tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post467563763457411682..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: बेंजामिन फ्रेंकलिन और शब्दों की मितव्ययताGyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-1765321140876838912007-07-18T21:43:00.000+05:302007-07-18T21:43:00.000+05:30@ अनूप शुक्ल - मैने कभी कहा क्या कि आपके लेख में आ...@ अनूप शुक्ल - मैने कभी कहा क्या कि आपके लेख में आवश्यकता से अधिक शब्द होते हैं? :) <BR/><BR/>@ विष्णु बैरागी - अगर मौन उपयुक्त सम्प्रेषण कर पाता हो तो शायद उस सीमा तक भी जाया जा सकता है. पर मौन बहुधा सम्प्रेषण मार देता है. भीष्म अगर चीर हरण के समय मौन न रहते तो शायद महाभारत न होता! पर आप यह भी कह सकते हैं कि द्रौपदी दुर्योधन को देख व्यंग से बोली न होती तो चीर हरण न होता. :) <BR/><BR/>सही सम्प्रेषण शब्दों की मितव्ययता के साथ जरूरी है.Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-58414223829969489922007-07-18T21:24:00.000+05:302007-07-18T21:24:00.000+05:30बात को आगे बढाऍंगे तो बात 'मौन सर्वोत्तम भाषण है'...बात को आगे बढाऍंगे तो बात 'मौन सर्वोत्तम भाषण है' तक चली जाएगी और यही बात लिखने पर लागू न हो जाएगी ?विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-74196866699909017122007-07-18T20:38:00.000+05:302007-07-18T20:38:00.000+05:30तो जे बात है, अमल का प्रयाश करेंगे. धन्यवाद्तो जे बात है, अमल का प्रयाश करेंगे. धन्यवाद्36solutionshttps://www.blogger.com/profile/03839571548915324084noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-329713652674702762007-07-18T19:53:00.000+05:302007-07-18T19:53:00.000+05:30आप् तो ज्ञानजी हमारा लिखना बंद् करा देंगे। :)आप् तो ज्ञानजी हमारा लिखना बंद् करा देंगे। :)अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-37473627901657705642007-07-18T14:22:00.000+05:302007-07-18T14:22:00.000+05:30बढिया ज्ञान बिड़ी है । हमको रेडियो में रोज़ अपने ल...बढिया ज्ञान बिड़ी है । हमको रेडियो में रोज़ अपने लिखे को काट काट के छोटा करना पड़ता है । हम एकदम सहमत ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-34467523158025307652007-07-18T13:33:00.000+05:302007-07-18T13:33:00.000+05:30जे बात!! खोज खोज के ज्ञान की बात ला रहें है ज्ञान ...जे बात!! खोज खोज के ज्ञान की बात ला रहें है ज्ञान जी!!<BR/>शुक्रिया!!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-57950755629813660372007-07-18T11:06:00.000+05:302007-07-18T11:06:00.000+05:30बिल्कुल सही। संपादन कला के मेरे गुरु सी.जी.आर. कुर...बिल्कुल सही। संपादन कला के मेरे गुरु सी.जी.आर. कुरुप कहा करते थे, Even God's copy can be edited (ईश्वर के लिखे को भी संपादित किए जाने की गुंजाइश होती है)।<BR/><BR/>अर्थ और मंतव्य को सटीक रूप से संप्रेषित करने के लिए जितने न्यूनतम शब्द जरूरी हों, उतनेही रहने देने चाहिए। शब्द ईंटों की तरह होते हैं, इसलिए संपादन के दौरान शब्दों को हटाते हुए यह ध्यान भी रखा जाना चाहिए कि कथ्य की इमारतको कोई नुकसान न पहुंचे। <BR/><BR/>किन्तु चिट्ठों के संदर्भ में स्व-संपादन बहुतों के लिए मुश्किल होता है। चिट्ठाकार प्राय: अपने शब्द-प्रयोगों के मामले में एक प्रकार के मोह के शिकार होते हैं।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-67775401967137313122007-07-18T07:07:00.000+05:302007-07-18T07:07:00.000+05:30सत्य वचन महाराज। और रचनाकार के लिए तो और यह बात औ...सत्य वचन महाराज। <BR/>और रचनाकार के लिए तो और यह बात और भी सत्य वचन है।ALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.com