tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post667934969026556120..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: सिन्दबाद जहाजी और बूढ़ाGyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-64245199819762733382007-09-08T01:43:00.000+05:302007-09-08T01:43:00.000+05:30भई सिन्दबाद की मजबूरी थी कि द्वीप मे उसका साथ देने...भई सिन्दबाद की मजबूरी थी कि द्वीप मे उसका साथ देने वाला कोई नही था पर हम आप पर लदे दुर्गुणो को तो मित्रो या अपनो का सहायता से भी समाप्त किया जा सकता है। <BR/><BR/>एक बार फिर से भीतरी मन को जगाने के लिये आभार।Pankaj Oudhiahttps://www.blogger.com/profile/06607743834954038331noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-7253484475000714362007-09-07T17:56:00.000+05:302007-09-07T17:56:00.000+05:30सॉलिड!!आत्म-विश्लेषण करते रहना समय-समय पर ज़रूरी है...सॉलिड!!<BR/><BR/>आत्म-विश्लेषण करते रहना समय-समय पर ज़रूरी है!!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-2877617599567809882007-09-07T13:59:00.000+05:302007-09-07T13:59:00.000+05:30बुढ़ापे से मुक्त हों बूढ़ों से मुक्त हो ही जाएंगे।...बुढ़ापे से मुक्त हों बूढ़ों से मुक्त हो ही जाएंगे। हो सके तो महुए वाली देसी सुंघा दें। काम हो जाएगा।बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-68627218425286674992007-09-07T13:43:00.000+05:302007-09-07T13:43:00.000+05:30@ हरिमोहन सिंह - शर्मिंदा तो मुझे होना चाहिये सिंह...@ हरिमोहन सिंह - <BR/>शर्मिंदा तो मुझे होना चाहिये सिंह जी. मेरे लेखन में जरूर कुछ लच्छेदार घुमाव आ गया है इस पोस्ट में. निश्चय ही कोई व्यक्ति जिसे मेरा/मेरे ब्लॉग का अतीत न ज्ञात हो, उसे उलझन हो सकती है. मैं भविष्य में सरल लेखन का पूरा यत्न करूंगा. <BR/>आपको धन्यवाद.Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-21010954187208010862007-09-07T13:33:00.000+05:302007-09-07T13:33:00.000+05:30माफ करना अपनी समझ में तो कुछ नहीं आया । शर्मिन्दा...माफ करना अपनी समझ में तो कुछ नहीं आया । शर्मिन्दा हूँ मैं अपनी कमअक्ली परहरिमोहन सिंहhttps://www.blogger.com/profile/14190997410330717046noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-26920296032135821962007-09-07T13:31:00.000+05:302007-09-07T13:31:00.000+05:30यह पोस्ट मिथक,साहित्य और लोकराग से संदर्भित मनोविश...यह पोस्ट मिथक,साहित्य और लोकराग से संदर्भित मनोविश्लेषणात्मक लेखन का उत्कृष्ट उदाहरण है . <BR/><BR/>इस पोस्ट के संबंध में आपकी भाषा-गुरु श्रीमती रीता पांडेय जी के आकलन से मेरी गम्भीर असहमति है . वे इसे किसी और संदर्भ से जोडकर देख रही होंगीं .<BR/><BR/>यह पोस्ट आत्मान्वेषण से आत्म-साक्षात्कार तथा आत्म-विश्लेषण से आत्म-परिष्कार की ओर बढने का मार्ग प्रशस्त करती है . आपके मन की इस उमड-घुमड़ में भी काफ़ी 'कोहेरेंस' है और वर्णन में अपेक्षित 'आर्टीकुलेशन' . बेहतरीन पोस्ट .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-28960198140606559612007-09-07T12:31:00.000+05:302007-09-07T12:31:00.000+05:30शराब पिलाकर बूढ़ों को भगा दीजिये, यही सबक तो सिंदब...शराब पिलाकर बूढ़ों को भगा दीजिये, यही सबक तो सिंदबाद ने दिया है। पर यह सबक ठीक नहीं है। उच्च कोटि की शराब पिलायेंगे, तो फिर फिर आयेंगे। मामला थोड़ा स्पष्ट करें, तब पिराबलम साल्व हो पायेगी। कौन कौन लदा है। क्यों लदा है। फिर आपने लदने क्यों दिया। आपके क्या वेस्टेड इंटरेस्ट्स रहे। आपसे सहानुभूति दिखाने से पहले हम उन बूढ़ों की भी सुनना चाहेंगे।ALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-55661546098989383282007-09-07T10:06:00.000+05:302007-09-07T10:06:00.000+05:30महोदय यह तो स्पष्ट है की हम सबके ऊपर सिन्दबाद की त...महोदय यह तो स्पष्ट है की हम सबके ऊपर सिन्दबाद की तरह बूढे सवार हैं. पहचान करना और उतार देने का काम मुश्किल है. सिन्दबाद से सबक लेकर सभी को तुम्भी का द्रव्य ऑफर करें. न जाने किस वेश में आपका बूढा उसे पी ले. फ्री ऑफर शुरू करते वक्त पंचों को भी बतायें.<BR/>बूढे को उतार फेंकने के बाद भी सिन्दबाद को तैर कर भागना पड़ा था. या तो तैरने को तैयार रहें या द्रव्य का रिज़र्व स्टॉक रखें ताकी होश में आने पर बुढे को फ़िर पिलाया जा सके. यानी बूढा बार बार लौटेगा और हर बार छल करके ही उसे उतारना पड़ेगा. येहि जीवन संग्राम है.<BR/>बाकी फ़िर. अपने बूढे को ज़रा द्वीप के उस कोने तक घुमा आऊँ.Sanjay Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03333555173060171822noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-90492942538175691632007-09-07T09:54:00.000+05:302007-09-07T09:54:00.000+05:30ज्ञानदत्तजी,"मैं थक भी गया हूं. सिन्दबाद जहाजी तो ...ज्ञानदत्तजी,<BR/><BR/>"मैं थक भी गया हूं. सिन्दबाद जहाजी तो जवान रहा होगा. एडवेंचर की क्षमता रही होगी. मुझमें तो वह भी नहीं है. छुद्र नौकरशाही ने वह जजबा भी बुझा दिया है. क्या करें?"<BR/><BR/>लेकिन मैने कुछ उदाहरण देखे हैं जो प्रेरणा देते हैं । मेरे Adviser ६७ वर्ष की उम्र में भी Extreme Sports में भाग लेते हैं । Hawai के समुद्र की लहरों में सर्फ़ करते हैं, पर्वतारोहण करते हैं । उन्होनें Shell में २६ वर्ष नौकरी करने के बाद १९९३ में प्रोफ़ेसर बनने का निश्चय किया । <BR/>२००० के आस पास एक नये शोध क्षेत्र में कदम रखा और आज उस क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं । <BR/><BR/>इसके अलावा जिन लोगों के साथ मैं बुधवार को १० किमी दौडता हूँ उनमें से अधिकतर (पुरूष एवं महिलायें दोनो) ५० वर्ष से ऊपर के हैं । कुछ ६० से भी अधिक के हैं । इसके बावजूद उनमें कुछ नया करने का जज्बा है । ये सब काफ़ी प्रेरणा देता है ।<BR/><BR/>अक्सर हमारे पुराने अनुभव हमारी पीठ पर लदकर कुछ नया करने की प्रवत्ति को कुंद कर देते हैं । आवश्यकता होती है, सब कुछ पीछे छोडकर फ़िर से कुछ नया सीखने का प्रयास करने की ।<BR/><BR/>अपने चारो ओर देखेंगे तो रास्ते ही रास्ते दिखेंगे, किसी को भी चुनिये और चलते जाईये, कारवाँ जुडता जायेगा ।<BR/><BR/>बस मेरी इस बचकानी टिप्पणी पर हँसियेगा नहीं :-) मेरा उद्देष्य एक भाषण देने का नहीं था :-)<BR/><BR/>साभार,Neeraj Rohillahttps://www.blogger.com/profile/09102995063546810043noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-28492749913095641552007-09-07T09:44:00.000+05:302007-09-07T09:44:00.000+05:30ऐसे अंधे बूढ़े जब-तब श्रवण कुमार को खोजते रहते हैं...ऐसे अंधे बूढ़े जब-तब श्रवण कुमार को खोजते रहते हैं. श्रवण कुमार मिले नहीं कि बैठ गए दौरी में और कह दिया कि बेटा अब तू मुझे उठाकर ले चल....मेरे कंधे पर भी एक बूढा कई सालों तक बैठा था.जब तक कंधे पर था, तब तक मैंने कुछ नहीं कहा. लेकिन जैसे ही उसने अपने नाखून मेरे गले पर लाया, मैंने उसे जमीन पर दे मारा...<BR/><BR/>अनूप जी का कहना भी ठीक है. कभी-कभी निराश भी होना चाहिए. वो शेर है न;<BR/><BR/>पाल ले कोई रोग नादाँ जिन्दगी के वास्ते<BR/>सिर्फ़ सेहत के सहारे जिन्दगी कटती नहीं.Shivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-31638114983306106192007-09-07T09:05:00.000+05:302007-09-07T09:05:00.000+05:30क्या बात है ज्ञान भाई.. आनन्दम.. भाभी जी से कहिये ...क्या बात है ज्ञान भाई.. आनन्दम.. भाभी जी से कहिये कि इस बार उनका आकलन ग़लत है.. इसे आप मेरी ओर से अपने स्टार-चयन में शामिल कीजिये..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-61783625880128415202007-09-07T07:45:00.000+05:302007-09-07T07:45:00.000+05:30देखिये ज्ञान दादा आजकल आप का अखबार देर से आ रहा है...देखिये ज्ञान दादा आजकल आप का अखबार देर से आ रहा है जी..इसे ठीक करे..रोज रोज हम अखबार वाले को इस तरह बिगडने नही दे सकते...? :)<BR/>अब बात राय की तो आप वो सिंदबाद वाला नुस्खा अपनाये तुरंत कोरियर से तीन चार तुंबे भेज दे ,हम टेस्ट कर सारे मामले को समझ आपको सोलिड राय भेज देगे..बस तुंबे हो सके तो बडे बडे भेजियेगा..:)Arun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-90665440819074900382007-09-07T07:36:00.000+05:302007-09-07T07:36:00.000+05:30अपने दुर्गुणॊं को सदगुणों में तब्दील करें। जैसे ने...अपने दुर्गुणॊं को सदगुणों में तब्दील करें। जैसे नेता अपने गुंडों को स्वयंसेवकों में बदल लेता है, व्यापारी धर्मादा संस्थाओं के सहयोग से अपने काले धन को सफ़ेद में बदल लेता है आदि-इत्यादि। इसी तरह आप अपने तथाकथित दुर्गुणों को सदगुण जामा पहनाइये। ये समझिये कि दुर्गुण कभी अकेले <BR/>नहीं आते। वे भी जोड़े से रहते हैं। हर दुर्गुण का किसी न किसी सद्गुण से संबंध रहता है। आप अपने सद्गुगुणों को लिफ़्ट दीजिये। दुर्गुणों की गठबंधन सरकार गिर जायेगी। वैसे कभी-कभी निराश भी हो लेना चाहिये। मन लगा रहता है। :)अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-45764365790682549652007-09-07T07:16:00.000+05:302007-09-07T07:16:00.000+05:30मुझे अहसास है और मैं असहाय हूँ, क्या करुँ?मुझे अहसास है और मैं असहाय हूँ, क्या करुँ?Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com