tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post5973528951885031106..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: नेचुरल जस्टिस - माई फुट!µGyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger22125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-338534975844473032011-04-10T00:15:40.856+05:302011-04-10T00:15:40.856+05:30न्याय की जगह अन्याय दुखी करता ही रहा है, इसीलिए क्...न्याय की जगह अन्याय दुखी करता ही रहा है, इसीलिए क्रइस्ट, राम क्रष्ण जन्मे और आम इन्सान की तरह सब सहा यह जानने के लिए कि दुनियां कैसे कैसे लोगों से पटी है और फिर लगाम अपने हाथ लिया ,और हम सब उन्हीं के भरोसे है देर ही सही फिर जिसके पास सहने की ताकत है वह ईश्वर के करीब है ,यही कह सकती हूँ, खिन्नता के बावजूद ।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-48269463902775976292011-04-10T00:15:40.679+05:302011-04-10T00:15:40.679+05:30ज्ञानदत्त जी ये प्रकति का नियम नही है ,ये इंसानों ...ज्ञानदत्त जी ये प्रकति का नियम नही है ,ये इंसानों के बनाये हुए नियम है ...वैसे भी अब हर आदमी छोटे मोटे अन्याय सहने का आदी हो गया है ...यही खतरे की बात है ,अपनी न्याय प्रणाली से उम्मीद खोना यही खतरे की बात है......उठिए ओर मार भगायिये ,लतायिये इन साले गमो को ...कृष्ण ,ईसा...बरसों बाद भी जिंदा तो है आपके मन मे,बाकि किस का नाम याद है आपको.....Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-78188868907669661252011-04-10T00:15:40.179+05:302011-04-10T00:15:40.179+05:30कहाँ फँस गए बड़े भाई? न्याय की अवधारणा ही राज्य के...कहाँ फँस गए बड़े भाई? न्याय की अवधारणा ही राज्य के अस्तित्व से जनमी है। चाणक्य वाक्य है। राजा को न्याय करना चाहिए, जिस से उस के विरुद्ध विद्रोह न हो।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-42311841806802334402011-04-10T00:15:40.020+05:302011-04-10T00:15:40.020+05:30अनुराग जी की बात से सहमत है।अनुराग जी की बात से सहमत है।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-13725431473228894132011-04-10T00:15:39.657+05:302011-04-10T00:15:39.657+05:30आज सबसे बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी कहलाने वाले म...आज सबसे बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी कहलाने वाले मनुष्य द्वारा जब बेकसूर जीवों की हत्या की जाती है तो यह प्रश्न उठ जाता है कि यह मनुष्य तो सर्वाधिक बुद्धिमान व विवेकशील नहीं बल्कि पशु से भी बदतर है (क्यों?)<br>http://aatm-chintan.blogspot.com/2008/03/blog-post_24.html<br><br>http://popularindia.blogspot.com/search/label/%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE<br><br>http://popularindia.blogspot.com/search/label/%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5-%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE<br><br>http://popularindia.blogspot.com/search/label/%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A7<br><br><br><br>http://groups.google.co.in/group/hindibhasha/browse_thread/thread/dde9e2ce361496a0<br>----------------<br>दिल की आवाज़ http://popularindia.blogspot.com/<br>आत्म-चिंतन http://aatm-chintan.blogspot.com/<br>धर्म-दर्शन http://dharm-darshan.blogspot.com/Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-31408452348002029532008-04-26T20:39:00.000+05:302008-04-26T20:39:00.000+05:30आज सबसे बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी कहलाने वाले म...आज सबसे बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी कहलाने वाले मनुष्य द्वारा जब बेकसूर जीवों की हत्या की जाती है तो यह प्रश्न उठ जाता है कि यह मनुष्य तो सर्वाधिक बुद्धिमान व विवेकशील नहीं बल्कि पशु से भी बदतर है (क्यों?)<BR/>http://aatm-chintan.blogspot.com/2008/03/blog-post_24.html<BR/><BR/>http://popularindia.blogspot.com/search/label/%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE<BR/><BR/>http://popularindia.blogspot.com/search/label/%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5-%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE<BR/><BR/>http://popularindia.blogspot.com/search/label/%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A7<BR/><BR/><BR/><BR/>http://groups.google.co.in/group/hindibhasha/browse_thread/thread/dde9e2ce361496a0<BR/>----------------<BR/>दिल की आवाज़ http://popularindia.blogspot.com/<BR/>आत्म-चिंतन http://aatm-chintan.blogspot.com/<BR/>धर्म-दर्शन http://dharm-darshan.blogspot.com/महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Vermahttps://www.blogger.com/profile/07187456741818075757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-88488186167113337412008-04-26T20:23:00.000+05:302008-04-26T20:23:00.000+05:30सर,आपने ऐसा विषय उठाया है,जिसे सुनना और उसपर सोचना...सर,आपने ऐसा विषय उठाया है,जिसे सुनना और उसपर सोचना बहुत ही कम लोग पसंद करते हैं.असल मे निति अनीति,न्याय न्याय,सही ग़लत, धर्म अधर्म,करनीय अकरनिया, खाद्य अखाद्य इत्यादि पर धारणा और व्यवहार जीवन के लिए व्यक्ति विशेष अपने संस्कार ,सामर्थ्य और सुविधानुसार तय करता है और अपनी धारणा को सही ठहराने के लिए भी उसके पास सौ तर्क होते हैं. जो लोग आपके मत से सहमत नही, उनके पास घड़ी भर को बैठ यह मुद्दा उठा कर देखिये,आपको कुछ ही पल मे बेवकूफ न साबित कर दें तो कहियेगा.पर आप तो कहते रहिये.कुछ संवेदनशील ह्रदय हैं जो आपकी बात सुनेंगे भी और दुनिया कुछ भी कहे और माने इस डर से की एक अकेला मैं क्या कर सकता हूँ,या एक एकेले मेरे ऐसे सोचने भर से क्या हो जाएगा, यह मान डर चुप हो बैठने मे विश्वास नही करेंगे.और यह इसलिए भी नही करेंगे की उन्हें राम, कृष्ण ईशा के बराबर का दर्जा पाना है..रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-78105956852188846452008-04-25T01:38:00.000+05:302008-04-25T01:38:00.000+05:30किस्मत का नही दोष बावरे, दोष नही भगवान का दुख देना...किस्मत का नही दोष बावरे, दोष नही भगवान का <BR/>दुख देना इन्सान को जग मेँ , काम रहा इन्सान का<BR/>ये मेरे पापा जी का लिखा एक बहुत पुराना गीत है फिल्म सँत नरसिँह से <BR/>& <BR/>I'd also read that this -<BR/>" History will be written in new chapters when the "Lions" have their own tales to tell " --<BR/>We all are in a spiral of evoloution whose desiny <BR/>remains, unknown !लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-86585875824677767302008-04-25T00:41:00.000+05:302008-04-25T00:41:00.000+05:30ज्ञानदत्त जी,पहले तो मे अपनी बात करता हू,जब भी मेर...ज्ञानदत्त जी,पहले तो मे अपनी बात करता हू,जब भी मेरे साथ अन्याय होता हे तो मे अपने हक के लिये लडता हू,ओर अपना हक ले कर रहता हू,फ़िर लाभ ओर नुकसान भुल जाता हू, कई बार हक से ज्यादा नुक्सान होता हे लेकिन मुझे शान्ति मिलती हे, दुसरा इन्सान जॊ न्याय या अन्याय करता हे वह इस दुनिया का बनाया हुया हे उस उपर वाले के न्याय से डरना चाहिये, ओर वो अन्याय कभी नही करता,आप ने लेख मे बात बहुत अच्छी उठाई हे धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-63471111296060807762008-04-24T19:01:00.000+05:302008-04-24T19:01:00.000+05:30लगता है अनूप जी ने जो दो पोस्ट पहले कहा था सही है,...लगता है अनूप जी ने जो दो पोस्ट पहले कहा था सही है, आप किसी बड़ी समस्या से झूज रहे हैं और आप का मन व्यथित है<BR/>बाकी अगर न्याय के कोन्सेप्ट पर विश्वास न करें तो पूरी कर्मा थ्यौरी चरमरा जाएगी।Anita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-64628514325431168012008-04-24T16:42:00.000+05:302008-04-24T16:42:00.000+05:30अनुराग जी की बात से सहमत है।अनुराग जी की बात से सहमत है।mamtahttps://www.blogger.com/profile/05350694731690138562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-2187382251351846002008-04-24T16:25:00.000+05:302008-04-24T16:25:00.000+05:30कहाँ फँस गए बड़े भाई? न्याय की अवधारणा ही राज्य के...कहाँ फँस गए बड़े भाई? न्याय की अवधारणा ही राज्य के अस्तित्व से जनमी है। चाणक्य वाक्य है। राजा को न्याय करना चाहिए, जिस से उस के विरुद्ध विद्रोह न हो।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-44146192807892461322008-04-24T15:36:00.000+05:302008-04-24T15:36:00.000+05:30आज का कडवा सच बयान किया है आपने। पर मुझे नही लगता ...आज का कडवा सच बयान किया है आपने। पर मुझे नही लगता कि मोटी चमडी वालो पर इससे कोई खास पडेगा। उन्हे अपना हित दिखेगा उसी पर बोलेंगे। बाकी सच से पर्दा किये रहेंगे।Pankaj Oudhiahttps://www.blogger.com/profile/06607743834954038331noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-27699804769479241562008-04-24T11:37:00.000+05:302008-04-24T11:37:00.000+05:30ज्ञानदत्त जी ये प्रकति का नियम नही है ,ये इंसानों ...ज्ञानदत्त जी ये प्रकति का नियम नही है ,ये इंसानों के बनाये हुए नियम है ...वैसे भी अब हर आदमी छोटे मोटे अन्याय सहने का आदी हो गया है ...यही खतरे की बात है ,अपनी न्याय प्रणाली से उम्मीद खोना यही खतरे की बात है......उठिए ओर मार भगायिये ,लतायिये इन साले गमो को ...कृष्ण ,ईसा...बरसों बाद भी जिंदा तो है आपके मन मे,बाकि किस का नाम याद है आपको.....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-70699492538564517242008-04-24T11:17:00.000+05:302008-04-24T11:17:00.000+05:30न्याय की जगह अन्याय दुखी करता ही रहा है, इसीलिए क्...न्याय की जगह अन्याय दुखी करता ही रहा है, इसीलिए क्रइस्ट, राम क्रष्ण जन्मे और आम इन्सान की तरह सब सहा यह जानने के लिए कि दुनियां कैसे कैसे लोगों से पटी है और फिर लगाम अपने हाथ लिया ,और हम सब उन्हीं के भरोसे है देर ही सही फिर जिसके पास सहने की ताकत है वह ईश्वर के करीब है ,यही कह सकती हूँ, खिन्नता के बावजूद ।आभाhttps://www.blogger.com/profile/04091354126938228487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-5232018050840838252008-04-24T10:43:00.000+05:302008-04-24T10:43:00.000+05:30I empathize with you. What else we can do besides ...I empathize with you. What else we can do besides living what we believe. मन में काफी कुछ उफन रहा है पर कहने का कोई मतलब नहीं. बहरों की दुनिया में बज रहे नक्कारों के बीच हमारी तूती किसी को सुने नहीं देगी.ab inconvenientihttps://www.blogger.com/profile/16479285471274547360noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-89536057363919797202008-04-24T10:36:00.000+05:302008-04-24T10:36:00.000+05:30प्रक्रति हमेश न्याय करती है. प्रक़ति के ऐसे कार्य...प्रक्रति हमेश न्याय करती है. प्रक़ति के ऐसे कार्य जो हमारे पक्ष में नहीं होते हैं, वे हमें अन्याय लगते है. कौन जीव किसके लिए भोजन है,प्रक्रत- संतुलन के लिए प्रक्रति ने ही निर्धारित किए हैं. इसलिए इस विषय में मेनकायी चिंता नहीं करनी चाहिए. इससे बड़ा चिंता का कारण सामाजिक न्याय है. वह भी अभी प्राप्त नहीं है.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02514200566679057059noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-41484256431005726332008-04-24T09:48:00.000+05:302008-04-24T09:48:00.000+05:30आपने आज मेरी पसंद का विषय ऊठाया है ,मुझे अकसर यही ...आपने आज मेरी पसंद का विषय ऊठाया है ,मुझे अकसर यही लगता है ,कदम कदम पर जब भी मै किसी भी मसले को देखता हू तो यही समझ मे आता है कि सत्य भी हर एक का अपना होता है और न्याय भी,एक वो जो आपका सत्य है एक वो जो मेरा सत्य है और एक अंतिम सत्य जो वाकई मे सत्य होता है पर मेरे और आपके सत्य के बीच कही दम तोड देता है ,ठीक इसी तरह न्याय भी है वो चाहे मानव द्वारा किया गया हो या प्रकृती द्वारा,एक वो जो आप के लिये आपकी नजर मे न्याय है एक वो जो मेरॊ लिये मेरी नजर मे न्याय है और असली न्याय जो होना था जो नही हुआ उसकी हत्या हो चुकी होती है. <BR/>लेकिन फ़िर भी जीवन चलता रहता है नया रास्ता ढूढ कर <BR/>दो लाईने मेरी बहुत प्रिया है आपको भी सुना देता हू<BR/>"तसवीर जिंदगी की <BR/>बनाते है सब यहा<BR/>जैसी जो चाहता है<BR/>मिलती है लेकिन कहा<BR/>हर आरजू पूरी हो<BR/>होता ऐसा अगर <BR/>कांटो के साथ ना होता <BR/>जीवन का ये सफ़र " <BR/>इसी लिये मै अब बहुत मुश्किल से गंभीर होता हू और अकसर आप लोगो के उठये गंभीर विषयो को <BR/>हसी मे उडा कर चल देता हू,काहे सोचे ,हम कर भी क्या लेगे सिवाय अपना खून जलाने के :)Arun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-40741377935971678132008-04-24T09:34:00.000+05:302008-04-24T09:34:00.000+05:30वैसे कई बार यही लगता है कि न्याय व्याय की जीत नहीं...वैसे कई बार यही लगता है कि न्याय व्याय की जीत नहीं होती, ताकत की जीत होती है। ताकत कभी न्याय के साथ खड़ी हो सकती है, कभी अन्याय के साथ। <BR/>पशु पक्षी ताकतवर थे, तब आदमी उनसे डरता था। अब तो शेरों को आदमियों से बचाने की चिंताएं हैं। ताकत के अलावा इस धरती पर दूसरा सत्य दिखायी नहीं पड़ता। करुणा, दया नैतिकता प्रवचन हैं, मन करें, तो ले लें, ना करे तो ना लें।ALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-80002280734702954542008-04-24T09:13:00.000+05:302008-04-24T09:13:00.000+05:30लगता है आप कनफुजिया-कम-सेंटिया गए हैं . मजबूत कमजो...लगता है आप कनफुजिया-कम-सेंटिया गए हैं . मजबूत कमजोर को, अमीर गरीब को, बड़ी मछली छोटी को सदा से खाती आई है और खाती रहेगी. यही प्राकृतिक न्याय है. फर्क सिर्फ़ इस बात का है की आप नाचुरल डेथ किसको मानते हैं . क्या बूढे होकर मरना ही नाचुरल डेथ है ? <BR/><BR/>समाजवादी और कम्युनिस्टों की मत सुनिए वे इस नेचुरल आर्डर के दुश्मन हैं अर्थात प्रकृति के दुश्मन ;)<BR/>सौरभस https://www.blogger.com/profile/03027465386856609299noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-75290921937136704982008-04-24T08:23:00.000+05:302008-04-24T08:23:00.000+05:30अच्छी पोस्ट। सोचने के लिए नया विषय मिला है।-आनंद...अच्छी पोस्ट। सोचने के लिए नया विषय मिला है।-आनंदआनंदhttps://www.blogger.com/profile/08860991601743144950noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-833449927772054112008-04-24T07:40:00.000+05:302008-04-24T07:40:00.000+05:30ज्ञान जी की मानसिक हलचलें अब सुनामी का रूप ले रही ...ज्ञान जी की मानसिक हलचलें अब सुनामी का रूप ले रही हैं -ब्लागर भाईयों सावधान हो जाईये ,यह पोस्ट सचमुच एक एक मिनी सुनामी ही है बिल्कुल उनके ब्लॉग शीर्षक के ही अनुरूप .<BR/>ऐसे विचार महान लोगों के मन मे उपजते ही हैं -लेकिन उन्हें व्यथित भी करते हैं -बाबा तुलसी ने इसलिए ही कहा था की 'सबसे भले वे मूढ़ जिन्हें न व्यापाहि जगत गति ...<BR/>ज्ञान जी ऐसे विचारों को मन से झट्किए और काम पर चलिए .<BR/>नैसर्गिक न्याय ?एक मुगालता ही है .प्रकृति निष्ठुर और अति क्रूर है .उसे अपनी लीलाओं से फुरसत नही ,वह जबरा मारे और रोवे न दे की ही हैसियत मे है .उसे गरीब अमीर ,सुखी दुखी ,पागल -बुद्धिमान से कुछ लेना देना नही है ,वह बस प्रयोग परीक्षणों मे जुटी रहती है ,हम सब क्षुद्र जीव हैं उसके सैडिस्तिक खिलवाड़ के .<BR/>अब जब कुदरत के ये हाल हैं तो आदमी -बन्दे को क्या कहें ?Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com