tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post388098711582561039..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: उत्तर – रमानाथ अवस्थी की एक कविता का अंशGyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-11764353936365252032011-04-10T00:06:22.203+05:302011-04-10T00:06:22.203+05:30कविता मे मजा आ गया,पर आपने अपना आईडिया खुद ही वापर...कविता मे मजा आ गया,पर आपने अपना आईडिया खुद ही वापर डाला,हम तो अभी छाटने की प्रक्रिया मे ही थे<br>:)अरुणhttp://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-31631233360107887452011-04-10T00:06:21.114+05:302011-04-10T00:06:21.114+05:30बढ़िया कविता!! दद्दा! अपना मानना है कि हम बिना पढ़े ...बढ़िया कविता!!<br> दद्दा! अपना मानना है कि हम बिना पढ़े लिख भी नही सकते, अगर हमें अच्छा लिखना है तो उसके लिए अच्छा पढ़ना भी होगा!<br>जितना ज्यादा पढ़ेंगे वह लिखने के लिए उतना ही उत्प्रेरक का काम करेगा, यह बात कविता पर भी लागू होती है!Sanjeet Tripathihttp://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-51292830890391169552011-04-10T00:06:20.551+05:302011-04-10T00:06:20.551+05:30भाई वाहअपने मूल रुप में यह गीत कोई भाग्यवाद का पोष...भाई वाह<br>अपने मूल रुप में यह गीत कोई भाग्यवाद का पोषक नहीं, बल्कि रमानाथ अवस्थी का आत्मविश्वास दर्शा रहा है. आज यह गीत हम पढ़ रहे हैं, यही इसमें उद्घाटित सत्य का सबसे बड़ा प्रमाण है. अपके ब्लोग पर इस गीत के जरिये समय असल में हिंदी साहित्य के आलोचकों से उनकी करनी का हिसाब माँग रहा है. रमानाथ जी जैसे कई समर्थ रचनाकार हिंदी में केवल इसलिए चर्चा के बाहर रह गए क्योंकि वे किसी खेमे में कभी शामिल नहीं हुए. लेकिन जनता का प्यार ज़्यादातर ऐसे ही रचनाकारों को मिल और आज भी मिल रहा है. जिन्हे एक-दो किताबें लिख कर महान बने स्वनामधन्य आलोचकों ने जबरिया सिर पर बैठाना चाहा वे आलोचकों और विभिन्न पीठों के सिर पर तो बैठ गए लेकिन जनता ने उन्हें सीधे धुरिया दिया. किसी तरह चर्चा में बने रहने के लिए फालतू बतंगडो के टोटके करते रहने वाले बेचारे आलोचक अब इस पर भला क्या कहेंगे?Isht Deo Sankrityaayanhttp://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-82115343744614140172011-04-10T00:06:19.655+05:302011-04-10T00:06:19.655+05:30वाह, अवस्थी जी को यहाँ पढ़ना अति आनन्ददायक रहा. समय...वाह, अवस्थी जी को यहाँ पढ़ना अति आनन्ददायक रहा. समय समय पर अपने फुरसतिया जी भी उनके प्रेरक प्रसंग लाये हैं. उन्हें पढ़ना हमेशा ही एक विशिष्ट अनुभूति देता है. साधुवाद.Udan Tashtarihttp://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-25050314125452935472007-06-24T19:24:00.000+05:302007-06-24T19:24:00.000+05:30वाह, अवस्थी जी को यहाँ पढ़ना अति आनन्ददायक रहा. समय...वाह, अवस्थी जी को यहाँ पढ़ना अति आनन्ददायक रहा. समय समय पर अपने फुरसतिया जी भी उनके प्रेरक प्रसंग लाये हैं. उन्हें पढ़ना हमेशा ही एक विशिष्ट अनुभूति देता है. साधुवाद.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-82013775677102257612007-06-24T14:19:00.000+05:302007-06-24T14:19:00.000+05:30भाई वाहअपने मूल रुप में यह गीत कोई भाग्यवाद का पोष...भाई वाह<BR/>अपने मूल रुप में यह गीत कोई भाग्यवाद का पोषक नहीं, बल्कि रमानाथ अवस्थी का आत्मविश्वास दर्शा रहा है. आज यह गीत हम पढ़ रहे हैं, यही इसमें उद्घाटित सत्य का सबसे बड़ा प्रमाण है. अपके ब्लोग पर इस गीत के जरिये समय असल में हिंदी साहित्य के आलोचकों से उनकी करनी का हिसाब माँग रहा है. रमानाथ जी जैसे कई समर्थ रचनाकार हिंदी में केवल इसलिए चर्चा के बाहर रह गए क्योंकि वे किसी खेमे में कभी शामिल नहीं हुए. लेकिन जनता का प्यार ज़्यादातर ऐसे ही रचनाकारों को मिल और आज भी मिल रहा है. जिन्हे एक-दो किताबें लिख कर महान बने स्वनामधन्य आलोचकों ने जबरिया सिर पर बैठाना चाहा वे आलोचकों और विभिन्न पीठों के सिर पर तो बैठ गए लेकिन जनता ने उन्हें सीधे धुरिया दिया. किसी तरह चर्चा में बने रहने के लिए फालतू बतंगडो के टोटके करते रहने वाले बेचारे आलोचक अब इस पर भला क्या कहेंगे?इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-74640835249251967702007-06-24T14:11:00.000+05:302007-06-24T14:11:00.000+05:30बढ़िया कविता!! दद्दा! अपना मानना है कि हम बिना पढ़े ...बढ़िया कविता!!<BR/> दद्दा! अपना मानना है कि हम बिना पढ़े लिख भी नही सकते, अगर हमें अच्छा लिखना है तो उसके लिए अच्छा पढ़ना भी होगा!<BR/>जितना ज्यादा पढ़ेंगे वह लिखने के लिए उतना ही उत्प्रेरक का काम करेगा, यह बात कविता पर भी लागू होती है!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-88767758546384441152007-06-24T08:32:00.000+05:302007-06-24T08:32:00.000+05:30कविता मे मजा आ गया,पर आपने अपना आईडिया खुद ही वापर...कविता मे मजा आ गया,पर आपने अपना आईडिया खुद ही वापर डाला,हम तो अभी छाटने की प्रक्रिया मे ही थे<BR/>:)Arun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-40719734374896230272007-06-24T07:17:00.000+05:302007-06-24T07:17:00.000+05:30इतनी अच्छी कविता के लिये धन्यवाद.इतनी अच्छी कविता के लिये धन्यवाद.काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.com