tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post2912162072166393919..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: वाह, अजय शंकर पाण्डे!Gyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-86257753812340006102007-09-17T05:10:00.000+05:302007-09-17T05:10:00.000+05:30माफ़ करियेगा बीच मे कूद रहा हू. का करियेगा बीच मे क...माफ़ करियेगा बीच मे कूद रहा हू. <BR/>का करियेगा बीच मे कूदना तो हम लोगन का नेशनल शगल है.<BR/>ई अजय जी की दूरदर्शिता समझिये या बेबसी कि उनको यह तथ्य अकाट्य लगा कि ई सब रोक पायेगे तो इसको घुमा के<BR/>मान्यता दे दिये. वाहवाही बटोरने की क्या बात है ? लालू जी भी तो इस अन्डरहैन्ड खेल का मर्म समझ के घुमा के पब्लिक<BR/>के जेब से पइसा निकाल रहे है अउर मैनेजमेन्ट गुरु का तमगा जीत रहे है. पब्लिक के जे्ब से धन तो निकल ही रहा है, <BR/>बस खजाना गैरसरकारी से सरकारी हो गया. हम लोग भी दे-दिवा के काम निकलवाने के थ्रिल के आदी पहले ही से थे अब रसीद<BR/>मिल जाता है,इतना ही अन्तर है .<BR/>गलत करिये ,दे कर छूट जाइये,यही चातुर्य या कहिये कि दुनियादारी कहलाता है. <BR/>गाजियाबाद का खेला तो हमारी मानसिकता को परोक्ष मान्यता देता है, और सुविधा कितना है, अब दस सीट पर अलग अलग<BR/>चढावा का टेन्शन नही, फ़ारम भरिये १५ % के हिसाब से भर कर काउन्टर पर जमा कर दीजिये . रसीद ले लीजिये . खतम बात !<BR/>दत्त जी क्षमा करेगे, ब्लागगीरी की दुनिया मे आपकी हलचल खीच ही लाती है ,<BR/>एक आपबीती बयान करना चाहुगा, जब पहले पहले शयनयान चला था, बडी अफ़रातफ़री थी नियम कायदा स्पष्ट नही था ( वैसे अभी भी<BR/>कहा है,अपनी अपनी व्याख्याये है ) तो शिमला से एक अधिवेशन से एम०बी०बी०एस० लौट रहा था , अम्बाला से इस शयनयान मे शयन करता हुआ<BR/>सफ़र कर रहा था बीबी बच्चे आरक्षण दर्प से यात्रा सुख ले रहे थे, कभी नीचे कभी ऊपर .लखनऊ तक का टिकट था जाना रायबरेली ! बुकिग की गलती, ठीक है भाई<BR/>लखनऊ मे टिकट बढवा लेगे परेशान मत करो का रोब मारते हुये लखनऊ तक आ गये, लखनऊ मे महकमा का काला कोट लोग चा-पानी मे इतना बिजी था कि एक लताड<BR/>सुनना पडा अपनी सीट पर जाइये न क्यो पीछे पीछे नाच रहे है. चलो भाई ठीके तो कह रहे है ड्युटी डिब्बवा के भीतर है न, घर तक दौडाइयेगा ? बगल से कोनो बोला .<BR/>चले आये ,मन नही माना बाहर जा कर चार ठो जनरल टिकट ले आये, प्रूफ़ है लखनऊवे से बैठे है, मेहरारु को अपनी समझदारी का कायल कर दिया.<BR/>रायबरेली बीस किलोमीटर रह गया तो काले कोट महोदय अवतरित हुये. टिखट.. कहते हुये हाथ बढाये , टिकट देखते ही भडक गये, इ स्लीपर है अउर रिजर्भ क्लास है<BR/>जनरल पर चल रहे है, सर..ये देखिये अम्बाला से बैठे है, लखनऊ से टिकट नही बढा तो ये ले लिया. नाही बढा मतलब, इसमे बढाने का प्रोभिजन नही है जानते नही है का ?<BR/>जानते तो शायद वह भी नही थे, असमन्जस उनके चेहरे से बोल रहा था. अपने को सम्भाल कर बोले लिखे पढे होकर गलत काम करते है, टिकटवा जेब के हवाले करते हुए<BR/>आगे बढ गये. मेरी बीबी का बन्गाली खून एकदम सर्द हो गया ,मेरी बाह थाम कर फुसफुसाइ- ऎ कैसे उतरेगे ? देखा जायेगा -मै आश्वस्त दिखना चाहते हुये बोला.<BR/>करिया कोट महोदय टट्टी के पास कुछ लोगो से पता नही क्या फरिया रहे थे . अचानक हमारी तरफ़ टिकट लहरा कर आवाज़ दिये- मिस्टर इधर आइये...मेरे निश्चिन्त दिखने से <BR/>असहज हो रहे थे. पास गया ,सिर झुकाये झुकाये बोले लाइये पचास रूपये ! काहे के ? बबूला हो गये- एक तो गलत काम करते है, फिर काहे के ? बुलाऊ आर पी एफ़ ?<BR/>बीबी अब तक शायद कल्पना मे मुझे ज़ेल मे देख रही थी, यथार्थ होता जान लपक कर आयी. हमको ये-वो करने लगी. मै शान्ति से बोला सर चलिये गलत ही सही लेकिन<BR/>इसका अर्थद्न्ड भी तो होगा, वही बता दीजिये. एक दम फुस्स हो गये आजिजी से हमको और अगल बगल की पब्लिक को देखा, जैसे मेरे सनकी होने की गवाहो को तौल रहे हो.<BR/>धमकाया- राय बरेली आने वाला है पैसा भरेगे ? स्वर मे कुछ कुछ होश मे आने के आग्रह का ममत्व भी था. नही साहब हम तो पैसा ही देगे, रसीद काटिये रेलवे को पैसा जायेगा.<BR/>सिर खुजलाते हुये और शायद मेरे अविवेक पर खीजते हुये टिकट वापस जेबायमान करते हुये बोले- ठीक है स्टेशन पर टिकट ले लीजियेगा. उम्मीद रही होगी वहा़ कोइ घाघ सीनियर<BR/>इनको डील कर लेगा.. आगे क्या हुआ वह यहा पर अप्रासन्गिक है.<BR/>तो मै देने के लिये अड गया और गाजियाबाद के अजय जी सरकार के लिये लेने पर अड गये ..तो इस पर चर्चा क्यो ?<BR/>यह सनक ही सही लेकिन आज इसकी जरूरत है...चलता है...चलने दीजिये की सुरती बहुत ठोकी जा चुकी, कडवाने लगे तो थूकना ही तो चाहिये सर !<BR/>प्रसन्गवश रेलवे का जिक्र आ गया वरना हर विभाग के, हर क्षेत्र के अनगिनत उदाहरण है..फिर कभीडा० अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09556018337158653778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-12586166391149784002007-09-13T09:53:00.000+05:302007-09-13T09:53:00.000+05:30ये बड़े बचकाने प्रयास हैं। कानून गलत भी। १५% तय कि...ये बड़े बचकाने प्रयास हैं। कानून गलत भी। १५% तय किया है तो ठेकेदार १५% ज्यादा कीमत डालेंगे टेडर में। भारत सरकार के खरीददारी के कानून में कितने भी लूप होल हों लेकिन यदि खरीददने और काम कराने वाला अधिकारी तो सब सही हो सकता है। इस तरह के बचकाने प्रयास से कुछ नहीं होने वाला। आपकी यह बात सही है कि कंप्यूटर से काफी नियंत्रण किया जा सकता है गड़बड़ी में। आज की पोस्ट कहां है।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-7206773267790554952007-09-12T18:32:00.000+05:302007-09-12T18:32:00.000+05:30अजय शंकर जी का निर्णय कितना सार्थक सिद्ध होता है य...अजय शंकर जी का निर्णय कितना सार्थक सिद्ध होता है या वो स्वंय कितने दिन टिक पाते हैं, यह तो समय ही बतायेगा. मगर प्रयास सराहनीय है और हमारी शुभकामनायें उनके साथ जाती हैं.<BR/><BR/>समाचार शेयर करने के लिये आपका बहुत आभार.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-3220429348965998112007-09-12T17:25:00.000+05:302007-09-12T17:25:00.000+05:30आपके बारे में कुछ इलाहाबादी बता रहे थे कि आप भी बह...आपके बारे में कुछ इलाहाबादी बता रहे थे कि आप भी बहूत कड़क टाइप अफसर हैं, वैसे रिश्वत नहीं लेते। पर इधर काम करने के बदले हरेक को कम से कम पांच कविताएं सुना रहे हैं। बड़े काम के लिए महाकाव्य सुना रहे हैं। <BR/>यह सच है क्या। अगर सच है, तो बिलकुल ठीक है, अगर गलत है, इसे सच कर लें। बिलकुल ईमान से रहना इस दुनिया में ठीक नहीं है।ALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.com