tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post389461950684795081..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: ज्यादा पढ़ने के खतरे(?)!Gyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger32125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-1474767616063465572008-01-26T22:42:00.000+05:302008-01-26T22:42:00.000+05:30Neeraj ji idhar jaadhe ke kaaran sense of humor th...Neeraj ji idhar jaadhe ke kaaran sense of humor thodaa sikud gayaa hai...Anita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-59842380359560607772008-01-26T04:13:00.000+05:302008-01-26T04:13:00.000+05:30जितना मज़ा आपका व्यंग्य लेख पढ़ कर आया. उससे ज़्या...जितना मज़ा आपका व्यंग्य लेख पढ़ कर आया. उससे ज़्यादा मज़ा रंग-बिरंगी टिप्पणियों ने दिया. सबका शुक्रिया!हिंदी ब्लॉगर/Hindi Bloggerhttps://www.blogger.com/profile/04059710706721725509noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-22599327084004922522008-01-26T02:00:00.000+05:302008-01-26T02:00:00.000+05:30बाकी सब तो ठीक है लेकिन हिन्दी ब्लागजगत के सेंस आफ़...बाकी सब तो ठीक है लेकिन हिन्दी ब्लागजगत के सेंस आफ़ ह्य़ूमर को कुछ हो सा गया है और कामन सेंस का प्रयोग भी कम होता सा जा रहा है । ज्ञानदत्त पाण्डेय (जानबूझकर जी नहीं लगाया) को जो भी पढते रहते हैं उन्हें तो कम से कम उनकी नीयत पर शक नहीं होना चाहिये ।<BR/><BR/><BR/>पालिटिकल करेक्ट्नेस अच्छी चीज है लेकिन इसकी अति भी अच्छी नहीं होती । एक उदाहरण देता हूँ :<BR/><BR/>कई प्रोफ़ेसर (महिला और पुरूष) खडे बात कर रहे हैं और कोई कहता है कि सऊदी में महिलायें कार नहीं चला सकती, इतने में एक प्रोफ़ेसर जो अपने सेंस आफ़ ह्यूमर के लिये प्रसिद्ध हैं कहते हैं "It is a blessing in disguise." <BR/><BR/>He was referring to careless instances of driving of big cars in US by women (one hand on steering wheel, lip-stick in another hand and cup of coffee in waiting and a cellphone places between ear and shoulder with tilted head).<BR/><BR/>सभी लोग समझ गये कि इशारा क्या था और खुलकर हंसे (महिलायें भी) । क्या केवल इस तरीके की कोई बात कहने से आदमी Prejudiced जाता है? वहाँ पर मौजूद सभी लोग महिला सशक्तीकरण के घोर समर्थक थे और कोई भी महिलाओं को कम नहीं आंकता । <BR/><BR/>महिलायें भी पुरूषों के नाम पर चुहल लेती हैं, आवश्यकता है नीयत को समझने की और विश्वास करने की ।Neeraj Rohillahttps://www.blogger.com/profile/09102995063546810043noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-24549610277731131562008-01-25T20:38:00.000+05:302008-01-25T20:38:00.000+05:30ब्लॉगस्पॉट टिप्पणियां नहीं ले रहा है। अत मेल से नि...ब्लॉगस्पॉट टिप्पणियां नहीं ले रहा है। अत मेल से निम्न टिप्पणी अनीता कुमार जी की मिली है:<BR/>ज्ञान जी<BR/> बहुत कौशिश की कि आप की आज की पोस्ट को चुहलबाजी समझ मजाक में उड़ा दूं, पर शायद अपने नारी होने से मजबूर हूं। जैसा सबके कमेंट देख कर पता चल रहा है नारियों की प्रतिक्रिया एक जैसी है और पुरुषों को लग रहा है कि हम ओवर रिएक्ट कर रहे हैं। हम नारियों से ही सहमत हैं और आहत महसूस कर रहे हैं। खैर, हम सभी कहीं न कहीं prejudiced तो हैं ही।<BR/> <BR/> <BR/>अभय जी को पूरे 100 मार्क्स, इसे इतनी सहजता से लेने के लिए।<BR/> <BR/>रीटा जी के पोस्ट का हमें भी इंतजार रहेगा। ज्यादा इंटेलेक्चुअल मैटर हम भी नहीं झेल पातेGyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-37723574946258528412008-01-25T20:08:00.000+05:302008-01-25T20:08:00.000+05:30वैसे इस पोस्ट को पढ़ने के बाद लग रहा है कि बहुत जल्...वैसे इस पोस्ट को पढ़ने के बाद लग रहा है कि बहुत जल्दी दो नये ब्लॉगर हमें मिलने वाले हैं, तनु भाभी जी और रीताभाभीजी। <BR/>हमें इन्तजार है दोनों के इस पोस्ट के बारे में क्या विचार है।सागर नाहरhttps://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-53822699416900308302008-01-25T20:05:00.000+05:302008-01-25T20:05:00.000+05:30भरत लाल ने ब्ड़ी व्यवहारिकता पूर्ण बात करी.... यही ...भरत लाल ने ब्ड़ी व्यवहारिकता पूर्ण बात करी.... <BR/>यही बात हमारी श्रीमतीजी अक्सर कहती है। <BR/><BR/>पोस्ट और टिप्पणियाँ पढ़ कर हंसी आ रही है।सागर नाहरhttps://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-30196361751506959272008-01-25T19:40:00.000+05:302008-01-25T19:40:00.000+05:30"मैं अगर दिन भर की सरकारी झिक-झिक के बाद घर आऊं और..."मैं अगर दिन भर की सरकारी झिक-झिक के बाद घर आऊं और शाम की चाय की जगह पत्नीजी वेनेजुयेला या इक्वाडोर के किसी कवि की कविता पुस्तक अपनी समीक्षा की कमेण्ट्री के साथ सरकाने लगें तो मन होगा कि पुन:दफ्तर चल दिया जाये।"<BR/><BR/>आप तो बच गये ज्ञान जी. हमारे घर में तो यही होता है, बस ऊपर के वाक्य में किताबों के नाम अलग हैं. मैं तो हो गया रिटायर, तो अब घर के अलावा और कहीं जा नहीं सकता. समोसा यहां नुक्कड पर मिलता नहीं है.<BR/><BR/>आज तक डरे नहीं, अब डर लगने लगा है कि हमारी स्थिति तो बहुत विकट है!!Dr. Johnson C. Philiphttps://www.blogger.com/profile/10836988406358120241noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-57987709161681792052008-01-25T18:29:00.000+05:302008-01-25T18:29:00.000+05:30किसी पोस्ट की सामग्री को अगर संगीत के रूपक में बां...किसी पोस्ट की सामग्री को अगर संगीत के रूपक में बांधें तो चिट्ठाकार और टिप्पणीकार का संबंध मुख्य गायक और संगतकार का ठहरता है . लय-ताल को सही सम पर पकड़ना होता है .<BR/><BR/>सहज देशज उठान वाली इस निर्दोष-चुटीली पोस्ट का सम अभय और तनु ने पूरे शिष्ट-आनन्द के साथ बहुत समझदारी से पकड़ा जो अभय की प्रतिक्रिया से स्पष्ट है . अतः चिट्ठाकार और संबोधित मुख्य टिप्पणीकार के सकारात्मक सम्बंध मन में एक सहज आत्मीयता जगाते हैं . <BR/><BR/>अगर आदमी हर समय 'पुलिटिकली करैक्ट' और 'सैनिटाइज़्ड' किस्म की बातें करने लगे और जीवन से चुहलबाजी और नोक-झोंक चली जाए तो जीवन कितना नीरस,बनावटी और लद्दड़ हो जाएगा,यह सोचकर ही घबराहट होने लगती है .<BR/><BR/>हां! नारीवादी स्त्री-पुरुष ज्ञान जी को एक उलहना दे सकते हैं कि उनकी पोस्ट में 'ऑरिजिनल' उनका कितना होता है ? विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि भाषा पूरी तरह रीता जी से उधार ली हुई है और विषयवस्तु का आधारभूत स्रोत कॉमरेड भरतलाल हैं . इसलिए ज्ञान जी से यह मांग की जाए कि ब्लॉग-शिरोमणि होने की स्थिति में जो भी पत्र-पुष्प मिले उसका एक हिस्सा पृष्ठभूमि में सहलेखन कर रहे इन सहयोगियों से भी साझा किया जाए . वैसे तो मिलना ही क्या है,सिवाय शुभाकांक्षाओं के .Priyankarhttps://www.blogger.com/profile/13984252244243621337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-75393567499036513202008-01-25T17:02:00.000+05:302008-01-25T17:02:00.000+05:30ज्ञान जी, ज्यादा कुछ नहीं। बस अब रीता जी के लिखे ल...ज्ञान जी, ज्यादा कुछ नहीं। बस अब रीता जी के लिखे लेख भी पढवा दीजिये।anuradha srivastavhttps://www.blogger.com/profile/15152294502770313523noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-2057449529182308922008-01-25T17:00:00.000+05:302008-01-25T17:00:00.000+05:30एक नज्म है जिसे जगजीतसिंह ने बहुत उम्दा गया भी है ...एक नज्म है जिसे जगजीतसिंह ने बहुत उम्दा गया भी है की " बात निकलेगी तो फ़िर दूर तलक जायेगी..." शायर ने शायद आप की पोस्ट पर आयी टिप्पणियां नहीं पढी होंगी वरना उसे मालूम पड़ता की बात दूर तलक नहीं बहुत बहुत दूर तलक चली जाती है....<BR/>एक सीधी साधी पोस्ट पर नारियाँ गुस्से से लाल पीली और पुरूष हरे भरे हो रहे हैं...ऐसा क्या लिख दिया आपने..?चलिए छोडिये ये सब चलता ही है....आप की बात सही है...जो ज्ञान हमें अपने अनुभवों से मिलता है वो किताब से नहीं...किताब लिखती है की गुड मीठा होता है लेकिन कितना ये तो खा कर ही महसूस किया जा सकता है...भरत लाल जी इस मायने में किताबों से बेहतर हैं....<BR/>नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-74640539499222335472008-01-25T16:40:00.000+05:302008-01-25T16:40:00.000+05:30बॉस,टेंशन में डाल दिया आपने तो, अपनेराम तो अपने जै...बॉस,टेंशन में डाल दिया आपने तो, अपनेराम तो अपने जैसे किसी किताब की शौकीन कन्या लाने की सोच रहे थे पर आपने तो जैसे फ्यूचर दिखा के टेंशन दे दिया ;)<BR/><BR/>चुटकी लेने मे फ़ुल्ली एक्स्पर्ट हो आप ये तो मानना ही पड़ेगा!<BR/>अभय जी की पोस्ट आवश्य पठनीय होती हैं भले ही कई बार इन किताबों और फिल्मों के भारी भरकम नामोल्लेख के कारण ऊपर से निकल जाती है।<BR/><BR/>भरतलाल की क्या कहें जी उनके तो किस्से पढ़ पढ़ के साक्षात दर्शन का मन होने लगता है। क्यों न हफ्ते में एक दिन भरतलाल के किस्सों के लिए आरक्षित कर दें आपके ब्लॉग पर और लेबल दें "किस्सा ए भरतलाल"Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-23967104309689992102008-01-25T13:08:00.000+05:302008-01-25T13:08:00.000+05:30मैं लौटकर घर आऊँ तो बीबी चाय लेकर इन्तज़ार करती मिल...मैं लौटकर घर आऊँ तो बीबी चाय लेकर इन्तज़ार करती मिले. कौन नहीं चाहता। पर संसार की सारी नारियों को छोड़कर तनु से प्रेम भी इसीलिए किया था क्योंकि वह बाक़ियों से अलग थी.. वो खाने-पीने की दुनिया से अलग एक मेधा सम्पन्न स्वतंत्र व्यक्तित्व थी और आज भी है। पर मनुष्य के भीतर बैठे सामाजिक संस्कार यूँ ही नहीं चले जाते.. उनके खिलाफ़ सतत संघर्ष करना पड़ता है.. मैंने भी अलग-अलग मौकों पर एक पुरुष पूर्वाग्रह से ग्रस्त रवैया अख्तियार किया पर तनु ने मुझे सँभाले रखा। <BR/>किताबें हम दोनों पढ़ते हैं.. पैसे हम दोनों कमाते हैं.. घर का काम भी हम दोनों करते हैं.. वैसे आज कल पैसे वो ज़्यादा कमाती है और घर का काम मैं ज़्यादा करता हूँ। तकिये के गिलाफ़ भी खरीदने लगा हूँ। <BR/>मनीषा ने बताया ही और मैं पुष्टि करता हूँ कि खाना वो बहुत अच्छा बनाती है.. आप के लिए खिचड़ी ज़रूर बनाएगी वह.. और वैसे आप मेरे हाथ की आजमायें.. बुरी नहीं बनाता मैं भी। <BR/>और भरत लाल के जीवन अनुभव के आगे मैं हथियार डालता हूँ.. किताब तो साक्षात जीवन अनुभव का स्थानापन्न भर है। <BR/>और आप का स्नेह मुझ पर है मैं पहले से ही जानता हूँ। <BR/>तनु ने भी आप की पोस्ट पढ़ी और मुस्कराई।अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-76009020775233006562008-01-25T12:57:00.000+05:302008-01-25T12:57:00.000+05:30जो आपको शुरू से पढ रहे है उन्हे इस पोस्ट मे कुछ भी...जो आपको शुरू से पढ रहे है उन्हे इस पोस्ट मे कुछ भी अटपटा नही लगेगा पर जो आपको लोकप्रिय ब्लागर के रूप मे जानकर फिर पढ रहे है तो उनकी अपेक्षाए बहुत बढ गयी है। अभी सम्मान के बाद यह सम्भव है कि आपको अपना मूल लेखन खोना पडे और नैतिक बाते करनी पडे। नही तो आप नही पर सम्मान देने वालो की खटिया खडी होगी। वैसे आप अपनी पिछली सम्बन्धित पोस्ट की कडियाँ साथ मे दे तो पाठको को आसानी होगी पर यह भी सच है कि हमारे पाठको को बिना पूरा पढे टिप्पणी के माध्यम से बवाल खडे करने का अधिक शौक है। :)Pankaj Oudhiahttps://www.blogger.com/profile/06607743834954038331noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-44214744204201004772008-01-25T11:34:00.000+05:302008-01-25T11:34:00.000+05:30अब हमारे कहने के लिए तो कुछ बचा ही नही है । बस इ...अब हमारे कहने के लिए तो कुछ बचा ही नही है । बस इतना ही कहेंगे कि अब रीता भाभी का ब्लॉग जल्दी ही शुरू करवा दीजिए।और पढ़ने -पढ़ाने का दौर भी चलने दीजिए।mamtahttps://www.blogger.com/profile/05350694731690138562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-53486268280992993122008-01-25T11:24:00.000+05:302008-01-25T11:24:00.000+05:30http://vadsamvad.blogspot.com/2007/08/blog-post_10...http://vadsamvad.blogspot.com/2007/08/blog-post_10.htmlAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-19320341958521281362008-01-25T11:15:00.000+05:302008-01-25T11:15:00.000+05:30ज्ञान जी, तनु दीदी नौकरी करती हैं और उनके पास घरेल...ज्ञान जी, तनु दीदी नौकरी करती हैं और उनके पास घरेलू कामों के लिए इतनी फुरसत नहीं होती, लेकिन एक बात बता दूं अभय से ज्यादा किताबें पढ़ने के बावजूद वो ज्यादा सेवा-भाव वाली हैं। खाना हमेशा नहीं बनातीं, लेकिन जब भी बनाती हैं, आप उंगलियां चाट-चाटकर खाएं, ऐसा बनाती हैं। बहुत लविंग और केयरिंग हैं। वैसे अभय भी कम लविंग और केयरिंग नहीं हैं, लेकिन मैं तनु दीदी को अभय से एक वोट ज्यादा दूंगी।मनीषा पांडेhttps://www.blogger.com/profile/01771275949371202944noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-52168706101208918962008-01-25T11:03:00.000+05:302008-01-25T11:03:00.000+05:30अब लगता है कि यदा कदा उनकी पोस्ट अपने ब्लॉग पर प्र...अब लगता है कि यदा कदा उनकी पोस्ट अपने ब्लॉग पर प्रस्तुत कर दिया करूं।<BR/>is charcha per unkae vichar kyaa haen ??Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-56479166683335438512008-01-25T11:02:00.000+05:302008-01-25T11:02:00.000+05:30एक शेर हमे भी याद आ रहा है....धूप में निकलो, घटाओं...एक शेर हमे भी याद आ रहा है....<BR/>धूप में निकलो, घटाओं में नहा कर देखो<BR/>जिन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो।<BR/><BR/>लेकिन इसके उलट एक और भी है<BR/>किताबों से कभी गुजरो तो यूं किरदार मिलते हैं,<BR/>गये वक्तों की ड्योढी पर खडे कुछ यार मिलते हैं।<BR/><BR/>तो साहब....किताबों की तो बात ही निराली है। आप भरतलाल को रिप्रिंट नही कर सकते, किसी के साथ बांटेंगे भी नही...वो सिर्फ आपका है...किताबों के साथ ऐसा नही :)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-86432807483357207302008-01-25T10:55:00.000+05:302008-01-25T10:55:00.000+05:30ज्ञान चचा(मैं दद्दा नहीं कहूंगा :)).. आपका व्यंगात...ज्ञान चचा(मैं दद्दा नहीं कहूंगा :)).. आपका व्यंगातमक लेख अच्छा लगा.. लोग मुझे पता नहीं क्यों इतना सिरियसली नहीं लेते हैं.. मैं कुछ भी कहता हूं तो सब समझते हैं कि मैं मजाक कर रहा हूं और एक आप हैं कि कुछ मजाक करते हैं तो सब समझते हैं कि सिरियस हैं.. :)<BR/><BR/>एक प्रश्न, क्या चाची मेरा बिलोग भी पढती है? अगर हां तो जल्दी बता दें, मैंने अपने बिलोग के कुछ पोस्टिंग में कुछ अभद्र शब्दों का प्रयोग किया है.. उसे प्रयोग में लाना बंद कर दूंगा.. नहीं तो चाची सोचेंगी की बच्चा बिगड़ा हुआ है..<BR/>:DPDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-50939001921798830102008-01-25T10:37:00.000+05:302008-01-25T10:37:00.000+05:30ज्ञान जी, लगता है आपको भी रह-रहकर लोगो को चिकोटा क...ज्ञान जी, लगता है आपको भी रह-रहकर लोगो को चिकोटा काटने की आदत है। टिप्पणियों से लगता है कि मजे-मजे को लोगों ने सीरियसली ले लिया, खासकर महिलाओं ने।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-13297844923433924812008-01-25T10:35:00.000+05:302008-01-25T10:35:00.000+05:30@ पारुल जी, रचना जी - आपने मेरी पत्नी से अपेक्षाओं...@ पारुल जी, रचना जी - आपने मेरी पत्नी से अपेक्षाओं के बारे में पूछा/चर्चा की। धन्यवाद। <BR/>मैं काफी सोच कर यह लिख रहा हूं। कहीं पुरुषवादी से परिवारवादी के सलीब पर न चढ़ा दिया जाऊं। रीता न होतीं तो मेरा लड़का जीवित न होता और जीवन के थपेड़ों से मैं स्वयम या तो ल्यूनाटिक एसाइलम में होता या एसेक्टिक होता। परिवार दो चक्कों की गाड़ी पर चल रहा है और रीता वाला चक्का मुझसे कहीं ज्यादा मजबूत है।<BR/>मेरी पत्नी पुस्तकों से दूर नहीं हैं और मैं लगभग सभी पोस्टों उनके पठन के बाद ही पब्लिश करता हूं। वे मेरी पोस्ट के सभी कमेण्ट और कई अन्य ब्लॉग पढती भी हैं। उन्हे मैं ब्लॉग लेखन के लिये बार बार कहता रहा हूं; पर उन्हें कम्यूटर प्रयोग से रुचि नहीं हैं। धीरे धीरे हो रही है। अब लगता है कि यदा कदा उनकी पोस्ट अपने ब्लॉग पर प्रस्तुत कर दिया करूं।<BR/>मेरी नैतिकता के विषय में मेरी अपनी ठोस धारणायें हैं और उसे ले कर मुझे कष्ट नहीं है।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-25332567470853985862008-01-25T10:17:00.000+05:302008-01-25T10:17:00.000+05:30सरजी किताबों और पढ़ने लिखने का एक किस्सा यूं भी सु...सरजी किताबों और पढ़ने लिखने का एक किस्सा यूं भी सुनिये<BR/>मैने कामर्स की क्लास में कई बच्चों को कई दिनों तक हड़काया कि सिर्फ बैलेंस शीट, लाभ हानि, प्राफिट, रिलायंस, बांबे डाइंग समझना ही पढ़ाई नहीं है। पढ़ो, भौत सारी किताबें पढ़ो। गालिब को पढ़ो, पाब्लो नेरुदा को पढ़ो, सोयिंका सोर्का को पढ़ो, जैरियां दां जौंवस्की को पढ़ो, करियां दा फुलांदा को पढ़ो, बशीर ब्रद्र को पढ़ो। <BR/>अगले दिन एक बच्चा बोला सरजी आज पढ़कर आया हूं, जो आपने कहा था, वह पढ़कर आया हूं. <BR/>मैने कहा- सुना। <BR/>बच्चे ने सुनाया-<BR/>कागज में दबकर मर गये कीड़े किताब के<BR/>दीवाना बे पढ़े लिखे मशहूर हो गया<BR/>बालक बशीर बद्र का शेर पढ़ कर आया था।<BR/>अब बताओ कि क्या कहा जाये किताब पढने के बारे में. <BR/>मैं एलानिया डिक्लेयर करता हूं कि मैं पांच करोड रुपये एक भौत धांसू पर्सनल लाइब्रेरी बनाने के लिए कमाऊंगा, जिस किताब को खऱीदना हो उसका भाव नहीं पूछने का। <BR/>ऐसी सिचुएशन के लिए पांच दस करोड़ कमा लिये जायें, तो बुरा नहीं है। <BR/>अंबानी की रिलायंस से कमाकर मीर के दीवान में इनवेस्ट करो, भौत भड़िया रिटर्न मिलते हैं जी।ALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-70737714378865979252008-01-25T10:07:00.000+05:302008-01-25T10:07:00.000+05:30ज्ञान जी दरअसल बात यह है कि लोग आपकी हर बात को सीर...ज्ञान जी दरअसल बात यह है कि लोग आपकी हर बात को सीरियसली ले लेते हैं.यह एक बड़ी उपलब्धि है....वरना हमारी तो कोई बात सीरियसली ली ही नहीं जाती :-) उस दिन हमने अपनी पत्नी को कहा की चलो <A HREF="http://kakesh.com/?p=245" REL="nofollow"> अपने संकल्प के लिये </A> आज खाना बनाने में मदद कर दें तो बोली "तुम से कुछ नहीं होगा..बस बैठ जाओ अपना लप्पू-टप्पू ले के"...<BR/><BR/>यही पोस्ट यदि हमने या शिव कुमार जी ने लिखी होती तो कोई बबाल ना होता... :-) आइन्दा इस तरह की पोस्ट आप हमें या शिवकुमार जी को भेज दिया करें... :-)काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-73923841222786179952008-01-25T10:05:00.000+05:302008-01-25T10:05:00.000+05:30क्या स्त्री पत्नी बनकर वह सब भूल जाये जो इंसान के ...क्या स्त्री पत्नी बनकर वह सब भूल जाये जो इंसान के लिये जूरी होता है ? क्या पढने का अधिकार भी केवल पुरुषो कोही मिलना चाहीये .ये लेख आप कि नहीं पुरुष मानसिकता के खोखले पन को दर्शाता है . आप ऑफिस मे इंटरनेट से अपने पर्सनल interest को यानी ब्लोग्गिंग को पूरा करते है , जो नैतिकता के दायरे मे नहीं आता है , और यहाँ आप अपनी सहधर्मिणी के उपर ही व्यंग्यात्मक लेखन कर रहें है । शायद मैडम नेट नहीं देखती होगी क्योंकी उन्होने अपने को आप कि देखरेख मे समर्पित कर दीया है , पर आप ने उनके इस भाव को यहाँ एक मजाक के रूप मे डाल कर नारी जाती का नहीं स्वयम अपनी पत्नी के क्या स्त्री पत्नी बनकर वह सब भूल जाये जो इंसान के लिये जूरी होता है ? क्या पढने का अधिकार भी केवल पुरुषो कोही मिलना चाहीये .ये लेख आप कि नहीं पुरुष मानसिकता के खोखले पन को दर्शाता है . आप ऑफिस मे इंटरनेट से अपने पर्सनल interest को यानी ब्लोग्गिंग को पूरा करते है , जो नैतिकता के दायरे मे नहीं आता है , और यहाँ आप अपनी सहधर्मिणी के उपर ही व्यंग्यात्मक लेखन कर रहें है । शायद मैडम नेट नहीं देखती होगी क्योंकी उन्होने अपने को आप कि देखरेख मे समर्पित कर दीया है , पर आप ने उनके इस भाव को यहाँ एक मजाक के रूप मे डाल कर नारी जाती का नहीं स्वयम अपनी पत्नी के नारी होने का मजाक उडाया है । <BR/><BR/>अभय जी कि पत्नी क्या भोजन बनाती है और आप की पसंद का भोजन बना सकती है या नहीं आप का केवल उनमे इतना ही interest है क्या ?? अपनी पत्नी को किताबो से आप दूर रखे पर दूसरो की पत्नी के पढने पर भी व्यंग करना ?? आप के ब्लोग पर देख कर अच्छा नहीं लगा सो लिख दियाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-13298529780599068152008-01-25T09:59:00.000+05:302008-01-25T09:59:00.000+05:30वाह जी वाह. सही फरमा रहे हैं पाण्डेजी. कबीर भी तो...वाह जी वाह. सही फरमा रहे हैं पाण्डेजी. कबीर भी तो यही कहते रहे हैं- मैं कहता आंखन देखी, तू कहता कागद की लेखी. निस्संदेह भरतलाल ने इंटैलैक्चुअल्स की बजाय जिंदगी ज्यादा करीब से देखी है. <BR/>अब तो भरतलाल से मिलने का मन करने लगा है.bhuvnesh sharmahttps://www.blogger.com/profile/01870958874140680020noreply@blogger.com