हास्य समझा जाता हैं" रचना जी की बात पर आपत्ति दर्ज करते हुए कहता हूँ यहाँ कही कोई भी बलात्कार को हास्य नहीं समझता!

    रचना जी की ये टिप्पणी ,टिप्पणी से बढ़ कर कही और कुछ है ,भाई जिनसे सम्बद्ध है कान खोल कर पढ़ ले ( डरते डरते )!

    बाकी के मामलो से मेरा कोई सरोकार नहीं है बस "मै बलात्कार को हास्य नहीं समझता" !

    जो बेनामी टिप्पणी करता है अव्वल तो वो खुद ही डरा होता है तो उससे क्या डरना !

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  29. पता नहीं कायर, अकायर और बहादुर कौन है और वे क्या करते हैं, लेकिन ब्लॉग में स्वतंत्रता है और अपनी बात बेधड़क कही जा सकती है। दूसरे लोग प्रभावित हों या अप्रभावित। खुद को संतोष मिलता है- मेरा तो अनुभव ऐसा ही है।

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  30. ....गुरु जी अगर आज्ञा दीजिये....
    ....तो "साहसी" ब्लोग्गरों पर इतिहास रच देंगे....
    ...कोई मूहं तो उठा कर देंगे एक हास्य कविता चेप देंगे.....

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  31. बड़ीं ऊंची बातें कह दीं सिरीमानजी ने।

    वैसे मेरी समझ में ब्लॉगिंग हमारी अभिव्यक्ति का माध्यम ही तो है। जो हम हैं उसको बदलने का आभास खुद को और दूसरों को भले दे दे लेकिन ब्लॉगिंग हमारे मूल चरित्र को थोड़े ही बदल देगी। हम जैसे होंगे वैसे वैसे ही तो चीजों/ बातों को ग्रहण करेंगे। वैसे ही तो प्रतिक्रिया करेंगे। हमारी तर्क प्रणाली भी तो वही होगी जैसा हमारी समझ होगी।

    एक ही बात को इसी लिये तो लोग अलग-अलग तरह से ग्रहण करते हैं और उसके अनुसार प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं।

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  32. रचना दीदी,
    ______________________________________
    १-पहले तो मैं स्पष्ट कर दूं की हिन्दी ब्लोगर कायर नहीं है.
    २-आप इस तरह कृपया पूरी जमात को अपमानित न किया करें .
    ३-ये नारीवाद और पुरुषवाद के झगड़ों में ब्लागर को न घसीटा करें .
    ब्लाग जगत में बहुत से पुरुष और नारी ब्लागर हैं
    लेकिन उनका आपस में कोई मन भेद नहीं है
    .इस तरह की बांतों से अलगाव महसूस होनें लगता है ,यह उचित नहीं है.
    हम केवल और केवल भारतीय हैं और कुछ नहीं .
    ४-केवल कानून बन जाने से मानसिकता नहीं बदलती.
    ५-जो अच्छा है ,वह सर्वदा अच्छा है.
    ____________________________________________

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  33. आप की इस पोस्ट से दु:खी हूँ। केवल हिन्दी ही नहीं किसी भी भाषा की ब्लॉगरी समाज को रिफ्लेक्ट करती है। विधेय और निषेध दोनों समाज में पाए जाते हैं।समाज ही क्यों समूची सृष्टि ही ऐसी है। नकारात्मकता से पाला पड़ने पर दु:ख कहना और साझा करना आप का अधिकार है लेकिन क्या इसे वाकई इतना महत्त्व दिया जाना चाहिए?
    निषेध और नकार समान धर्मी भाव आकर्षित करते हैं। वैसा ही सकार और विधेय के साथ होता है। वरिष्ठ और शीर्षस्थ ब्लॉगर होने के कारण आप का दायित्त्व अधिक है। ...
    मॉडरेशन चालू होने की दशा में नकारात्मक टिप्पणियाँ प्रकाशित ही क्यों की जाती हैं? आप उसे अपने पास अवश्य सुरक्षित रखिए - साक्ष्य के रूप में लेकिन उनका प्रकाशन तो न कीजिए। उनसे क्या लाभ? हानि अवश्य होती है। मुझे पूरा यकीन है, पता है कि आप जैसे या रवि जी जैसे व्यक्ति को अपने को पीड़ित प्रदर्शित कर सहानुभूति बटोरने की कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसी टिप्पणियाँ प्रकाशित ही क्यों की जाती हैं?

    जिन लोगों ने मॉडरेशन नहीं लगाया है वे भी बाद में उन्हें हटा सकते हैं। चिह्न छोड़े जा सकते हैं ताकि साक्ष्य रहे।
    आशा है इन छोटी बातों को समझेंगे। नकारात्मक टिप्पणियाँ यहाँ भी आई हैं, क्यों न शुरुआत इसी पोस्ट से हो !

    आप की इस पोस्ट की बस एक उपलब्धि है - पंकज अवधिया जी ने हिन्दी में पोस्ट करने को एक और साल स्थगित कर दिया है। इस निर्णय से आप प्रसन्न हैं ?
    अवधिया जी, बस एक फैन के लिए अपने निर्णय पर पुनर्विचार की कीजिए। हाँ, जंगल जंगल भटकने वाला व्यक्ति इतना छुईमुई होगा, इसकी कल्पना नहीं की थी।

    आप कह सकते हैं - वरिष्ठ माई फूट। दायित्त्व माई फूट। समझ माई फूट। क्या मैंने ठीका ले रखा है। जैसा समझ आएगा वैसा लिखूँगा। ऐसा निर्णय लेने के लिए आप स्वतंत्र हैं लेकिन मैं उसे 'बुल शिट' कहूँगा।
    अगर वाकई ये हाल है तो मैं कहूँगा 'माई फूट'- इस टिप्पणी को प्रकाशित न करिए। आप की मर्जी है। लेकिन यह निषेध ठीक नहीं है। मैं अंतर्विरोधी लग रहा होऊँगा लेकिन यह 'बुल शिट' मुझे कहने योग्य लगा।

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  34. सर आपके ब्लागरी के जज्बे को सलाम करता हूँ . आप भी साहस के साथ काफी दिनों से ब्लागरी कर रहे है . शेर हमेशा शेर की चाल से चलता है ... आभार

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  35. ज्ञानदत्त पाण्डेय जी,लगता है कि आप किसी खास टिपण्णी से आहत हुये है, ओर यह अनामी टिपण्णी वाले वही है जो अपने बाप का नाम भी नही जानते, क्योकि इन्हे किसी की भावनाओ से कोई मतलब नही, कि किसी को ठेस पहुचेगी या दुख पहुचेगा.आप मस्त रहे ओर अपना लिखते रहे.

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  36. सुश्री आती हैं जहां प्रदूषण फैलता है वहां -यहाँ तनु श्री ने फैलने से रोक दिया -साधुवाद !

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  37. इस तरह की बेनामी टिप्पणियाँ विभिन्न कम्पनियों के लोग ब्लॉग जगत में एक दूसरे के ऊपर डालते रहते हैं । निश्चय ही अपने उत्पाद को बेहतर दिखाने के लिये दूसरे को नीचा दिखाना लोगों को ठीक लगता है पर इस समुद्र में बेनामी होने का क्या लाभ ? अच्छा हो स्तरीय टिप्पणियाँ लिखें और हिन्दी ब्लॉग को एक नया रूप दें । मैं तो अपने ब्लॉग के ऊपर लिखी हुयी टिप्पणियों से सदैव ही लाभान्वित होता रहा हूँ और भविष्य में भी यही अपेक्षा करता हूँ ।

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  38. .
    .
    .
    आदरणीय ज्ञान दत्त पान्डेय जी,

    आपकी चिन्ता जायज है पर इतना विचलित होने से कैसे काम चलेगा।

    कितना सार समेट दिया है आदरणीय अनूप शुक्ल जी ने इस कमेंट में...

    वैसे मेरी समझ में ब्लॉगिंग हमारी अभिव्यक्ति का माध्यम ही तो है। जो हम हैं उसको बदलने का आभास खुद को और दूसरों को भले दे दे लेकिन ब्लॉगिंग हमारे मूल चरित्र को थोड़े ही बदल देगी। हम जैसे होंगे वैसे वैसे ही तो चीजों/ बातों को ग्रहण करेंगे। वैसे ही तो प्रतिक्रिया करेंगे। हमारी तर्क प्रणाली भी तो वही होगी जैसा हमारी समझ होगी।
    एक ही बात को इसी लिये तो लोग अलग-अलग तरह से ग्रहण करते हैं और उसके अनुसार प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं।


    फितरत तो नहीं बदलेगी किसी की भी, वो भी महज इसलिये कि बंदा ब्लॉगर है। जैसी समझ और अकल होगी वैसी ही बंदा बात करेगा।


    वैसे मेरा एटीट्यूड कुछ इस तरह का है...इस तरह की हरकतों के बारे में...

    लेकिन मुझे तो एक ही बात पता है... लात चलाओगे तो लात चलाऊंगा(और वहाँ प्रहार करूंगा जहाँ लगते ही मुँह से झाग निकलने लगेंगे तुम्हारे)...गाली दोगे तो गाली दूंगा(अपने स्टाईल में, संसदीय भाषा के प्रयोग के साथ)...कोर्ट में तुम एक मुकदमा दायर करोगे तो मैं तीन कर दूंगा...सब कुछ करूंगा लेकिन तुमसे डर के यहाँ से नहीं जाऊंगा. (आदरणीय शिव कुमार मिश्रा जी से चुराया इसे)


    एक बात और जो कुछ ही माह के ब्लॉगजगत के साथ से मैं समझ पाया हूँ वह यह है कि जीवन के बाकी क्षेत्रों की तरह यहाँ पर भी Mediocrity ने हल्ला बोला हुआ है Excellence पर... झुंड बनाकर...डर यही है कि सारे श्रेष्ठ लोग हताश हो बाहर न चले जायें और एक क्षत्र साम्राज्य न बन जाये Mediocrity का...

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  39. रचना जी का आक्रोश तो फिर भी समझ में आ रहा है यहां, लेकिन चंद तिप्पणी-रुपी भावनात्मक उद्‍गारों पर सच कहूं तो हंसी आ रही है ज्ञानदत्त जी।

    उम्मीद है आपके इस पोस्ट से कुछ आँखें तो खुलेंगी कम-से-कम।

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  40. ................................................................
    चुट-पुट , चट-पट , छुट-पुट ..
    बातें आयीं घुट घुट !!!
    ................................................................
    (पूर्वोक्त) ''पंचसूक्तिम् ध्यातव्यम् ''
    .................................................................
    @ गिरिजेश राव साहेब ,,,,
    ० आप जो कह रहे हैं , क्या वह व्यापकता को वहन करता है ?
    ० ऐसी पोस्टें 'निजी' नहीं होतीं , इनका सम्बन्ध लोकाचार में हो रही हलचलों
    से होता है . ये हलचलें आपको '' सहानुभूति बटोरने की कोई आवश्यकता '' से मेल खाती
    दिखती हैं ? ऐसा क्यों हो रहा है ?
    ० सामयिक दायित्व का निर्वाह रवि जी , ज्ञान जी , प्रभृति बड़े ब्लोगर नहीं करेंगे
    तो कौन करेगा ? 'छुईमुई ' - धर्म कहाँ से दिख रहा है ?
    ० इतना विजड़ित क्यों हैं आर्य ?

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  41. मैं यह सोच रहा हूँ कि आप काहे ब्लॉगिंग को ह्यूमन एलीमेन्ट के रॉटन ऑर्गन्स के उपचार का मैजिक बुलेट समझे? काहे ऐसी भूल?

    बाकी अनूप जी कह ही दिए हैं जो मैं कहने की सोच रिया था! :)

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  42. केवल एक प्रश्न करना चाहूंगा कि क्या शालीनता कायरता की निशानी है?

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  43. रात के पौने बारह बज रहे हैं। सोचता हूँ चाय पी ही लूँ....श्रीमती जी इस वक्त तो चाय बना कर देने से रहीं...खुद ही बनाना पडेगा.....कम्बख्त ये चाय की पत्ती नहीं मिल रही....उपर से रसोई गैस लुपलुपा रही है शायद खत्म होने वाली है। सामने टीवी पर लापतागंज चल रहा है।

    अब ऐसे में क्या तो टिप्पणी करूँ। काफी कुछ तो सब लोग लिख ही दिये हैं। हां इतना जरूर कहूंगा कि ब्लॉगिंग में कोई बात डट कर कहने का साहस कम होता जा रहा है। जो कुछ हो रहा है वह साहस नहीं चिरकुटाहस कहा जा सकता है, किसी को धमका दो, किसी को कुछ भी बोल दो, किसी को भी आँख दिखा दो....ये सब चिरकुटाहस के लक्षण हैं।

    फिलहाल ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति का माध्यम न होकर लखनउ के 'दो बांके' की याद दिला रहा है।

    कई दौर आते रहे हैं ब्लॉगिंग में और हर दौर जिस तरह तेजी से आता है उसी तरह चला भी जाता है। रह जाता है ब्लॉगिंग का प्लेटफॉर्म
    जिसपर एएच व्हीलर है, टीसी है, जेबकतरा है, कुत्ता है, खानपान स्टॉल है.....और हां कहीं कहीं पर थूक खंखार भी है।

    जरूरत है इस ब्लॉगिंग के प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने की....न कि प्लेटफॉर्म पर बिस्तर लगा कर सोने की...कि हमारी गाडी (विवादों वाली) आएगी तो हम इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल तब करेंगे।

    चाय की महक आ रही है, शायद उबाल आ गया है....चलूँ :)

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  44. अब बात यहाँ तक पहुँच गई
    रचना जी
    इधर जो आप कह रहीं है सुसंगत नहीं लगता
    खैर आप को जिसे जो कहना है कहिये पर सामूहिक
    उपाधि अलंकरण गलत था है और रहेगा

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  45. @ अमरेन्द्र जी,
    महोदय, साधारण समझ और शब्द शक्तियों को ध्यान में रखते हुए एक बार मेरी टिप्पणी पुन: पढ़िए। सम्भवत: आप समझने में जल्दबाजी कर गए हैं :)

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  46. क्या बात है जी, मैंने तो सिर्फ 'दो बांके' को याद किया था और देख रहा हूँ बांके ही बांके निकल रहे हैं...यानि की 'मल्टीपल बांकेस' :)

    गिरिजेश जी, 'दो बांके' कहानी आप ही के शहर लखनउ की है....ये अलग बात है कि आजकल 'थ्री इडियटस' का जोर है :)

    आपकी टिप्पणी मुझे कुछ तल्ख लग रही है लेकिन सच्चाई के करीब है। मैं इस बात से सहमत हूं कि फिजूल की केवल बतकही बढाने वाली टिप्पणीयों को प्रकाशित नहीं करना चाहिये। कुछ टिप्पणियां सिर्फ कोंचने का काम करती हैं, चोंकने का काम करती हैं, बस इससे ज्यादा उनकी अहमियत नहीं होती। लेकिन वही टिप्पणियां जब बेमतलब ही विवाद का रूप ले लेती हैं तो बकौल फुरसतिया एक तरह का चेन रिएक्शन शुरू हो जाता है और बात असल मुद्दे को छोड कुछ और ही डगर पकड लेती है।

    तो भईया, हम भी इस तरह की टिप्पणीयों के प्रकाशित होने पर खुश नहीं हैं, लेकिन जब बात किसी को निजी तौर पर नाखुश करने के लिये कही गई हो तो यह ब्लॉगस्वामी का भी दायित्व बनता है कि वह एसे लोगों को बेनकाब करे अन्यथा यह गंदगी और पसरेगी ही।
    आप जिस रास्ते जा रहे हैं, साथ मे और लोग भी हैं और कहीं रास्ते में कोई गंदगी दिख गई तो सहसा मुंह से निकल ही आयेगा...जरा बच के।

    बाकी तो कायर, शायर, सटायर, रिटायर सब चलते ही रहता है ब्लॉगिंग में.... 'बांके ब्लॉगिंग' इसी को कहते हैं। ब्लॉगिंग में हो रहे तमाम जूतमपैजार को देख, 'दो बांके' के कहानीकार भगवतीचरण वर्मा अपनी कहानी का सिक्वल 'बाँके ब्लॉगिंग' ही रखते :)

    फिलहाल यह रहा लिंक - कहानी 'दो बाँके'

    http://www.bhartiyapaksha.com/?p=6822

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  47. @ गिरिजेश राव
    आर्य ! यहाँ भी लॆठड़ंा - शैली :)

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  48. क्या बात हो रही है कुछ समझ नहीं आया ..शायद अल्पज्ञानी हूँ

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  49. ये रही आपकी इस कंट्रोवर्सियल पोस्ट पर पचासवीं टिपण्णी...डा. अनुराग ने जो लिख दिया उसमें बिना कोई शब्द काटे या जोड़े वो की वो बात ही आपको कहना चाहता हूँ...मेरे मन की बात डाक्टर साहब पहले लिख गए क्या करूँ...विचलित न हों वो भी छोटी मोती बातों से...छोडिये चिंता... आर्य पुत्र उठाईये गांडीव और चलाइये तीर...फिर से.
    नीरज

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  50. ब्‍लॉग जगत में यह पोस्‍ट 'एब्‍स्‍ट्रेक्‍ट पेण्टिंग' की तरह उल्‍लेखित की जाएगी।

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  51. ब्लागर कायर नही है,वो मतलबी है...उसे टिप्प्णियो की ज्यादा चिन्ता है और ऐसे कई ब्लागर जिनकी पोस्ट्स मे कुछ भी नही होता, टिप्प्णियो के सैकडे लगाती है....ऐसे ब्लागर इसके लिये नही लिखते कि ब्लागिग उनकी सोच सुधारेगी या उन्हे उदार बनायेगी...और इस लिये इन्हे साहस से ज्याद प्यार भी नही है...

    रीयल ज़िन्दगी भी तो यही सिखाती है न? कभी हम नेताओ से डरते है, कभी गुन्डो से..लेकिन रीयल ज़िन्दगी मे भी हम ’हीरोज’ ढूढते है और मेरे जैसे ब्लागर यहा भी आपके कर्मचारियो की तरह ही आपसे एक नेतृत्व की अपेक्षा करते हैं...

    बाकी इस लाइन से १००% सहमत..
    "अन्यथा आप लिखते/ठेलते रहें, लोग जैकारा-थुक्कारा लगाते रहेंगे। आप ज्यादा ढीठ रहे तो बने भी रहेंगे ब्लॉगरी में, शायद सरगना के रूप में भी! पर आपके ब्लॉग की कीमत वही होगी - बुलशिट!"

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  52. Well,I am a writer involved in the world of English writing.Turned into a hardcore netizen just few years back.I am associated with many prominent English sites including blog sites.But let me tell you I have never received remarks in anonymous manner on any of these sites.It's a honest confession.Yes,there have been heated comments with lots of derogatory remarks and cheap insinuations but we rarely crossed swords in anonymous way.

    A mere glimpse at the remarks posted here show that people have not learnt how to use the technology.I am really sad and disappointed over the state of affairs prevalent in the world of Hindi blogging.Ironically,call it destiny,this post of Mr Pandey has appeared at a point of time when I was about to make some contribution in the world of Hindi blogging.It appears that I need to reconsider.In fact,in the very beginning,my some comments have desettled some Hindi bloggers. I have never run away from the battlefield and I will leave no stone unturned in teaching them a lesson or two in the most fitting manner if they ever dare to display the bogus mindset.That will be my attitude if ever I entered into Hindi blogging landscape.

    I am of the opinion that there should be no abuse of freedom of expression.Period.If you have guts then come fight like a hero.What's the point in back-stabbing ?

    So Mr Pandey,my advice to you is that just keep writing in your natural way,bothering least about such unwanted reamrks.It's not about setting good standards.It's about the huge loss.Many will be denied the chance to read good material.I hope you get the message right.Also just show me an age wherein good people outnumbered the wrong ones ? I don't know what was the ratio in Tretayuga but I know quite well that there were just five pandavas against 100 kauravas in Dvapar!! Much has not changed since then.Time to sing "All is well",isn't it ?

    Yours,
    Arvind K.Pandey

    Email: akpandey77@gmail.com

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  53. "Success is not final,failure is not fatal: it is the courage to continue that counts."

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय