tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post6059274343588622178..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: हिन्दी की वर्जनायें और भरतलाल छाप हिन्दी!Gyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-74318538602968898922011-04-10T00:06:36.049+05:302011-04-10T00:06:36.049+05:30हिन्दी को संपर्क भाषा ही रहने दिया जाए. राजभाषा के...हिन्दी को संपर्क भाषा ही रहने दिया जाए. राजभाषा के चक्कर में इसकी बहुत मिट्टी पलीद बुई है.संजय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-6385908246239842982011-04-10T00:06:34.876+05:302011-04-10T00:06:34.876+05:30सहमत। जब तक हिन्दी के ठेकेदार रहेंगे तब तक समस्या ...सहमत। जब तक हिन्दी के ठेकेदार रहेंगे तब तक समस्या बनी रहेगी।Dard Hindustanihttp://www.blogger.com/profile/06607743834954038331noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-75537045398306931602011-04-10T00:06:34.590+05:302011-04-10T00:06:34.590+05:30जिस तरह कोटा-परमिट राज खत्म किया जा रहा है, उसी तर...जिस तरह कोटा-परमिट राज खत्म किया जा रहा है, उसी तरह राजभाषा विभाग को तत्काल बंद कर देना चाहिए। भाषा में जिंदगी में लहक कर बढ़ती है न कि सरकारी फाइलों और बाबुओं की कोशिश से।अनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-43294857150904632082011-04-10T00:06:33.961+05:302011-04-10T00:06:33.961+05:30अगर देखा जाए तो हिन्दी को मृत दशा तक पहुँचाने के ल...अगर देखा जाए तो हिन्दी को मृत दशा तक पहुँचाने के लिए ये सरकारी भाषा ही जिम्मेदार है, इतनी क्लिष्ठ लिखते है कि लिखने वाला भी अगर दो हफ़्ते बाद पढे तो ऊपर से निकल जाए। हिन्दी मे लिखी फाइल मिलते ही आफिसर लोग दन्न से अपने बाबू को फोन करके बोलते है, अरे यार! इसके ऊपर अंग्रेजी वाली चिप्पी लगाकर भेजा करो,तभी कुछ समझ आएगा।<br><br>ऊपर से ये हिन्दी दिवस वाले, हर साल ऐसे मनाते है जैसे मातम करते हो, हिन्दी का हर साल, श्राद्द टाइप का, खा-पीकर टुन्न रहते है, और हिन्दी का रोना अलग से। दो दिन बाद सभी फिर वापस अपने ढर्रे पर लौट आएंगे, फिर ये लोग इकट्ठा होंगे, अगले श्राद्द पर।Jitendra Chaudharyhttp://www.blogger.com/profile/09573786385391773022noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-53433928013887061792011-04-10T00:06:33.479+05:302011-04-10T00:06:33.479+05:30हिंदी पखवाड़ा को तर्पण के रूप में लेता हूँ। इसे चल...हिंदी पखवाड़ा को तर्पण के रूप में लेता हूँ। इसे चलने दें भाई। कितने तथाकथित दिव्य लोगों की आत्मा के इसी पखवाड़े का इंतजार रहता है। भाषा के नाम पर यह बेजोड़ प्रहसन है पर्दा न गिराएँ चालू रहने दें। यह सरकारी खेल....।<br><br>बहुत सरस लिख रहे हैं....और मुझे मिर्च लग रही है....अँगुली तोड़ा के बैठोल भया हूँ....बोधिसत्वhttp://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-27875920661541540032011-04-10T00:06:33.222+05:302011-04-10T00:06:33.222+05:30जी हिंदी के पंडों को, मुस्टडों को दंड पेलने के लिए...जी हिंदी के पंडों को, मुस्टडों को दंड पेलने के लिए जो पखवाड़ा मिलता है, उसे हिंदी पखवाड़ा बोलते हैं। और हिंदी विभागों, राजभाषा अनुभागों को बंद करने के पक्ष में अपन एकैदम नहीं है। इसलिए कि भारत सरकार बहुत तरीके से पैसा वेस्ट कर रही है,इसमें थोड़े रोचक च चौंचक तरीके से हो जाता है। हम जैसे एकाध हजार मार कर ले आते हैं। सीनियर हो जायेंगे, तो ज्यादा मार कर लायेंगे। चलने दीजिये,आईएएसआफीसर जहां करोड़ों मारे पड़े हैं,वहां लेखक टाइप लोग एकाध हजार मार लें, तो क्या हर्ज है जी।<br>बाकी हिंदी चल रही है भरत लालजी और बेबीदीदीजी के सहारे ही।ALOK PURANIKhttp://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-32259709015899803942007-09-30T17:11:00.000+05:302007-09-30T17:11:00.000+05:30जिए जिए भरतलात और उसके जैसे अन्य जो झिंचक कहते रहत...जिए जिए भरतलात और उसके जैसे अन्य जो झिंचक कहते रहते हैं!!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-46196220040681162112007-09-30T17:05:00.000+05:302007-09-30T17:05:00.000+05:30हिंदी पखवाड़ा को तर्पण के रूप में लेता हूँ। इसे चल...हिंदी पखवाड़ा को तर्पण के रूप में लेता हूँ। इसे चलने दें भाई। कितने तथाकथित दिव्य लोगों की आत्मा के इसी पखवाड़े का इंतजार रहता है। भाषा के नाम पर यह बेजोड़ प्रहसन है पर्दा न गिराएँ चालू रहने दें। यह सरकारी खेल....।<BR/><BR/>बहुत सरस लिख रहे हैं....और मुझे मिर्च लग रही है....अँगुली तोड़ा के बैठोल भया हूँ....बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-90652055058203888282007-09-30T16:07:00.000+05:302007-09-30T16:07:00.000+05:30जी हिंदी के पंडों को, मुस्टडों को दंड पेलने के लिए...जी हिंदी के पंडों को, मुस्टडों को दंड पेलने के लिए जो पखवाड़ा मिलता है, उसे हिंदी पखवाड़ा बोलते हैं। और हिंदी विभागों, राजभाषा अनुभागों को बंद करने के पक्ष में अपन एकैदम नहीं है। इसलिए कि भारत सरकार बहुत तरीके से पैसा वेस्ट कर रही है,इसमें थोड़े रोचक च चौंचक तरीके से हो जाता है। हम जैसे एकाध हजार मार कर ले आते हैं। सीनियर हो जायेंगे, तो ज्यादा मार कर लायेंगे। चलने दीजिये,आईएएसआफीसर जहां करोड़ों मारे पड़े हैं,वहां लेखक टाइप लोग एकाध हजार मार लें, तो क्या हर्ज है जी।<BR/>बाकी हिंदी चल रही है भरत लालजी और बेबीदीदीजी के सहारे ही।ALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-57129685460657064612007-09-30T15:16:00.000+05:302007-09-30T15:16:00.000+05:30अगर देखा जाए तो हिन्दी को मृत दशा तक पहुँचाने के ल...अगर देखा जाए तो हिन्दी को मृत दशा तक पहुँचाने के लिए ये सरकारी भाषा ही जिम्मेदार है, इतनी क्लिष्ठ लिखते है कि लिखने वाला भी अगर दो हफ़्ते बाद पढे तो ऊपर से निकल जाए। हिन्दी मे लिखी फाइल मिलते ही आफिसर लोग दन्न से अपने बाबू को फोन करके बोलते है, अरे यार! इसके ऊपर अंग्रेजी वाली चिप्पी लगाकर भेजा करो,तभी कुछ समझ आएगा।<BR/><BR/>ऊपर से ये हिन्दी दिवस वाले, हर साल ऐसे मनाते है जैसे मातम करते हो, हिन्दी का हर साल, श्राद्द टाइप का, खा-पीकर टुन्न रहते है, और हिन्दी का रोना अलग से। दो दिन बाद सभी फिर वापस अपने ढर्रे पर लौट आएंगे, फिर ये लोग इकट्ठा होंगे, अगले श्राद्द पर।Jitendra Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/09573786385391773022noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-41753352362097717742007-09-30T13:34:00.000+05:302007-09-30T13:34:00.000+05:30सहमत। जब तक हिन्दी के ठेकेदार रहेंगे तब तक समस्या ...सहमत। जब तक हिन्दी के ठेकेदार रहेंगे तब तक समस्या बनी रहेगी।Pankaj Oudhiahttps://www.blogger.com/profile/06607743834954038331noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-19303777810049970962007-09-30T11:43:00.000+05:302007-09-30T11:43:00.000+05:30सरकारी हिन्दी हमें भी हजम नहीं होती, तो हर दुसरा श...सरकारी हिन्दी हमें भी हजम नहीं होती, तो हर दुसरा शब्द अंग्रेजी का हिन्दी के विकास के नाम पर भी मंजुर नहीं. देसज शब्द ज्यादा से ज्यादा आये यही कामना है.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-73149473082896739292007-09-30T11:29:00.000+05:302007-09-30T11:29:00.000+05:30जिस तरह कोटा-परमिट राज खत्म किया जा रहा है, उसी तर...जिस तरह कोटा-परमिट राज खत्म किया जा रहा है, उसी तरह राजभाषा विभाग को तत्काल बंद कर देना चाहिए। भाषा में जिंदगी में लहक कर बढ़ती है न कि सरकारी फाइलों और बाबुओं की कोशिश से।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-11049533371247664162007-09-30T11:26:00.000+05:302007-09-30T11:26:00.000+05:30सही है जी, यही हिन्दी रसमयी है। यही रस हिन्दी को ज...सही है जी, यही हिन्दी रसमयी है। यही रस हिन्दी को जिन्दा रखेगा हमेशा।ePandithttps://www.blogger.com/profile/15264688244278112743noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-91680935836670577212007-09-30T11:19:00.000+05:302007-09-30T11:19:00.000+05:30हिन्दी को संपर्क भाषा ही रहने दिया जाए. राजभाषा के...हिन्दी को संपर्क भाषा ही रहने दिया जाए. राजभाषा के चक्कर में इसकी बहुत मिट्टी पलीद बुई है.Sanjay Tiwarihttps://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-23508158970351538152007-09-30T07:29:00.000+05:302007-09-30T07:29:00.000+05:30एक रिंगटोनवा के लिये मोबैलिया पर टीप दिहा त भक्क स...एक रिंगटोनवा के लिये मोबैलिया पर टीप दिहा त भक्क से १५ रुपिया निकरि गवा<BR/><BR/>---वाह, क्या हिन्दी का निखार है, सच में.<BR/><BR/>वैसे बेबी दीदी को सादर प्रणाम... और आपके लिए:<BR/><BR/>"ढ़ेर मठ्ठरबाजी मत कर. काम जल्दी कर. नहीं तो तेरा सिर तोड़ दूंगी." <BR/><BR/>काहे से कि इस पखवाड़ा समारोह में कवि सम्मेलन काहे नहीं रखे...कवियों से का परेसानी बा हो??Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com