tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post5795630462538324988..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: संस्कृत के छात्रGyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger35125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-14443165506296963072009-09-09T19:57:03.633+05:302009-09-09T19:57:03.633+05:30अपने कछुआ खोल को कुछ समय के लिए त्याग उनके पास एक ...अपने कछुआ खोल को कुछ समय के लिए त्याग उनके पास एक दिन चर्चा कर आईये। सिर्फ़ चर्चा करने में कोई आपत्ति थोड़े न होगी उनको, न आप उनको अपने विचार अपनाने को ज़ोर देंगे न ही उनके विचारों से आपको सहमत होने की कंपल्शन होगी!! महज़ चर्चा और विचारों के आदान प्रदान में क्या आपत्ति?!amithttps://www.blogger.com/profile/03372488870536392202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-13054546249575013562009-09-09T03:43:50.124+05:302009-09-09T03:43:50.124+05:30अभी तो मीडिया, बाजार और आदमी की छुद्रता ही नये कर्...अभी तो मीडिया, बाजार और आदमी की छुद्रता ही नये कर्मकाण्ड रच रहे हैं! आदि से अन्त तक वल्गर! - बिलकुल सही बोला है | देखिये कर्म-काण्ड का अपना एक महत्व है | हमारे मानने ना मानने से कर्म कांड की महत्ता कम नहीं होगी | <br /><br />ये तो हमारे ऊपर है की संस्कृत भाषा या कर्मकांड से हमें फायदा चाहिए या नहीं ! यहाँ अमेरिका मैं भी कुछ अमेरिकन (भारतीय नहीं भाई शुद्ध गोरी चमड़ी वाले की बात कर रहा हूँ ) से मिला हूँ जो संस्कृत सिख कर आपना ज्ञान बढा रहे हैं, कई मौकों पर हम जैसे भारतीय का ज्ञान इनके (अमेरिकन) संस्कृत या कर्मकांड ज्ञान से कोशों पीछे है |Rakesh Singh - राकेश सिंहhttps://www.blogger.com/profile/03770667837625095504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-80488724304345588722009-09-09T01:38:02.866+05:302009-09-09T01:38:02.866+05:30आगे भी इसी तरह जानकारियाँ
बतलाइयेगा -
- हमें तो...आगे भी इसी तरह जानकारियाँ <br />बतलाइयेगा -<br />- हमें तो जी / Zee टी वी देखकर <br />ऐसे ही लगता है के<br /> भारत में सारे परिवार <br />हर उत्सव + कर्म काण्ड <br />खूब निभाते हैं -<br />- क्या ऐसा नहीं ? <br />-- छात्रों के छुटकी वीडीयो भा गयी -- <br />सादर, <br />- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-35312145340402967342009-09-09T00:15:00.183+05:302009-09-09T00:15:00.183+05:30समय के साथ बदलाव हो तो कर्मकांड सामयिक और प्रभावशा...समय के साथ बदलाव हो तो कर्मकांड सामयिक और प्रभावशाली बने रहेंगे!....... वर्ना तो ??प्रवीण त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/02126789872105792906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-37568880937253102009-09-08T23:28:51.926+05:302009-09-08T23:28:51.926+05:30संस्कृत साहित्य और वेदों पर जितना काम विदेशों में ...संस्कृत साहित्य और वेदों पर जितना काम विदेशों में हो रहा है उतना इस देश में नहीं । इसी बहाने कुछ तो बचा हुआ है वरना एक दिन वेटिकन से ये भी संदेश आ जायेगा कि जब तुम्हारे कर्मकाण्ड समाप्त हो चुके हैं तो हमारे क्यों नहीं अपना लेते हो ।कृष्ण मोहन मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/14783932323882463991noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-69789021340375680202009-09-08T23:15:52.960+05:302009-09-08T23:15:52.960+05:30काशी की अस्सी में भी एक पंडित जी थे जो कि संस्कृत ...काशी की अस्सी में भी एक पंडित जी थे जो कि संस्कृत पढाने के नाम पर प्रपंच रच रहे थे..ताकि घर में कुछ विदेशी किरायेदार रख कुछ नगद नारायण रखा जाय। विदेशी किरायेदार आता तो एक महीने के लिये है पर भाडा पूरे साल का देता है ये मान्य परिपाटी है। जगह का कब्जियाना अलग...। सो आप तो जगह का कब्जियाना और संस्कृत पढाना एकसाथ देखिये...अपन तो काशी की अस्सी दुबारा खोल रहे हैं औऱ बगल में ही बारहमासी बाय ज्ञानरंजन ताक रहे हैं :)सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-56517887240703247082009-09-08T22:01:06.563+05:302009-09-08T22:01:06.563+05:30अब इतने ग्यानवान महापंडित लोगों के बीच चर्चा चल रह...अब इतने ग्यानवान महापंडित लोगों के बीच चर्चा चल रही है तो मैं क्या कहूँ ? टाईम हो गया है उठ कर दो म्न्त्र मैं भी बोल लूँ राम रामनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-35442463713214594462009-09-08T20:19:00.188+05:302009-09-08T20:19:00.188+05:30मुझे इस बारे कुछ नही पता,लेकिन आप का लेख बहुत भाया...मुझे इस बारे कुछ नही पता,लेकिन आप का लेख बहुत भाया, धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-79537038138618901462009-09-08T19:57:54.064+05:302009-09-08T19:57:54.064+05:30कर्मकाण्डों के प्रति अरुचि का भाव सहज मॉडर्न सोच ह...कर्मकाण्डों के प्रति अरुचि का भाव सहज मॉडर्न सोच है। पर यह भी है कि समाज निर्वात – वैक्युम – में नहीं रहता। आप एक प्रकार के कर्मकाण्ड यत्न कर निकाल दें जीवन से और उन्हें किन्ही अन्य से रिप्लेस न करें तो पायेंगे कि कोई अन्य कर्मकाण्ड – अनगढ़ और अधकचरा – उनका स्थान ले लेते हैं। और आप स्मार्टर बाई हाफ ही नजर आते हैं! हमें आधुनिक कर्मकाण्डों की सयास रचना करनी चाहिये!<br /><br />अभी तो मीडिया, बाजार और आदमी की छुद्रता ही नये कर्मकाण्ड रच रहे हैं! आदि से अन्त तक वल्गर! <br /><br />सच ही कहा आपने. और<br />हम हमारी जनरेशन कछुआ कवच में ही सिमटी बैठी है, देखते रहने के सिवा कुछ कर भी न सकेगी.<br /><br />चन्द्र मोहन गुप्त <br />जयपुर<br />www.cmgupta.blogspot.comMumukshh Ki Rachanainhttps://www.blogger.com/profile/11100744427595711291noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-76112622611386688272009-09-08T19:20:42.733+05:302009-09-08T19:20:42.733+05:30जमीन का सदुपयोग हो रहा हैजमीन का सदुपयोग हो रहा हैडॉ महेश सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-69765563831635823792009-09-08T17:06:55.265+05:302009-09-08T17:06:55.265+05:30कर्मकाण्डों के प्रति अरुचि का भाव सहज मॉडर्न सोच ह...कर्मकाण्डों के प्रति अरुचि का भाव सहज मॉडर्न सोच है। पर यह भी है कि समाज निर्वात – वैक्युम – में नहीं रहता। आप एक प्रकार के कर्मकाण्ड यत्न कर निकाल दें जीवन से और उन्हें किन्ही अन्य से रिप्लेस न करें तो पायेंगे कि कोई अन्य कर्मकाण्ड – अनगढ़ और अधकचरा – उनका स्थान ले लेते हैं। और आप स्मार्टर बाई हाफ ही नजर आते हैं! हमें आधुनिक कर्मकाण्डों की सयास रचना करनी चाहिये!<br /><br /><br />यह उक्ति परमानंदित कर गयी ..... मेरी भी यही धारणा है..रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-7126449272771727482009-09-08T16:12:03.905+05:302009-09-08T16:12:03.905+05:30" कर्मकाण्ड के रूप में या तो ये समाज को रूढ़ ..." कर्मकाण्ड के रूप में या तो ये समाज को रूढ़ बनायेंगे; या प्रयोगधर्मी हो कर समाज की धर्म श्रद्धा को सामाजिक क्रांति का वाहक बनायेंगे"<br /><br />किसी भी सभ्यता में कर्मकाण्ड का अपना महत्व होता है। जब तक यह कर्मकाण्ड समय के हिसाब से बदलाव स्वीकार करते हैं, वह सभ्यता जीवित रहती है।<br />शायद हिंदू सभ्यता के जीवित एवं जीवंत होने का यह प्रमाण है कि कर्मकाण्ड अंधविश्वास में नहीं बदले और वे समयानुसार बदलते रहे हैं, जिसमें समाजसुधारकों का भी बड़ा योगदान रहा।चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-47363574908177130542009-09-08T15:12:23.598+05:302009-09-08T15:12:23.598+05:30आदरणीय ज्ञानदत्त जी,
भिनसारे गंगा मईया के दर्शन क...आदरणीय ज्ञानदत्त जी,<br /><br />भिनसारे गंगा मईया के दर्शन के इलावा बहुत कुछ देखे का मिलत है अऊर हम लोगन के भी नयन सुख मिल जात है मनऊव मा हलचल हो तो हो केहू के नीक ना लागे तो हम का करी, हमहू आपै के साथि हैं।<br /><br />विद्यालय के बहाने ज़मीन के बचाय के जुगत भले ही है, कर्मकांड से केहू का भला होई यह दूसर बाति है।<br /><br />जय गंगा मईया की,<br /><br /><br />सादर,<br /><br /><br />मुकेश कुमार तिवारीमुकेश कुमार तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04868053728201470542noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-22464216851320323652009-09-08T14:50:04.512+05:302009-09-08T14:50:04.512+05:30हमेशा कि तरह बहुत अच्छा आप तो रोज रोज गंगा दर्शन ...हमेशा कि तरह बहुत अच्छा आप तो रोज रोज गंगा दर्शन पर कभी डुबकि लगाते है या बस फोटो हि खीचते हैjitendrahttps://www.blogger.com/profile/06299200941573468100noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-87111365121558065242009-09-08T13:22:53.839+05:302009-09-08T13:22:53.839+05:30"हमें आधुनिक कर्मकाण्डों की सयास रचना करनी चा..."हमें आधुनिक कर्मकाण्डों की सयास रचना करनी चाहिये!"<br /><br />कर तो रहे हैं.Shivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-70920771866214466162009-09-08T12:24:36.753+05:302009-09-08T12:24:36.753+05:30कर्मकांड क्या होता है ये तो पता नहीं.. पर इसी रविव...कर्मकांड क्या होता है ये तो पता नहीं.. पर इसी रविवार एक बहुत बड़ी पीठ के पीठाधीश से मिला हु.. आस पास चेलो का समूह लिए रहते है.. उनसे मिलकर मेरा विश्वास और प्रबल हो गया कि कर्म कांडो में खुद को नहीं फस्वाना चाहिए.. पर क्या करे.. हम खुद ही आदत से बाज नहीं आते.. ज्योतिष में बिलकुल भी विश्वास ना होने पर भी एक निगाह अखबार में आने वाले भविष्यफल पर डाल ही लेते है..कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-32341024057887455682009-09-08T12:15:33.063+05:302009-09-08T12:15:33.063+05:30ये अपनी कछुवा खोल बड़ी मजबूत है :(ये अपनी कछुवा खोल बड़ी मजबूत है :(Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-86095311310443077672009-09-08T11:52:44.363+05:302009-09-08T11:52:44.363+05:30कर्मकाण्ड कतई पसन्द नहीं. दुसरी सोच है कि हिन्दु र...कर्मकाण्ड कतई पसन्द नहीं. दुसरी सोच है कि हिन्दु रीती रिवाज खत्म होंगे तो धर्मांतरण भी बढ़ेगा....संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-13329317888821200902009-09-08T11:47:39.279+05:302009-09-08T11:47:39.279+05:30समय ओर हालात आपकी मनोस्थिति तय करते है ...दुःख में...समय ओर हालात आपकी मनोस्थिति तय करते है ...दुःख में आप शायद इन्ही मंत्रो पे गहरा विश्वास करने लगते है ...धर्म का भी दुरूपयोग हुआ है...व्यक्ति बुरा है...धर्म नहीं....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-84652246003738735792009-09-08T10:56:21.246+05:302009-09-08T10:56:21.246+05:30ज्ञानजी, ये संस्कृत भला क्या होती है...ज़रा हाई-फा...ज्ञानजी, ये संस्कृत भला क्या होती है...ज़रा हाई-फाई स्कूलों में जाकर देखिए...वहां मां-बाप कहते मिल जाएंगे...संस्कृत, व्हॉट संस्कृत...इट इज़ ए टोटली डाइंग लैंग्वेज...वी आर इंट्रेस्टेड ओनली इन फ्रेंच, डच ऑर स्पेनिश लैंग्वेज फॉर अवर वॉर्ड्स...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-78354494152383320162009-09-08T09:16:00.736+05:302009-09-08T09:16:00.736+05:30अभी तो मीडिया, बाजार और आदमी की छुद्रता ही नये कर्...अभी तो मीडिया, बाजार और आदमी की छुद्रता ही नये कर्मकाण्ड रच रहे हैं! आदि से अन्त तक वल्गर! baat to tum thike kah rahe ho bhayiya.....isiliye to gyaandatt kahlaate ho bhayiyaa.....ye gyaan hamen de do thaakoor.....!!राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ )https://www.blogger.com/profile/07142399482899589367noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-28320864936815931912009-09-08T09:10:01.683+05:302009-09-08T09:10:01.683+05:30मेरा मानना है कि कर्मकाण्ड निरा ठकोसला नहीं है। यह...मेरा मानना है कि कर्मकाण्ड निरा ठकोसला नहीं है। यह जरूर है कि हमारे पण्डितों ने अपने स्वार्थ के लिए समय समय में अनेक निरर्थक बातों को जोड़ दिया है। कर्मकाण्ड पर शोध की आवश्यकता है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09998235662017055457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-79024966132548560992009-09-08T08:48:20.210+05:302009-09-08T08:48:20.210+05:30आप एक प्रकार के कर्मकाण्ड यत्न कर निकाल दें जीवन स...आप एक प्रकार के कर्मकाण्ड यत्न कर निकाल दें जीवन से और उन्हें किन्ही अन्य से रिप्लेस न करें तो पायेंगे कि कोई अन्य कर्मकाण्ड – अनगढ़ और अधकचरा – उनका स्थान ले लेते हैं।<br />----------------------------<br /><br />सुनते-गुनते आए है: धर्म-ध्यान से बड़ा कर्म है, कर्म-काण्ड से बड़ा मर्म है.<br /><br />लगता तो नहीं है कि किसी कर्मकाण्ड के बंधन में जकड़े हैं अपन. पर अपने आप को स्वयं जज कर पाना भी कठिन है. दूसरे ज्यादा बेहतर ऑब्ज़र्व कर सकते हैं. आज पड़ताल करता हूं इस विषय में. आभार इस आइडिये के लिये.Ghost Busterhttps://www.blogger.com/profile/02298445921360730184noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-47956168951865157342009-09-08T08:29:28.154+05:302009-09-08T08:29:28.154+05:30कर्मकाण्ड में यदि कुछ सार्थक न समझ में आये तो उसे ...कर्मकाण्ड में यदि कुछ सार्थक न समझ में आये तो उसे उसी अवस्था में छोड़ दिया जाये । किसी विषय का विश्लेषण करने के लिये उसमें निहित ज्ञान व संबन्धित संदर्भों की आवश्यकता होती है । यह कहना भी ठीक ही है कि प्रथम दृष्टया कर्मकाण्डों का औचित्य नहीं प्रतीत होता है पर कुछ भी हो वह संस्कृति की एक भौतिक अभिव्यक्ति है । यह भी कहना ठीक है कि कालान्तर में कुछ अपसंस्कृतियाँ भारतीय समाज में प्रवेश कर गयीं हैं पर उनको उखाड़ने का प्रयास फसल से खरपतवार निकालने जैसा होना चाहिये ।<br />भारतीय संस्कृति जब आपको यह छूट देती है कि आप अपनी उपासना पद्धति, रहन सहन, आचार विचार अपनी प्रकृति के अनुसार ढाल सकते हैं तो कर्मकाण्डियों को भी जीने दिया जाये । पर केवल कर्मकाण्ड ही संस्कृति है यह भी सत्य नहीं है ।<br />कर्मकाण्डों में कुछ परोक्ष रूप से छिपा रहता है जो कि जीवन के लिये अच्छा होता है । संस्कृत के विद्यार्थियों में कम से कम सुबह जल्दी उठने की, स्वाबलम्बन की आदतें तो पड़ जाती है ।<br />आपने सच ही कहा है - आधुनिक कर्मकाण्ड जैसे कि टीवी देखना, हमें कहाँ लिये जा रहा है या कौन सी व्यावसायिक मदद कर रहा है ।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-27100148209116202842009-09-08T08:23:03.229+05:302009-09-08T08:23:03.229+05:30विवेक रस्तोगी ने महाकाल के निकट बड़े गणेश मंदि्र म...विवेक रस्तोगी ने महाकाल के निकट बड़े गणेश मंदि्र में चल रहे विद्यालय का उल्लेख किया है। वहाँ से उन विद्यार्थियों का वेदपाठ सुन कर निकला ही था कि हरसिद्धि की ओर जाते हुए एक तालाब मिला, वर्षा ऋतु थी मैंढ़को का समवेत भी सुना और दोनों की समानता का प्रत्यक्ष भी हुआ। वैदिक साहित्य में भी उस का उल्लेख है। लेकिन किसी पाठ को कंठस्थ कर लेने का अपना महत्व है। फिर पुस्तकें तो अब जनजन तक पहुँची हैं। मेरी माँ बताती हैं कि उन की तीसरी की पुस्तक किसी ने चुरा ली थी तो कितना कोहराम मचा था। बाद में वह भी नदी तल में रेत के नीचे छुपाई हुई मिल गई और उसी से पढ़ाई हुई।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com