tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post5333267481120421914..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: सैंतीस वयस्क वृक्षों की व्यथाGyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger30125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-27849195163201664152010-03-27T01:41:02.997+05:302010-03-27T01:41:02.997+05:30इस तरह से तो कभी सोचा ही नहीं था। इस पोस्ट को क्...इस तरह से तो कभी सोचा ही नहीं था। इस पोस्ट को क्या कहा जा - विचारोत्तेजक, भयावह, आतंकित कर देनेवाली।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-63294885534637313692010-03-20T06:29:39.872+05:302010-03-20T06:29:39.872+05:30’cost cutting’ के नाम पर ही सही लेकिन काफ़ी साफ़्ट...’cost cutting’ के नाम पर ही सही लेकिन काफ़ी साफ़्ट्वेयर कम्पनीज़ ने प्रिन्टर पर नकेल बान्धी और फ़लस्वरूप प्रिन्टर के पास पडे बेकार पेपर कम हुए... कई कम्पनीज़ ने टिस्सू पेपर तक बन्द करवा दिये..<br /><br />बाकी विषय obviously चिन्तनीय है और बिजनेस योग्य भी.. आईडिया वालो ने भी भुनाया है और साफ़्ट्वेयर कम्पनीज़ तो हर पेपर के साथ एक ’e' जोडने की फ़िराक मे है...Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)https://www.blogger.com/profile/01559824889850765136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-84232548905671127042010-03-18T06:09:59.158+05:302010-03-18T06:09:59.158+05:30प्रवीण पाण्डेय जी जिस तरह उपयोग किये जाने वाले काग...प्रवीण पाण्डेय जी जिस तरह उपयोग किये जाने वाले कागजों की तुलना कटे हुये पेड़ों से करते हैं उससे उदयप्रकाश की कहानी- रामसजीवन की कथा का नायक याद आता है। उसमें मंहगे जूतों और हर कीमती चीज की तुलना गेहूं के बोरों और इसी तरह की चीजों से की गयी है।<br /><br />सहज, सुन्दर लेख है। <br /><br />प्रवीण पाण्डेय का लेखन सहज, सरल और आडम्बरहीन है। उनका लेख पढ़ने के बाद हमने अपने दफ़्तर में दिन में लाइट का प्रयोग बंद कर दिया ,खिड़कियां खुलवा लीं और दूसरे लोगों को भी यह ज्ञान बांटना शुरू कर दिया।<br /><br /><b>लोग कह सकते हैं कि प्रवीण मुझसे बेहतर लिखते हैं। ऐसे में मुझे क्या करना चाहिये? जान-बूझ कर उनकी पोस्ट में घुचुड़-मुचुड़ कर कुछ खराब कर देना चाहिये। सलाह वाण्टेड।</b>के संबंध में यही समझ में आता है कि यह आपके व्यक्तित्व का आईना है। आपकी अक्सर ट्यूब खाली होने लगती है, आप थकोहम हो जाते हैं, जीडी चुक जाते हैं। आप तमाम ज्ञानदायी बातें और सूक्ति वाक्य अपने ब्लॉग पर पेश करते हैं लेकिन हमेशा सबसे आगे,सबसे अच्छा बने रहने की मासूम ललक से मुक्त नहीं हो पाते।<br /><br />प्रवीण पाण्डेय और अपने लेखन की तुलना करके आप अपने और प्रवीण जी दोनों के साथ अन्याय करते हैं। दो अलग चीजों की तुलना करना अक्सर सही नहीं होता। यहां भी बहुत सारे आयाम भिन्न हैं। यह तुलनात्मक अंदाज भले ही आपके लिये सहज हो लेकिन यह प्रवीन पाण्डेय को असहज कर सकता है। <br /><br />तो इस मामले में हमारी तो फ़ुरसतिया सलाह यही है- अब तो बड़े बन जाइये ज्ञानजी !अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-42402529842138603882010-03-18T01:26:01.562+05:302010-03-18T01:26:01.562+05:30भोजन के लिए प्रति व्यक्ति कितने किलो बकरियां काती ...भोजन के लिए प्रति व्यक्ति कितने किलो बकरियां काती गयीं, मालूम नहीं, मगर यह मालूम है कि बकरियों को विलुप्त होने का कोई संकट नहीं है, यह संकट है बाघों को जिनका प्रति व्यक्ति उपयोग शून्यप्राय है. निष्कर्ष यह निकलता है कि जब तक कागज़ की ज़रुरत है, पेड़ों को ख़तरा कम है, क्योंकि पेड़ उगाने में व्यावसायिक रूचि है. जिस दिन पेड़ों का यह और दूसरे सभी उपयोग (मुद्रा और शौच-पत्र आदि) समाप्त हो जायेंगे उस दिन पेड़ विलुप्त होने का ख़तरा बढ़ जाएगा.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-1128289573539573332010-03-17T19:07:13.520+05:302010-03-17T19:07:13.520+05:30यथार्थ लेखन। बेहतरीन अभिव्यक्ति!महत्वपूर्ण जानकारी...यथार्थ लेखन। बेहतरीन अभिव्यक्ति!महत्वपूर्ण जानकारी पढ़ने को मिली ।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-58331599157961862682010-03-17T18:25:09.469+05:302010-03-17T18:25:09.469+05:30जैसा गंगा विषयक लिखने का मुझे पैशन हो गया है, वैसा...जैसा गंगा विषयक लिखने का मुझे पैशन हो गया है, वैसा प्रवीण को पर्यावरण/कागज/बिजली का प्रयोग आदि पर पोस्ट गेरने का पैशन हो गया है।<br /><br />मजेदार है – यह पैशनवा (जिसे साहित्यकार लोग जुनून बोलते हैं) ही ब्लॉगिंग की जान है।<br /><br />सही है- <br /><br />यह पैशनवा ही ब्लॉगिंग की जान है।डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-80722899147502069622010-03-17T17:45:48.151+05:302010-03-17T17:45:48.151+05:30सचमुच .....प्रवीण जी के लेखन के सम्मुख मन स्वतः ही...सचमुच .....प्रवीण जी के लेखन के सम्मुख मन स्वतः ही श्रद्धानत हो जाता है....इनकी लम्बी प्रशंशक लिस्ट में मैं भी हूँ...<br /><br />बहुत ही सही कहा है प्रवीण जी ने...पूर्णतः सहमत हूँ...<br />गंभीरता से सोचती रहती हूँ मैं भी कि अपनी और से इस प्रकार का सार्थक मैं क्या कर सकती हूँ...किसी भी प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों के दुरूपयोग के लिए सदा सावधान रहने की चेष्टा करती हूँ.....पेड़ लगाने की उत्कट अभिलाषा है...पर समस्या है कि लगाया कहाँ जाय ???? शहर में इंच इंच जमीन माप कर उसमे उगे कंक्रीट के घने जंगलों बीच चूहेदानी (फ्लैटों) में सिमटे लोगों के लिए यह संभव ही कहाँ है कि अपने आस पास वह पेड़ लगाने को जमीन खोज पाए...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-22555128199120164022010-03-17T14:42:36.147+05:302010-03-17T14:42:36.147+05:30आप सभी की टिपण्णियो से सहमत, लेकिन मोबाईल ओर कम्प...आप सभी की टिपण्णियो से सहमत, लेकिन मोबाईल ओर कम्प्यूटर से नुकसान भी तो होता है, क्या वो नुकसान इन से कम होता है??राज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-81948302688308089972010-03-17T14:35:39.834+05:302010-03-17T14:35:39.834+05:30ऐसे आंकडें बहुत डराते हैं. आपने पूरी छान-बीन कर डा...ऐसे आंकडें बहुत डराते हैं. आपने पूरी छान-बीन कर डाली और ऐसा शोध हो जाने पर 'घुचुड़-मुचुड़' शब्द तो आना ही था :)<br />सुना है कुछ लोग जिन्हें फ्री में कागज उपलब्ध है ब्लॉग पोस्ट तक प्रिंटआउट लेकर पढ़ते हैं, दिक्कत ये है कि जब तक हमारे बाथरूम में पानी आता है हमें जल संकट क्यों दिखाई देगा?Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-55606636891798505402010-03-17T13:57:51.434+05:302010-03-17T13:57:51.434+05:30प्रवीण के लेखक और कवि व्यक्तित्व से इधर हाल में ही...प्रवीण के लेखक और कवि व्यक्तित्व से इधर हाल में ही परिचय हुआ है और यह पहचान आपने ही करवाई है, अत: आभार और धन्यवाद। दूसरी बात कि अच्छा लिखना, सोचना करना आदि तो अच्छी बात है ही, दूसरों को पहचान कर आगे लाना और प्रोत्साहित करना उससे भी बड़ी बात है। आपको इसलिए भी पुन: बधाई कि आप का रोपा पौधा अब बिरवा बन चला है और निगाहें ताकती रहती हैं कि इस बुधवार को क्या फूले-फलेगा।<br />प्रवीण को बधाई, लगे रहो भाई!Himanshu Mohanhttps://www.blogger.com/profile/16662169298950506955noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-40811762431512957782010-03-17T12:54:42.224+05:302010-03-17T12:54:42.224+05:30Gyan ji,
Nice post !
Kindly let us know the use...Gyan ji, <br /><br />Nice post !<br /><br />Kindly let us know the useful tips for saving paper, apart from using computer.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-9547986018470174092010-03-17T12:30:32.283+05:302010-03-17T12:30:32.283+05:30सार्थक लेखनसार्थक लेखनChandan Kumar Jhahttps://www.blogger.com/profile/11389708339225697162noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-67561238714329965772010-03-17T12:16:14.267+05:302010-03-17T12:16:14.267+05:30हम आजकल कागज का प्रयोग बिल्कुल ही नहीं कर रहे हैं...हम आजकल कागज का प्रयोग बिल्कुल ही नहीं कर रहे हैं। जो भी लिखते हैं इस कम्प्यूटर पर ही लिखते हैं। साहित्य भेजने के लिए भी ई.मेल का ही प्रयोग करते हैं।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-22906770053338186182010-03-17T10:18:34.242+05:302010-03-17T10:18:34.242+05:30बाँस का उपयोग बढ़ने से भी लाभ होगा. बाँस तेजी से उग...बाँस का उपयोग बढ़ने से भी लाभ होगा. बाँस तेजी से उगते है. कागज के कितने अनुकुल है पता नहीं. आजकल फैशन के चलते ही सही ऑफिस में कागज का उपयोग बहुत कम हो गया है. मुझे अच्छा लग रहा है. :)संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-47288889460047730662010-03-17T10:09:18.777+05:302010-03-17T10:09:18.777+05:30vikalp bahut seemit hain. ya to hum aadat badal le...vikalp bahut seemit hain. ya to hum aadat badal len ya khud ke bure dinon ke zaldi aane ka rasta taiyar karen. aapke aur praveen jaise passion sabko hon.Batangadhttps://www.blogger.com/profile/08704724609304463345noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-8940968189141960622010-03-17T10:07:39.637+05:302010-03-17T10:07:39.637+05:30आज तो इस आलेख का नशा छा गया है मुझ पर. ट्विटर,फेसब...आज तो इस आलेख का नशा छा गया है मुझ पर. ट्विटर,फेसबुक,बज़ सब पे शेयर किया है इसे. प्रवीण जी..आंकड़ों का क्या मोहक और उपयोगी प्रयोग किया है आपने..! ऊपर वडनेरकर जी के शब्द और अरविन्द जी के शब्द भी मेरी टिप्पणी में जोड़ लीजिए. शानदार और संवेदनशील लेखन. <br /><br />उत्कृष्ट लेखन की यह परिपाटी तो ज्ञानदत्त जी ने ही शुरू किया है..प्रवीण जी इसमें चार-चाँद लगा रहे हैं....! <br /><br /><br />कितनी जरूरी है ये पोस्ट...और कितनी आकर्षक और महत्वपूर्ण भी...! <br /><br />आप दोनों जनों को बधाई और आभारी हूँ...इस पोस्ट को बारम्बार पढकर..!Dr. Shreesh K. Pathakhttps://www.blogger.com/profile/09759596547813012220noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-56119179193061660712010-03-17T10:01:20.629+05:302010-03-17T10:01:20.629+05:30हम मनुष्य धरती पर हर वस्तु कम कर रहे हैं सिर्फ अपन...हम मनुष्य धरती पर हर वस्तु कम कर रहे हैं सिर्फ अपने सिवा। न जाने कहाँ रुकेगा यह सिलसिला?दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-84503881161261070702010-03-17T09:56:19.260+05:302010-03-17T09:56:19.260+05:30आज कल मोबाइल का इस्तेमाल बहुत हो रहा है और प्रचार...आज कल मोबाइल का इस्तेमाल बहुत हो रहा है और प्रचारित किया जा रहा है की ये कागज को बचाता है पर इसका एक स्याह पहलू है कि इनसे निकलने वाली किरणे चिडियों को ख़त्म कर रही है और वृक्षों के पनपने में पक्षियों की विशेष भूमिका है. सच तो ये है कि विकास का हर कदम पर्यावरण को नुकसान पंहुचा रहा है.शोभाhttps://www.blogger.com/profile/12010109097536990453noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-79604524829739810512010-03-17T09:32:35.317+05:302010-03-17T09:32:35.317+05:30Gyan ji,
One of my Professor has this signature in...Gyan ji,<br />One of my Professor has this signature in his email..<br /><br />"No trees were killed in the sending of this message. However, a large number of electrons were terribly inconvenienced"Neeraj Rohillahttps://www.blogger.com/profile/09102995063546810043noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-29049991015009507892010-03-17T09:29:16.478+05:302010-03-17T09:29:16.478+05:30हमारे ऑफिस में कागजों का कम से कम इस्तेमाल होता है...हमारे ऑफिस में कागजों का कम से कम इस्तेमाल होता है.. शुरू में जब बॉस मोबाइल के बिल के पीछे प्रिंट ले लेते थे तो हम उन्हें कंजूस कहते थे.. बाद में उनसे जाना कि वे कागज़ बचा रहे है.. पर्यावरण की रक्षा के लिए.. बस तभी से हमने भी प्रेरणा ले ली.. कागजों का कम से कम इस्तेमाल करने के लिए..<br /><br />ब्लॉग्गिंग की जान वाकई एक पेशन है.. वैसे गंगा को एक बार इलाहबाद से देखने की तलब भी आप ही के ब्लॉग से लगी है..<br /><br />और हाँ सलाह वांटेड पर हम यही कहेंगे कि एक साझा ब्लॉग शुरू करवा दीजिये.. आप तो इस मामले में अनुभवी है.. :)कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-58853095087360482482010-03-17T08:46:29.399+05:302010-03-17T08:46:29.399+05:30""अपने कार्य करने की पद्धतियों में आमूलच...""अपने कार्य करने की पद्धतियों में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ेगा । सक्षम और समर्थ कागज का उपयोग जितना चाहे बढ़ा सकते हैं और जितना चाहे घटा भी सकते हैं"" .... सरगार्वित विचारो से सहमत हूँ .आभारसमयचक्रhttps://www.blogger.com/profile/05186719974225650425noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-66069335374303478992010-03-17T08:20:44.635+05:302010-03-17T08:20:44.635+05:30चिन्तनीय!!
वैसे मुझे कनाडा की सबसे बड़ी बैंक के प्...चिन्तनीय!!<br /><br />वैसे मुझे कनाडा की सबसे बड़ी बैंक के प्रोसेस इम्प्रूवम्रेन्ट पर काम करते १० वर्ष बीतने जा रहे हैं और मुझे लगता है कि इन दस वर्षों में कागज के नाम पर मैने १०० से ज्यादा A4 शीट का इस्तेमाल नहीं किया होगा वो भी तब, जब मुझे कुछ दस्तावेज सहेजना आवश्यक है.<br /><br /><br />निश्चित ही व्यवस्था में आमूलचूर परिवर्तन की दरकार दिखती है.<br /><br /><br />बाकी तो सब मगन रहें- कौन किसका मोहन राकेश...हमारे लिए तो जिसे पढ़ें वो ही मोहन राकेश है. निचली पायदान पर यह आराम रहता है कि बैगर्स केन नॉट बी चूजर्स.. :)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-21322295738894951482010-03-17T08:00:10.647+05:302010-03-17T08:00:10.647+05:30अख़बारों में लिखने वाले ब्लागरों से यहां भी हार गए...अख़बारों में लिखने वाले ब्लागरों से यहां भी हार गए ! :-)Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-20165239983827853492010-03-17T07:37:11.620+05:302010-03-17T07:37:11.620+05:30धीरू जी की बात ध्यान देने लायक है। धरा की धानी चून...धीरू जी की बात ध्यान देने लायक है। धरा की धानी चूनर सिकुड़ रही है इससे इनकार नहीं । <br /><br />यह लेख स्तरीय ब्लॉगिंग का एक उदाहरण है। <br /><br />अरविन्द जी ने भविष्य की ओर इशारा किया है। हमारे यहाँ ई आर पी 6 साल पहले लाई गई थी और यह बताते गर्व होता है कि हमलोगों ने अब तक जाने कितने लाख पेंड़ बचाए होंगे। .. ई टेंडर सिवाय चन्द पृष्ठों के पूर्णत: पेपरलेस होता है। पहले एक टेंडर में रीम के रीम लग जाते थे। संग्रहण की समस्याएँ तो थी हीं। <br />दु:ख यह है कि सरकारी तंत्र अभी भी पुराने युग में चल रहे हैं। जब 'ई' आती है तो भ्रष्टाचार और अपारदर्शिता के 'ऊ' पर कुल्हाड़ी चलती है। 'ई' इसीलिए नहीं लाई जाती और 'ऊ' के कुल्हाड़े पेड़ों पर चलते रहते हैं।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-28857098507104284292010-03-17T07:30:08.822+05:302010-03-17T07:30:08.822+05:30सरकारी दफ्तरों में केवल अहम् की तुष्टि के लिए चार ...सरकारी दफ्तरों में केवल अहम् की तुष्टि के लिए चार पंक्ति की चिट्ठी में पांच बार संशोधन करके उसे बार-बार कूड़े के हवाले कर दिया जाता है.<br />खुद को पत्रकार साबित करने के लिए भी भारत में हजारों लोग ऐसे दैनिक और साप्ताहित पत्र निकालते हैं जिन्हें कोई नहीं पढता.<br />लगभग सभी संस्थाओं की पत्रिकाएं बेहतरीन कागज़ पर उत्तम साज-सज्जा के लिए निकलती हैं और रद्दी का इजाफा करती हैं.<br /><br />@ धीरू जी, क्या यूकेलिप्टस का पेड़ जमीन ख़राब नहीं करता? मैंने तो ऐसा ही सुना है.<br /><br />"लोग कह सकते हैं कि प्रवीण मुझसे बेहतर लिखते हैं। ऐसे में मुझे क्या करना चाहिये? जान-बूझ कर उनकी पोस्ट में घुचुड़-मुचुड़ कर कुछ खराब कर देना चाहिये।" - करके देखें एक बार. जो मन में आये उसे कर देना चाहिए :-) इससे पर्गेशन और काथार्सिस, न जाने क्या-क्या हो जाता है.निशांत मिश्र - Nishant Mishrahttps://www.blogger.com/profile/08126146331802512127noreply@blogger.com