tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post5663558626409772910..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: “काशी का अस्सी” के रास्ते हिंदी सीखेंGyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-67889780554538537462011-04-10T00:11:57.454+05:302011-04-10T00:11:57.454+05:30कुछ मुहं ऐसे होते हैं जिनसे निकली गालियां भी अश्ली...कुछ मुहं ऐसे होते हैं जिनसे निकली गालियां भी अश्लील नहीं लगती . कुछ ऐसे होते हैं जिनका सामान्य सौजन्य भी अश्लीलता में आकंठ डूबा दिखता है . सो गालियों की अश्लीलता की कोई सपाट समीक्षा या परिभाषा नहीं हो सकती . <br><br>उनमें जो जबर्दस्त 'इमोशनल कंटेंट' होता है उसकी सम्यक समझ जरूरी है . गाली कई बार ताकतवर का विनोद होती है तो कई बार यह कमज़ोर और प्रताड़ित के आंसुओं की सहचरी भी होती है जो असहायता के बोध से उपजती है . कई बार यह प्रेमपूर्ण चुहल होती है तो कई बार मात्र निरर्थक तकियाकलाम .<br><br>काशानाथ सिंह (जिनके लेखन का मैं मुरीद हूं)के बहाने ही सही पर जब बात उठी है तो कहना चाहूंगा कि गालियों पर अकादमिक शोध होना चाहिए. 'गालियों का उद्भव और विकास', 'गालियों का सामाजिक यथार्थ', 'गालियों का सांस्कृतिक महत्व', 'भविष्य की गालियां' तथा 'आधुनिक गालियों पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव'आदि विषय इस दृष्टि से उपयुक्त साबित होंगे.<br><br>उसके बाद निश्चित रूप से एक 'गालीकोश' अथवा 'बृहत गाली कोश' तैयार करने की दिशा में भी सुधीजन सक्रिय होंगे .Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-43422097120656654472007-05-15T15:04:00.000+05:302007-05-15T15:04:00.000+05:30कुछ मुहं ऐसे होते हैं जिनसे निकली गालियां भी अश्ली...कुछ मुहं ऐसे होते हैं जिनसे निकली गालियां भी अश्लील नहीं लगती . कुछ ऐसे होते हैं जिनका सामान्य सौजन्य भी अश्लीलता में आकंठ डूबा दिखता है . सो गालियों की अश्लीलता की कोई सपाट समीक्षा या परिभाषा नहीं हो सकती . <BR/><BR/>उनमें जो जबर्दस्त 'इमोशनल कंटेंट' होता है उसकी सम्यक समझ जरूरी है . गाली कई बार ताकतवर का विनोद होती है तो कई बार यह कमज़ोर और प्रताड़ित के आंसुओं की सहचरी भी होती है जो असहायता के बोध से उपजती है . कई बार यह प्रेमपूर्ण चुहल होती है तो कई बार मात्र निरर्थक तकियाकलाम .<BR/><BR/>काशानाथ सिंह (जिनके लेखन का मैं मुरीद हूं)के बहाने ही सही पर जब बात उठी है तो कहना चाहूंगा कि गालियों पर अकादमिक शोध होना चाहिए. 'गालियों का उद्भव और विकास', 'गालियों का सामाजिक यथार्थ', 'गालियों का सांस्कृतिक महत्व', 'भविष्य की गालियां' तथा 'आधुनिक गालियों पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव'आदि विषय इस दृष्टि से उपयुक्त साबित होंगे.<BR/><BR/>उसके बाद निश्चित रूप से एक 'गालीकोश' अथवा 'बृहत गाली कोश' तैयार करने की दिशा में भी सुधीजन सक्रिय होंगे .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-40143120212082445962007-05-12T17:44:00.000+05:302007-05-12T17:44:00.000+05:30मैंने तो "काशी का अस्सी" का नाम भी नहीं सुना था, ल...मैंने तो "काशी का अस्सी" का नाम भी नहीं सुना था, लेकिन आपने इसको पढ़ने की जिज्ञासा उत्पन्न कर दी है। वैसे तो मैने गाँवों में महिलाओं का वाग्युद्ध सुना है; एक वाक्य में दस दस गालियाँ। दाद देनी पड़ती है उनकी वाक्यपटुता की।Laxmihttps://www.blogger.com/profile/01605651550165016319noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-48721370628112358012007-05-12T14:16:00.000+05:302007-05-12T14:16:00.000+05:30काशी का अस्सी की दूसरी समीक्षा.. लगता है किताब खरी...काशी का अस्सी की दूसरी समीक्षा.. लगता है किताब खरीदनी ही पड़ेगी..धन्यवाद ज्ञान जी.. और जो कथ्य होगा वो तो होगा ही.. पर अकेले गालियो के लिये भी मैं खरीद लूँगा .. उनको सुनकर तो खूब आनन्द लिया गया है अब पढ़ कर भी लिया जाय..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-13215484313212041262007-05-12T12:59:00.000+05:302007-05-12T12:59:00.000+05:30“काशी का अस्सी” तो मैनें नहीं पढ़ा है, अब लगता है आ...“काशी का अस्सी” तो मैनें नहीं पढ़ा है, अब लगता है आपके कथन के बाद पढ़ना ही पड़ेगा।<BR/>गालियों से भरी रचना के संदर्भ में मुझे, डाक्टर राही मासूम रज़ा का "आधा गांव" याद है जो कि एक बेहतरीन रचना हैSanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-78742341647294802362007-05-12T10:54:00.000+05:302007-05-12T10:54:00.000+05:30भैया अब सब कूछ डिब्बा बन्द का जमाना है,डिब्बे मे म...भैया अब सब कूछ डिब्बा बन्द का जमाना है,डिब्बे मे मुह डाला हो हो कर हस लिये लगता तो यही है आने वाले व्क्त मे क्रेडिट कार्ड स्वैप किया हस लिये ,रो लिये डिब्बे मे से आवाज आयेगी अगर आप और रोना या हसना चाहते है तो दुबारा स्वैप करेArun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-49603353434849813072007-05-12T10:10:00.000+05:302007-05-12T10:10:00.000+05:30आजकल की युवा पीढ़ी तो बिना एक-आध गाली के बात ही नही...आजकल की युवा पीढ़ी तो बिना एक-आध गाली के बात ही नही कर सकती है।<BR/><BR/>हंसी का मतलब है जिन्दादिली और मस्ती का विस्फोट, जिन्दगी की खनक। यह तन की नहीं, मन की चीज है॥<BR/>आज के समय मे इसका महत्त्व कम होता जा रहा है क्यूंकि मशीनी जिंदगी जो होती जा रही है।mamtahttps://www.blogger.com/profile/05350694731690138562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-45041618552215724052007-05-12T10:04:00.000+05:302007-05-12T10:04:00.000+05:30आप इच्छीत न लिख पाए तो ब्लोग की महत्ता वहीं खत्म ह...आप इच्छीत न लिख पाए तो ब्लोग की महत्ता वहीं खत्म हो गई समझो.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-62690916355778209592007-05-12T08:26:00.000+05:302007-05-12T08:26:00.000+05:30अब क्या कहें..भारत में हमने भी यह दोहरा व्यक्तित्त...अब क्या कहें..भारत में हमने भी यह दोहरा व्यक्तित्त्व खूब जिया है. राजनित में जो थे...बाहर अलग भाषा और घर अलग//// :)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-49576376927125988872007-05-12T08:03:00.000+05:302007-05-12T08:03:00.000+05:30अनूप जी के कमेंट पर:...कुछ गालियों के चलते मैं उनक...अनूप जी के कमेंट पर:<BR/><BR/><B>...कुछ गालियों के चलते मैं उनका लेख देख तमाशा लकड़ी का यहां पोस्ट करना चाहते हुये भी नहीं पोस्ट कर पाया! अब सोचते हैं कर ही दिया जाये!</B><BR/><BR/>बिल्कुल करें सुकुल जी. अच्छी हिन्दी की महंतई बन्द होनी चाहिये.Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-88793886269629798082007-05-12T07:47:00.000+05:302007-05-12T07:47:00.000+05:30पांडेयजी, कुछ गालियों के चलते मैं उनका लेख देख तमा...पांडेयजी, कुछ गालियों के चलते मैं उनका लेख देख तमाशा लकड़ी का यहां पोस्ट करना चाहते हुये भी नहीं पोस्ट कर पाया! अब सोचते हैं कर ही दिया जाये!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.com