tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post5556758707153632259..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: आदर्शवाद और आदर्श का बाजारGyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger22125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-47568167917547779882008-02-16T23:40:00.000+05:302008-02-16T23:40:00.000+05:30ह्म्म्॥….।:) विचाराधीनह्म्म्॥….।:) विचाराधीनAnita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-66404804412095956132008-02-14T21:08:00.000+05:302008-02-14T21:08:00.000+05:30आदरणीय ज्ञान जी,यह आदर्शवाद और आदर्श अपनेआप में आय...आदरणीय ज्ञान जी,<BR/>यह आदर्शवाद और आदर्श अपनेआप में आयामित शब्द है ! मगर इस शब्द के माध्यम से आपने समाज की जिन समस्याओं की ओर इंगित किया है वह जायज है !वैसे इन दोनों का महत्त्व नितांत निजी ज्यादा है सामाजिक कम !बहुत अच्छा लिखा है आपने..बधाइयां !रवीन्द्र प्रभातhttps://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-23534015036564885062008-02-14T20:47:00.000+05:302008-02-14T20:47:00.000+05:30बात पते की है और समस्या वाकई गंभीर है.चूँकि 'आदर्श...बात पते की है और समस्या वाकई गंभीर है.<BR/>चूँकि 'आदर्श भारत' वाला कथन विवेकानन्द का है तो हम इंतज़ार कर सकते हैं.Kirtish Bhatthttps://www.blogger.com/profile/10695042291155160289noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-87054368248070887652008-02-14T20:44:00.000+05:302008-02-14T20:44:00.000+05:30भैय्याआप इतना अच्छा और सच्चा लिखते हैं की पढ़ कर सि...भैय्या<BR/>आप इतना अच्छा और सच्चा लिखते हैं की पढ़ कर सिर्फ़ स्वीकारोक्ति में गर्दन ही हिलाई जा सकती है उसमें कुछ और लिख कर जोडा या घटाया नहीं जा सकता. आप की पोस्ट पर जैसा मैंने पहले भी कहा था टिपण्णी करना बहुत मुश्किल काम है.<BR/>नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-44557398264397239572008-02-14T19:35:00.000+05:302008-02-14T19:35:00.000+05:30सत्य वचन.सत्य वचन.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-39502992204405243922008-02-14T18:38:00.000+05:302008-02-14T18:38:00.000+05:30आपकी टिप्पणी पढ़ी अच्छा लगा, टेम्पलेट पंसद आया ...आपकी टिप्पणी पढ़ी अच्छा लगा, टेम्पलेट पंसद आया यह भी जान कर अच्छा लगा, आशा है कि आप पुन: आयेगेंPramendra Pratap Singhhttps://www.blogger.com/profile/17276636873316507159noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-48830656183167341862008-02-14T18:01:00.000+05:302008-02-14T18:01:00.000+05:30सच्ची कहें तो ऐसे आदर्शवाद से हमें तो डर लगता है।...सच्ची कहें तो ऐसे आदर्शवाद से हमें तो डर लगता है। क्योंकि बड़े और महान आदर्शों को पालने का बूता नहीं है। साफ कहना खुश रहना वाली फिलासफी है अपनी। जो कर रहे हैं यदि वो आदर्शवाद के निकट है तो ठीक है और नहीं है तो दिखावा ओढ़ा नहीं जाता।<BR/><BR/>पोस्ट बहुत अच्छी लगी।bhuvnesh sharmahttps://www.blogger.com/profile/01870958874140680020noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-15185727114485984722008-02-14T13:03:00.000+05:302008-02-14T13:03:00.000+05:30समस्या बडी है, चिंता जायज है पर समाधान भी तो सुझाइ...समस्या बडी है, चिंता जायज है पर समाधान भी तो सुझाइये।Pankaj Oudhiahttps://www.blogger.com/profile/06607743834954038331noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-27202858523813343222008-02-14T12:46:00.000+05:302008-02-14T12:46:00.000+05:30लेकिन एक ही समय में कई आदर्श और कई सच काम कर रहे ह...लेकिन एक ही समय में कई आदर्श और कई सच काम कर रहे होते हैं...इसी लिए इन दोनों का महत्व निजी अधिक दिखता है सामाजिक कम...बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-37055531198058933132008-02-14T12:00:00.000+05:302008-02-14T12:00:00.000+05:30बहुत व्यवहारिक और सच्चा .मेरी एक एक चिन्ता तो यह ह...बहुत व्यवहारिक और सच्चा .<BR/><BR/>मेरी एक एक चिन्ता तो यह है कि इस व्यवस्था में जहां भी जो आदर्शवादी किस्म के लोग हैं वे इतने 'फ़्रस्टेटेड' क्यों हैं . बहुत से उदाहरण गिना सकता हूं जिनसे मेरा दस-बीस साल का परिचय है और जिनसे लगातार बात-चीत होती है .<BR/><BR/>दूसरा यह कि उदारीकरण के बाद देश में युवाओं का आदर्शवाद और समाज के प्रति कर्तव्य का बोध समाप्त हुआ है . अब पूंजीवाद के नायक ही हमारे नायक हैं . <BR/><BR/>आज अगर गांधी होते तो क्या वे हमारे नायक होते . कितने उपेक्षित होते वे .<BR/><BR/>इसीलिए जिन्होंने एक सपना देखा और उसके लिए लड़े-जूझे,भले ही असफल रहे, ऐसे लोगों की आधी-अधूरी लड़ाई और कच्चे सपने के प्रति भी मोह-सम्मान जागता है मन में .Priyankarhttps://www.blogger.com/profile/13984252244243621337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-3643575833327096292008-02-14T11:52:00.000+05:302008-02-14T11:52:00.000+05:30अब क्या लिखे समझ में नहीं आ रहा, अपने अपने आदर्श न...अब क्या लिखे समझ में नहीं आ रहा, अपने अपने आदर्श निर्धारित कर रखे है, उन पर चलने का प्रयास होता है, परिस्थिती अनुरूप बदलाव भी होता है.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-65259872227641974702008-02-14T10:38:00.000+05:302008-02-14T10:38:00.000+05:30" आदर्श आपके व्यक्तित्व को नये आयाम देते हैं। नयी ..." आदर्श आपके व्यक्तित्व को नये आयाम देते हैं। नयी फ्रीडम। नयी ऊचाइयां। " <BR/>लेकिन बाजार से प्रभावित जिंदगी में इन ऊचाईयों को के लिये बहुत कम जगह बची है।नितिन | Nitin Vyashttps://www.blogger.com/profile/14367374192560106388noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-71629123037009086262008-02-14T10:08:00.001+05:302008-02-14T10:08:00.001+05:30अनोनीमस जी से सहमति है.अनोनीमस जी से सहमति है.काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-3643307336627557102008-02-14T09:48:00.000+05:302008-02-14T09:48:00.000+05:30अगर आपमें आदर्शवाद है तो पत्नी में भी होना चाहिये।...<I>अगर आपमें आदर्शवाद है तो पत्नी में भी होना चाहिये। </I><BR/>kya jabardast baat kahi hai, Waise imaandaari thori bahut hi sahi abhi bhi hai.<BR/><BR/>Ab hum aapko kyon batayen ki aaj hum bhi thori imandaari dikha ke aayen hainTarunhttps://www.blogger.com/profile/00455857004125328718noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-66713073491876577232008-02-14T09:16:00.000+05:302008-02-14T09:16:00.000+05:30वो है ना कि डिमांड क्रियेट्स सप्लाई।कालगर्ल, हशीश,...वो है ना कि डिमांड क्रियेट्स सप्लाई।<BR/>कालगर्ल, हशीश, चरस की डिमांड है, तो सप्लाई भी हो जाती है, तमाम जोखिमों के बावजूद। पईसे ज्यादा खर्चने पड़ते हैं बस।<BR/>बस यही मामला ग्रेटनेस का है, डिमांड है, तो सप्लाई भी हो रे ली जमकर। <BR/>शब्द, शब्द, लफ्फाजी, यही सब तो ठेलना है।<BR/>धंधा चकाचक है। सारे टीवी चैनलों पर चल रहा है। फिर मामला दूसरा भी है कि जो एक दौर में ग्रेट होते थे, पांच दस बीस सालों में वो भी सेनसेक्स की तरह धड़ाम हो लेते हैं। मनुष्य का पतन तो स्वाभाविक है, ग्रेटनेस ओढ़नी पड़ती है।ALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-91212758257978579702008-02-14T09:08:00.000+05:302008-02-14T09:08:00.000+05:30बहुत अच्छा लिखा है आपने.. कड़वी ही सही पर यही सच्चा...बहुत अच्छा लिखा है आपने.. कड़वी ही सही पर यही सच्चाई भी है..PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-575092168252355172008-02-14T08:57:00.000+05:302008-02-14T08:57:00.000+05:30"लोग जैसा सोचते हैं वैसा हो तो न जाने कितना बेहतर ..."लोग जैसा सोचते हैं वैसा हो तो न जाने कितना बेहतर हो जाये यह समाज, यह देश।"<BR/><BR/>लोग जैसा सोचते हैं नहीं, होना चाहिए लोग जैसा बोलते हैं. सोच में घटियापन तो होता ही है. सोच ही कर्म को दिशा दिखाती है.<BR/><BR/>वचन से यह देवता पर कर्म से यह नीच <BR/><BR/>राष्ट्रकवि ने यही लिखा था. रही बात आदर्शवाद के बाज़ार की, तो बाज़ार तो बहुत बड़ा है ही. लोगों के वचन और कर्म में कितना बड़ा फासला है, यह इस शब्द, आदर्शवाद से ही पता चलता है. आख़िर आदर्श तो केवल आदर्श होना चाहिए, आदर्शवाद नहीं.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-60575297296931906292008-02-14T08:41:00.000+05:302008-02-14T08:41:00.000+05:30यह ठीक है कि ईमानदारी और सच कम दिखायी देता है। पर ...यह ठीक है कि ईमानदारी और सच कम दिखायी देता है। पर बिल्कुल लुप्त नहीं है। कब व्यवहार के हवा-पानी से गदराया जाए ऐसी आशा के साथ कोशिश अपने-अपने तरीक़े करते रहना चाहिए।<BR/>-premlataAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-83206141886370471752008-02-14T07:51:00.000+05:302008-02-14T07:51:00.000+05:30ज्ञान जी ,विचारोत्तेजक किंतु अत्यल्प ,आपकी निबब्धा...ज्ञान जी ,विचारोत्तेजक किंतु अत्यल्प ,आपकी निबब्धात्मक शैली साम्मोहक लगती है पर सहसा ही ब्रेक लगने से धका सा लगता है .सच है इमानदारी प्रदर्शन की वृत्ति नही है यह एक जीवन दर्शन है मगर अपनाने मे जोखिम भरा ,हरिश्चंद्र का मानक हमारे सामने है .....Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-53046878240731231382008-02-14T07:44:00.000+05:302008-02-14T07:44:00.000+05:30तलवार की धार पे चलने जैसा है ये आदर्श और सत्य का र...तलवार की धार पे चलने जैसा है ये आदर्श और सत्य का रास्ता !<BR/>सबसे मुश्किल !लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-29684757820924985232008-02-14T07:43:00.000+05:302008-02-14T07:43:00.000+05:30समाज को बदलने की जो छटपटाहट आप ने प्रदर्शित की है।...समाज को बदलने की जो छटपटाहट आप ने प्रदर्शित की है। वह बहुतों में है। लोग अपने अपने तरीकों से काम भी कर रहे हैं. समाज की आवश्यकता उन्हें वक्त पर मिलाएगी भी। तब वे बड़ी ताकत के रुप में उभरेंगे। तब तक प्रतीक्षा तो करनी पड़ेगी अपने अपने तरीके से समाज में इण्टरेक्ट करते हुए। यह छटपटाहट तो अनेक विपरीत धुरियों को मिला देती है। <BR/>फिर आदर्श खुद नहीं कहता कि वह आदर्श है और कहे तो फिर आदर्श नहीं रहता।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-44886547123026796402008-02-14T06:34:00.000+05:302008-02-14T06:34:00.000+05:30सत्य है और बहुत कड़वा भी . आप ने सब कुछ लिख ही दिया...सत्य है और बहुत कड़वा भी . आप ने सब कुछ लिख ही दिया है.Anonymousnoreply@blogger.com