Sunday, September 12, 2010

कैलीफोर्निया में श्री विश्वनाथ

यह श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ जी की अतिथि पोस्ट है।


हाल ही में पत्नी के साथ कैलिफ़ोर्निया गया था। अपने बेटी और दामाद के यहाँ कुछ समय बिताकर वापस लौटा हूँ।

P1000905s बेटी और दामाद पिछले १० साल से वहीं रह रहे हैं और कई बार हमें आमंत्रित किए थे पर पारिवारिक और व्यवसाय संबन्धी मजबूरियों के कारण मैं जा न सका।

पत्नी दो साल पहले अकेली हो आई थी पर मेरे लिए यह पहला अवसर था।

केवल चार सप्ताह रहकर आया हूँ और वह भी केवल कैलिफ़ोर्निया के खाडी इलाके(Bay Area of California) में।  अमरीका विशाल देश है और केवल एक महीने तक रहकर, पूरे देश के बारे में टिप्पणी कर सकने में मैं अपने आप को असमर्थ समझता हूँ और वह अनुचित भी होगा।

पर्यटक स्थलों के बारे में विवरण देना भी मैं नहीं चाहता। आजकल अंतर्जाल पर सब कुछ उपलब्ध है। बस केवल कुछ विचार, राय, अनुभव, इत्यादि के बारे में लिखना चाहता हूँ।

यह पहली किस्त है और आगे और लिखूँगा। जहाँ उचित लगे  कुछ तसवीरें भी पेश करूँगा जो मैंने अपने मोबाइल फ़ोन से खींची थी।

मेरे कुछ विचार:

१) सबसे पहली बात यह कि यहाँ शोर नहीं होता। सडकें शांत हैं, आवाजें नहीं के बराबर. पूरे महीने में एक बार भी मैंने किसी वाहन का हॉर्न बजते सुना ही नहीं। सैन फ़्रैनसिस्को जैसे शहर में भीं नहीं जहाँ ट्रैफ़िक काफ़ी था। तेज रफ़्तार से चलने वाली कारों का रास्ते पर टायरों के घिसने की आवाज मात्र सुनने को मिली। बसें, ट्रकें सभी वाहन बिना कोइ आवाज किए चलते थे। आसपास के घरों से भी कोई आवाज सुनाई नहीं दी। बाजारों में भी कोई शोर गुल बिल्कुल नहीं। मैं तो भारत में डीसल एन्जिन का शोर, हॉर्न की आवाज, बिना साईलेंसर के ऑटो रिक्शा, मोटर सायकल  इत्यादि का आदि हो चुका हूँ और वहाँ का यह सन्नाटा अजीब लगा।

२) यह अमरीकी लोग कहाँ चले गए? बहुत कम दिखाई दिए। ज्यादातर लोग भारतीय, या चीनी या कोरिया या अन्य कोई एशियायी देशों के नज़र आए। अफ़्रीकी अमेरिकन लोग भी बहुत कम नज़र आए। शायद यह केवल कैलिफ़ोर्निया  की खाडी इलाके की विशेषता है।

३) एक भी सड़कीय  कुत्ता (stray dog/cat) दिखाई नहीं दिया। सभी पालतू निकले। कुत्ते भौंकते भी नहीं। विश्व का सबसे छोटा कुत्ता पहली बार देखने को मिला (Chiuhaha). यह इतना छोटा है कि किसी महिला के  हैंड बैग में फ़िट हो सकता है। जब मैं टहलने निकलता था तब तरह तरह के पालतु कुत्ते देखे. मुझे कुत्तों का शौक है और कई बार किसी अनजान कुत्ते से दोस्ती करने निकला पर किसी कुत्ते ने मुझे कोई "लिफ़्ट" नहीं दिया। इतनी अच्छी ट्रेनिंग देते हैं इन कुत्तों को, कि किसी अजनबी से संपर्क नहीं करते। मालिक कुत्ते का मल रास्ते से साफ़ करके ही आगे निकलता था। नहीं तो जुर्माना लगता था।

P1000945s

आगे अगली किस्त में
आप सब को मेरी शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ


21 comments:

  1. अब तक तो टिप्पणी लायक कुछ नहीं है -आगे देखते हैं !

    ReplyDelete
  2. विश्वनाथ जी,
    पहले पता होता तो हम भी आपसे मिल लेते.
    मैं भी सैनफ्रांसिस्को के खाड़ी क्षेत्र में ही रहता हूँ.
    कुछ समय पहले अजित गुप्ता जी और निर्मला कपिला जी से मेरा यहीं पर पहली बार मिलना हुआ था.

    -राजीव

    ReplyDelete
  3. मल्टी कल्चरल तो अमेरिका है. लगभग सारे बड़े शहर ऐसे ही हैं.

    ReplyDelete
  4. केवल एक महीने तक रहकर, पूरे देश के बारे में टिप्पणी कर सकने में मैं अपने आप को असमर्थ समझता हूँ और वह अनुचित भी होगा।
    इस स्वीकारोक्ति से ही पता लग गया है कि आपका यात्रा वृत्तांत बिला-नागा पढना पडेगा।

    ReplyDelete
  5. सभी के अनुभव एक से हैं लेकिन आपके अनुभव पढ़ने की इच्‍छा रहे्गी, लिखते रहिए।

    ReplyDelete
  6. विश्वनाथ जी ने कैलीफ़ोर्निया के बारे में अच्छा लिखा है। आगे की पोस्ट का इन्तजार रहेगा।

    ReplyDelete
  7. कुत्ते ने लिफ्ट नहीं दी...

    वहाँ के कुत्ते भी लगता है हाई प्रोफाइल हैं..

    ReplyDelete
  8. कारों का शोर नहीं होता है, कुत्ते नहीं भौकते हैं, गोरे नहीं दिखायी पड़ते हैं। यह कौन सा देश है, वहाँ रह कर तो बोर ही होना तय है।

    ReplyDelete
  9. बहुत सुंदर लगा,आगे कुछ नही लिखूगां

    ReplyDelete
  10. "सडकें शांत हैं, आवाजें नहीं के बराबर. पूरे महीने में एक बार भी मैंने किसी वाहन का हॉर्न बजते सुना ही नहीं"

    शायद आप न्य़ू यार्क नहीं गए !!!!

    ReplyDelete
  11. अब लौट कर बता रहे हैं तो क्या कहें..बढ़िया रहा यही कह सकते हैं. :)

    ReplyDelete
  12. ट्रैवलाक महत्वपूर्ण होते हैं, हमें नये स्थान और वहां की सन्सक्रिति की जानकारी देते हैं। ऐसे ट्रैवलाक और लेख जरूर लिखे जाने चाहिये। विश्वनाथ जी को बधाई।

    ReplyDelete
  13. संक्षिप्त और अच्छी पोस्ट है। "लिफ्ट न देने" को हिन्दी में "घास न डालना" भी कहते हैं। यदि यहाँ इस मुहावरे का प्रयोग होता तो व्यंजना बहुत निखर जाती। मैं तो केवल कल्पना मात्र से ही उस के सौंदर्य से रोमांचित हो रहा हूँ।
    अमरीका इस दुनिया का सब से विकसित देश है। वहाँ का समाज भी हम से बहुत आगे विकास कर चुका है। इस में तकनीक का भी बहुत योगदान है। हम अमरीकी समाज की बुरी चीजों को तो तुरंत अपनाते हैं लेकिन उन की अच्छाइयाँ अपनाने में स्वयं को शायद बहुत बदलना होगा।

    ReplyDelete
  14. इतना सन्‍नाटा भी अजीब लगता होगा...
    वैसे अपनी तारीफ क्‍या करुं...इतना ज्‍यादा हॉर्न का प्रयोग करता हूं कि क्‍या बताऊं...शायद इसीलिए इस देहाती इलाके में वाहन चला पाता हूं

    ReplyDelete
  15. अब तक तो वही सामने आया है जो जाना हुआ है। किन्‍तु, जैसा कि अनुरागजी (स्‍मार्ट इण्डियन) ने कहा है, आपकी बेबाकी के कारण आपकी अगली पोस्‍ट की प्रतीक्षा है।

    ReplyDelete
  16. हम भारतीय (एशियाई !) शोर के बिना कहाँ चैन से रह पाते हैं ...
    ना ईश्वर तक को रहने देते हैं ...!

    ReplyDelete
  17. बहुत खूब

    स्वास्थ्य संबधी जानकारी के लिए इस ब्लॉग को देखे.

    http://prakriti-shobha.blogspot.com/

    ReplyDelete
  18. सभी मित्रों को धन्यवाद। पोस्ट की लंबाई के कारण इसे किस्तों में पेश कर रहा हूँ।

    @अरविन्द मिश्राजी,
    कोई बात नहीं। अगली किस्त में आशा करता हूँ कि आपको टिप्पणी करने योग्य कोई बात मिल जाएगी। ईन्तज़ार करेंगे।

    @राजीवजी,
    यह तो केवल पहली यात्रा थी, आखरी नहीं। अगली बार अवश्य आप से संपर्क करेंगे।


    @अभिषेक ओझाजी,
    सहमत हूँ आपसे। लेकिन कैलिफ़ोर्निया का खाडी इलाका कुछ ज्यादा ही मल्टिकल्चरल लगता है। सुना है कि अमरीका के दक्षिण प्रान्तों में माहौल बिल्कुल अलग है।

    @स्मार्ट इन्डियनजी,
    धन्यवाद, कुछ और किस्तें बाकी हैं। एक साथ प्रस्तुत करना उचित नहीं समझा। लोग बोर हो जाएंगे।
    आशा करता हूँ कि आप आगे की किस्तों को भी पढकर टिप्प्णी करेंगे। इन्तज़ार रहेगा।

    @प्रवीण पाण्डेयजी,
    आपने ठीक कहा। हमारी उम्र के कई मित्र हैं जो वहाँ जाकर कुछ ही दिनों में बोर हो जाते हैं।
    एक मित्र ने कहा के वहाँ अपने बेटे का धर एक five star prison है। कहीं अकेले बाहर नहीं जा सकते।
    आप तो बेंगळूरु में ही रहते हैं। कई महीनों से आपसे मिलना चाहता था, फ़ुरसतानुसार। आपको फ़ोन करूँगा। इन्तजार कीजिए।

    @मनोज खत्रीजी,
    केवल कुत्ते नही। बिल्लियाँ भी ! मुझे एक महीना लगा पडोसी की बिल्ली से दोस्ती कर सकने में। उसे दूध या ब्रेड का घूस देना चाहा तो बेटी ने मना किया। कहा कि पडोसी को आपत्ति होगी। कहेंगे हमारे खिलाने से बिल्ली बीमार हो सकती है।
    बार बार चेतावनी देती रही, कि याद रखो, यह भारत नहीं, अमरीका है। यहाँ के तौर तरीके, रिवाज वगैरह बिल्कुल अलग है।

    @cmpershaadजी,
    नहीं , न्यू यॉर्क नहीं गया पर अगली बार अवश्य जाऊँगा। सुना है मुंम्बई जैसा माहौल है वहाँ।
    ट्रान्स्पोर्ट का कोई प्रोब्लेम नहीं होता हम भारतीयों के लिए। कार की आवश्यकता नहीं। पब्लिक ट्रान्स्पोर्ट का बहुत बढिया इन्तजाम है वहाँ।

    @दिनेशरायजी,
    धन्यवाद। आपसे कुछ नया सीखने को मिल गया। आशा है कि आप इधर उधर मेरे कुछ अंग्रेज़ी के शब्दों को क्षमा करेंगे।
    ज्ञानजी जैसा गया बीता तो नहीं हूँ । वे तो, बिना कोई मजबूरी के, जादू करके हवा से नये हिंगलिश के शब्द पैदा करके अपने ब्लॉग में ठूंस देते हैं। मैं तो एक अहिन्दी भाषी हूँ और जानबूझकर ऐसा नहीं कर रहा हूँ। आशा है कि धीरे धीरे अपनी भाषा को शुद्ध कर लूँगा। आपसे सहमत हूँ की अमरीका हमसे बहुत आगे है, तकनीकी मामलों में। आगे की किस्तों में कई उदाहरण पेश करूँगा।

    @ राज भाटिया जी, हेमंतजी, अजीत गुप्ताजी, समीर लालजी, मनोज कुमारजी, विनोद शुक्लाजी, विष्णु बैरागी जी, भुवनेश्जी, वाणी जी, शोभाजी,

    आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद। आशा है अगली किस्तें भी आप पढेंगे।

    सब को मेरी शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ, बेंगळूरु

    ReplyDelete
  19. अपने देश में शोर का आदी हो चूका मन यह ठीक ठीक कल्पित नहीं कर पा रहा...पर यह अवश्य लग रहा है कि काश यहाँ इसका आधा भी होता...
    यहाँ जिन्होंने भी पालतू पशु रख रखे हैं,उनका मल उत्सर्जन सार्वजानिक स्थानों पर बेहिचक करवाते हैं,आपने तो देखा ही होगा...अरे कुक्कुरों की तो छोडिये,कभी बिहार घूम आइये...रेल पटरी, सड़क,मैदान,नदी तालाब कूल , इत्यादि सर्वाधिक पसंदीदा शौचालय हैं.....

    ReplyDelete
  20. तो विश्वनाथ जी योसेमिटी भी गए थे. कैम्पिंग की की नहीं?

    ReplyDelete
  21. @ राग

    हाँ, योसमिटि पार्क गया था। चित्र देखकर आप को पता चल गया होगा। जाहिर है आप भी वहाँ गए हैं।
    पर कैंपिन्ग? और इस उम्र में? नहीं भाइ। रात को किसी होटल में ठहरे।
    लेक टैहो, मिस्ट्री स्पॉट, सैंटा क्रूज़ बीच, और सैन फ़्रैन्सिस्को शहर और गोल्डन गेट ब्रिज देखे और खाडी इलाके के प्राय सभी नगरों की सैर की और दोस्तों और रिश्तेदारों से मिला। एक महीना ही रहा था। क्या क्या देखूँ? अकेले बाहर तो निकल ही नहीं सकते थे। अपनी बेटी और दामाद पर पूरी तरह निर्भर था, कही बाहर जाने के लिए। वे भी केवल शनिवार और रविवार हमें बाहर ले जा सकते थे घुमाने के लिए। टिप्पणी के लिए आपको और रंजना जी को भी धन्यवाद
    जी विश्वनाथ

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय