tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post1007579908484040211..comments2024-03-15T04:14:04.408+05:30Comments on मानसिक हलचल: रुपये की पांचवी चवन्नी कहां है?Gyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-52069063011536320602007-07-03T20:29:00.000+05:302007-07-03T20:29:00.000+05:30इस मुक्त अनुवाद के लिये शुक्रिया. मैं ने किताब खरी...इस मुक्त अनुवाद के लिये शुक्रिया. मैं ने किताब खरीदने का मन कर लिया है.Shastri JC Philiphttps://www.blogger.com/profile/00286463947468595377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-43076122636274960712007-07-03T14:23:00.000+05:302007-07-03T14:23:00.000+05:30ज्ञान जी ये बहुत अच्छा हुआ, आप इसी तरह पुस्तकें ...ज्ञान जी ये बहुत अच्छा हुआ, आप इसी तरह पुस्तकें खरीदते रहिये और उनके बारे में विवरण लिखते रहिए । हम ज्ञान बिड़ी पीते रहेंगे । हर फिक्र को धुंए में उड़ाते रहेंगे । <BR/>वैसे मुझे ऐसा लगता है कि भारतीय ग्राहक की ख़रीदारी की बातें किशोर बियाणी ने बहुत स्थूल रूप में समझी हैं । राज्य के स्तर पर भी इतना जनरलाईज़ेशन नहीं चलता, नौकरीपेशा और व्यापारी वर्ग में भी काफी फ़र्क आ जाता है । ये कोई बहुत बड़ा अवलोकन लेकर नहीं आए बियाणी जी । ज़बर्दस्ती का बनाया पेंच है ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-12202542583017433472007-07-03T11:04:00.000+05:302007-07-03T11:04:00.000+05:30जानकारी देने के लिए आभार!!मै आलोक जी की इस मांग से...जानकारी देने के लिए आभार!!<BR/>मै आलोक जी की इस मांग से सहमत हूं कि आप अपनी पढ़ी हुई किताबों का सार संक्षेप उपलब्ध कराते रहें इस से हमारा भी "ज्ञान"वर्धन होता रहेगा।Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-63101050956817389882007-07-03T10:30:00.000+05:302007-07-03T10:30:00.000+05:30ये ज्यादती है,पूरे समाज के साथ,आपने केवल ५०% मालिक...ये ज्यादती है,पूरे समाज के साथ,आपने केवल ५०% मालिको के बारे मे लिखा है,अब अगली पोस्ट मे थैला उठाने,और पैसा देने वाले की (कभी कभी गलती से) खरीदने और झाड खाने की पॄवत्ती के बारे मे लिखे लेख तबी पूरा और बैंलेंस माना जायेगाArun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-80621901542704739212007-07-03T09:25:00.000+05:302007-07-03T09:25:00.000+05:30किताब के महत्वपूर्ण अंश हम तक पहुंचाने के लिए धन्य...किताब के महत्वपूर्ण अंश हम तक पहुंचाने के लिए धन्यवाद। मैं आजकल बोगले की मुचुअल फंड पर लिखी किताब में फंसा हुआ हूं। उससे निकलते ही बियाणीजी को पकड़ूंगा। मेरा सुझाव यह है कि आप अपनी पढ़ी हुई सारी किताबों का सार -संक्षेप ऐसे ही प्रस्तुत करें। ज्ञान -वर्धन होगा। <BR/>और जी खरीदारी तो मल्लिका सहरावत, प्रीति जिंटा भी करती होंगी, उनके फोटू क्यों नहीं।ALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-45335710684211728662007-07-03T08:47:00.000+05:302007-07-03T08:47:00.000+05:30समीर उवाच > अच्छा शोध किया है और मैं सहमत हूँ........<B> समीर उवाच > अच्छा शोध किया है और मैं सहमत हूँ.....बहुत सही. अब सोता हूँ.</B><BR/><BR/>अब इतना बुरा भी नहीं है कि पढ़ने से नींद आये! <BR/><BR/><B> रंजन उवाच > ...आपने तीनो चित्र महिलाओ के ही क्यो लगाये है:)</B><BR/> <BR/>भैया मेरे घर में किराने की खरीद में केवल मेरी पत्नी की चलती है. मैने सोचा सब जगह वैसा ही होगा! आपके साथ मामला पुरुष प्रधानता का है क्या? :)Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-13517868140279501012007-07-03T07:55:00.000+05:302007-07-03T07:55:00.000+05:30अच्छा साहेब! लेकिन एक बात समझ नही आई आपने तीनो चित...अच्छा साहेब! लेकिन एक बात समझ नही आई आपने तीनो चित्र महिलाओ के ही क्यो लगाये है:)<BR/>पुरुष कि आदतो के बारे मे बियाणी जी क्या फरमाते है?रंजन (Ranjan)https://www.blogger.com/profile/04299961494103397424noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-76251568173208597452007-07-03T07:52:00.000+05:302007-07-03T07:52:00.000+05:30अच्छा शोध किया है और मैं सहमत हूँ.....बहुत सही. अब...अच्छा शोध किया है और मैं सहमत हूँ.....बहुत सही. अब सोता हूँ.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7822286262846371486.post-85710026466932856632007-07-03T07:22:00.000+05:302007-07-03T07:22:00.000+05:30यह तो सही है कि हर जगह का खरीददार अलग मन:स्थिति का...यह तो सही है कि हर जगह का खरीददार अलग मन:स्थिति का होता है। उसे पटाना मेहनत का काम होता है।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.com