tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post7084298555569918465..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: चुनाव, त्यौहार, बाढ़ और आलूGyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-67920739110675871772008-09-17T23:01:00.000+05:302008-09-17T23:01:00.000+05:30जमकर चर्चा हो ली। अब आलु के फिंगर चिप्स और चाय काइ...जमकर चर्चा हो ली। अब आलु के फिंगर चिप्स और चाय काइन्तजाम हो ले तो मजा आ जाय।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-12171195047155122212008-09-17T22:42:00.000+05:302008-09-17T22:42:00.000+05:30आज आलू ओर इस की मूनाफाखोरी/ जमाखोरी की कहानी का पत...आज आलू ओर इस की मूनाफाखोरी/ जमाखोरी की कहानी का पता चल गया, शायाद अन्य चीजो को भी युही रखते हो ?धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-55869425914386211582008-09-17T20:49:00.000+05:302008-09-17T20:49:00.000+05:30यह तो यकीन हो गया कि सामान्य विषय से इतर लिखने पर ...<I>यह तो यकीन हो गया कि सामान्य विषय से इतर लिखने पर भी ज्ञानवर्धक टिप्पणियां सम्भव हैं। </I><BR/><BR/>लेकिन ज्ञानवर्धक विषयों में टिप्पणियाँ संभव नही ये हमें पता है। अब जाकर आलू की कहानी पढ़ते हैं तब इस पोस्ट का मतलब समझ आयेगा।Tarunhttps://www.blogger.com/profile/00455857004125328718noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-77867344254074597212008-09-17T20:22:00.000+05:302008-09-17T20:22:00.000+05:30सर जी हम तो सांध्यकालीन चिठ्ठाचर्चा की पब्लिशिंगकी...सर जी हम तो सांध्यकालीन चिठ्ठाचर्चा की पब्लिशिंग<BR/>की ख़बर पाकर वहाँ गए थे ! और वहाँ से आपके शोरूम <BR/>का हाल चाल जानते हुए अब रात्री ८.१५ बजे घर लौट रहे थे !<BR/>अचानक आदरणीय द्विवेदी जी की टिपणी पढ़ कर मुंह में पानी<BR/>आ गया ! अब ताई तो ये सब खिलाने से रही ! मौसम खीर, <BR/>बासूंदी, मालपुए, बेड़ई का है। क्या जोगाड़ भिडाया जाए ?<BR/>देखते हैं !ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-75010643200615129272008-09-17T20:04:00.000+05:302008-09-17T20:04:00.000+05:30चुनावी खर्चे का तो पता नहीं लेकिन कमोडिटी मार्केट ...चुनावी खर्चे का तो पता नहीं लेकिन कमोडिटी मार्केट बड़ा रोचक होता है... बड़े मजे की चीजें ट्रेड होती हैं. भारतीय कमोडिटी मार्केट के बारे में ज्यादा नहीं पता, जिन मार्केट के पोर्टफोलियो देखता हूँ वो बता दूँ और मेरी कंपनी के किसी लीगल एंड कंप्लायंस वाला पढ़ ले तो.... <BR/>ऐसे ही इनवेस्टमेंट बैंकिंग के बे दिन चल रहे हैं :-)Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-95569003834033912008-09-17T11:06:00.000+05:302008-09-17T11:06:00.000+05:30आलू जैसे विषय पर यदि आप दो आलेख ठेल कर एक से एक वि...आलू जैसे विषय पर यदि आप दो आलेख ठेल कर एक से एक विश्लेषणात्मक टिप्पणिया आकर्षित कर सके तो अब समय है आपके लिये "चिट्ठागुरू" की पदवी ग्रहण करने का!!<BR/><BR/><BR/><BR/>-- शास्त्री<BR/><BR/>-- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)Shastri JC Philiphttps://www.blogger.com/profile/00286463947468595377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-15892400237489511012008-09-17T11:03:00.000+05:302008-09-17T11:03:00.000+05:30ये चुनावी सब्जी भी लगता है गरीबो से दूर हो जायेगीये चुनावी सब्जी भी लगता है गरीबो से दूर हो जायेगीAnil Pusadkarhttps://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-46951068791018057492008-09-17T10:26:00.000+05:302008-09-17T10:26:00.000+05:30संग्रह कर रखने में भी खर्च होता है, वह खर्च होने व...संग्रह कर रखने में भी खर्च होता है, वह खर्च होने वाले मूनाफे से कम होना चाहिए. वरना रोक कर रखा बेकार. इधर कहीं और से भी आलू आ सकता है. बोले तो मूनाफाखोरी/ जमाखोरी पता नहीं क्या क्या वही लोग ज्यादा बड़बड़ाते हैं जिन्हे व्यापार की समझ नहीं. <BR/><BR/>इसे आपकी पोस्ट से जोड़ कर न देखे, इसे मौका देख अनयों के लिए कहा गया सामांतर कथन माने.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-40502109167977022462008-09-17T09:36:00.000+05:302008-09-17T09:36:00.000+05:30अरे! पाण्डे जी, श्राद्ध पक्ष में कहाँ विदेशी आलू क...अरे! पाण्डे जी, श्राद्ध पक्ष में कहाँ विदेशी आलू की चर्चा छेड़ बैठे हैं। मौसम खीर, बासूंदी, मालपुए, बेड़ई का है। इस से तो अच्छा होता आप एक दो दिन यह काम रीता भाभी को पकड़ा दें। कम से कम रसोई घर से निकलती गंध हमें भी मिल जाती।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-4475199359300596662008-09-17T09:09:00.000+05:302008-09-17T09:09:00.000+05:30अहा हा साधुवाद, आलूवाद, आलूवादअहा हा साधुवाद, आलूवाद, आलूवादALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-34287190397509552132008-09-17T09:02:00.000+05:302008-09-17T09:02:00.000+05:30भारत में चुनाव उत्तरोत्तर खर्चीले होते गये हैं। उन...भारत में चुनाव उत्तरोत्तर खर्चीले होते गये हैं। उनके लिये कुछ या काफी हद <BR/>तक पैसा कमॉडिटी मार्केट के मैनीप्युलेशन से आता है। आपकी सहमति है <BR/>क्या इस सोच से! ?!<BR/><BR/>अगर सहमति का ही प्रशन्न है तो बिल्कुल है ! और सोच ये है की आजकल<BR/>इतने सोर्स अर्थ आवक के बना लिए गए है मेहरवानों द्वारा की इससे कोई <BR/>फर्क नही पङता ! शेयर मार्केट की एक उठा पटक ही फंड के लिए काफी है !<BR/>और एक सरकारी स्टेटमेंट काफी से ज्यादा होता है ! अत: मुझे नही लगता<BR/>की किसी सेंसेटिव कमोडिटी को इस काम के लिए लिया जाता हो !ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-64090097990785287222008-09-17T07:48:00.000+05:302008-09-17T07:48:00.000+05:30आलुता पर अलुआई चर्चा रोचक होती जा रही है :)आलुता पर अलुआई चर्चा रोचक होती जा रही है :)सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-74835405837327066872008-09-17T07:15:00.000+05:302008-09-17T07:15:00.000+05:30अभी तो आलू का भाव बाज़ार में स्थिर है -आपके इस खबर्...अभी तो आलू का भाव बाज़ार में स्थिर है -आपके इस खबर्दारिया चिंतन से कहीं पैनिक बाईंग न शुरू हो जाय -क्या आलू भी कंज्यूमर सरप्लस की सूची में आने का माद्दा रखता है ! नकली कमीं दिखा कर कहीं इसेभी प्याज की कोटि में ना ला दिया जाय .इससे एक फायदा /या नुक्सान( ?)होगा कि सरकार को इसके लिए समर्थन मूल्य का इंतजाम नहीं करना होगा .मगर यदि सारा आलू जमाखोरों के पास होगा तो पैनिक बाईंग के चलते लोगों को कंज्यूमर सरप्लस भी ना देना पड़े ? कहीं आप भी तो इस चेन में तो नहीं ? <BR/>शुक्र मनाईये कि सरकार ने मुझे इस सारे मामले की तहकीकात के लिए जांच अधिकारी नहीं नियुक्त किया है ! अगर कर दिया तो सीधे पहुचूगा आपके प्रशीतित कक्ष में फाईलों का फीता खोलने !क्या समझे ज्ञान जी ?Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-59730877159728070052008-09-17T07:12:00.000+05:302008-09-17T07:12:00.000+05:30कल हुई आलू चर्चा, आज हुई टिप्पणी चर्चा!कल हुई आलू चर्चा, आज हुई टिप्पणी चर्चा!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-70290404194169127522008-09-17T06:45:00.000+05:302008-09-17T06:45:00.000+05:30.आज एक भोंड़ी सी टिप्पणी कर लूँ ? यहाँ कल से आलू ....<BR/><BR/><I>आज एक भोंड़ी सी टिप्पणी कर लूँ ? <BR/>यहाँ कल से आलू पकते देख कर बड़ा मन कर रहा है ।<BR/>माडरेट न कर दीजियेगा, आपको अपने पितरों की कसम !<BR/>बुद्धिजीवियों का कोई भरोसा नहीं रहा करता, माथा फोड़ रहे हैं.. कल से ?<BR/>और अब तक आलू न पका पाये... आज तक 9 लालाओं को मूली प्रकरण में क्लीनचिट <BR/>न मिली । कोई फ़िकिर नहीं कि मूली वाले को बचायें, बस कल से आलू ही छीला जा रहा है । नाहक बदनामी हो रही है, वो अलग .. .. .. " ज्ञान जी मोटे क्यों, आलू के प्रताप से " <BR/>निष्कलुष भाव से की गयी इस टिप्पणी का क्या ह्श्र होगा, यह तो दीगर बात है.. हमें तो ठेलने से मतलब ! लेकिन ई तो बता दिहिन पुराणिक मोशाय कि आलू जैसा आलू नहीं, मतलब मतलब आलू की कोई तुलना नहीं , आलू गुटनिरपेक्ष है । मोर कबीर कोहनिया रहे हैं, कि हिम्मत करके बोल दे बेटा, आलू मौकापरस्त है , जनाने मरदाने सभी जगह घुसने में माहिर ! दान-पुण्य, श्राद्ध-तेरहीं , बर्गर-चिप्स हर जगह विद्यमान है, आलू तो महान है ! </I>डा. अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/12658655094359638147noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-15520714044680549222008-09-17T06:39:00.000+05:302008-09-17T06:39:00.000+05:30बिल्कुल सही कहा आपने. जमाखोरी और बढे दाम का फायदा ...बिल्कुल सही कहा आपने. जमाखोरी और बढे दाम का फायदा दुहरा है. पार्टी-फंड में पैसा भी आता है और चुनावी मुद्दा भी मिल जाता है. <BR/><B>विपक्ष में आयें <BR/>तो महंगाई का शोर मचाएं <BR/>पक्ष में हैं तो दाम बढायें <BR/>पहले दस गुना पहुंचाएं <BR/>फ़िर सात गुने तक गिरायें <BR/>नोट के साथ वोट भी कमायें<BR/>और साथ में वाहवाही मुफ्त पायें!<BR/></B>Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-47865294357806332512008-09-17T06:26:00.000+05:302008-09-17T06:26:00.000+05:30इस खेल में पैसा कहां से लगा है - यह अपने आप में एक...इस खेल में पैसा कहां से लगा है - यह अपने आप में एक गोरखधन्धा होगा..<BR/><BR/>सच में, मैं ऐसा नहीं समझता.<BR/><BR/>खेल खुले आम होता है और हम बिल्ली की भूमिका निभाते हैं. बिल्ली, जो हमेशा आँख बंद कर दूध पीती है, यह सोचते हुये कि उसे कोई देख नहीं रहा...जबकि आँख उसकी बंद है..देखने वालोम की नहीं...कभी गौर करियेगा.<BR/><BR/>वही हाल हम सब आम जनता का है..आँख मींचें हैं..किसी को क्या पता लगेगा.<BR/><BR/>लाईन मत पढ़ियेगा..लाईन के बीच में पढ़ियेगा....read between the lines please. :)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com