tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post7657757935489030421..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: जीवन की त्रासदी क्या है?Gyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger34125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-66238130086171037492010-04-02T08:33:18.428+05:302010-04-02T08:33:18.428+05:30कुछ-कुछ यह बात आयी थी यहाँ भी, और आप टीप भी आये है...कुछ-कुछ यह बात आयी थी यहाँ भी, और आप टीप भी आये हैं यहाँ - http://ramyantar.blogspot.com/2010/03/blog-post_19.html<br /><br />बाकी, हम तो पढ़ते-गुनते ही बिता देते हैं वक़्त ! तब तक आपकी दूसरी पोस्ट आ जाती है, और फिर वही चक्र !Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-55026798428726712232010-03-29T00:56:59.255+05:302010-03-29T00:56:59.255+05:30इस पोस्ट ने दो दर्द दिये, पहला तो आपकी पोस्ट से मि...इस पोस्ट ने दो दर्द दिये, पहला तो आपकी पोस्ट से मिला । यूँ ही कहावतें नहीं बनी हैं कि, "समझदार का ही मरण होता है"। या फ़िर कबीर की सूक्ति,<br />सुखिया सब संसार है खावै अरू सोये,<br />दुखिया दास कबीर है जागे अरू रोये। <br /><br />जो भी जीवन की त्रासदी को समझा वो पल पल अपने को असहाय देखते और अपने विचारों/कर्मों के अन्तर्विरोध में जीने को अभिशप्त है। <br /><br />दूसरा झटका अनीताजी की टिप्पणी ने दिया,<br /><br />"त्रासदी ये है कि आप अब भी खुद को अपनी समस्त ताकतों और कमजोरियों के साथ ऐक्सेप्ट नहीं कर पाये हैं, यानी की अभी भी किशोरावस्था चल रही है"<br /><br />उफ़, जब से ये पढा है मन शान्त नहीं हो पा रहा है। इसके बाद तो अब गालिब का अशार,<br /><br />हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,<br />बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फ़िर भी कम निकले...<br /><br />गालिब की जिस छटपटाहट को मासेज ने जीने का फ़लसफ़ा बनाया, अनीताजी के एक वाक्य ने उसको हिला के रख दिया है।Neeraj Rohillahttps://www.blogger.com/profile/09102995063546810043noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-33817525035757971472010-03-27T23:16:38.926+05:302010-03-27T23:16:38.926+05:30हमारी यही तो त्रासदी है, कि सब कुछ जानते-समझते हुए...हमारी यही तो त्रासदी है, कि सब कुछ जानते-समझते हुए भी हम गलतियां करते हैं.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-71182097590651160312010-03-27T21:54:10.437+05:302010-03-27T21:54:10.437+05:30ईर्ष्या अगर अच्छॆ काम से हो तो हम तरक्की भी कर सकत...ईर्ष्या अगर अच्छॆ काम से हो तो हम तरक्की भी कर सकते है, जेसा कि कोई बच्चा अपने स्कुळ के साथी से इस लिये ईर्ष्या करता है कि उस के नम्बर ज्यादा आ गये, तो मै उस से ज्यादा मेहनत करुं ओर अच्छॆ नमबर लाऊंराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-56698226864176945242010-03-27T16:43:54.643+05:302010-03-27T16:43:54.643+05:30ईर्ष्या से बचना बहुत मुश्किल है. पर प्रयास जारी रख...ईर्ष्या से बचना बहुत मुश्किल है. पर प्रयास जारी रखना भी कोई कम बड़ी बात नहीं है.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-45885969915580397252010-03-27T11:12:22.057+05:302010-03-27T11:12:22.057+05:30वैचारिक ताजगी लिए हुए रचना विलक्षण है।वैचारिक ताजगी लिए हुए रचना विलक्षण है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-62246499743255666682010-03-27T02:18:50.163+05:302010-03-27T02:18:50.163+05:30आपको क्या कहें। आपकी दशा कुछ ऐसी है -
नासहा मुझको...आपको क्या कहें। आपकी दशा कुछ ऐसी है -<br />नासहा मुझको न समण्झा, जी मेरा घबराय है।<br />मैं उसे समझूँ हूँ दुश्मन, जो मुझे समझसय है।<br /><br />फिर भी कहने से रोक पाना मुश्किल हो रहा है -<br />है वही मुश्किल, जिसे इन्सान मुश्किल मान ले,<br />मन के जीते जीत है, मन के हारे हार है।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-39470703183469218712010-03-27T01:33:20.044+05:302010-03-27T01:33:20.044+05:30ये है बढ़िया पोस्ट !
बाकी सोचता हूँ.ये है बढ़िया पोस्ट ! <br />बाकी सोचता हूँ.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-44970652146759249522010-03-27T01:05:51.222+05:302010-03-27T01:05:51.222+05:30@अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
"बंधुवर मंत्र और शेर...@अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी <br />"बंधुवर मंत्र और शेर में बड़ा अंतर होता है .. <br />मंत्र के अर्थ में बेहतर होता कि गायत्री की सूर्य - शक्ति की इन्गति होती .."<br /><br />यहाँ मेरा अर्थ किसी ऊर्जापूर्ण वाक्य से था.. जब भी मुझे ऊर्जा की जरूरत हुई है मुझे हमेशा इस शेर ने ऊर्जा से ओतप्रोत किया है सो मेरे लिए तो यही मंत्र है.. मंत्र का लिटरल मीनिंग यही होता होगा, शायद.. <br /><br />आपकी बाकी बातो से सहमत... <br /><br />ज्ञान जी को इच्छा शक्ति ढूंढते देखा तो लगा कि वो सब कुछ बता दूं जो मेरे कभी काम आया है|<br /><br />आजकल हवा में उदासियाँ छायी है, मुझे लगा कि आज मुझे मेरा हीरो पुकार रहा है इसलिए हो सकता है जल्दिया गए हो.. :) बाकी आप भी इस मंत्र को इस्तेमाल में लाये और मैं गायत्री मंत्र को ट्राई मारता हूँ.. :)<br /><br />शुभ रात्रि !!Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)https://www.blogger.com/profile/01559824889850765136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-52568203781287477642010-03-27T00:05:02.487+05:302010-03-27T00:05:02.487+05:30पर मैं अपना जीवन मुठ्ठी में से झरते रेत की भांति क...पर मैं अपना जीवन मुठ्ठी में से झरते रेत की भांति क्षरित होते देखता हूं। इससे बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है।<br />रेत सा झरता जीवन त्रासदी?सिर्फ़ इस लिए कि मानव जन्म, उच्च कुल, विद्या और धन की पर्याप्त उपलब्धता और पर्याप्त अभाव मिले हैं। मतलब अगर ये सब न होता तो जीवन का रेत सा झरना ठीक था?<br />त्रासदी ये नहीं कि आप कमजोर प्राणी हैँ( आप का अपना आंकलन), त्रासदी ये है कि आप अब भी खुद को अपनी समस्त ताकतों और कमजोरियों के साथ ऐक्सेप्ट नहीं कर पाये हैं, यानी की अभी भी किशोरावस्था चल रही है।Anita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-38989144805441868212010-03-26T22:47:11.529+05:302010-03-26T22:47:11.529+05:30@ निाशांत मिश्र -
मैं प्रयोग कर रहा था। और डिस्का...@ निाशांत मिश्र - <br />मैं प्रयोग कर रहा था। और डिस्कार्ड करने में आपकी टिप्पणी काम आई!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-58421173696343910482010-03-26T22:35:19.132+05:302010-03-26T22:35:19.132+05:30देव ,
बात शुरू करूँगा हिमांशु भाई के दो पोस्ट पहले...देव ,<br />बात शुरू करूँगा हिमांशु भाई के दो पोस्ट पहले के टीप - वाक्य से ---<br />'' आप जब अपने से बतियाते होंगे, कितना खूबसूरत होता होगा वह ! स्वगत, पर <br />जीवनगत ! व्यक्तिमत्ता के ऊंचे शिखर को छूता हुआ घोर निर्वैयक्तिक ! '' <br />आपके इस आत्मावलोकन के क्षितिज की व्यापकता का प्रमाण अलग से क्या दिया जाय !<br />'' त्रासदी '' पढ़ कर हम उपराम होते है , विरेचन होता है हमारा , ''कैथारसिस'' होता है , यह <br />त्रासदियों का करुणात्मक-लोकास्रयी धर्म है !<br />अतः '' नही तो लिखिये न.. अपना पैशन खत्म मत करिये.. :) '' - जैसी बात से मेरा इत्तेफाक <br />नहीं है .. मैं कहूँगा की लिखिए , अरण्य-रोदन नहीं है यह , जाग्रत - मनीषा का स्व-चिंतन है यह !<br />जहां स्व की स्फीति स्वेतर है ! <br />.<br />मैं व्यक्तिगत तौर से बहुत लाभान्वित हो रहा हूँ , आपकी इन पोस्टों से .. सबसे ज्यादा आज हुआ ..<br />जैसे , आपके शब्दों का संबोध्य मैं ही हूँ ! ( खुद के इतराने का मौक़ा क्यों जाने दूँ .... :) .......... ) <br />.<br />@ जो समझ में आता है – और हाथ की लकीरों सा साफ साफ दीखता है; कि मैं कहीं कमजोर प्राणी हूं। <br />पर्याप्त इच्छा शक्ति की कमी है मुझमें।<br /> ------ इसे स्वीकारने के लिए जिस दुर्लभ इच्छा-शक्ति की जरूरत होती है , वह आपमें है , अब आगे मुझे इसकी <br />कोई कमी नहीं दिख रही है ! <br />@ कहां मिलती है इच्छा शक्ति मित्र?<br />--------- कुछ ऐसा ही मैं भी मांग रहा हूँ , पर कहाँ मिलता है ! अब लग रहा है 'निर्वेद' से ही मिलेगी यह शक्ति !<br />यह साधना एकांत ही मांगती है शायद ! साधना आभ्यंतर की पर बाह्य से निरपेक्ष नहीं ! <br />पक्का है फूटेगा सुरुज का सोता ! <br />'' विकसता सुख का नवल प्रभात '' ! <br />.<br />.........................................................................................................................................................<br />@ Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) <br />बंधुवर मंत्र और शेर में बड़ा अंतर होता है .. <br />मंत्र के अर्थ में बेहतर होता कि गायत्री की सूर्य - शक्ति की इन्गति होती ..<br />...................@ नही तो कुछ पढिये.. काफ़ी दिनो से आपने किसी किताब के बारे मे नही लिखा..<br />अरे यह सब जीवन की जिस किताब से आ रहा है , वह किताबी पढ़ाई से अलग मायने रखती है मित्र ! <br />'बुक रिव्यू' तो कहीं भी मिल जायेगी ! ......... यह भाव - संघति तो अन्यत्र-दुर्लभ है न ! <br />.<br />@ sanjay kumar<br />हर बुरे काम पे टोका है किसीने मुझको <br />एक आवाज़ तेरी जबसे मेरे साथ हुई...<br />----------- नोट कर लिया है कागज़ पर और भी कि लेखक नीरज और सौजन्य से संजय कुमार .. सुक्रिया मित्र !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-86432043619313220372010-03-26T22:32:20.044+05:302010-03-26T22:32:20.044+05:30ये टेम्पलेट कुछ जमा नहीं. शायद ये उजला ज्यादा है औ...ये टेम्पलेट कुछ जमा नहीं. शायद ये उजला ज्यादा है और इसका पोस्ट बार कुछ कम चौड़ा है.<br />साइडबार को कुछ संकरा कर दिया जाये तो...<br /><br />जीवन प्रतीत्य समुत्पाद है. ज्यादा कुछ कहूँगा तो मन कचोटेगा कि अपना कुछ नहीं कहता हूँ.निशांत मिश्र - Nishant Mishrahttps://www.blogger.com/profile/08126146331802512127noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-44978605942185179052010-03-26T21:06:35.055+05:302010-03-26T21:06:35.055+05:30रोग की सही पहचान ही निदान की ओर पहला सही क़दम है। स...रोग की सही पहचान ही निदान की ओर पहला सही क़दम है। सलाह तो बिना माँगे भी देने को आतुर रहते हैं हम लोग,फिर आपने तो माँग ली है।<br />मैं अगर सही सोच रहा हूँ तो आप प्रकट स्वकथन (लाउड थिंकिंग)कर रहे हैं इस पोस्ट में:यह आपका मोनोलॉग है। यानी सलाह किससे माँगी आपने? अपने आप से। तो फिर सलाह कौन देगा इच्छाशक्ति के बारे में?<br />बस यहाँ नहीं मानने वाले हम,सलाह ज़रूर देंगे।<br />अपने एक पुराने गीत की पंक्तियाँ याद आ गयीं,वही दोहराता हूँ:<br /><b>रोग ही उपचार सा है,<br />दोष ही परिहार सा है,<br />छोड़ कर माया प्रपञ्चों को बना था वीतरागी,<br />देखता हूँ ईश्वर को - जो स्वयम् संसार सा है ।<br />रोग ही उपचार सा है…</b>Himanshu Mohanhttps://www.blogger.com/profile/16662169298950506955noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-41875510660144867252010-03-26T20:54:24.959+05:302010-03-26T20:54:24.959+05:30मुझे मालुम है कि गलत क्या है। फिर भी मेरे कोई प्रय...मुझे मालुम है कि गलत क्या है। फिर भी मेरे कोई प्रयास नहीं होते - मैं उनसे दूर होने का कोई यत्न नहीं करता – अथवा करता भी हूं, तो आधे मन से। यह त्रासदी नहीं तो क्या है?..<br />यह समस्या तो अक्सर लोंगो के साथ है गुरु जी.क्या किया जाय यही चिंतन मैं भी करता रहता हूँ.अच्छी पोस्ट.डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-54586968120191694512010-03-26T20:20:58.095+05:302010-03-26T20:20:58.095+05:30प्रतोयोगिक ईर्ष्या शायद मन्जिल की ओर पहुच्ने को उद...प्रतोयोगिक ईर्ष्या शायद मन्जिल की ओर पहुच्ने को उद्धेलित करती है .dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह }https://www.blogger.com/profile/06395171177281547201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-14207385610597470812010-03-26T20:08:17.394+05:302010-03-26T20:08:17.394+05:30जो थोड़ा बहुत अपने को ज्ञान है उसके अनुसार इच्छा शक...जो थोड़ा बहुत अपने को ज्ञान है उसके अनुसार इच्छा शक्ति तो जीव के अंदर ही होती है, कहीं से पाई नहीं जा सकती, बस उसको अपने भीतर खोजने और हासिल करने मात्र की आवश्यकता होती है! :)amithttps://www.blogger.com/profile/03372488870536392202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-85365789999146317882010-03-26T16:34:56.926+05:302010-03-26T16:34:56.926+05:30कहां मिलती है इच्छा शक्ति मित्र?
व्यक्तित्त्व...कहां मिलती है इच्छा शक्ति मित्र? <br /><br />व्यक्तित्त्व विकास की किताबों में भरपूर मिलती है.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-71993473804120922682010-03-26T15:39:56.628+05:302010-03-26T15:39:56.628+05:30शायद कुछ दिनों में बाज़ार में इच्छा शक्ति वर्धक गोल...शायद कुछ दिनों में बाज़ार में इच्छा शक्ति वर्धक गोलियां/ताबीज़ या यन्त्र मिलने लगें....तबतक के लिए अपने अन्दर से ही इसके श्रोत को खींचकर निकलना होगा और अपने मन मस्तिष्क तक इसे संचारित करना होगा...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-77269601146521643572010-03-26T13:18:24.745+05:302010-03-26T13:18:24.745+05:30आपकी सच स्वीकार करने की इच्छाशक्ति को नमन।आपकी सच स्वीकार करने की इच्छाशक्ति को नमन।ePandithttps://www.blogger.com/profile/15264688244278112743noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-89054030042897739572010-03-26T12:54:38.678+05:302010-03-26T12:54:38.678+05:30"शाखो से टूट जाये, वो पत्ते नही है हम,
आन्धिय..."शाखो से टूट जाये, वो पत्ते नही है हम,<br />आन्धियो से कह दो कि जरा औकात मे रहे.."<br /><br /><br />@ Pankaj Upadhyay-<br /><br />Lovely lines !<br /><br />Thanks!ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-56899101324764395032010-03-26T12:53:09.635+05:302010-03-26T12:53:09.635+05:30Its your will power only , that forced you to writ...Its your will power only , that forced you to write this post. Your post is a proof of your will power. <br /><br />But then what you are looking for ?....The thing which you are looking for is not will power. You are waiting for your dreams to come true.<br /><br />Failing there is making you believe that you are lacking the will power. Its not true !<br /><br />You have the courage and the will power both. All you need is to wait for the right time to reap the wonderful results.<br /><br />You have already have sown the beautiful seeds of "iksha-shakti", now be prepared to reap the fruits in the form of your dreams coming true.<br /><br />Smiles!ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-39763457246202142162010-03-26T12:26:56.625+05:302010-03-26T12:26:56.625+05:30ऐसा अक्सर होता है...हम सबकुछ जानते ,समझते हुए भी क...ऐसा अक्सर होता है...हम सबकुछ जानते ,समझते हुए भी कई बार...आलस्यवश, लापरवाही से या फिर अपने "चलता है" attitude की वजह से वह सब नहीं करते, जिसे हम सही समझते हैं...पर हमें इस बात का खलना इस बात का द्योतक है कि हम सही मार्ग पर हैं...और भविष्य में वही सब करेंगे जिसे हम सही समझते हैं..<br />बढ़िया आत्मावलोकनrashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-21736739252831697232010-03-26T11:47:41.795+05:302010-03-26T11:47:41.795+05:30सही ओर गलत ...हम उन्हें जानते बूझते है पर उन्हे...सही ओर गलत ...हम उन्हें जानते बूझते है पर उन्हें अमल में नहीं लाते .......यदि लाये तो वास्तव में साधू हो जाए .साधू की सही डेफिनेशन यही है ....उसके लिए चद्दर ओड़कर या सर मुंडाने या गृहस्थ आश्रम छोड़ने की जरुरत नहीं है .......डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-10772350169482771232010-03-26T09:59:13.557+05:302010-03-26T09:59:13.557+05:30"मैं सही आचार-विचार-व्यवहार जानता हूं, पर फिर..."मैं सही आचार-विचार-व्यवहार जानता हूं, पर फिर भी वह सब नहीं करता जो करना चाहिये।"<br /><br />यह तो सभी के साथ है, मेरे साथ भी, पर क्या करें चाहे अनचाहे सब करना पड़ता है।विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.com