tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post424702908481948674..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: शहरीकरण और ब्लॉगिंग के साम्यGyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger39125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-34349293843624108842010-02-17T00:34:50.084+05:302010-02-17T00:34:50.084+05:30और हम इनसब से ऑलमोस्ट अनभिज्ञ ही हैं ! हमको हिंद...और हम इनसब से ऑलमोस्ट अनभिज्ञ ही हैं ! हमको हिंदी ब्लोग्गर माना जाएगा क्या?Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-35033143157566912202010-02-16T15:24:07.833+05:302010-02-16T15:24:07.833+05:30पांडे जी , करीब चार पांच साल से मै आपके बलोग को पढ़...पांडे जी , करीब चार पांच साल से मै आपके बलोग को पढ़ रहा हूँ | टिप्पणी बहुत कम ही कर पाता हूँ | आपके ब्लॉग पर आने से ही नए नए शब्दों से परिचय हो पाता है |naresh singhhttps://www.blogger.com/profile/16460492291809743569noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-86327446711620421402010-02-13T14:41:56.373+05:302010-02-13T14:41:56.373+05:30बिलकुल आसान शब्दों में बहुत ही अच्छा और सटीक विश्ल...बिलकुल आसान शब्दों में बहुत ही अच्छा और सटीक विश्लेषण किया है आपने. धन्यवाद!इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-91093043424858659932010-02-12T23:20:12.692+05:302010-02-12T23:20:12.692+05:30समझने के इस तरीके के शेयर करते ही अपुन भी बिना घुट...समझने के इस तरीके के शेयर करते ही अपुन भी बिना घुटना खुजाये समझ गईलेबाल भवन जबलपुर https://www.blogger.com/profile/04796771677227862796noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-63868427990728068652010-02-12T23:12:00.617+05:302010-02-12T23:12:00.617+05:30हमारी समझ में तो ब्लाग अभिव्यक्ति का माध्यम है बस।...हमारी समझ में तो ब्लाग अभिव्यक्ति का माध्यम है बस। जैसे आप होंगे वैसी ही आपकी अभिव्यक्ति होगी।<br /><br />चिट्ठाचर्चा के बारे में जब आप नये थे तब आपकी कुछ सोच/समझ रही होगी! बीच में भी कुछ कुछ रही होगी। अभी कुछ दिन पहले की सोच भी देखी मैंने जिससे लगा कि यह विचार किसी नवोदित ब्लॉगर के हैं!<br /><br />ऐसा होता है कि हम आदतन उस काम के बारे में बेहतर राय व्यक्त कर सकते हैं जो हम खुद कभी करते नहीं। <br /><br />ब्लॉगिंग की तमाम स्थितियां और दौर बताते समय (.....बस इसी गड्डमड्ड तरीके से साइबर्बिया आबाद होता है। बढ़ता है। ) आप एक और दौर बिसरा गये वह है <b>...इनाम बांटता है।</b><br /><br />वस्तुत: हम लोगों ने कोलकता में बतियाते हुये यह भी सोचा था कि एक इनाम इनाम देने वालों के लिये भी रखना चाहिये।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-45503544688950327612010-02-12T22:56:17.634+05:302010-02-12T22:56:17.634+05:30@ शिव जी की मधुयामिनी - जबरदस्त!
महारथी के व्यंग्...@ शिव जी की मधुयामिनी - जबरदस्त! <br />महारथी के व्यंग्यबाणों का एकघ्नी से उत्तर अतिरथी ही दे सकते हैं।<br />बाकी सब लोग कह ही दिए हैं। देर से आने में बहुत फायदा रहता है।<br /><br />@गम्भीर और विषयनिष्ठ लेखन वाले अभी हिन्दी ब्लॉगजगत को शायद चिर्कुटर्बिया (चिरकुट-अर्बन ) मान कर अलग हैं।<br /><br />ऐसा नहीं है। आज भी गम्भीर और विषयनिष्ठ लेखन ब्लॉगरी में हो रहा है। ... शायद मेरी व्यंग्य की समझ ठीक नहीं है :) ।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-73816491815810683532010-02-12T22:13:07.280+05:302010-02-12T22:13:07.280+05:30गुरूदेव बहुत से सवाल उमड़ रहे हैं?कभी आपसे बात कर श...गुरूदेव बहुत से सवाल उमड़ रहे हैं?कभी आपसे बात कर शंका का समाधान चाहूंगा।मगर मैं एक बात बता दूं छतीसगढ की ब्लागर मीट कंही से घेटो बनाना नही था।अगर ऐसा है तो मैं अभी से कह रहा हूं कि मैं घेटो मे रहने वाला नही।Anil Pusadkarhttps://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-44056399090104936232010-02-12T19:28:58.013+05:302010-02-12T19:28:58.013+05:30गोसाई जी के समय में ई घेट्टू-फेट्टू नहीं रहा होगा।...गोसाई जी के समय में ई घेट्टू-फेट्टू नहीं रहा होगा। लेकिन एगो बात ऊ कहे थे<br />धूमउ तजई सएज करूआई । <br />अगरू प्रसंग सुगंध बसाई । ।<br />धुआं भी अगर के संग से सुगन्धित होकर अपने स्वाभाविक कडु़वेपन को छोड़ देता है ।<br />इसी लिये हम .... छोड़िए।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-88602404791119705982010-02-12T19:27:59.958+05:302010-02-12T19:27:59.958+05:30ठहरे हुए पानी में एक कंकर कितनी लहरें पैदा कर सकता...ठहरे हुए पानी में एक कंकर कितनी लहरें पैदा कर सकता है कोई यहाँ आ के गिन सकता है. लहर-लहर में करेंट है!<br />..वाह!देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-36809964033595085872010-02-12T18:59:28.660+05:302010-02-12T18:59:28.660+05:30ज्ञान के भण्डार जी, कोहानियाने की तरकीबें जानी जी ...ज्ञान के भण्डार जी, कोहानियाने की तरकीबें जानी जी . क्या खूब लिखा है . पिछले ३० सालों से लेखन में कोहानियाने की कोशिश नाकाम रही . आज से ३० साल पहले पत्रिकाओं में स्थान बनाने के लिए जो मूर्धन्य लेखक सामने थे वे आज भी हैं . पिछले दिनों दिल्ली जाना हुआ . रेल स्टेशन पर एक प्रतिष्ठित पत्रिका खरीदी और पूरी पढ़ डाली . लगभग २५ दिनों बाद लौटा तो फिर दूसरी बहुचर्चित पत्रिका खरीदी . पढ़ने बैठा तो एक बारगी पत्रिका का मुख्य पृष्ठ पलट कर देखना पड़ा कि वही पत्रिका तो नहीं खरीद्ली ? वही मूर्धन्य लेखक ? इस दौरान एक पत्रिका के सम्पादक जी ने विवशता जाहिर करते हुए कहा, फलां खूब लिखते हैं सो उन्हें छापना पड़ता है, फिर पत्रिका की छवि का सवाल भी तो है ! श्रष्ट पत्रिकाओं में भी तो घेट्टो बाज़ी है ? नवागत का स्वागत भी क्या ज़रूरी नहीं ? चाहे वह ब्लोगिंग ही क्यों न हो ?? माफ़ी सहित .राकेश 'सोहम'https://www.blogger.com/profile/14741422962119256333noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-85941599501102546832010-02-12T17:16:32.274+05:302010-02-12T17:16:32.274+05:30शत प्रतिशत सहमत हूँ आपसे...
ईमानदारी से कहूँ तो जब...शत प्रतिशत सहमत हूँ आपसे...<br />ईमानदारी से कहूँ तो जब कभी यह सत्य/ तथ्य दिमाग पर छाता है,तो मन वितृष्णा से भर जाता है...कि यहाँ भी,यही सब ?????<br /><br />फिर लगता है...छोडो,जिसको जो समझ में आता है करे... सब लोग अपने अपने संस्कार से विवश हैं...जिन्हें अच्छा कर संतोष पाना है,वो उसी के अनुरूप अपने समस्त क्रियाकलाप रखेंगे और जिन्हें केवल अपना नाम चमका चर्चा में बने रहना है,वे उसी अनुरूप सबकुछ करेंगे...<br />मैं उस समय को कभी नहीं भूल पाती कि नेट/ब्लॉग लेखन के पूर्व वर्षों तक मैं केवल पाठक थी और एक पाठक के रूप में मुझे इन सबसे कोई मतलब नहीं रहता था...मुझे नेट पर केवल अपने रूचि के उत्कृष्ट सामग्री की खोज रहती थी,चाहे उसे किसी नामी ने लिखा हो या बेनामी ने...<br /><br />ये सारे झोर झमेले गुटबंदी ऐसे ही उड़ जायंगे,बीतते समय के पलों संग...सुखद यह है कि नेट पर स्थित/संरक्षित अच्छी चीजें अपना महत्त्व सदा के लिए स्थायी रख पाएंगी और आज न सही कभी न कभी तो ये सही लोगों तक पहुँच ही जायेंगी..रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-11938655512181519202010-02-12T14:54:01.373+05:302010-02-12T14:54:01.373+05:30भविष्य के गर्भ मे क्या छुपा है यह अभी समझना मुश्कि...भविष्य के गर्भ मे क्या छुपा है यह अभी समझना मुश्किल है...सभंव है गम्भीर और विषयनिष्ठ लेखन वाले...अभी समय की प्रतीक्षा कर रहे हो..।<br /><br />पोस्ट बहुत गहरे चिंतन मे डुबोती है...परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-28839110609949515792010-02-12T14:42:12.004+05:302010-02-12T14:42:12.004+05:30गजब का लिखा है । सच में यह हर क्षेत्र में हो रहा ह...गजब का लिखा है । सच में यह हर क्षेत्र में हो रहा है । निशाना वो बनते हैं जो लाइमलाइट में आते हैं । मुम्बई में पहले दक्षिण भारतीय निशाना थे अब उत्तर भारतीय हो गये । कुछ दिनों बाद विदर्भ के और कोंकणी लोग भी मुम्बई में बाहर के माने जायेंगे । पाकिस्तान राष्ट्र बनने के बाद मुसलमानों को गाहे बगाहे बाहर का प्राणी बता दिया जाता है ।<br />यही ब्लॉग जगत में दिख रहा है । पुरानी मानसिकता नये को रास्ता देने को तैयार ही नहीं । नये भी इतने विद्रोही कि पुरानों से मुगल-पिताओं सा व्यवहार करते हैं । ’म्युचुअल एकॉमडेशन’ ही नहीं । ऐसा लगता है कि मानसिक कंगाली छायी है ।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-37644351511236341222010-02-12T14:08:33.805+05:302010-02-12T14:08:33.805+05:30बढ़िया और सही विश्लेषण।
मुझे भी शुरुआती दौर में यह ...बढ़िया और सही विश्लेषण।<br />मुझे भी शुरुआती दौर में यह देखकर अजीब लगता था कि<br />चिट्ठाचर्चा में बस कुछ लोगों के ही उल्लेख होते थे।<br />हां यह अलग बात है कि भूले भटके अपने नाम का उल्लेख देखकर खुशी भी होती थी।<br />वैसे एक और बात यह भी है कि इस तरह के कार्य कोई भी करे। आरोप लगने तय ही हैं।<br />यह बात चिट्ठाचर्चा के लिए कह रहा हूं।<br />कहां संभव है कि कोई आज के पूरे 19-20 हजार ब्लॉग्स पढ़ने के बाद ही चिट्ठाचर्चा करे।<br /><br />तो बात वही जो शुरुआती दौर से चली आ रही है कि बचने और चलने के साथ लोकप्रिय वही ब्लॉग होंगे जो स्तरीय लेखन करेंगे।<br />स्तरीय लेखन वालों को पढ़ने वाले खुद आ कर पढ़ेंगे, उसे अपने पोस्ट की लिंक ईमेल पर ठेलने की जरुरत ही नही होगी।<br />पर देर-सबेर यह बात समझ में आ ही गई कि यहां आने का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ ब्लॉग लिखना ही है।<br />कोई चर्चा करे अपने नाम की तो ठीक, नहीं करे तो ठीक।<br /><br />मुद्दे से भटक गया शायद <br /><br />रहा सवाल घेटो का तो, जब ब्लॉगिंग के सहारे "ग्लोबल" होने की बात कही जा रही है या फिर ग्लोबल हुआ जा रहा है। ऐसे में घेटो बनाना और तलाशना, दोनों ही बेकार है। जो घेटो बनाएंगे वे घेटो में ही सिमटे रह जाएंगे, और जो घेटो तलाशेंगे वे यही करते रह जाएंगे। वैसे समूह के अंदर के उप समूह अर्थात घेटो के अंदर के सब घेटो के लिए क्या शब्द?<br />क्योंकि यहां यही ज्यादा हो रहा है।<br />;)<br /><br />अब फिर एक अलग मुद्दा<br />काफ़ी समय पहले मैने आपके पर्सोना में बदलाव पर पूछा था। <br />और आपने बताया भी था। पर्सोना में बदलाव तो समय के साथ आते ही रहते हैं।<br />तो अब फिर से एक पोस्ट हो जाए, पर्सोना में आए बदलाव पर? संदर्भ ब्लॉगजगत या ब्लॉग।<br /><br />;)Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-13082274437696408322010-02-12T14:01:23.785+05:302010-02-12T14:01:23.785+05:30बड़े-बड़ों के बीच क्या बोला जाए..जब कोई निष्कर्ष नि...बड़े-बड़ों के बीच क्या बोला जाए..जब कोई निष्कर्ष निकाल लें..सब मिलकर एक सार्वजनिक श्वेतपत्र जारी कर दें..हम वही पढ़ लेंगे.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-38686591816474494482010-02-12T13:55:13.492+05:302010-02-12T13:55:13.492+05:30देव !
बहत कुछ देख रहा हूँ | आँखें चौधियां - सी गय...देव !<br />बहत कुछ देख रहा हूँ | आँखें चौधियां - सी गयी हैं | <br />बस गंगा-प्रवाह देख रहा हूँ ! यहाँ थोड़ी नमीं पाता हूँ ! आभार !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-33014110297185326962010-02-12T13:36:28.049+05:302010-02-12T13:36:28.049+05:30बढ़िया ज्ञानदत्तीय विश्लेषणबढ़िया ज्ञानदत्तीय विश्लेषणअजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-73855474159985219742010-02-12T13:28:06.992+05:302010-02-12T13:28:06.992+05:30मेरा मानना है ब्लॉग ऐसी स्लेट है जहाँ लिखने के लिए...मेरा मानना है ब्लॉग ऐसी स्लेट है जहाँ लिखने के लिए इतनी आज़ादी है के आधी रात नींद में गर कुछ ख्याल खलल डाल रहे है ...आप उसे बिहार या अमेरिका में जागते शख्स से बाँट सकते है ....कौन कैसे इस आज़ादी का इस्तेमाल करता है ये व्यक्ति- व्यक्ति पर निर्भर है .....जिस तरह मै टी वी के रिमोट का इस्तेमाल करता हूँ .वैसे ही माउस का भी.......मेरी समझ में ब्लॉग आप का आइना है....ओर इसका इस्तेमाल मन का पढना ओर मन का लिखने के लिए करना चाहिए ....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-60335731271885923872010-02-12T13:06:47.620+05:302010-02-12T13:06:47.620+05:30ज्ञानदत्त पाण्डेय सर जी हमेशा एक से एक बेहतरीन लेख...ज्ञानदत्त पाण्डेय सर जी हमेशा एक से एक बेहतरीन लेख देते हैं और नये नये शब्द उत्पन्न होते हैं.अनिल कान्तhttps://www.blogger.com/profile/12193317881098358725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-72384013360615829782010-02-12T11:48:10.877+05:302010-02-12T11:48:10.877+05:30बहुत सही लिखा जी. ज्ञानवादी पोस्ट से आगे जाती पोस्...बहुत सही लिखा जी. ज्ञानवादी पोस्ट से आगे जाती पोस्ट. पसन्द आयी.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-3630053631030486692010-02-12T10:54:19.202+05:302010-02-12T10:54:19.202+05:30शिव जी पूरी तरंग में हैं आज ..आखिर क्यूं न हों उन...शिव जी पूरी तरंग में हैं आज ..आखिर क्यूं न हों उनकी मधुयामिनी है आज !<br />बम बम भोले !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-14902625138213319682010-02-12T10:28:09.369+05:302010-02-12T10:28:09.369+05:30@ शिव कुमार मिश्र > वैसे एक सवाल आपसे भी है. आप...<b>@ शिव कुमार मिश्र > वैसे एक सवाल आपसे भी है. आप किसी समूह या घेट्टो के सदस्य क्यों नहीं बने? इसके बावजूद कि आपको भी कभी चिट्ठाचर्चा से शिकायत थी.</b><br /><br />मेरे पास एक समूह था जिसके दो सदस्य थे। शिवकुमार मिश्र और मैं। शिवकुमार मिश्र के होते मुझे ज्यादा बड़े समूह को बनाने की जरूरत नहीं पड़ी! :-)Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-4218950749603078432010-02-12T10:21:19.471+05:302010-02-12T10:21:19.471+05:30जब किसी जगह पर ताजा ताजा पानी भरा जाता है तो उससे ...जब किसी जगह पर ताजा ताजा पानी भरा जाता है तो उससे उठते बुलबुले सतह पर आते आते फूटने लगते हैं और जो नहीं फूट पाते वह सूक्ष्म बुलबुलों के रूप में ईग्लू रूप धारण कर आपस में जुड जाते हैं और सतह पर कुछ देर तक जुडे रहते हैं। यह एक प्रकार का घेट्टोईस्म या ग्रुपिस्म ही है। <br /> <br /> इस हिसाब से मेरा यह मानना है कि घेट्टोईस्म या ग्रुपिस्म तो एक प्रकार से प्रकृतिगत स्वभाव है। इस से इन्कार नहीं किया जा सकता। हम इस परिस्थिति को तोड तो नहीं सकते, बस टाल जरूर सकते हैं।<br /> <br /> और हां, इसके साथ साथ और भी एक प्रकार का ग्रुपिस्म होता है। जिस पात्र में पानी भरा जाता है, वहां यदि पहले से कुछ घास फूस, तिनके या कुछ हल्की चीज हो तो वह पानी भरने के साथ ही सतह पर वह चीजें आती जाती हैं और उपरी सतह पर एक दूसरे से जुड कर एक प्रकार की अनोखी ग्रुपिंग बना लेती हैं। <br /> <br /> यहां मुंम्बई में देखता हूं कि लोग घर ढूँढने से पहले देखते हैं कि सोसाईटी में मांस मच्छी वाले तो नहीं हैं, गुजराती सोसाईटी हो तो उत्तम, मुसलमान परिवार हो तो उसके बगल में फ्लैट लेने से कतराते हैं। यह घेटोईस्म बडे पैमाने पर समाज में प्रांत और भाषा का अपरूप लेकर हमारे सामने आज प्रत्यक्ष दिख रहा है और हम हैं कि इस पर कुछ नहीं कर सकते। <br /><br /> <b>हर एक का अपना अपना ईग्लू होता है।</b>सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-9012351156094275122010-02-12T10:08:42.401+05:302010-02-12T10:08:42.401+05:30Three cheers for coining two new terms ! That thin...Three cheers for coining two new terms ! That thing apart i'd say there is no reason to take blogging this much seriously. Its just fun ,nothing more or less ,but as the title of a book by Amartya Sen suggests we are ,after all, 'argumentative Indians'!मुनीश ( munish )https://www.blogger.com/profile/07300989830553584918noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-52777924162746732552010-02-12T09:56:20.257+05:302010-02-12T09:56:20.257+05:30आप भी सीधे मंगल और तिलंगी से बात करते करते सैबर्बि...आप भी सीधे मंगल और तिलंगी से बात करते करते सैबर्बिया तक पंहुच जाते है , त्रिआयामी प्रोजेक्टर लगा रखा है दिमाग में , अपन का साधारण दिमाग ख़राब हो जाता है कई बार, क्या चीज हो आप भी गुरु ??Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com