tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post1105775918386907376..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: बबूल और बांसGyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger26125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-23639457242305571562010-06-07T04:44:29.500+05:302010-06-07T04:44:29.500+05:30बबूल, बांस, कौटिल्य, गोविन्द और जल्लदवा पढने से छो...बबूल, बांस, कौटिल्य, गोविन्द और जल्लदवा पढने से छोट गए थे पहले, अब कमी पूरी कर रहा हूँ. मुंह की तिक्तता का सम्बन्ध अच्छा जुड़ा बबूल से. BTW, नीलगिरी की तो सारी पर्वत श्रंखला युक्ल्प्तास के पेड़ों से घिरी है और जल से भरपूर है. मुझे नहीं लगता की मानव के अंधाधुंध जलदोहन का दोष एक बेचारे पेड़ पर पड़ना चाहिए.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-45107705873891218692010-03-27T02:00:04.195+05:302010-03-27T02:00:04.195+05:30सफेदा (यूकेलिप्टिस) को तो 'पानी का लालची' ...सफेदा (यूकेलिप्टिस) को तो 'पानी का लालची' पेड कहा जाता है। यह तो दलदल कम करने में उपयोगी होता है। भारत में तो इसके दुष्प्रभाव ही सामने आए हैं।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-63259369418163977642010-03-25T07:35:26.079+05:302010-03-25T07:35:26.079+05:30राम नवमी पर आपके शहर में क्या हुआ उस पर भी लिखें -...राम नवमी पर आपके शहर में क्या हुआ उस पर भी लिखें -- बबूल और नागफनी से देखिये <br />कितनी बातें निकल आयीं --<br /> आशा है आप अब स्वस्थ हो गये होंगें <br />- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-4461607976663575622010-03-24T08:23:20.881+05:302010-03-24T08:23:20.881+05:30लगता है कि आजकल ’रैम्ब्लिग’ की बीमारी आयी हुई है.....लगता है कि आजकल ’रैम्ब्लिग’ की बीमारी आयी हुई है.. इन कुछ दिनो मे मैने ऐसी कुछ पोस्ट्स पढी है और <a href="http://wakeupbuddha.wordpress.com/" rel="nofollow">एक ठो</a> ठेली भी है|<br /><br />सच कहते है कि ८०% ब्लागजगत कूडा है..ऎट लीस्ट मेरा तो है... तभी तो इन्तजार करता रहता हू कि आप कब कुछ लिखेगे और हमे हमारी डोज़े मिलेगी...<br /><br />@अजित वडनेरकर<br /><b>यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितनी फ्रांस और भारत के बीच की दूरी</b><br /><br />मुझे लगता था की ऑन्त्रेपिन्योरशिप ’इटालियन’ ओरिजिन का शब्द है..बस आपके कमेन्ट के बाद गूगल बाबा से मदद ली और मेरे दिमाग की एक और पट्टी खुली..<br />http://answers.google.com/answers/threadview?id=368558Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)https://www.blogger.com/profile/01559824889850765136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-79318259301980234612010-03-23T23:39:29.311+05:302010-03-23T23:39:29.311+05:30ब्लॉग पर अस्सी परसेण्ट कूड़ा है... ???
यह मान भी ...ब्लॉग पर अस्सी परसेण्ट कूड़ा है... ???<br /><br />यह मान भी लें तो भी यह सिद्ध हो जाता है कि २० प्रतिशत कूड़ा नहीं है। आपका ब्लॉग तो निस्सन्देह चोटी के ब्लॉगों में शुमार है। इसलिए इस परिकल्पना का कोई आधार यहाँ नहीं है।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-91392006101651043932010-03-23T19:38:21.780+05:302010-03-23T19:38:21.780+05:30@"इस लिये सही कहते भी हैं कि ब्लॉग पर अस्सी प...@"इस लिये सही कहते भी हैं कि ब्लॉग पर अस्सी परसेण्ट कूड़ा है!"<br />एकदम गलत कहते हैं ! बेलगाम मन की हलचल श्रेष्ठ अभिव्यक्ति भी है । <br /><br />आप जब अपने से बतियाते होंगे, कितना खूबसूरत होता होगा वह ! स्वगत, पर जीवनगत ! व्यक्तिमत्ता के ऊंचे शिखर को छूता हुआ घोर निर्वैयक्तिक ! <br /><br />रह गया बांस और बंसुरिया, तो हमें तो गोविन्द भी प्रिय, उनकी बंसुरिया भी !Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-72993314774236373582010-03-23T14:29:44.290+05:302010-03-23T14:29:44.290+05:30बुखार के समय मुझे विचित्र सपना आता है । दूध की बूँ...बुखार के समय मुझे विचित्र सपना आता है । दूध की बूँद बड़ी तेजी से बड़ी होती दिखायी पड़ती है । पता नहीं क्यों ? पर यदि दूध पर ब्लॉग आये तो समझ लीजियेगा कि बुखार में लिखा है ।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-63056948603050038642010-03-23T07:39:36.624+05:302010-03-23T07:39:36.624+05:30What is Indian food without paan (betel leaf). Paa...What is Indian food without paan (betel leaf). Paan is laced with kattha and slaked lime, betel nut, scented matter and scented tobacco (for those who like it) to make it more tasty. Kattha is made from boiling the stem of Acacia catechu which generally grows wild in Indian forests and is jealously guarded by the forest officials. The tree is allowed to be cut only after it attains maturity. <br /><br />Acacia=Babool=KikarZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-12386420636032880652010-03-23T06:11:58.643+05:302010-03-23T06:11:58.643+05:30ऑन्त्रेपिन्योरशिप ?
हिन्दुस्तानी ज़बान में तो शायद...ऑन्त्रेपिन्योरशिप ?<br />हिन्दुस्तानी ज़बान में तो शायद एंटरप्रिन्योरशिप ही लिखेंगे इसे? बाकी यूरोपीय उच्चारण जाने दें, पढ़े लिखों के मुंह भी वही सुना है जो हमने लिखा है। दुकानों पर ठाठ से एंटरप्राजेज या एंटरप्राइज ही लिखा चला आ रहा है। ट औ त वर्ग का अंतर है। यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितनी फ्रांस और भारत के बीच की दूरी। <br /><br />बुल्के साब बीते पांच दशकों से पचाना चाहते रहे यह उच्चारण, पचा नहीं। कुछ पढ़े लिखों की सोहबत में रेस्त्रां बोलना सीख गए पर होटलों के बोर्ड नहीं बदलवा पाए। अभी तक रेस्टॉरेंट पढ़ कर सुकून मिलता है। <br /><br />बोया पेड़ बबूल का....अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-57828173201708587902010-03-22T21:30:30.067+05:302010-03-22T21:30:30.067+05:30आप ने बचपन की याद दिला दी। बबूल तो सर्वव्यापी था। ...आप ने बचपन की याद दिला दी। बबूल तो सर्वव्यापी था। जहां तक मेरा अनुमान है, पानी खीचने का काम सिर्फ यूकेलिप्टस करता है, बबूल नहीं। बबूल तो उत्तर भारत के गांव गांव के पानी को सुरक्षित रखता है। <br /><br />सस्नेह -- शास्त्री <br /><br />हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.<br />हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !<br />मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी <br />लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??<br /><br />http://www.Sarathi.infoShastri JC Philiphttps://www.blogger.com/profile/00286463947468595377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-6088678088060612962010-03-22T21:14:33.453+05:302010-03-22T21:14:33.453+05:30"Jab raat hai aisee matwali , to subha ka aal..."Jab raat hai aisee matwali , to subha ka aalam kya hoga...?"<br /><br /><br />You write with such a great passion while ill or upset. That's really praiseworthy. But to my utter surprise, how come you think of poor babool when you do not feel well. Unfortunately my scary neighbour (Manjari), comes in my thoughts when i am down with fever . You are fortunate to have cute 'Babool thorns' in such circumstances.<br /><br />Anyways, with bouquet of roses ,wishing you good health.<br /><br />Get well soon !ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-15234344625602572862010-03-22T18:33:05.156+05:302010-03-22T18:33:05.156+05:30गोंद वोंद तो हम नहीं जानते, उसके लिये तो मांड़ या ल...गोंद वोंद तो हम नहीं जानते, उसके लिये तो मांड़ या लेई का प्रयोग कर लेते थे पर बबूल के नाम से अपने बचपन के दिन याद आ गये जब बबूल से दातून करते थे। तब तो बिनाका या सिबाका बड़े लोगों के पहुंच की चीज़ होती थी। बांस का दातुन दांत खराब ही करता था। हां उसके दूसरे उपयोग टोकड़ी से लेकर बांस घाट तक पहु़चाने में बहुत होता रहा है। आज भी। पर बबूल के दातॊन तो किस्से कहानियों की बातें रह गई हैं। <br />कटहल तो आज मेरे घर में भी बना है (सब्जी)।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-53224846598354823892010-03-22T17:46:37.949+05:302010-03-22T17:46:37.949+05:30बहुत अच्छा बर्राये हैं ।बहुत अच्छा बर्राये हैं ।विवेक सिंहhttps://www.blogger.com/profile/06891135463037587961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-21310779121410157292010-03-22T16:44:25.704+05:302010-03-22T16:44:25.704+05:30बबूल..नागफनी के कांटे का जिक्र तो बहुत पढ़ा है...शा...बबूल..नागफनी के कांटे का जिक्र तो बहुत पढ़ा है...शायद पेड़ देखे भी हों...पर पहचाना नहीं...और जहाँ रहती हूँ..वहाँ किसी और नाम से ही जाना जाता होगा....जैसे कटहल को यहाँ 'फणस' बोलते हैं...जब मम्मी को बताया तो उन्होंने बोला..यह संस्कृत शब्द है और मैं समझती थी,मराठी शब्दहै.<br /><br />सतीश जी ने अच्छी जानकारी दी..बचपन में मैंने गाँव में औरतों को एक छोटी सी डिबिया में ऐसे गोंद रखते देखे हैं.पर यह 'बबूल' के पेड़ का होता था...आज पता चला.(या शायद आम के पेड़ से भी निकलता है क्या?)<br />आपको जल्दी स्वस्थ होने की शुभकामनाएंrashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-69986823524710878232010-03-22T16:17:40.159+05:302010-03-22T16:17:40.159+05:30देव जी ,
याद आ रहा है ---
'' उधौ धन तोहरा ...देव जी ,<br />याद आ रहा है ---<br />'' उधौ धन तोहरा बिवहार !<br />आम कटावत बबुर लगावत , चन्दन झोंकत भार !! उधौ,,, ''<br />मनूधौ को मन - चन्दन बनना ही होगा ! 'तिक्तता' अल्पकालिक है , ऐसा विश्वास है ! <br />.<br />मैं कूड़ा नहीं मानता , किसी आत्मालाप को ! कम-से-कम भोक्ता लिखकर ऊर्जा पाता है !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-52506779697444354512010-03-22T15:09:16.364+05:302010-03-22T15:09:16.364+05:30अरे ज्ञानदत्त जी मन खराब है तो आप नीचे बेठे क्या क...अरे ज्ञानदत्त जी मन खराब है तो आप नीचे बेठे क्या कर रहे है?? अजी डां के पास जाये:)राज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-15582060226110032002010-03-22T13:43:02.663+05:302010-03-22T13:43:02.663+05:30भैया ब्लॉग में अधिक तर कूड़ा नहीं है अनर्गल प्रलाप...भैया ब्लॉग में अधिक तर कूड़ा नहीं है अनर्गल प्रलाप है...अनर्गल प्रलाप हमेशा कूड़ा नहीं होता...कभी कभी काम का भी होता है...आप बुखार की स्तिथि में भी इतनी अच्छी पोस्ट लिख लेते हैं कमाल है...हम तो बुखार की स्तिथि में चुपचाप पड़े रहते हैं...शरीर के साथ दिमाग भी तहस हो जाता है...आप विलक्षण हैं...निःसंदेह... <br />बबूल, यूकेलिप्टस और बांस के बारे में आपकी जानकारी कमाल की है.<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-84179307567422012572010-03-22T11:24:43.186+05:302010-03-22T11:24:43.186+05:30मन खराब है तो आप बबूल को क्यो याद कर रहे है. बबूल ...मन खराब है तो आप बबूल को क्यो याद कर रहे है. बबूल और उस जैसे अन्य कांटो की अपनी अलग अहमियत है क्योंकि कांटों के बिना फूलो का क्या वज़ूद. लेकिन जब मन ठीक न हो तो कांटो से दूर ही रेहना चाहिये. ऐसे मूड मे तो अच्छी अच्छी बाते सोचिये. मलिहाबाद के बागो मे इस साल आम की बहार है. अगर सब ठीक रहा तो फसल अच्छी जायेगी. इलाका महक रहा है. बौर अच्छी है और कीट का प्रकोप भी कम है. मेरे गरीबखाने मे भी डेढ पेड है आम के. एक पूरा अपना और एक ऐसा जो है तो पडोसी का पर फैला है मेरे घर के ऊपर. हर खास और आम के लिये आम ही आम होंगे इस साल. पडोसी के पेड के आम वैसे भी ज्याद मीठे होते है. अब बबूल का चक्कर छोड कर आम और अमरूद मे मन लगाइये.<br />एक अदद कटहल के पेड की भी टेम्पोरेरी मिल्कियत है अपने पास. अभी तो क्रिकेट की गेन्द के बराबर फल लगे है. जरा बढ जाये तो जल्लदवा की जरूरत पडेगी. कनटेक्ट बनाये रखियेगा.<br />मन की चंचलता जल्दी ठीक हो यही कामना है.sanjay kumarhttps://www.blogger.com/profile/04112606645549424323noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-76587965129003422552010-03-22T10:47:01.666+05:302010-03-22T10:47:01.666+05:30एक बबूल इत्ते फायदे. तभी तो विज्ञापन भी बोलता है- ...एक बबूल इत्ते फायदे. तभी तो विज्ञापन भी बोलता है- बबूल, बबूल पैसे वसूल...बेहतरीन पोस्ट !!<br /><br />______________<br />''शब्द-सृजन की ओर" पर- गौरैया कहाँ से आयेगीKK Yadavhttps://www.blogger.com/profile/05702409969031147177noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-36819438079994646042010-03-22T10:02:30.089+05:302010-03-22T10:02:30.089+05:30उदयपुर में ही नहीं पूरे राजस्थान में बबूल पाया जा...उदयपुर में ही नहीं पूरे राजस्थान में बबूल पाया जाता है। जिसे शू बबूल या अंग्रेजी बबूल कहते हैं वो किसी काम का नहीं है लेकिन देसी बबूल के तो कई फायदे हैं। मारवाड़ में जहाँ पानी की कमी है वहाँ या ता बबूल ही उगता है या फिर खेजड़ी। ये दोनों ही पेड़ों की पत्तियां पशुओं का आहार है। इसकी फली खाने के काम आती है और पंचकुटे का एक महत्वपूर्ण घटक है। बबूल का औषधीय उपयोग भी बहुत है।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-26843249202875089862010-03-22T07:33:04.126+05:302010-03-22T07:33:04.126+05:30कमाल है कल अपन भी ऐसे ही मूड में थे ! एक ठो पोस्ट ...कमाल है कल अपन भी ऐसे ही मूड में थे ! एक ठो पोस्ट ही लिख दिए। आप तो देखे भी नहीं होंगे- मिटा ही दिए सब एक झटके में !<br />लेंढ़ा के आगे के स्टेज को आप कटहरी कहते हैं, हमलोग कटहल ही कहते हैं - शायद काष्ठफल का तद्भव है यह।मैं मजाक में 'कष्टहर' कहता हूँ। पेट के लिए अच्छा होता है । गोमतीनगर में 50 रु प्रति किलो - महँगा न लगे इसलिए बेचने वाला चिल्लाता है - 25 रु का आधा किलो !<br />मुझे वह जल्लाद नहीं कलाकार लगता है - कितनी सफाई, सुघड़ता और तहज़ीब के साथ छीलता है - मजाल क्या कि गूदा छिलके के साथ निकल आए। चाकू से जो ज्यामितीय पैटर्न बनाता है उसकी शोभा अलग। चचा ! इस पर एक चित्रमय पोस्ट होनी चाहिए। हम जहाँ हैं, फोटो खींचेंगे तो तमाशा बन जाएँगे। <br /><br />आप ने यह बताया ही नहीं कि बाँस भूगर्भीय जल के लिए ठीक है या नहीं?गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-6228648925377105292010-03-22T07:01:39.390+05:302010-03-22T07:01:39.390+05:30@ Udan Tashtari - हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका ...<b>@ Udan Tashtari - हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!<br /></b><br /><br />आपने समझा कि मैं हिन्दी लिख लेता हूं। इसके लिये धन्यवाद!<br />जौहरी कभी कभी परख में गलत कर सकता है, नहीं?!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-44820405235629537982010-03-22T07:00:00.342+05:302010-03-22T07:00:00.342+05:30पूरा म्यूजिंग के मूड में हैंपूरा म्यूजिंग के मूड में हैंArvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-78141271299597985352010-03-22T06:25:46.030+05:302010-03-22T06:25:46.030+05:30तबीयत ठीक नहीं है..यह तो दिख गया मगर कटहरी काहे या...तबीयत ठीक नहीं है..यह तो दिख गया मगर कटहरी काहे याद दिला दिये हम जैसे लोगों को..हम तो चाहते हैं, आप जल्दी ठीक हों!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-53232996466012317992010-03-22T05:57:41.312+05:302010-03-22T05:57:41.312+05:30बबूल की गोंद जिसे हम लाटा कहते हैं, का एक उपयोग यह...बबूल की गोंद जिसे हम लाटा कहते हैं, का एक उपयोग यह भी है कि महिलायें अपनी पुरानी बिंदिया में ( जिसका गोंद निकल गया हो) माथे पर चिपकाने वाले पदार्थ के रूप में करती रही हैं। पहले के समय रोज रोज कोई नई बिंदिया नहीं बदलता था, बबूल का लाटा लिया, गोंद सूख चुकी पुरानी किसी बिंदिया के पृष्ठभाग पर चिपकाया और माथे से लगा लिया। <br /> <br /> आजकल तो विभिन्न प्रकार की बिंदिया देखने मे आती है उनके नाम भी बडे फन्ने खां सरीखा होते है :) <br /><br /> जहां तक बांस की बात है तो बांस से वैसे भी न जाने कितने चीजें टोकरी से लेकर ट्रैक्टर के पीछे लगने वाले हेंगा तक बनाये जाते हैं।<br /> <br /> यदि बांस न होते तो दूसरी मजिल तक परीक्षा हाल की खिडकी तक लोग नकल कैसे पहुंचाते। ( हाल ही में टीवी पर एक परीक्षा केन्द्र का यह नजारा देखा है) <br /><br /> औऱ सबसे बढकर यदि बांस न होते तो कैसे रेणु जी 'मैला आँचल' में बंसवारी में मच्छरों से कटवाते :)सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.com