tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post4572328313057140745..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: एक (निरर्थक) मूल्य-खोजGyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger22125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-31025014358023807852010-11-06T22:46:25.802+05:302010-11-06T22:46:25.802+05:30कहाँ से शुरू किया और क्या क्या दिखाया. नमन .
आभा...कहाँ से शुरू किया और क्या क्या दिखाया. नमन . <br /><br />आभार<br />मनोज खत्रीManoj Khttps://www.blogger.com/profile/06707542140412834778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-18728723625747946282010-11-04T15:36:50.776+05:302010-11-04T15:36:50.776+05:30POST KI HEADING SE UNDER BRAKET WORD
OMIT KAREN......POST KI HEADING SE UNDER BRAKET WORD<br />OMIT KAREN.....BAS YAHI GALTI HAI...<br /><br /><br />PRANAM.सञ्जय झाhttps://www.blogger.com/profile/08104105712932320719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-2311142780400664422010-11-02T13:54:09.748+05:302010-11-02T13:54:09.748+05:30सच्ची अभिव्यक्ति!! सादर नमन!!
"मॉडर्न पढ़ाई क...सच्ची अभिव्यक्ति!! सादर नमन!!<br /><br />"मॉडर्न पढ़ाई के प्रभाव में कर्मकाण्ड नकारने की प्रवृत्ति रही तो कहीं कहीं धर्म भी फिसल गया हाथ से।"<br /><br />यही हो जाता है हमसे।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-5951816666154864552010-11-02T13:25:37.829+05:302010-11-02T13:25:37.829+05:30श्री भूपेन्द्र सिंह की ई-मेल से प्राप्त टिप्पणी - ...श्री भूपेन्द्र सिंह की ई-मेल से प्राप्त टिप्पणी - <br />बहुत भावनात्मक टिपण्णी की है बन्धु आपने ,हमारे अंदर के आदमी की बात्त सुनकर वरना चाहता हर कोई यही कहना पर ऊपर से ओढे हुए आचरण को ही वास्तविकता मान कर दबा देता है अंतर्मन की संवेदना को ,ऑंखें गीली हो गयीं आपकी बातें पढ़ कर /जो भी हो ,आपने मन को छुआ ,मेरा स्नेह ,आदर और दीपावली पर अग्रिम शुभकामनायें स्वीकारियेGyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-9156172503446666732010-11-02T08:05:00.100+05:302010-11-02T08:05:00.100+05:30पचपन पहुंचने वाले के पास सवालों के जवाब हों या न ह...पचपन पहुंचने वाले के पास सवालों के जवाब हों या न हों, वह ठीक-ठाक जवाब देना तो सीख ही लेता है. 'आइ एम नॉट ओके' जैसे सवाल आपके मन में उठ रहे हैं, इसे बनाए रखना चुनौती जैसा ही है.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-1750884499305043812010-11-02T06:56:26.357+05:302010-11-02T06:56:26.357+05:30गड्डमड्ड सोच। गड्डमड्ड खोज। :)गड्डमड्ड सोच। गड्डमड्ड खोज। :)अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-14421973714768798772010-11-02T00:39:58.682+05:302010-11-02T00:39:58.682+05:30ये सवाल तो आते ही रहेंगे और स्नाबरी भी अपनी जगह बन...ये सवाल तो आते ही रहेंगे और स्नाबरी भी अपनी जगह बनी रहेगी। और व्यक्तित्व में जरूरी नहीं कि सब कुछ सजा संवरा हो, विरोधाभास बने रहने चाहिये वरना बहुत जल्द इंसान अपने को महान समझने लगता है (या लोग ऐसा कहने लगते हैं) और उसके बाद क्या होता है ये बताने कि जरूरत नहीं।<br /><br />लेकिन, वयक्तित्व में सरलता ग्लेशियर के बहाव कि तरह धीरे धीरे आये तो बनी रहती है, इसी तरह विचार भी धीरे धीरे परिष्कृत हों तो लम्बा साथ देते हैं। यूं तो मैने यहां अमेरिका में बहुत सारे So called Environment friendly, supporting green, eco-friendly लोगों को देखा है । लेकिन जब मेरे पिछले जन्मदिन पर एक मित्र (५५ से ऊपर) सपत्नीक आये और एक रीसायकिल हुये ग्रीटिंग कार्ड (जो किसी ने कुछ महीने पहले उनको दिया था) पर अपना नाम पेन से काटकर मेरा नाम लिखा, और देने वाले का नाम काटकर अपना नाम लिखा और साथ में अपना बधाई सदेश भी, तो लगा कि ये इनके व्यवहार का हिस्सा है। किसी रैली अथ्वा विचार से प्रेरित होकर एक हफ़्ते की जद्दोजहद नहीं।<br /><br />ऐसे ही आप चलते चलें, अपने आप स्नाबरी खतम होती रहेगी और विचार बदलते रहेगें :)Neeraj Rohillahttps://www.blogger.com/profile/09102995063546810043noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-17844443943614743682010-11-01T23:07:20.874+05:302010-11-01T23:07:20.874+05:30सवाल करने के बाद जो बातें दिमाग में आ रही हैं उन्ह...सवाल करने के बाद जो बातें दिमाग में आ रही हैं उन्हें भी लिख दिया कीजिये. कई बार सवाल पूछ के अझुरा के निकल लेते हैं आप :)Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-82009560695873228502010-11-01T23:01:34.274+05:302010-11-01T23:01:34.274+05:30मित्रों नैनीताल मैं छुट्टी मनाने नहीं, वरन एक बैठक...मित्रों नैनीताल मैं छुट्टी मनाने नहीं, वरन एक बैठक के संदर्भ में गया था। और वहां बीमार भी रहा। यह जरूर है कि मुझे ब्लॉग पोस्ट लिखने का अवसर मिला और यात्रा के दौरान जो इण्टरनेट कनेक्टिविटी मिली, वह बहुत खराब नहीं थी। <br />खरीददारी के नाम पर मात्र वापस लौटते समय सडक के एक ओर बैठे एक बालक से मूली खरीदी जो सफेद की बजाय बैंजनी रंग लिये थी। मात्र बीस रुपये का खर्चा। <br />वापस लौट रहा हूं। गाड़ी मुरादाबाद तक आई है। <br />पंकज अवधिया जी का सुझाया वीडियो, धीमे नेट के चलते देख नहीं सका हूं अभी तक। <br />शुभ रात्रि।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-74850871762572813792010-11-01T20:26:22.094+05:302010-11-01T20:26:22.094+05:30" मेरा, एक आम भारतीय की तरह, व्यक्तित्व दोफाड..." मेरा, एक आम भारतीय की तरह, व्यक्तित्व दोफाड हो गया है। अधकचरा पढ़ा है। मीडिया ने अधकचरा परोसा है।"<br />सभी अपने व्यक्तित्व के इसी दोहरेपन से जूझ रहें हैं या फिर नज़रें चुरा जाते हैं .rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-14390410910216698742010-11-01T18:46:54.062+05:302010-11-01T18:46:54.062+05:30"भारत का जीवन धर्म प्रधान है पर उसके मूल में ..."भारत का जीवन धर्म प्रधान है पर उसके मूल में हैं कर्मकाण्ड। मॉडर्न पढ़ाई के प्रभाव में कर्मकाण्ड नकारने की प्रवृत्ति रही तो कहीं कहीं धर्म भी फिसल गया हाथ से। "<br /><br />मेरे भावों को इतने सुन्दर ढंग से शब्द और अभिव्यक्ति देने के लिए आपका आभार...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-12378843847873126722010-11-01T18:41:57.539+05:302010-11-01T18:41:57.539+05:30नैनीताल की खुशनुमा वादियों में विभिन्न विचार आवेंग...नैनीताल की खुशनुमा वादियों में विभिन्न विचार आवेंगे. अम्पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाएँ, केवल काम चलाऊ नहीं.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-67558584064734342032010-11-01T18:05:21.536+05:302010-11-01T18:05:21.536+05:30जैसे-जैसे आयु बढेगी, वैसे-वैसे प्रश्नों की संख्य...जैसे-जैसे आयु बढेगी, वैसे-वैसे प्रश्नों की संख्या और विषयों में भी वृध्दि होगी।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-89958994874318898952010-11-01T17:03:06.370+05:302010-11-01T17:03:06.370+05:30`मेरी पत्नीजी साथ में होतीं तो जरूर कहतीं – यह है ...`मेरी पत्नीजी साथ में होतीं तो जरूर कहतीं – यह है स्नॉबरी –'<br /><br />अच्छा किया पत्नी को नहीं ले गए वर्ना इस ‘शहरी सिंगडी’ का मज़ा बिगड़ जाता॥चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-76581163209590862242010-11-01T16:01:53.423+05:302010-11-01T16:01:53.423+05:30पचपन की उम्र इन प्रश्नों से दो चार होने की हो रही ...<b>पचपन की उम्र इन प्रश्नों से दो चार होने की हो रही है शायद!</b><br /><br />प्रश्न: जहां भी रेलवे के होलीडे होम हैं वहां रेल भी होती तो कैसा होता?<br />उत्तर: प्रश्नोपनिषद के लिए समय न होता शायद!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-2671549566266660832010-11-01T15:10:54.947+05:302010-11-01T15:10:54.947+05:30भारत का जीवन धर्म प्रधान है पर उसके मूल में हैं कर...भारत का जीवन धर्म प्रधान है पर उसके मूल में हैं कर्मकाण्ड। मॉडर्न पढ़ाई के प्रभाव में कर्मकाण्ड नकारने की प्रवृत्ति रही तो कहीं कहीं धर्म भी फिसल गया हाथ से।<br /><br />हमारे साथ भी यही हाल है और इसलिए लगातार उधेड़ बून बनी रहती है. <br /><br />"हैप्पी-होली डे" :)संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-36250630244969289392010-11-01T14:03:06.696+05:302010-11-01T14:03:06.696+05:30यदि सरकारी आंकड़ों को माने तो हमारे देश में लाखों ह...यदि सरकारी आंकड़ों को माने तो हमारे देश में लाखों हेक्टेयर ऐसी जमीने हैं जो बेकार हैं| इस जमीन पर कोई नहीं रहता| फिर सारे उद्योग ऐसी जमीन पर क्यों नहीं लगाए जाते? क्यों लोगों को उजाड़कर ही उद्योग लगाने की बात होती है? यह समझ से परे है|<br /><br />ऐसी गलितयाँ हमारे योजनाकार लगातार कर रहे हैं जिससे अनावश्यक ही आम लोगों में असंतोष बढ़ रहा है और देश के विकास में बाधा पैदा हो रही है| इससे कुछ संगठनो को लाभ हो रहा है जो आम लोगों के संघर्ष के नाम पर उन्हें और सताते हैं और उसके एवज में मोटी रकम लूटते हैं| उजाड़े गए लोग दोनो पक्षों के हाथों खेले जाते हैं और उन्हें कुछ नहीं मिलता|<br /><br />आपने वेदान्त की बात की| नियमगिरी का तवा गर्म है| ब्रिटेन समर्थित गैर-सरकारी संगठन जहां एक ओर हाथ सेंक रहे हैं वही दूसरी ओर देश के खानदानी युवराज हाथ सेंकने हेलीकाप्टर से आ रहे हैं| कोंध आदिवासी जिनसे सहानुभूति दिखाई जा रही है दुविधा की स्थिति में है|<br /><br />आप नैनीताल में ठण्ड का आनंद ले रहे हैं तो डीन मार्टिन का यह गीत भी सुन लीजिएगा| <br /><br />http://www.youtube.com/watch?v=mN7LW0Y00kE&a=GxdCwVVULXc-RZzS32TuxcFNHdBeDVHs&list=ML&playnext=4Pankaj Oudhiahttps://www.blogger.com/profile/06607743834954038331noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-47745829900775469272010-11-01T11:31:07.342+05:302010-11-01T11:31:07.342+05:30प्रश्नों की श्रंखलाओं के परे हमें उत्तरों के समतल ...प्रश्नों की श्रंखलाओं के परे हमें उत्तरों के समतल की प्रतीक्षा रहती है। विडम्बना यही है कि यह श्रंखला कभी समाप्त नहीं होती है।<br />एक कुशल परीक्षक की भाँति प्रश्नों में ही कुछ अन्य उत्तरों को छिपा देने की कला उन विद्यार्थियों को लाभ पहुँचाती है जिनके आँख कान खुले रहते हैं। प्रश्नों को निपटा देने की हड़बड़ी में और प्रश्न मुँह बाये खड़े हो जाते हैं।<br />इस प्रश्न पर ही पोस्ट लिख रहा था, नैनीताल में पहुँच आपकी दृष्टि भी रहस्यमय हो मेरी विचार प्रक्रिया तक पहुँच गयी। आश्चर्य ही है और इसका उत्तर भी नहीं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-17416272538246621412010-11-01T09:29:08.604+05:302010-11-01T09:29:08.604+05:30नैनीताल में अकेले स्वास्थ्यलाभ या कुछ और?
गाँव का...नैनीताल में अकेले स्वास्थ्यलाभ या कुछ और?<br /><br />गाँव का तालाब अब सरकार की निगाह में आ गया है। प्रधान जी हर साल खुदवाते और पटवाते होंगे। :)सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-79225212774475227232010-11-01T09:29:03.823+05:302010-11-01T09:29:03.823+05:30एक गाली के लिये क्षमा करेंगे. इन हरामियों ने अपनी ...एक गाली के लिये क्षमा करेंगे. इन हरामियों ने अपनी जेब भरने के लिये ताल-तलैया तो छोड़ दीजिये, नदियों को भी पाट दिया है. सब साले एक जैसे ही हैं. करैत, वाइपर, कोबरा. बस स्किन से ही केंचुये हैं... आर्सनिक की धीमी डोज दे रहे हैं.. अपनो को ही. अपने. अपनों के लिये, अपनों द्वारा नोचने-खसोटने के लिये ही रचा गया है सारा प्रपंच...भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-6670150841682076122010-11-01T09:24:18.992+05:302010-11-01T09:24:18.992+05:30मेरा, एक आम भारतीय की तरह, व्यक्तित्व दोफाड हो गया...मेरा, एक आम भारतीय की तरह, व्यक्तित्व दोफाड हो गया है। अधकचरा पढ़ा है। मीडिया ने अधकचरा परोसा है। मां-बाप सांस्कृतिक ट्रांजीशन के दौरान जो मूल्य दे पाये, उनमें कहीं न कहीं भटकाव जरूर है। भारत का जीवन धर्म प्रधान है पर उसके मूल में हैं कर्मकाण्ड। मॉडर्न पढ़ाई के प्रभाव में कर्मकाण्ड नकारने की प्रवृत्ति...... यह आधुनिक प्रश्नोप्निषद पचपन साल की उम्र में परेशान क्यों करता है?" <br />वैचारिक ऊर्जा से परिपूर्ण पोस्ट। आपकी आंतरिक छटपटाहट बहुत कुछ सोचने को बाध्य करती है।विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशनhttps://www.blogger.com/profile/18173585318852399276noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-63032171270229905172010-11-01T07:14:39.181+05:302010-11-01T07:14:39.181+05:30गांव का ताल पटा नहीं है। अब गांवों में हाथी सफ़ेद र...गांव का ताल पटा नहीं है। अब गांवों में हाथी सफ़ेद रंग के आने लगें हैं, इसलिए बहुत सारी योजनाएं उसमें तैर रहीं हैं, ... माने पानी अभी भी है उसमें!मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.com