tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post2300202368057585044..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: अपनी तीव्र भावनायें कैसे व्यक्त करें?Gyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger41125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-14384165295121165742009-02-11T08:18:00.000+05:302009-02-11T08:18:00.000+05:30आपकी बात काफी हद तक अनुकरणीय हो सकती है ...... पर ...आपकी बात काफी हद तक अनुकरणीय हो सकती है ...... पर इंसटैंट पब्लिसिंग का जो मजा या कहे कि प्रथम दृष्टी में ईमानदारी भरी अभिव्यक्ति से भी हाथ धोना पड़ सकता है / जहाँ तक मैं समझता हूँ कई बार व्यक्ति अपनी प्रथम प्रतिक्रिया में दिल खोल देता है ...जबकि सोच विचार के उपरांत अपने आप को आवरण में छिपा लेता है / <BR/><BR/>जहाँ तक एक सफल ब्लॉगर होने के सन्दर्भ में आपकी बात का सन्दर्भ है .... वह अपनी जगह पूरी तरह से उचित हो सकता है और शायद उचित ही है ......लेकिन प्रथम प्रतिक्रिया की उर्जा से भी मेरा स्नेह अवश्य बना रहेगा !!!!!प्रवीण त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/02126789872105792906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-45156437281720255542009-02-03T12:39:00.000+05:302009-02-03T12:39:00.000+05:30बहुत सही कहा आपने...आपसे शब्दशः सहमत हूँ......बहुत सही कहा आपने...आपसे शब्दशः सहमत हूँ......रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-60230760886017414392009-01-30T14:44:00.000+05:302009-01-30T14:44:00.000+05:30परिभाषिक तौर पर जब हम ब्लॉगिंग की बात करते हैं तो ...<I>परिभाषिक तौर पर जब हम ब्लॉगिंग की बात करते हैं तो कहते हैं कि यह अभिव्यक्ति का वह स्वतंत्र माध्यम है जिसमे आप अपने दिल में उठते विचारों को मूल रुप में तुरंत, बिना किसी संपादकीय हस्तक्षेप के, जगत के कोने कोने में बैठे पाठकों तक मात्र एक चटके में पहुँचा सकते है एवं आपके विचारों पर पाठकों की प्रतिक्रिया से बिना रोकटोक रुबरु हो सकते हैं.</I><BR/><BR/>समीर जी, कबीर का एक दोहा है जिसमें वे व्यक्ति को तोल के बोलने की सलाह देते हैं क्योंकि मुँह से निकला शब्द लौटाया नहीं जा सकता। यानि कि संयत रह बोलने की सलाह वे देते हैं। यहाँ उसी सलाह को ब्लॉगिंग के मामले में फिट कर देख सकते हैं। मेरे ख्याल से ज्ञान जी जिस आनन फानन बिन सोचे समझे ठेलने की बात कर रहे हैं उसको शूटिंग द माउथ ऑफ़ भी कहा जा सकता है जहाँ बिन विचार किए कुछ भी कहा जाता है। अभिव्यक्ति दोनों की रूप में हो रही है, जब सोच-समझ कर बोल/लिख रहे हैं तब भी और जब स्पॉनटेनियसली बोल/लिख रहे हैं तब भी। तो मैं समझता हूँ कि दोनों में से कोई भी ब्लॉगिंग की विधा के खिलाफ़ नहीं है, दोनों ही तरह से ब्लॉगिंग होती है और ब्लॉगिंग ही कहलाती है - फर्क सिर्फ़ मत का है कि सोच-विचार कर स्वयं अपने विचारों को संपादित कर व्यक्ति संयत विचार प्रकट कर सकता है और चाहे तो स्पॉनटेनियस रहकर भी विचार प्रकट कर सकता है जो संयत भी हो सकते हैं और नहीं भी। :)amithttps://www.blogger.com/profile/03372488870536392202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-14658094259600917492009-01-28T20:37:00.000+05:302009-01-28T20:37:00.000+05:30Good advice for a blogger.But commenters like me m...Good advice for a blogger.<BR/>But commenters like me may please be exempted!<BR/>The best comment is one that is spontaneous.<BR/>None of my comments (including this one) was planned, thought out and prepared, reviewed, reconsidered and then posted.<BR/>What you feel and express on the spur of the moment is a genuine comment. Well thought out comments do not have spice in them!<BR/>Regards<BR/>G VishwanathG Vishwanathhttps://www.blogger.com/profile/13678760877531272232noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-66391432583343929282009-01-28T15:47:00.000+05:302009-01-28T15:47:00.000+05:30आपकी बात तो सही है. बिना विचारे पोस्ट नहीं करना चा...आपकी बात तो सही है. बिना विचारे पोस्ट नहीं करना चाहिए.<BR/>"if you write something embarrassing on the Internet under your own name, it's your own fault if your missive lives forever on Google's (GOOG) search engine." <BR/><BR/>(इस पते से: http://www.alleyinsider.com/2009/1/google-street-view-captures-your-shame-goog)Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-76087768055011771362009-01-27T15:41:00.000+05:302009-01-27T15:41:00.000+05:30गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।Science Bloggers Associationhttps://www.blogger.com/profile/11209193571602615574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-26324236892319205392009-01-27T08:12:00.000+05:302009-01-27T08:12:00.000+05:30आलोक पुराणिक और अजितवडनेरकरजी से सहमत हूं लेकिन उन...आलोक पुराणिक और अजितवडनेरकरजी से सहमत हूं लेकिन उनकी बात मानता नहीं हूं जी। आदत है।<BR/><B>“तुरत लेखन का नेगेशन है। … यह महत्व की बात है कि सभी अच्छी पठनीय सामग्री झटपट नहीं लिखी जा सकती”। </B> यह सच होगा लेकिन दूसरा सच है कि हमने जित्ती भी सबसे पठनीय च पापुलर पोस्टें लिखीं सब हड़बड़ी में लिखीं। लिखी और पोस्ट कर दीं। दुबारा पाठक की तरह ही पढ़ा। बदलाव भी केवल वर्तनी का किया। बस्स।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-58286763678629983442009-01-27T07:28:00.000+05:302009-01-27T07:28:00.000+05:30ऐसी पोस्टें और चर्चाएं पढ़-पढ़कर ही समझदार होता जा र...ऐसी पोस्टें और चर्चाएं पढ़-पढ़कर ही समझदार होता जा रहा हूँ। :)सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-33296037265162303332009-01-26T23:54:00.000+05:302009-01-26T23:54:00.000+05:30अगर भावना वाक़ई तीव्र है, तो ब्लॉगर 'पब्लिश' पर क्ल...अगर भावना वाक़ई तीव्र है, तो ब्लॉगर 'पब्लिश' पर क्लिक करने से पहले नहीं सोचेगा। और अगर क्लिक करने से पहले पुनर्विचार करता है, तो भावना तीव्र कभी थी ही नहीं।Pratik Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/02460951237076464140noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-47432660730808662162009-01-26T23:41:00.000+05:302009-01-26T23:41:00.000+05:30Thanks Pandey Jee. Dr. Radhakrishnan once said "W...Thanks Pandey Jee. Dr. Radhakrishnan once said "We must avoid pass-on Passion, and wisdom never go together."Raaghttps://www.blogger.com/profile/17899437600804420902noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-88556578274547301792009-01-26T23:10:00.000+05:302009-01-26T23:10:00.000+05:30सभी अच्छी पठनीय सामग्री झटपट नहीं लिखी जा सकती और ...सभी अच्छी पठनीय सामग्री झटपट नहीं लिखी जा सकती और स्लो ब्लॉगिंग- क्या एक दूसरे के पूरक बन सकते हैं?<BR/>शायद कुछ के ही बस की बात है।जितेन्द़ भगतhttps://www.blogger.com/profile/05422231552073966726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-88697292910296967032009-01-26T18:20:00.000+05:302009-01-26T18:20:00.000+05:30सुन्दर ब्लॉग...सुन्दर रचना...बधाई !!--------------...सुन्दर ब्लॉग...सुन्दर रचना...बधाई !!<BR/>-----------------------------------<BR/>60 वें गणतंत्र दिवस के पावन-पर्व पर आपको ढेरों शुभकामनायें !! ''शब्द-शिखर'' पर ''लोक चेतना में स्वाधीनता की लय" के माध्यम से इसे महसूस करें और अपनी राय दें !!!Akanksha Yadavhttps://www.blogger.com/profile/10606407864354423112noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-34404611169482066562009-01-26T17:39:00.000+05:302009-01-26T17:39:00.000+05:30अनुकर्णीय्भव्नओन को व्यक्त करते समय संयमित रहना अत...अनुकर्णीय्भव्नओन को व्यक्त करते समय संयमित रहना अति आवश्यक है. अनावश्यक कटुता क्यों उत्पन्न करें. आभार.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-36463555255964184822009-01-26T16:29:00.000+05:302009-01-26T16:29:00.000+05:30स्लो, कर लो कि तेज एक बात बहुत पहले समझ ली थी कि क...स्लो, कर लो कि तेज एक बात बहुत पहले समझ ली थी कि किसी को समझाने की कोशिश नहीं ना करनी चाहिए। किसी को कन्विन्स करने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए। समझदार को समझाने की जरुरत नहीं ना होती, और नासमझ को समझा भी लो, तो फर्क नहीं पड़ता। <BR/>सो समझाने में टाइम खोटी नहीं ना करना चाहिए। समझने में टाइम लगाना चाहिए।ALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-38439257467349722782009-01-26T15:28:00.000+05:302009-01-26T15:28:00.000+05:30बहुत अच्छा लेख..स्लो ब्लॉग्गिंग का सुझाव अच्छा है....बहुत अच्छा लेख..स्लो ब्लॉग्गिंग का सुझाव अच्छा है.<BR/>गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-86215659271698671392009-01-26T14:16:00.000+05:302009-01-26T14:16:00.000+05:30गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ।मेरा अनुबव रहा है कि अ...गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ।<BR/>मेरा अनुबव रहा है कि अपनी सबसे अधिक पसन्द (मुझे)आने वाली कविताएँ व लेख मैंने एकबार में ही बिना अधिक विचार किए लिखे हैं। परन्तु यदि विषय गम्भीर हो, बहस का हो तो झटपट प्रतिक्रिया करने पर एक बार बहुत पछताना पड़ा है। तबसे जहाँ तक हो सके प्रतिक्रिया यदि भावुक हो तो थोड़ा समय रुक जाती हूँ। जिन्हें अपनी गल्ती पर सालोंसाल पश्चात्ताप होता है उनके लिए यह आवश्यक है। मैं यदि किसी का दिल दुखाऊँ तो कभी भी भूल नहीं पाती। अतः मुझ जैसे को थोड़ा रुककर ही टिपियाना या प्रतिक्रिया में लिखना चाहिए। अन्यथा भाव जब बहते हैं तभी बेहतर लिखा जाता है।<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-21254936212464039372009-01-26T13:53:00.000+05:302009-01-26T13:53:00.000+05:30बहुत सुंदर....बेहतरीन चिन्तन एवं मनन योग्य! कुछ लो...बहुत सुंदर....बेहतरीन चिन्तन एवं मनन योग्य! कुछ लोगों के पास समय होता है , टिपण्णी कर सकते हैं और कुछ लोगों के पास नही होता , मेरा तो समय पोस्ट पढ़ने में ही बीत जाता टिपण्णी के लिए समय ही नही बचता , क्या करू ?malahttps://www.blogger.com/profile/09493715792470271562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-15811006602390936652009-01-26T13:48:00.000+05:302009-01-26T13:48:00.000+05:30ब्लॉग विधा को लेकर आपके विचार अत्यन्त उपयोगी है ,प...ब्लॉग विधा को लेकर आपके विचार अत्यन्त उपयोगी है ,पर क्या करेंगे सबकी डफली सबका राग अपना - अपना है .हम जानते हुए भी इन चीजों को व्यवहार में नही उतारते !.... गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं...!रवीन्द्र प्रभातhttps://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-48616635613238566902009-01-26T13:38:00.000+05:302009-01-26T13:38:00.000+05:30मैं आपकी राय से इत्तफाक रखता हूं। भद्दा, भोंण्डा...मैं आपकी राय से इत्तफाक रखता हूं। भद्दा, भोंण्डा, कड़वा, अनर्गल या प्रसंगहीन कहना तो सर्वथा अनुचित है और ऐसे कमेण्टस को हमेशा डिलीट किया जा सकता है। बदलती परिस्थितियों में ब्लागिंग का आयाम/क्षितिज आज बहुत विस्तॄत हो गया है। कुछ लोग हैं जो केवल रचनाएं कर रहे हैं, कुछ लोग हैं जो केवल टिप्पणियां कर रहे हैं । कुछ हैं जो लिखते कम हैं टिप्पणियां ज्यादा करते हैं। कुछ हैं जो अपने ब्लॉग पर बेनाम टिप्पणियां करके कमेण्टस की संख्या बढाते हैं। सम्प्रेषण का एक नियम जो आप बता रहे हैं कि कहें कम, सुनें अधिक नि:संदेह बहुत अच्छा है पर बहुत से लोग तो लगभग बिना पढे ही स्ंवय के एक ही कमेण्ट को “COPY, CUT & PASTE” से दुनिया भर में चिपका देते हैं और सर्वप्रिय बनने का प्रयास करते हैं इसे हम क्या कहेंगें?Atul Sharmahttps://www.blogger.com/profile/09200243881789409637noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-1361289050980001942009-01-26T13:25:00.000+05:302009-01-26T13:25:00.000+05:30जो कुछ भी सार्वजनिक हो, वह सुचिंतित हो, सार्थक हो।...जो कुछ भी सार्वजनिक हो, वह सुचिंतित हो, सार्थक हो। यह बेहद ज़रूरी है। चाहे वह विचार हो या आपका व्यक्तित्व। बाहर निकलने से पहले खुद को संवारने जैसी प्राथमिकता ही पब्लिश बटन दबाने से पहले भी होनी चाहिए। फड़फड़ाती, फुंफकारती,बौखलाती हुई पोस्टें अक्सर ब्लागों पर ज्यादा नज़र आने लगी हैं। लोग इनसे बचकर निकलना चाहते हैं क्योंकि विचारों के अतिरेक की वजह से तत्काल संदर्भ समझ में नहीं आता। <BR/>धीमी ब्लागिंग की सलाह ऐसे लोगों के लिए एकदम सही है। यूं भी हफ्ते में औसतन तीन से पांच पोस्ट लिखने वाले को नियमित ब्लागर कहा जा सकता है। रोज़ एक पोस्ट लिखनेवाले को बेहद अनुशासित और सतर्क रहना ज़रूरी है। अगर वह समसामयिक विषयों पर लिख रहा है तो और भी ज़रूरी क्योंकि तात्कालिक आवेग में ही अतिरेकी पोस्ट लिखी जाती हैं। <BR/>चिंतनशील सामग्री पेश करने के लिए शुक्रिया ज्ञानदा।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-700768013978040602009-01-26T12:41:00.000+05:302009-01-26T12:41:00.000+05:30हम सब जानते है की क्या सही है क्या ग़लत ...पर उसे ...हम सब जानते है की क्या सही है क्या ग़लत ...पर उसे व्यवहार में नही उतारते ? विषय का अल्पज्ञान भी टिप्पणी की गुणवत्ता पर असर डालता है ओर लेखक के प्रति बना पूर्वाग्रह भी....ऐसे बहुत से उदारहण सामान्य जीवन में भी है ओर ब्लॉग जगत में भी ..हम सब इस बात को जानते भी हैडॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-54814739036110309582009-01-26T12:13:00.000+05:302009-01-26T12:13:00.000+05:30बहुत सुंदर.... गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं...!बहुत सुंदर.... गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं...!संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-54756319481848028792009-01-26T11:02:00.000+05:302009-01-26T11:02:00.000+05:30हॉस्टल में या किसी चाय के ढाबे पर अक्सर होता है कि...हॉस्टल में या किसी चाय के ढाबे पर अक्सर होता है कि बात की बात में बात कटने पर कुछ मित्र तमतमा जाते हैं. ब्लॉगर्स के बीच, बीच-बीच में मचने वाला बवाल भी कुछ ऐसा ही. कुछ समय नाराजगी फिर ताल ठोंक कर जुट जाते है ब्लॉगरी के बांके. जैसे स्लम डॉग पर आपके मित्र से कई जगह सहमत नहीं हूं. तमतमाने या तिलमिलाने के बजाय, ताली बजाने का मजा ही कुछ और है. स्लम डॉग पर मेरी राय....<BR/><BR/>स्लम, शिट, स्मेल...जय हो<BR/>आई एम प्राउड ऑफ स्लमडॉग मिलिनेयर, जय हो! आई एम प्राउड आफ इंडियन सिनेमा, जय हो! एक सच्चे भारतीय की तरह मुझे भी खुशी हो रही है कि भरतीय परिवेश पर बनी फिल्म स्लमडॉग मिलिनेयर ने गोलडेन ग्लोब अवार्ड जीत लिया. एक पेट्रियाटिक इंडियन की तरह इस खबर से और एक्साइटेड हूं कि ऑस्कर अवार्ड की दस कैटेगरीज के लिए इस फिल्म को नॉमिनेट किया गया है और इसमें तीन कैटेगरीज में एआर रहमान है. कैसा संयोग है कि रिपब्लिक डे मना रहे हैं और किसी भारतीय संगीतकार का डंका ऑस्कर अवाड्र्स के लिए बज रहा है. ये देख कर अच्छा महसूस हो रहा है मीडिया में २६/११ की खौफनाक खबरों के बाद नए साल में कुछ अच्छी खबरें आ रही हैं. इंडियन मीडिया में अब स्लमडॉग् मिलिनेयर की धूम मची हुई है. अखबार-टीवी पर इसकी जय हो रही है. होनी भी चाहिए. लेकिन एक बात थेाड़ी खटकती है. देश में अच्छी फित्म बनाने वालों की कमी नहीं है. रंग दे बसंती, चक दे इंडिया, तारे जमीं पर, गज़नी.. इधर बीच कई अच्छी फिल्में आईं. इनके रिलीज होने से पहले इन पर काफी चर्चा हुई, शोर हुआ हर कोई जान गया कि फलां फिल्म बड़ी जोरदार. इनमें से कुछ ने ऑस्कर में नॉमिनेशन के लिए दस्तक भी दी लेकिन सफलता नहीं मिली. लेकिन स्लमडॉग मिलिनेयर एक बहुत ही शानदार फिल्म है, इसका म्यूजिक लाजवाब है, इसका पता हमें बाहर से तब चलता है विदेशों में इसकी जय होती है. ठीक है फिल्म वल्र्ड के लोग और क्रिटिक इसके बारे में जानते होंगे लेकिन आम आदमी को इसके बारें में बहुत नहीं पता था. न इंडियन मीडिया में इसका कोई शोर था. लोगों का ध्यान तब गया जब इसने गोल्डेन ग्लोब अवार्ड जीता. मैंने स्लमडॉग मिलिनेयर देखी, एक फिल्म की तरह बहुत अच्छी लगी. कुछ लोगों अच्छा नहीं लगा कि भारत के स्लम, शिट, स्मेल को सिल्वर फ्वॉयल में लपेट कर वाह वाही लूटी जा रही है. फिल्म देखते समय मुझे कभी अमिताभ, कभी दीवार, कभी कभी जैकी श्राफ याद आ रहे थे और तो कभी मोहल्ले की बमपुलिस (सुलभ शौचालय का पुराना मॉडल...अमिताभ बच्चन ने यह नाम जरूर सुना होगा) के बाहर क्रिकेट खेलते बच्चे. मुझे तो फिल्म में गड़बड़ नहीं दिखी. बाकी तो लोकतंत्र है. यह आप पर है कि स्लम के स्मेलिंग शिट और गारबेज पर नाक दबा कर निकल जाएं या उसके कम्पोस्ट में कमल खिलाने का जतन करें.rajivhttps://www.blogger.com/profile/10917588871855963207noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-27202920607190901552009-01-26T10:44:00.000+05:302009-01-26T10:44:00.000+05:30केवल जय जय और वाह वाह करती पोस्ट लिखना ब्लॉगिंग की...केवल जय जय और वाह वाह करती पोस्ट लिखना ब्लॉगिंग की मूल भावना के विरूद्ध है. <BR/><BR/>मुझे सदा अफसोस रहेगा कि हाय-हल्ले में मैं पोस्ट के माध्यम से जो बात कहना चाहता था, वह संप्रेषित ही नहीं हुई. <BR/><BR/>यह बात बहूत बार लिखी गई है कि लिखने के बाद तुरंत प्रकाशित न करें. कुछ देर या एक दिन ठहर कर पूनः पढ़े व पोस्ट करें. मगर मैं भी ज्यातर समय ऐसा नहीं करता. <BR/><BR/>आपने सीधे सीधे लूहार का हथौड़ा मानी गई रघुरायजी की पोस्ट का जिक्र कर आपनी बात कही है. किसी को बूरा लग सकता है. :)संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-58057909113435727602009-01-26T10:19:00.000+05:302009-01-26T10:19:00.000+05:30आपने बहुत सु्दर सलाह दी है. काश सभी इसको थोडा बहुत...आपने बहुत सु्दर सलाह दी है. काश सभी इसको थोडा बहुत भी माने तो यह स्वरुप काफ़ी कुछ बदल सकता है. पर समाज मे जिम्मेदार हैं तो तुनक मिजाजों की भी कमी नही है. <BR/><BR/>वैसे आप यह बिल्कुल सही कह रहे हैं कि अपने लिखे को बार बार पढा जाये तो कटुता मित्रता मे बदल जाती है. ऐसा ही एक वाकया मै्ने स्वेट मार्डन के बारे मे पढा था कि कैसे उन्होने जिस महिला को तल्ख पत्र लिखा था औए एडिट करते २ <BR/>मूल तल्खी अलग रह गई और उसको निमंत्रित कर बैठे..अंतोतगत्वा शादी..:)<BR/><BR/><BR/><BR/>गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाऎं, और घणी रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.com