tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post6726524403493646653..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: रेल कर्मी और बैंक से सेलरीGyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-82919587608169550032007-12-19T23:37:00.000+05:302007-12-19T23:37:00.000+05:30जैसा अनूप जी ने कहा कि ये लफ़ड़ा सब जगह है। कई कंपनि...जैसा अनूप जी ने कहा कि ये लफ़ड़ा सब जगह है। कई कंपनियों में पगार सीधा पत्नी के हाथ में दी जाती है अगर पति शराबी हो तो और वेलफ़ेअर डिपार्टमेंट ऐसा करने की सलाह दे तो। युनिअन और महाजन की त्रासदी से निजाद पाने का एक ही तरीका है कि मजदूरों की शिक्षा का स्तर बड़े चाहे कपंयुटर लिटरसी ही की बात क्युं न हो। हमारे यहां बहुत सारे महिला सघटन इसके बारे में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।Anita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-35059275635080291552007-12-18T20:44:00.000+05:302007-12-18T20:44:00.000+05:30यह अलग बात है कि बैंक में तनख्वाह जमा होने से वह स...यह अलग बात है कि बैंक में तनख्वाह जमा होने से वह सुख हासिल नही होता जो हाथ में आए नोटों से मिलता है, लेकिन वह सुख क्षणिक होता है ! वैसे बैंक में सैलरी जाने से अब कैसी समस्या? अब तो ऐ. टी.एम् का ज़माना है , जब जरूरत पड़े निकाल लीजिये !रवीन्द्र प्रभातhttps://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-39206304227634746712007-12-18T18:37:00.000+05:302007-12-18T18:37:00.000+05:30तनख्वाह सीधे बैंक अकाऊंट में आना ही सबसे सही है पर...तनख्वाह सीधे बैंक अकाऊंट में आना ही सबसे सही है पर जैसा कि आलोक जी ने कहा कि तनख्वाह पाने का सुख तो वाकई हाथ में नोट आने पर ही होता है। बैंक में तनख्वाह जमा होने से वह सुख हासिल नही होता जो हाथ में आए नोटों से मिलता है।<BR/><BR/>रही बात यूनियन की तो ये नेतागिरी तो सब जगह लोचे करती है, चाहे रोजमर्रा की ज़िंदगी हो या फिर यूनियन।<BR/><BR/>डी पी सी साहब वाली जानकारी पहली बार मिली। शुक्रिया।Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-63735603480962870792007-12-18T18:24:00.000+05:302007-12-18T18:24:00.000+05:30मेरे एक परिचित थे दूबे जी यी पाण्डे जी वो रेल यूनि...मेरे एक परिचित थे दूबे जी यी पाण्डे जी वो रेल यूनियन के नेता था...दिन भर पोस्टआफिस की ओर वाले स्टैंड पर विराजते थे और महीने के आखीर में नहा-धो कर तनखाह बंटनेवाले माहौल का आनन्द लेते थे...मुझे लगता है कि वे भी चंदा उगाहते थे...बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/09557000418276190534noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-38448131559557174222007-12-18T18:18:00.000+05:302007-12-18T18:18:00.000+05:30मैं भाभी जी की उलझन क समझ सकती हूँ....मैं भाभी जी की उलझन क समझ सकती हूँ....आभाhttps://www.blogger.com/profile/04091354126938228487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-76700098756701919162007-12-18T13:14:00.000+05:302007-12-18T13:14:00.000+05:30"मजदूर यूनियनों को यह कर्मचारी के मौलिक अधिकार पर ..."मजदूर यूनियनों को यह कर्मचारी के मौलिक अधिकार पर हनन प्रतीत होता है। "<BR/><BR/><BR/>जब कि असल कारण यूनियनों का यह डर है कि कर्मचारी पैसे का सही निवेश सीख जायेंगे!!!Shastri JC Philiphttps://www.blogger.com/profile/00286463947468595377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-55546777137444568892007-12-18T12:25:00.000+05:302007-12-18T12:25:00.000+05:30यदि असुविधा न हो तो सभी विकल्प जारी रहने देना चाहि...यदि असुविधा न हो तो सभी विकल्प जारी रहने देना चाहिये।Pankaj Oudhiahttps://www.blogger.com/profile/06607743834954038331noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-91170080653548320772007-12-18T11:55:00.000+05:302007-12-18T11:55:00.000+05:30बात तो आपकी सही है. पर अपन तो अभी भी कैश ही प्रेफ़...बात तो आपकी सही है. <BR/>पर अपन तो अभी भी कैश ही प्रेफ़र करते है.<BR/>वही घर वाली बात जो है. अपना बस नही चलता.बालकिशनhttps://www.blogger.com/profile/18245891263227015744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-35112085966542764322007-12-18T11:45:00.000+05:302007-12-18T11:45:00.000+05:30बहुत अच्छी बात याद दिलाई है आपने.. मुझे अभी भी याद...बहुत अच्छी बात याद दिलाई है आपने.. मुझे अभी भी याद है कि जब पापाजी को वेतन मिलता था तो वो उसे लाकर घर में मम्मी को दे देते थे.. पर पिछले कई सालों से उनका वेतन भी सीधे बैंक में ही आने लगा है..<BR/><BR/>मैंने तो नौकरी मिलने के बाद से कभी भी 10,000 रुपये अपने हाथों में नहीं देखे हैं.. कभी ज्यादा पैसों कि खरीददारी करनी होती है तो क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड से ही काम चला लेता हूं.. पिछली बार एकमुश्त 30,000 रुपये तब देखे थे जब कालेज की फ़ी भरनी थी.. :)PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-3024223844120030542007-12-18T11:12:00.000+05:302007-12-18T11:12:00.000+05:30ज्ञान भईया ऐसा है की जब रोकडा हाथ में आता है तो उस...ज्ञान भईया ऐसा है की जब रोकडा हाथ में आता है तो उसको छूने की कशिश अलग ही होती है. अजीब सी गंध आती है करकराते नोट से और एक विजयी भाव आता है मन में, लेकिन जब से बैंक में सीधे ही तनखा जाने लगी है लगता है जैसे मुफ्त में ही काम कर रहे हैं. ये ऐसा है की जब हम क्रेडिट कार्ड से कोई समान खरीदते हैं तो लगता है जैसे बिना पैसे दिए ही सब मिल रहा है आप देखें की तब दो की जगह पाँच चीज़ें खरीद लाते हैं , चाहे उनकी ज़रूरत हो या न हो. मानव मन के खेल हैं ये. <BR/>नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-41004908433783104722007-12-18T10:40:00.000+05:302007-12-18T10:40:00.000+05:30डीपीसी की नई जानकारी मिली। नकद वेतन और यूनियनों की...डीपीसी की नई जानकारी मिली। नकद वेतन और यूनियनों की चंदाखोरी का रिश्ता भी समझ में आया। वैसे, तकनीक भी अक्सर बहुतेरी सामाजिक समस्याओं का निदान कर देती है।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-68121182465104959872007-12-18T10:35:00.000+05:302007-12-18T10:35:00.000+05:30पर जो सुख कैश पाने का है वह चेक का नहीं है। गिनकर ...पर जो सुख कैश पाने का है वह चेक का नहीं है। <BR/>गिनकर पचास हजार रुपये अंदर करो, तो लगता है कि कुछ काम किया, कुछ मेहनताना सा मिला। का कर दो, रकम बैंक में आ गयी। ठीक है। पर वो सुख नहीं रहा। हालांकि यह निहायत चिरकुटी नास्टेलजिया है। इसका कोई मतलब नहीं ना है। फिर भी। बैंक में सेलरी के अपने पंगे हैं। अपने ही पैसे के लिए वहां कई बार सिस्टम आफ हो जाता है। कल ही पंजाब नेशनल बैंक से पैसे निकालने गया, तो पता लगा कि सिस्टम आफ है। शनिवार को भी था। मां से कुछ पैसे लेकर काम चलाया है, मां ने बताया है, कि बेटा पैसा अंटी का ही काम आता है। बैंक का सिस्टम आफ हो लेता है। <BR/>ये डीपीसी क्या होता है, ये टीटीई से बड़ा अफसर होता है या छोटा।ALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-2926832394754183082007-12-18T07:47:00.000+05:302007-12-18T07:47:00.000+05:30बैंक से वेतन सर्वोत्तम पद्दति है। आप के कोटा के अन...बैंक से वेतन सर्वोत्तम पद्दति है। आप के कोटा के अनुभवों के बारे में मै ने भी अनेक किस्से सुने हैं। अभी भी ऐसे दृश्य देखने को मिल जाते हैं।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-41232838917954348842007-12-18T07:20:00.000+05:302007-12-18T07:20:00.000+05:30ये लफ़ड़ा लगभग हर जगह है। हर जगह सुलट भी रहा है। हमा...ये लफ़ड़ा लगभग हर जगह है। हर जगह सुलट भी रहा है। हमारे यहां पचास फ़ीसदी के करीब लोग बैंक से तनख्वाह लेने लगे। हर महीने बढ़ रहे हैं। अच्छा मुद्दा उठाया आपने।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.com