tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post2473016449974585551..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: व्योमकेश शास्त्री और बेनाम ब्लॉगरीGyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-65850494139178033202011-04-10T00:08:19.414+05:302011-04-10T00:08:19.414+05:30बहुत ही जायज चिंतन किया है आपने. हम अपनी लेखनी से ...बहुत ही जायज चिंतन किया है आपने. <br><br>हम अपनी लेखनी से अपनी एक छवि निर्मित कर लेते हैं और अगर सफल रहे तो बस उसमें फंस कर कसमसाते रह जाते हैं. इंसान ही तो हैं-कभी गुस्सा आ जाना, कभी बुरा लग जाना आदि स्वभाविक है. कभी दूसरों को गालियाँ बकते देख उसी स्तर पर जा पलटवार करने का भी दिल हो आता है. पोरुष ललकारता है और लेखन के माध्यम से ओढ़ी हुई आत्म निर्मित छवि पीछे ढ़केलती है, रोकती है. पोरुष हारता है और वो गढी हुई छवि जीतती है. <br><br>समाज में अपना सम्मानजनक स्थान बनाये रखने की लालसा भी कई बार इस अंतः विवाद को भड़काती है कि मैं भी किसी छ्द्म नाम से अपने दूसरे मन की बात किसी भी स्तर तक गिर के कह सकूँ. यह जो लिखूँ वो उसके अनुरुप न हो, जो लिखता है, जिसने अपनी एक अलग छवि निर्मित कर ली है.<br><br>इतिहास गवाह है कि न जाने कितने बड़े बड़े साहित्यकारों ने दीगर वजहों से कई नामों से लिखा है. परसाई जी, मुक्तिबोध सब ने कई नाम इस्तेमाल किये हैं तो फिर एक वजह के लिये मैं क्यूँ नहीं? मैं तो उनसे हजारों हजार पायदान नीचे हूँ. बल्कि यूँ कहें अभी उन रास्तों के मुहाने पर भी नहीं. <br><br>कम से कम आत्म संतुष्टी मिल जाय्रेगी. जानते हुए भी कि यह संतुष्टी क्षणिक ही होगी, बाद ग्लानी के सिवाय कुछ हाथ नहीं आना है. इस जानने पर ही अगर मनन करने की क्षमता हम मानवों में होती तो शायद पाप का नामोनिशान न होता क्यूँकि उसमें भी क्षणिक तुष्टी के बाद हासिल तो ग्लानी ही होती है. हम भी मानव हूँ. समय बेसमय जाने अनजाने पाप करते रहना स्वभाव है. पुण्य पताका भी तभी लहराती है जब तक पाप का अस्तित्व है. समाज के तो दोनों ही आवश्यक अंग हैं.<br><br>मगर इस रोज की लड़ाई में, कारण जो भी हो, वो लिखने वाला ही जीत रहा है, मैं हार रहा हूँ. हिम्मत नहीं जुटा पाता. आज आपका यह आलेख पढ़कर फिर वो लिखने वाला दृढ़ संक्लपित है कि वो नहीं हारेगा. और मुझे अपनी हार पर हमेशा की तरह पुनः गर्व हो रहा है.<br><br>आपको इस बेहतरीन आलेख के लिये कोटिशः बधाई. पूर्ण आलेख प्राप्त कर पाना यहाँ मेरी क्षमताओं के बाहर है. आपसे ही मार्गदर्शन लेता रहूँगा.<br><br>पुनः आभार.Udan Tashtarihttp://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-89442688936901128562011-04-10T00:08:19.101+05:302011-04-10T00:08:19.101+05:30ज्ञान भाई आपने आचार्य को उनके जन्म शती वर्ष पर अच्...ज्ञान भाई <br>आपने आचार्य को उनके जन्म शती वर्ष पर अच्छा याद किया। हिंदी के बहुतेरे लेखक गुमनाम या नाम बदल कर लिखते रहे हैं। अपने प्रेमचंद और मुक्तिबोध भी बदले हुए नामों से लेखन करते थे। मैंने खुद अनवर इलाहाबादी नाम से कुछ फुटकर पाप किया है। अब तो वे रचनाएँ भी पास में नहीं हैं...<br>नाम बदलने से रचनाकार को अपनी बात बिना पूर्वाग्रह के रखने का मौका मिल जाता है। मेरी ऐसी धारणा है।बोधिसत्वhttp://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-72747948274244341442007-10-25T16:17:00.000+05:302007-10-25T16:17:00.000+05:30वैसे मुझे भी बेनाम ब्लॉगरी जँचती नहीं लेकिन कभी-कभ...वैसे मुझे भी बेनाम ब्लॉगरी जँचती नहीं लेकिन कभी-कभी लगता है कि कुछ मामलों में बेनाम होकर लिखना मजबूरी भी हो सकता है।ePandithttps://www.blogger.com/profile/15264688244278112743noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-7459923038616851772007-10-23T22:10:00.000+05:302007-10-23T22:10:00.000+05:30ज्ञान भाई आपने आचार्य को उनके जन्म शती वर्ष पर अच्...ज्ञान भाई <BR/>आपने आचार्य को उनके जन्म शती वर्ष पर अच्छा याद किया। हिंदी के बहुतेरे लेखक गुमनाम या नाम बदल कर लिखते रहे हैं। अपने प्रेमचंद और मुक्तिबोध भी बदले हुए नामों से लेखन करते थे। मैंने खुद अनवर इलाहाबादी नाम से कुछ फुटकर पाप किया है। अब तो वे रचनाएँ भी पास में नहीं हैं...<BR/>नाम बदलने से रचनाकार को अपनी बात बिना पूर्वाग्रह के रखने का मौका मिल जाता है। मेरी ऐसी धारणा है।बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-72621972797392838022007-10-23T19:47:00.000+05:302007-10-23T19:47:00.000+05:30बहुत ही जायज चिंतन किया है आपने. हम अपनी लेखनी से ...बहुत ही जायज चिंतन किया है आपने. <BR/><BR/>हम अपनी लेखनी से अपनी एक छवि निर्मित कर लेते हैं और अगर सफल रहे तो बस उसमें फंस कर कसमसाते रह जाते हैं. इंसान ही तो हैं-कभी गुस्सा आ जाना, कभी बुरा लग जाना आदि स्वभाविक है. कभी दूसरों को गालियाँ बकते देख उसी स्तर पर जा पलटवार करने का भी दिल हो आता है. पोरुष ललकारता है और लेखन के माध्यम से ओढ़ी हुई आत्म निर्मित छवि पीछे ढ़केलती है, रोकती है. पोरुष हारता है और वो गढी हुई छवि जीतती है. <BR/><BR/>समाज में अपना सम्मानजनक स्थान बनाये रखने की लालसा भी कई बार इस अंतः विवाद को भड़काती है कि मैं भी किसी छ्द्म नाम से अपने दूसरे मन की बात किसी भी स्तर तक गिर के कह सकूँ. यह जो लिखूँ वो उसके अनुरुप न हो, जो लिखता है, जिसने अपनी एक अलग छवि निर्मित कर ली है.<BR/><BR/>इतिहास गवाह है कि न जाने कितने बड़े बड़े साहित्यकारों ने दीगर वजहों से कई नामों से लिखा है. परसाई जी, मुक्तिबोध सब ने कई नाम इस्तेमाल किये हैं तो फिर एक वजह के लिये मैं क्यूँ नहीं? मैं तो उनसे हजारों हजार पायदान नीचे हूँ. बल्कि यूँ कहें अभी उन रास्तों के मुहाने पर भी नहीं. <BR/><BR/>कम से कम आत्म संतुष्टी मिल जाय्रेगी. जानते हुए भी कि यह संतुष्टी क्षणिक ही होगी, बाद ग्लानी के सिवाय कुछ हाथ नहीं आना है. इस जानने पर ही अगर मनन करने की क्षमता हम मानवों में होती तो शायद पाप का नामोनिशान न होता क्यूँकि उसमें भी क्षणिक तुष्टी के बाद हासिल तो ग्लानी ही होती है. हम भी मानव हूँ. समय बेसमय जाने अनजाने पाप करते रहना स्वभाव है. पुण्य पताका भी तभी लहराती है जब तक पाप का अस्तित्व है. समाज के तो दोनों ही आवश्यक अंग हैं.<BR/><BR/>मगर इस रोज की लड़ाई में, कारण जो भी हो, वो लिखने वाला ही जीत रहा है, मैं हार रहा हूँ. हिम्मत नहीं जुटा पाता. आज आपका यह आलेख पढ़कर फिर वो लिखने वाला दृढ़ संक्लपित है कि वो नहीं हारेगा. और मुझे अपनी हार पर हमेशा की तरह पुनः गर्व हो रहा है.<BR/><BR/>आपको इस बेहतरीन आलेख के लिये कोटिशः बधाई. पूर्ण आलेख प्राप्त कर पाना यहाँ मेरी क्षमताओं के बाहर है. आपसे ही मार्गदर्शन लेता रहूँगा.<BR/><BR/>पुनः आभार.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-83724760868558910182007-10-23T19:03:00.000+05:302007-10-23T19:03:00.000+05:30आप जो कह रहे हैं वह भी सही है , किन्तु मुझे लगता ह...आप जो कह रहे हैं वह भी सही है , किन्तु मुझे लगता है कि जो मैं कर रही हूँ वह भी सही है । जानती हूँ कि मैं छद्म नाम से लिख रही हूँ किन्तु नाम मनुष्य को पहचान देने का केवल एक साधन है और मुझे विश्वास है कि मेरा यह छद्म नाम ही मेरी पहचान बन गया है । सच मानिये तो शायद यही मेरी ज्यादा बड़ी पहचान है । मुझे इस बात की कोई ग्लानि नहीं है ।<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-4246250928660478672007-10-23T18:56:00.000+05:302007-10-23T18:56:00.000+05:30बेनाम ब्लॉगरी का सवाल और उसके हक पर पहले लिखा था ...बेनाम ब्लॉगरी का सवाल और उसके हक पर पहले लिखा था फिर धुरविरोधी ने भी उस पर लिखा अब आपने भी लिखा है, मसला यकीनन अहम है पर शायद थोड़ा लीनियर हो रहा है-<BR/><BR/>बिना नागेश्वर हुए यह कहना शायद कुछ जल्दबाजी है कि अंट शंट ही लिखते इसलिए कि ज्ञानदत्त तो आप शायद बने नहीं बना दिए गए- आस पास, समाज, पोलिटिकल करेक्टनेस का आग्रह, शिष्टाचार का आग्रह, सेंसर्स आदि की निर्मिति हैं ज्ञानदत्त तो पर नागेश्वर आपकी निर्मिति होते इसलिए इतने सारे बाहरी कारणों के स्थान पर केवल आपके प्रति जबावदेह होते यानि कम कपड़े पहने होते...और सत्य तो नग्न ही होता है।<BR/><BR/>बेनामी टिप्पणियों में खूब गाली खाई हैं, सपरिवार खाई हैं इसलिए इतना तो जानता हूँ कम से कम कि हम गाली खाऊ काम करते हैं...पास पड़ोस में कोई बेनामी नहीं रहता इसलिए सब अदब दिखाते हैं...शुक्र है कि बेनामियों की बदौलत जानते हैं कि वे लिहाज कर रहे हैं।मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-53791728919487917752007-10-23T16:06:00.000+05:302007-10-23T16:06:00.000+05:30@ पंकज अवधिया - इस पोस्ट में चित्र पुस्तक के मुख्य...@ पंकज अवधिया - इस पोस्ट में चित्र पुस्तक के मुख्य कवर का मेरे मोबाइल से लिया गया है।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-17284585586095420662007-10-23T15:36:00.000+05:302007-10-23T15:36:00.000+05:30शायद ही कोई होगा जो बेनामी होकर न टिपियाना चाहे। म...शायद ही कोई होगा जो बेनामी होकर न टिपियाना चाहे। मन तो बहुत करता है फिर पकडे जाने का भय भी रहता है। चलिये यह भय हमारे छोटे से परिवार को कडवाहट से तो बचाता है। और हम आपस मे मीठी-मीठी बात कर पाते है।<BR/><BR/><BR/>आपका ब्लाग आदर्श बनता जा रहा है। एक अनुरोध है। जो चित्र आप ब्लाग मे लगाते है उसके छायाकार या कलाकार का नाम देने की परम्परा शुरू करे। इससे लोगो की कही से भी कुछ भी उठाकर छाप लेने की गलत आदत ठीक होगी। आप करेंगे तो सब करेंगे। <BR/><BR/>इसे अन्यथा न ले।Pankaj Oudhiahttps://www.blogger.com/profile/06607743834954038331noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-23248659436316026182007-10-23T13:14:00.000+05:302007-10-23T13:14:00.000+05:30खालिस "ज्ञानी" पोस्ट!! अर्थात चिंतन वाली।देखते है ...खालिस "ज्ञानी" पोस्ट!! अर्थात चिंतन वाली।<BR/><BR/>देखते है यह किताब यहां मिलती है या नई!!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-29141048916121488462007-10-23T11:06:00.000+05:302007-10-23T11:06:00.000+05:30सबसे ऊपर विमला तिवारी 'विभोर' नाम से की हुई टिप्पण...सबसे ऊपर विमला तिवारी 'विभोर' नाम से की हुई टिप्पणी मेरी है.. माँ की पोस्ट चढ़ाते समय उनकी पहचान से लॉग इन किया हुआ था.. जिस के कारण यहाँ पर भी यह टिप्पणी उसी पहचान से दर्ज हो गई गलती से.. अनजाने में.. अतः इसे मेरे विचार के रूप में ही दर्ज माना जाय..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-50980281212050729542007-10-23T10:43:00.000+05:302007-10-23T10:43:00.000+05:30नाम छिपाना पहली कमजोरी है। फिर वह और कमजोरियों को ...नाम छिपाना पहली कमजोरी है। फिर वह और कमजोरियों को खींचती जाती है। नाम छिपाना भी सत्य को छिपाना ही है।" <BR/><BR/>एक दम सही कहा उन्होंने....मैंने भी ठान लिया है....आज से अपना नाम नहीं छिपाऊँगा...Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-36012333100479373772007-10-23T10:40:00.000+05:302007-10-23T10:40:00.000+05:30गुरूदेव ने सही फरमाया. कुछ लोग विवाद से बचने के लि...गुरूदेव ने सही फरमाया. कुछ लोग विवाद से बचने के लिए या छवि के चक्कर में या तो लिखते नहीं या नाम छूपा जाते हैं. राम को लेकर कईयों के मन दुखे होंगे मगर कट्टरपंथि न कहलाये जायें इस डर से नहीं लिखे. <BR/><BR/>अपना तो सिद्धांत है जो सही लगता है वह सीना ठोक कर कहो.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-87847947040051839122007-10-23T09:53:00.000+05:302007-10-23T09:53:00.000+05:30आलोक जी और आप जैसे समझदार लोगों के बीच हमारी ब्लॉग...आलोक जी और आप जैसे समझदार लोगों के बीच हमारी ब्लॉगरी क्या चलेगी इसलिये सोच रहे हैं ब्लॉगरी बन्द ही कर दें. वैसे भी इसमें बहुत टाइम खोटा होता है हम जैसे नासमझदारों का आप दोनों की बात कुछ और है ;-) <BR/><BR/>वैसे आप नागेश्वर नाथ बन कर आ ही जाइये.काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-30390708802958518812007-10-23T09:48:00.000+05:302007-10-23T09:48:00.000+05:30बेहद रोचक और सुंदर प्रसंग है। गुरुदेव ने ठीक ही कह...बेहद रोचक और सुंदर प्रसंग है। गुरुदेव ने ठीक ही कहा है कि नाम छिपाना भी सत्य को छिपाना ही है।...सत्य अपना पूरा दाम चाहता है।<BR/>लेकिन कभी-कभी आपका नाम, आपकी पहचान बहुत रूढ़ हो जाती, जबकि आप उससे इतर भी बहुत कुछ होते हैं। ऐसी हालत में लिखने के लिए आपको नया नाम चुनना ही पड़ता है, भले ही अनाम सही।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-51920786278925400132007-10-23T09:36:00.000+05:302007-10-23T09:36:00.000+05:30'विभोर' जी ने बिल्कुल सही कहा... चिंतन भरी पोस्ट ह...'विभोर' जी ने बिल्कुल सही कहा... चिंतन भरी पोस्ट है जिसे पढ़कर सबसे पहले अपने ही व्यक्तितत्ब का चिंतन शुरु हो गया है. आभारमीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-16817517850189611312007-10-23T09:25:00.000+05:302007-10-23T09:25:00.000+05:30"पूरा लेख बड़ा मार्मिक बना है। उसे आप अलग से पढ़ने क...<B><I>"पूरा लेख बड़ा मार्मिक बना है। उसे आप अलग से पढ़ने का कष्ट करें (अगर न पढ़ा हो!)।"</B></I><BR/><BR/>हमारे पास तो वो आलेख व वो किताब मिलना मुश्किल है. स्कैन कर कहीं अपलोड कर दें तो बहुत अच्छा. आपको अग्रिम धन्यवाद.रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-41467486279997632612007-10-23T07:50:00.000+05:302007-10-23T07:50:00.000+05:30नहीं हमें पता है कि कई किसिम के ब्लाग आप ही चला रह...नहीं हमें पता है कि कई किसिम के ब्लाग आप ही चला रहे हैं। बेनाम, सुनाम नाम की टिप्पणियां तो की कई ब्लागर आपके ही खाते में डालते हैं। सच्ची बात तो यह है कि बेनाम टिप्पणियां इतनी समझदारी भरी होती हैं, लगता है कि इन्हे आपके अलावा कोई लिख ही नहीं सकता। ब्लागिंग मे समझदार लोग हैं ही कितने, एक आप और एक मैं। और मैं भी क्या। आप ही हैं। मैंने तो <BR/>अब तक 786 टिप्पणियां आपके ही खाते में ही डाली हैं। मोहल्ले, भड़ास पर बहुत कर्ज है आपका, अच्छा हुआ, आपने आज अपने प्रेरणा पुरुष के बारे में बता दिया। <BR/>मोगंबो खुश हुआ।ALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-79808017486913329202007-10-23T07:19:00.000+05:302007-10-23T07:19:00.000+05:30हमारा कहना है कि ऐसी चिंतन भरी पोस्ट हमें हमेशा भा...हमारा कहना है कि ऐसी चिंतन भरी पोस्ट हमें हमेशा भाती है..विमला तिवारी 'विभोर'https://www.blogger.com/profile/17951518325774471262noreply@blogger.com