tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post4960229821901094910..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: उद्यम और श्रमGyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger33125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-52913176641046141942011-04-10T00:07:44.539+05:302011-04-10T00:07:44.539+05:30This world is a funny place. You have to decide wh...This world is a funny place. You have to decide whether you want to exploit or be exploited.Either way,you kill your self respect, your ego, your conscience and sense of right and wrong.<br>I have never faced a bigger dilemma than the question of labour,labour unions,owners, entrepreneurship,whether to exploit or be exploited, as far as the middle management( whether top or middle, as long as they r not owners) is concerned. Either way, its the 'ghun that gets peesoed with the genhu.'<br>Sometimes the closures, lock outs lead to suicides and death and the destruction of entire families and their futures, yet, many a times the reasons that lead to a strike, a closure etc are laughable.<br>I have spent my entire life pondering this question, and the best part is, from both sides of the fence.<br>The conclusion I have reached is that neither the union, nor the owners care a damn for you.They all have vested interests. Labour or whatever, you are just pawns in this great game of chess. The guy who made you go on strike, lead to a lock-out and subsequent loss of wages and livelihood, becomes an MLA, a minister. Its the management at the site who pays the price, its the labour who went on a strike so that their leader could get political mileage who pays.<br>It's a simple question with no ethics involved, ' Do you want to exploit or be exploited?'<br>There was a time when during the industrial revolution, men, women and children worked like slaves with long hours of work.Labour Unions came to save them and they were the need of the hour.But human race has always been either exploiters or the exploited so when the unions became powerful they assumed the role of exploiters.<br>What more can I say?<br>Ghughuti BasutiMired Miragehttp://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-6267844175784040732011-04-10T00:07:44.183+05:302011-04-10T00:07:44.183+05:30कसाब का मरना (फांसी होना) बहुत आसान है.. पर उससे क...कसाब का मरना (फांसी होना) बहुत आसान है.. पर उससे क्या हासिल होगा? एक बहकाये हुऐ युवक का खात्मा? क्या इससे आतंक के बडे़ मुद्दे को सुलझाने में मदद मिली.. ये आत्मघाती है.. मरना तो इन्होने तय कर लिया.. एसा कर हम इनकी मदद करगें.. कसाब पर मुकदमा चलना और तब तक चलना जब तक उसके आकाओं तक न पहुँच जाये.. हमारे दिल में प्रतिशोध को जिन्दा रखेगा.. हर रोज याद दिलायेगा कि दूर बैठा कोई शख्स इस देश पर बुरी नजर गड़ाये है.. जिन्दा कसाब चीख चीख कर कहेगा कि हमलों में पा्किस्तान का हाथ है..और इसके लिये अगर कुछ कीमत (रुपयों में)चुकानी पड़े या कहें की खर्चा करना पड़े तो बुरा सौदा नहीं हैं..रंजनhttp://www.blogger.com/profile/04299961494103397424noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-39491299601749143872009-06-13T09:28:48.005+05:302009-06-13T09:28:48.005+05:30मेरे विचार से वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उद्यम वो हे...मेरे विचार से वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उद्यम वो हे जो स्वप्रेरित हो जबकि परिश्रम वो हे जो परप्रेरणा से किया गया हो, दोनों ही श्रम के रूप हेंChandra Prakashhttps://www.blogger.com/profile/13504715677716395957noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-29489775261669164722009-06-12T13:39:02.825+05:302009-06-12T13:39:02.825+05:30दोनों ही ज्वलंत मुद्दों पर आपके व्यक्त विचारों से ...दोनों ही ज्वलंत मुद्दों पर आपके व्यक्त विचारों से मैं शब्दशः सहमत हूँ....इसपर वे अथौरिटी जिनके हाथों निति निर्धारण व क्रियान्वयन का सामर्थ्य और उत्तरदायित्व है,यदि सचमुच कुछ करें तो देश का काया पलट हो जायेगा.<br /><br />विचारणीय पोस्ट के लिए आभार...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-67940861014131296112009-06-11T16:28:34.093+05:302009-06-11T16:28:34.093+05:30घणे अलग टाइप के विचार हैं, सरजी।घणे अलग टाइप के विचार हैं, सरजी।ALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-71979992869540264382009-06-11T11:58:21.838+05:302009-06-11T11:58:21.838+05:30कसाब का मरना (फांसी होना) बहुत आसान है.. पर उससे क...कसाब का मरना (फांसी होना) बहुत आसान है.. पर उससे क्या हासिल होगा? एक बहकाये हुऐ युवक का खात्मा? क्या इससे आतंक के बडे़ मुद्दे को सुलझाने में मदद मिली.. ये आत्मघाती है.. मरना तो इन्होने तय कर लिया.. एसा कर हम इनकी मदद करगें.. कसाब पर मुकदमा चलना और तब तक चलना जब तक उसके आकाओं तक न पहुँच जाये.. हमारे दिल में प्रतिशोध को जिन्दा रखेगा.. हर रोज याद दिलायेगा कि दूर बैठा कोई शख्स इस देश पर बुरी नजर गड़ाये है.. जिन्दा कसाब चीख चीख कर कहेगा कि हमलों में पा्किस्तान का हाथ है..और इसके लिये अगर कुछ कीमत (रुपयों में)चुकानी पड़े या कहें की खर्चा करना पड़े तो बुरा सौदा नहीं हैं..रंजन (Ranjan)https://www.blogger.com/profile/04299961494103397424noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-34812157143571094052009-06-11T07:18:01.088+05:302009-06-11T07:18:01.088+05:30This world is a funny place. You have to decide wh...This world is a funny place. You have to decide whether you want to exploit or be exploited.Either way,you kill your self respect, your ego, your conscience and sense of right and wrong.<br />I have never faced a bigger dilemma than the question of labour,labour unions,owners, entrepreneurship,whether to exploit or be exploited, as far as the middle management( whether top or middle, as long as they r not owners) is concerned. Either way, its the 'ghun that gets peesoed with the genhu.'<br />Sometimes the closures, lock outs lead to suicides and death and the destruction of entire families and their futures, yet, many a times the reasons that lead to a strike, a closure etc are laughable.<br />I have spent my entire life pondering this question, and the best part is, from both sides of the fence.<br />The conclusion I have reached is that neither the union, nor the owners care a damn for you.They all have vested interests. Labour or whatever, you are just pawns in this great game of chess. The guy who made you go on strike, lead to a lock-out and subsequent loss of wages and livelihood, becomes an MLA, a minister. Its the management at the site who pays the price, its the labour who went on a strike so that their leader could get political mileage who pays.<br />It's a simple question with no ethics involved, ' Do you want to exploit or be exploited?'<br />There was a time when during the industrial revolution, men, women and children worked like slaves with long hours of work.Labour Unions came to save them and they were the need of the hour.But human race has always been either exploiters or the exploited so when the unions became powerful they assumed the role of exploiters.<br />What more can I say?<br />Ghughuti Basutighughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-22378835042638997052009-06-11T00:54:31.500+05:302009-06-11T00:54:31.500+05:30यूनियन श्रमिकों को संगठित करने और कुटिल उद्योगपतिय...यूनियन श्रमिकों को संगठित करने और कुटिल उद्योगपतियों के द्वारा श्रमिकों का शोषण रोकने के लिए बनाई गई थीं लेकिन वहाँ भी वैसी ही कुटिल राजनीति होने लगी जैसी लोकतंत्रों में होती है। श्रमिक अपना विवेक बेच के यूनियन लीडरों के पीछे भेड़ों की भांति चलने लगे और लीडर स्वयं बादशाह बन गए। जिस तरह लोकतंत्र में लोगों को अक्ल नहीं होती कि कौन सी सरकार/नेता उनका अहित कर रहे हैं वैसे ही श्रमिकों को भी ऐसे लीडरों की पहचान नहीं होती और मामला सारा गड़बड़ा जाता है!! और फिर वही हुआ जो अब होता है, संगठन बनाने में किसी की दिलचस्पी नहीं क्योंकि उससे सामूहिक अहित ही होता है, इसलिए ईच मैन फॉर हिमसेल्फ़ वाला दृष्टिकोण।<br /><br><br><br />आतंक की बात पर आपसे पूर्ण सहमति है, कसाब जैसे नृशंस हत्यारे को दामाद बना के काहे रखा हुआ है यह किसी को समझ नहीं आ रहा, ऐसा लग रहा है कि आज नहीं तो कल उसको भी निर्दोष पाकर रिहा कर दिया जाएगा और भारत की नागरिकता देकर यहीं बसा दिया जाएगा!!<br /><br><br><br />वैसे ये आखिर में चित्र कैसा लगाए हैं? कुछ गूढ़ सा जान पड़ता है, अपने पल्ले नहीं पड़ा, कृपया थोड़ा प्रकाश डालें! :)amithttps://www.blogger.com/profile/03372488870536392202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-74101915694419966682009-06-11T00:07:53.375+05:302009-06-11T00:07:53.375+05:30चलिए आपने सहायता तो की, की हम खुद को क्या और क्या ...चलिए आपने सहायता तो की, की हम खुद को क्या और क्या समझ सकते हैं :)<br />बाकी रही बात पोस्ट की तो वो तो हमको आधी से ज्यादा पल्ले नहीं पडी <br />इसलिए खुद को लंठ की श्रेणी में रख रहे है बताइयेगा सही है या नहीं <br />वीनस केसरीवीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-24267196332465388982009-06-10T23:39:21.065+05:302009-06-10T23:39:21.065+05:30विचारणीय पोस्ट। पूँजीवाद और साम्यवाद की लड़ाई तो अब...विचारणीय पोस्ट। पूँजीवाद और साम्यवाद की लड़ाई तो अब अपने निष्कर्ष पर पहुँच चुकी है। सोवियत संघ इतिहास बन गया। चीन तेजी से बदल रहा है। हालिया चुनावों ने भारत के लाल झण्डों का पाखण्ड भी उजागर कर दिया है। आपका आलेख वर्तमान आधुनिक सोच को परिलक्षित करता है। साधुवाद...।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-56951653514320338882009-06-10T21:52:56.600+05:302009-06-10T21:52:56.600+05:30हमने समाजवादी लोकतंत्र को अपनाया था. केरल में कहाव...हमने समाजवादी लोकतंत्र को अपनाया था. केरल में कहावत है कि बच्चे जब पैदा होते हैं, हाथ में लाल झंडा लिए होते हैं. अब वहां कोई भी उद्योग पनप नहीं सकता. केवल लाल झंडे ही पनप रहे हैं.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-82389017958812732472009-06-10T20:57:11.214+05:302009-06-10T20:57:11.214+05:30अजी आप की बात से सहमत हुंअजी आप की बात से सहमत हुंराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-62184055961736753842009-06-10T20:36:06.396+05:302009-06-10T20:36:06.396+05:30मजदूर यूनियन तो स्पीड ब्रेकर है तरक्की उनेह खलती ह...मजदूर यूनियन तो स्पीड ब्रेकर है तरक्की उनेह खलती है और हड़ताल उनकी आमदनी का जरिए है . हमारे यहाँ सिंथेटिक रबर का एशिया का सबसे बड़ा कारखाना था जो नेता ,मालिक और यूनियन के चक्र विहयु में फस कर दम तोड़ गयाdhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह }https://www.blogger.com/profile/06395171177281547201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-89589428867623991912009-06-10T18:59:51.747+05:302009-06-10T18:59:51.747+05:30आतंक वादियों की सजा को लेकर बहुत कस कर लिखा है आपन...आतंक वादियों की सजा को लेकर बहुत कस कर लिखा है आपने...आत्मा प्रसन्न हो गयी...<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-76437856537567233552009-06-10T18:55:29.667+05:302009-06-10T18:55:29.667+05:30नब्बे के दशक के मध्य में, १९९४-९५ में कई बार यूनिय...नब्बे के दशक के मध्य में, १९९४-९५ में कई बार यूनियन और उनके नेताओं के साथ एक डिस्प्यूट में बहस करना पड़ा था. बहुत खराब अनुभव रहा था. नेताओं की विचारधारा और कर्मचारियों को किसी भी तरह से काम न करने देने की उनकी कला देखकर दंग रह गया था. उन दिनों कोलकाता में ढेर सारे होटल और रेस्टोरेंट इन लोगों ने बंद करवा दिए थे. बहुत बुरी तरह से प्रभावित किया है इन नेताओं ने उद्योगों को. मुझे कर्मचारियों से कोई शिकायत नहीं. कोई नहीं चाहेगा कि उसकी रोजी-रोटी चली जाए.<br /><br />जहाँ तक कसाब का सवाल है, उसके बारे में यही कहना है कि बात केवल सद्दाम हुसैन के मुकदमे की न भी की जाए तो हाल ही में भारत में कुछ मुकदमों के फैसले बड़ी जल्दी हुए हैं. हम उन्हें भी केस स्टडी के तौर पर देख सकते हैं. इनमें सबसे प्रमुख है राजस्थान में एक विदेशी सैलानी के साथ किया गया बलात्कार. उसके अलावा पंजाब में भी ऐसा एक मुक़दमा था जिसपर अदालत ने एक साथ लगातार केस की सुनवाई करके मुकदमे को निबटाया.<br /><br />और मुझे विश्वास है कि ऐसा किया जा सकता है. आखिर जिन मुकदमों की बात मैं कर रहा हूँ उनमें अदालत के पास कम से कम उतने सुबूत नहीं थे, जितने कसाब के मामले में हैं.Shivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-3516682909668663592009-06-10T17:06:17.746+05:302009-06-10T17:06:17.746+05:30वैज्ञानिक भाषा में कहें तो श्रम, धन और ज्ञान के सह...वैज्ञानिक भाषा में कहें तो श्रम, धन और ज्ञान के सही क्रम और अनुपात के संमिश्रण से उद्यम तैयार होता है । यह अनुपात कितना हो यह व्यवसाय पर निर्भर करता है । नयी तकनीक आने से यह अनुपात बदलता है । जहाँ जहाँ भी किसी एक तत्व को अधिक महत्व दिया गया या दिलाया गया, उद्यम का दम निकला है ।<br />आतंकवाद पर आपके विचारों से मैं सहमत हूँ । केवल यह सिद्ध करने के लिये कि आतंकवाद को पाकिस्तान बढ़ावा दे रहा है, कसाब को जीवित रखा जा रहा है । यह बात अलग है कि इससे पाकिस्तान की सेहत (जो पहले से ही खराब है) पर कोई असर नहीं पड़ता । यदि यह भी कोई न समझे तो वह लंठ ही है । हाँ यदि कसाब को बिरयानी खिलाने का कोई और कुटिल कारण हो तो देश का भगवान मालिक है ।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-19245297387273652082009-06-10T15:35:22.503+05:302009-06-10T15:35:22.503+05:30आज लाल झंडे का मतलब केवल अधिकार रह गया है, न कि उत...आज लाल झंडे का मतलब केवल अधिकार रह गया है, न कि उत्तरदायित्व. <br />कलकत्ते के सरकारी दफ्तर का समय अगर 10 से 5 है, तो इसका मतलब है कि बाबू 10 बजे घर से चलेगा और 5 बजे घर पहुँच जाएगा.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-4479266837731922292009-06-10T13:16:17.979+05:302009-06-10T13:16:17.979+05:30जहाँ उद्यम उद्यमी और उद्योग का अर्थ श्रम का शोषण, ...जहाँ उद्यम उद्यमी और उद्योग का अर्थ श्रम का शोषण, शोषकपूँजीपति और पूँजी का विस्तारवाद, संस्कृत का श्लोक बुर्जुआओ की दलाल ब्राह्मणवादी मानसिकता समझा जाए तो व्याप्त औद्योगिक दुर्द्शा पर व्यक्त आपकी चिन्ता पर मरणासन्न मार्क्सवाद की ऎसी प्रतिक्रिया स्वाभाविक ही है।<br /><br />तू इधर उधर की न बात कर, ये बता कि कारवाँ लुटा क्यूँ कि तर्ज पर यह जवाबदेही बनती है कि भारत में २लाख से ज्यादा औद्योगिक इकाइयाँ बंद क्यों हैं? एशिया का मैनचेस्टर के नाम से जाना जानें वाला और जो १९४७ के पहले २ लाख तथा १९७० में लगभग १० लाख कामगारों को रोजगार देता था, वह कानपुर आज तबाह क्यों है? टैफ्को, लालइमली, एल्गिन, म्योर, अथर्टन, कानपुर टेक्सटाइल, रेल वैगन फैक्ट्री, जे०के०रेयन, जे०के०काटन, जे०के०जूट, स्वदेशी काटन,मिश्रा होजरी, ब्रशवेयर कारपोरेशन, मोतीलाल पदमपत शुगर मिल्स, गैंजेस फ्लोर मिल्स, न्यूकानपुर फ्लोर मिल्स, गणेश फ्लोर एण्ड वेजिटेबिल आयल मिल, श्रीराम महादेव फ्लोर मिल, एच ए एल, इण्डियन फर्टिलाइजर तथा अन्य सैकड़ों छोटे-बड़े कारखाने बन्द क्यों और किसकी वजह से हैं। सिर्फ और सिर्फ लाल झण्ड़े के कारण। <br />बहुत मुशकिल से स्थानीय सांसद श्रीप्रकाश जायसवाल और सकारात्मक सोंच वाली यूनियनों के सहयोग से जे०के०काटन और जे०के०जूट मिल विगत ५-६ महिनें से प्रारंभ हुई थी। लगभ ४ हजार लोगों को बंद पड़ा रोजगार फिर से मिला था। वह पुनः बन्द होंने की कगार पर हैं कारण.....? मजदूरों नें कम्युनिस्ट यूनियन को दरकिनार कर मिल चलानें में प्रबन्धन की मदद की थी। इससे बौखलाए मार्क्सवादी अभी तीन दि्न पहले जे०के०जूट मिल पर कब्जा कर अपनें नियंत्रण में जबरन मिल चला रहे है। प्रबन्धन, दूसरी मजदूर यूनियन्स तथा मजदूरों का एक बड़ा ग्रुप मिल में नहीं जा रहा है। यही स्थिति रही तो ये दोनों मिले भी इनके कुकर्मों से बन्द हो जाँएगी।<br /><br />कानूनी दाँव-पेंचों से न तो मिले चलती हैं न रोजगार मिलते हैं। वकील की रोजी मुकदमा चलते रहनें से चलती है न कि विवाद को निपटानें से। टनों रद्दी इकट्ठा होंना इस बात का प्रमाण है कि दोनों पक्ष हठधर्मिता कर रहे हैं। मजदूरो के हित, देश की प्रगति और नये रोजगारों का सृजन ममत्व बुद्धि से हो सकता है न कि कुटिल चालों से भरे अहंकार और राजनीति से।सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’https://www.blogger.com/profile/14324507646856271888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-11391000719435757682009-06-10T13:09:46.738+05:302009-06-10T13:09:46.738+05:30'लाल झण्डा माने अकार्यकुशलता पर प्रीमियम':...'लाल झण्डा माने अकार्यकुशलता पर प्रीमियम': लाख टके की बात ! <br />आतंकी वाला मामला थोडा काम्प्लेक्स है पर बात तो आपकी निर्विव्वाद सच है... पर इम्प्लीमेंटेशन आसान नहीं.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-41119457617529050442009-06-10T12:39:36.312+05:302009-06-10T12:39:36.312+05:30आतंक वाद को खतम करने के लिए आतंकीयॊ को मारनें से क...आतंक वाद को खतम करने के लिए आतंकीयॊ को मारनें से कुछ ना होगा।यह तो ठीक ऐसे ही है जैसे किसी पेड़ की टहनियों को काटना।इस से यह आतंक का पेड़ नही मरेगा। वार करना है तो जड़ पर करना होगा। कई बार ऐसा भी हुआ है की आतंकी के चक्कर मे निर्दोष भी बलि चड़ जाते हैं। जिस से एक नये आतंक की मानसिकता का जन्म हो जाता है।<br />आलेख से सहमत ।परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-63609481374156165352009-06-10T10:46:08.174+05:302009-06-10T10:46:08.174+05:30जबलपुर में इन्ही कारणों के चलते कई प्लान्ट बंद हो ...जबलपुर में इन्ही कारणों के चलते कई प्लान्ट बंद हो चुके है और यदि समय रहते न चेते तो आने वाले समय में और भी प्लान्ट बंद हो सकते है . श्रमिकों का भी जागरुक होना नितांत जरुरी है . श्रमिकों के बारे में आपके विचार सराहनीय है. आभार.महेन्द्र मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/00466530125214639404noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-11976570337580451292009-06-10T10:41:08.105+05:302009-06-10T10:41:08.105+05:30गुरुजी मै तो सेंट-परसेंट सहमत हूं आपसे।गुरुजी मै तो सेंट-परसेंट सहमत हूं आपसे।Anil Pusadkarhttps://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-78215802543449489742009-06-10T10:08:16.003+05:302009-06-10T10:08:16.003+05:30हम भी आपके विचार से शत -प्रतिशत सहमत हैं ,हमारे स...हम भी आपके विचार से शत -प्रतिशत सहमत हैं ,हमारे सिस्टम में ही काफी ऐसे लोग भर आये हैं जो कि वाकई लंठ हैं या परले दर्जे के कुटिल.बेहतरीन पोस्ट.डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-80645136321809774232009-06-10T09:50:46.876+05:302009-06-10T09:50:46.876+05:30मैने भी यही लिखा था कि कसाब पर सद्दाम जैसा मुकदमा ...मैने भी यही लिखा था कि कसाब पर सद्दाम जैसा मुकदमा चले. <br /><br />दुसरे श्रम पर आपके विचारों से सहमति है.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-52106577208630186912009-06-10T09:11:25.788+05:302009-06-10T09:11:25.788+05:30@ अनूप शुक्ल - मैने पोस्ट में जानबूझ कर सोच (think...<b>@ अनूप शुक्ल -</b> मैने पोस्ट में जानबूझ कर सोच (thinking) को काट कर भाव (feeling) लिखा है। आपको वह संज्ञान में लेना चाहिये था। यह लेखन प्रारम्भ से ही था। <br />बहुत से लोग अपने भाव को सोच के नाम पर ठेलते हैं। मैं वह नहीं कर रहा। <br />यह इमोशनल ज्ञानदत्त पाण्डेय लिख रहा है पोस्ट के इस अंश को।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.com